नॉर्थ ईस्ट डायरी: नगालैंड विधानसभा में अफस्पा को निरस्त करने का प्रस्ताव पारित

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नगालैंड विधानसभा ने 20 दिसंबर को सर्वसम्मति से सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (अफस्पा) को निरस्त करने की मांग करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया। इस महीने की शुरुआत में सुरक्षा बालों द्वारा 14 लोगों की जान लेने की घटना के बाद इस कानून पर विचार करने के लिए विधानसभा का एक विशेष सत्र आयोजित किया गया।

सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम को निरस्त करने की मांग, जो नगालैंड और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में बिना वारंट के गिरफ्तारी और यहां तक कि कुछ स्थितियों में मारने के लिए सैनिकों को व्यापक अधिकार देता है, नागालैंड के मोन जिले के ओटिंग में हत्याओं के बाद से लगातार बढ़ती जा रही है। राज्य की राजधानी कोहिमा में बड़े पैमाने पर विरोध रैलियां की गई हैं, साथ ही राज्य मंत्रिमंडल ने भी कानून को निरस्त करने की सिफारिश की है।
सोमवार का प्रस्ताव, जिसे ध्वनिमत से पारित किया गया था, को मुख्यमंत्री रियो ने पेश किया, जिन्होंने कहा कि “पूरा नगा समाज” अफस्पा को निरस्त करने की मांग कर रहा है। उन्होंने कहा, “इस सदन को लोगों की इच्छा को पूरा करना चाहिए। लोगों की इच्छा इस अलोकतांत्रिक और कठोर कानून को निरस्त करने की है।”

विधानसभा सत्र की शुरुआत विधायकों ने 14 मृतकों की ‘स्मृति और सम्मान’ में दो मिनट का मौन रखकर की। प्रस्ताव में ओटिंग नरसंहार की निंदा की गई और “उपयुक्त प्राधिकारी” से माफी की मांग की गई। इसने अमानवीय नरसंहार को अंजाम देने वालों पर देश के कानूनों को लागू करके न्याय देने की भी मांग की।

चर्चा के दौरान उपमुख्यमंत्री यानथुंगो पैटन ने कहा कि “शक्ति और प्रतिरक्षा” ने वर्षों से “सुरक्षा बलों के सदस्यों द्वारा घोर दुर्व्यवहार के उदाहरण” दिए हैं। उन्होंने कहा कि राज्य को फिर से “अशांत क्षेत्र” के रूप में अधिसूचित करने से पहले केंद्र को राज्य सरकार की राय लेनी चाहिए।
“राज्य सरकार ने नगालैंड को अशांत क्षेत्र घोषित करने वाली अधिसूचना का लगातार इस आधार पर विरोध किया है कि नगालैंड में समग्र कानून व्यवस्था कई वर्षों से अच्छी है। इसके अलावा सभी नगा राजनीतिक समूह भारत सरकार के साथ संघर्ष विराम में हैं।” पैटन ने कहा, चल रही शांति वार्ता सही दिशा में आगे बढ़ रही है, जिससे नगा राजनीतिक मुद्दे के जल्द समाधान की उम्मीद है।
सदन ने कहा कि इसने नागरिकों और नागरिक समाज संगठनों की अफस्पा को निरस्त करने और “न्याय प्रदान करने” की उनकी मांग की “सराहना और समर्थन” किया है, साथ ही नागरिकों से लोकतांत्रिक मानदंडों और अहिंसा का पालन करने का आह्वान किया है।

अफस्पा असम, नगालैंड, मणिपुर (इंफाल नगर परिषद क्षेत्र को छोड़कर), अरुणाचल प्रदेश के चांगलांग, लोंगंडग और तिरप जिलों के साथ असम की सीमा से लगे अरुणाचल प्रदेश के जिलों के आठ पुलिस थाना क्षेत्रों में आने वाले इलाकों में लागू है।
नगालैंड में छात्र संघों के एक छत्र निकाय ‘नार्थ ईस्ट स्टूडेंट्स आर्गनाइजेशन’ (एनईएसओ) ने कहा कि अगर केंद्र पूर्वोत्तर के लोगों के कल्याण और कुशलता के बारे में चिंतित है तो उसे कानून को निरस्त करना चाहिए। एनईएसओ के अध्यक्ष सैमुअल बी जेयरा कहते हैं, ‘सशस्त्र बल पूर्वोत्तर में क्रूरता के साथ काम कर रहे हैं और उन्हें सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम, 1958 के रूप सख्त कानून लागू होने से और बल मिल गया है।’

उनका कहना है कि नगालैंड के मोन की घटना से अतीत की भयानक यादें ताजा हो गईं जब कई मौकों पर सुरक्षा बलों ने उग्रवाद से लड़ने के नाम पर ‘नरसंहार किया, निर्दोष ग्रामीणों को प्रताड़ित किया और महिलाओं से दुष्कर्म किया’।
आल असम स्टूडेंट्स यूनियन (एएएसयू) के मुख्य सलाहकार समुज्जल कुमार भट्टाचार्य कहते हैं, ‘सुरक्षा बलों की कार्रवाई अक्षम्य और जघन्य अपराध है।’ ‘मणिपुर वीमेन गन सर्वाइवर्स नेटवर्क’ और ‘ग्लोबल अलायंस ऑफ इंडिजिनस पीपल्स’ की संस्थापक बिनालक्ष्मी नेप्राम कहती हैं कि इस क्षेत्र के नागरिकों और स्थानीय लोगों को मारने में शामिल किसी भी सुरक्षा बल पर कभी आरोप नहीं लगाया गया और न ही गलती के लिए उन्हें सलाखों के पीछे डाला गया। अफस्पा ‘औपनिवेशिक कानून’ है, जो सुरक्षा बलों को ‘हत्या करने का लाइसेंस’ देता है।

(दिनकर कुमार दि सेंटिनेल के पूर्व संपादक हैं।)

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