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संस्कृतविद मोलवी, गोभक्त मुसलमान और नमाज की मुद्राओं में ऋचाएं पढ़ता एक वैदिकधर्मी युवक!

मेरे पिता को ऋग्वेद पूरा कंठस्थ था। वे अग्नि सूक्त से संज्ञान सूक्त तक धाराप्रवाह सुना सकते थे। यजुर्वेद तो उनके लिए सहज पाठ था। वह भी कंठस्थ, लेकिन हैरानी की बात ये थी कि उन्हें कुरआन की आयतें भी बहुत याद थीं और थोड़ी-बहुत अरबी और फ़ारसी में भी वे हाथ मार लिया करते थे।

एक बार दूध देने वाली 50-60 राठी गाएं लेकर कुछ मुसलिम हमारे इलाके (गंगानगर) में बीकानेर से आए तो उन्हें कई गांवों में किसी ने जगह नहीं दी। सूरज ढल रहा था। किसी ने उन्हें बताया कि अगले गांव चक 25 एमएल में एक घोड़े पालने वाला शालिहोत्री रहता है। वह गाय पालने वालों को अवश्य जगह दे सकता है।

राठी गायों को लेकर वे मुस्लिम सज्जन हमारे गांव आए। घोड़े वाले का घर पूछते-पूछते हमारे घर आ गए। रात ढल गई थी। पिता बोले, ‘अतिथि देवो भवः!’ मेरी मां नाराज़ हुईं। कुछ साल पहले ऐसे ही एक देवोभवः को रुकवाया और सुबह वह हमारी गाय चुराकर ले गया! बाबा बोले, ‘कहां गया तो! वापस देकर ही गया ना!’ (इसकी एक अलग अंतर्कथा है।)

राठी गाएं घर के आगे आकर रंभाने लगीं, तो मां से भी रहा न गया और बोलीं, ‘ये गाएं लेकर आए हैं तो आने दो।’ उन्हें खाना पूछा तो वे बोले, ‘खाना तो हम आपके घर के बाहर ख़ुद ही चार ईंटें रखकर चूल्हा जलाकर बना लेंगे। बहन आप बस हमें कुछ सामान दे दो। हमारे पास आटा नहीं है।’ उन्होंने खाना बनाया। वे रात भर रुके, लेकिन तारों भरी रात में मेरे पिता ने उन्हें कुरआन की आयतें सुनाईं तो वे सब रेतीली ज़मीन पर ही सज़दा करके बैठ गए। प्रभावित इतने हुए कि इतनी सारी गायों का दूध निकालने लगे तो हमारे घर की सब बाल्टियां और बर्तन भर गए। दो तो पानी के घड़े भी भर गए। इसके बाद मां ने पड़ोस के छीरा सिंह को आवाज़ दी, जिन्हें मैं मामा कहता था। वे कुछ दोस्तों को साथ लेकर गन्ने के रस से गुड़ बनाने वाला बड़ा कड़ाहा लेकर आए। उसमें खीर बनी और पूरे गांव में बंटी।

उस रात मेरे पिता ने उन गोभक्त मुस्लिमों से बातचीत करते हुए अरबी सीखने को लेकर एक दिलचस्प किस्सा सुनाया। वे कह रहे थे कि उनके पिता पंडित छत्तूराम ब्राह्मण ने अपने दोस्त मोलवी साहब से कहा कि वे उनके बेटे को अरबी सिखाएं, लेकिन इन मोलवी साहब की पाठशाला में नमाज पढ़ना अनिवार्य था। मोलवी साहब और पंडित छत्तूराम के बीच सहमति हो गई, लेकिन पूरे गांव और रिश्तेदारों में हंगामा हो गया कि क्या अब एक ब्राह्मण का बेटा नमाज़ पढ़ेगा! लेकिन पंडित छत्तूराम बोले, ‘अगर नमाज़ पढ़ने से मुसलमान ही सच्चे मुसलमान नहीं बन सके तो एक ब्राह्मण का बेटा मुसलमान कैसे बन जाएगा! और वेदपाठ से कोई हिन्दू मानवीय मूल्य धारण नहीं कर सका तो कोई दूसरा कैसे कर लेगा!’

ख़ैर, मेरे पिता मोलवी साहब के यहां जाने लगे तो वहां उन्हें अरबी सिखाई जाने लगी। मोलवी साहब के अन्य शिष्य जब नमाज पढ़ते तो मोलवी साहब मेरे पिता से वेद मंत्र पढ़वाते, लेकिन अष्टांग योग के साथ। कहते, तुम सूर्य नमस्कार से शुरू करो और पृथ्वी नमस्कार पर पूर्ण करो! वे दिन में पांच बार ऐसा करते और अरबी सीखते। इसीलिए जब कभी उनके रिचुअल विरोधी आचरण पर कट्टरपंथी कटाक्ष करते तो वे हंसकर जवाब देते, ‘आप ज्यादा से ज्यादा त्रिकाल संध्या कर सकते हो, मैं पंचकाल संध्या-वंदन युवा अवस्था में ही कर चुका!’

पिता बताया करते थे कि उनके अरबी गुरु मोलवी साहब बहुत ही अच्छे संस्कृत ज्ञाता थे। उन्हें वेद, उपनिषद और बहुत से ग्रंथ कंठस्थ थे। वे योग की सभी क्रियाएं दक्षता से करते थे। वे उच्चारण, गायन और पाठन में पंडितों को दूर बिठाते थे। उन्हें भास, कालिदास जैसे कवियों की कृतियां कंठस्थ थीं। मेरे पिता ने बहुत से छंदों का गायन उनसे सीखा था। इनमें शिखरणी छंद प्रमुख है। वे उसे जिस मधुर ढंग से गाते थे, वह अदभुत था।

आज जब मैं बीएचयू, गोरक्षा और योग की बातें सुन-पढ़कर और जेएनयू को बंद कराने के कोलाहल के बीच अपने पिता को याद करता हूं तो लगता है कि एक आदमी अभी घोड़े से उतरेगा। हाथ में लगाम लेगा, और पूछेगा, ‘शराब के ठेके बंद कराते नहीं, बेटियों से दुराचारियों को रोक नहीं पाते, हर कोई चोरी और सीनाजोरी करता है, सारे नेता दीमक की तरह जनधन को खाए जाते हैं। उनके सामने बोलने की हिम्मत नहीं है। एक गुरुकुल को बंद करवा रहे हो दुष्ट पापात्माओं!!!’

बीएचयू पर वे कहते, ‘एक मुस्लिम युवक जो आपसे कहीं सुसंस्कृत है, उसे रोककर आप संस्कृत और संस्कृति का नुकसान कर रहे हो! …तुम सब बगुला भगत हो!!!’

त्रिभुवन की फेसबुक वाल से

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और उदयपुर में रहते हैं।)

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