मौसम वैज्ञानिकों के लिए यह खबर चिंताजनक है। हाल ही में, काठमांडू के ऊपरी क्षेत्रों जैसे गोपालेश्वर, भांजयांग, सुखोल और फुलचौक के कुछ घरों से 9 किंग कोबरा और 1 मोनोकल्ड कोबरा पकड़े गए, जिन्हें सुरक्षित जंगली क्षेत्रों में छोड़ा गया। यह क्षेत्र माउंट एवरेस्ट का हिस्सा है, जहां का तापमान इन सांपों के रहने के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता। फिर भी, मौसम वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि के कारण ये सांप अब इन ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भी पाए जा रहे हैं।
पिछले सप्ताह काठमांडू पोस्ट में प्रकाशित एक खबर में बताया गया कि आसपास के जंगलों में इन सांपों के अंडे और घोंसले देखे गए हैं। यह खबर आकर्षक होने के साथ-साथ चिंताजनक भी है। किंग कोबरा, जो दुनिया के सबसे जहरीले सांपों में से एक है, सामान्यतः भारत और दक्षिण एशिया के घने, नम और उष्ण जंगलों में पाया जाता है। इसी तरह, मोनोकल्ड कोबरा भी नमी वाले क्षेत्रों में रहता है। नेपाल जैसे उच्च हिमालयी क्षेत्रों में, जहां तापमान कम और नमी की मात्रा भी सीमित होती है, इन सांपों का पाया जाना हैरान करने वाला है।
मिथिला वाइल्डलाइफ ट्रस्ट के सुबोध आचार्य के हवाले से टाइम्स ऑफ इंडिया ने बताया कि संभवतः ये सांप नीचे के क्षेत्रों से ट्रकों में लदे सामान के साथ आए होंगे। हालांकि, यहां पहुंचने के बाद इन्होंने इन क्षेत्रों को अपना घर बना लिया। फिर भी, अधिकांश विशेषज्ञों का मानना है कि पहाड़ों में इनकी अचानक उपस्थिति जलवायु परिवर्तन का परिणाम है।
नेपाल के पर्यावरण में बदलाव अब स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि पिछले 15 वर्षों में अधिकतम तापमान प्रतिवर्ष 0.05 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम तापमान 0.03 डिग्री सेल्सियस की दर से बढ़ रहा है। पहाड़ी क्षेत्रों में तापमान वृद्धि तराई क्षेत्रों की तुलना में अधिक तेज है। तराई, जो पहाड़ों का निचला नम क्षेत्र है, सांपों के लिए अनुकूल माना जाता है। इन क्षेत्रों में सांपों की गतिविधियां पहले से ही देखी जा रही थीं, और सांपों के काटने के इलाज के लिए स्वास्थ्य केंद्र भी स्थापित किए गए हैं।
किंग कोबरा कई कारणों से इंसानों के लिए खतरनाक है। इसकी औसत दौड़ने की गति 19 किमी प्रति घंटा है, जो सामान्य इंसान की औसत गति (15 किमी प्रति घंटा) से अधिक है। हालांकि, यह गति दोनों के लिए थोड़ी कम या अधिक हो सकती है, लेकिन हमले के समय यह अत्यंत घातक साबित होती है।
किंग कोबरा ऊपर उठने, फुफकारने और तेजी से आगे बढ़ने की क्षमता रखता है, जिससे यह न केवल शिकार को पकड़ता है, बल्कि सामने वाले के हमले से बचाव की रणनीति भी अपनाता है। इसकी शारीरिक बनावट इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसकी हल्की और लचीली हड्डियां, मजबूत मांसपेशियां, तीव्र सूंघने की क्षमता और रीढ़ की हड्डी का लचीलापन इसे तेजी से ऊपर उठने, नीचे झुकने और आगे बढ़ने में सक्षम बनाता है।
इसका विष तंत्रिका तंत्र पर हमला करता है और रक्त को विषाक्त बनाकर मृत्यु का कारण बनता है। दक्षिणी नेपाल में प्रतिवर्ष लगभग 2,700 लोग सांपों के काटने से मरते हैं, जबकि भारत में यह संख्या करीब 60,000 है। विश्व स्तर पर हर साल 54 लाख लोग सांपों के काटने का शिकार होते हैं, जिनमें से कम से कम 1.38 लाख की मृत्यु हो जाती है, और कई लोग अपंगता का शिकार हो जाते हैं।
जलवायु परिवर्तन, विशेष रूप से तापमान में वृद्धि, जीव-जंतुओं और वनस्पतियों के व्यवहार में बदलाव ला रहा है। यह न केवल जीवों के व्यवहार को प्रभावित करता है, बल्कि कई बार भौगोलिक संरचनाओं में भी परिवर्तन लाता है। सामान्य गति से होने वाले बदलाव जीवों को अनुकूलन के लिए समय देते हैं, और उनकी आपसी सहभागिता उन्हें एक-दूसरे के प्रति सतर्क रहने के लिए प्रेरित करती है।
उदाहरण के लिए, प्राचीन काल में कश्मीर और हिमालय की शिवालिक पहाड़ियों में हाथी और विशाल झीलें थीं। मौसम परिवर्तन ने इन जीवों को मैदानों की ओर धकेल दिया, जिनके अवशेष आज भी नर्मदा घाटी में, जैसे हथनौरा में प्राप्त मानव अवशेषों के रूप में, मिलते हैं। ये बदलाव हजारों वर्षों में हुए।
आज का बदलाव मात्र 200 वर्षों के पूंजीवादी इतिहास, कार्बन उत्सर्जन और जंगलों की अंधाधुंध कटाई से उत्पन्न हो रहा है। शहरों का विकास और परिवहन व्यवस्था न केवल परिस्थितिकी को बदल रही है, बल्कि पृथ्वी के तापमान में भी वृद्धि ला रही है। पिछले साल कोलकाता के एक अस्पताल में भर्ती मरीज की खबर इसका उदाहरण है, जहां उसे पादप फंगस की बीमारी फेफड़ों में हुई थी। यह फंगस सामान्यतः नम त्वचा पर पनपता है, लेकिन मानव शरीर के तापमान से अधिक गर्मी में जीवित रहने की इसकी क्षमता ने वैज्ञानिकों को हैरान किया। यह जलवायु परिवर्तन के कारण अनुकूलन का संकेत है।
माउंट एवरेस्ट के पास किंग कोबरा की उपस्थिति भी इसी अनुकूलन का उदाहरण है। यह बदलाव किंग कोबरा के हमलों से कहीं अधिक घातक है। पर्यावरण में हो रहे बदलावों के दुष्प्रभावों को रोकने और उन पर काम करने की आवश्यकता आज एक महत्वपूर्ण कार्यभार बन चुकी है।
(अंजनी कुमार पत्रकार हैं)