रांची। 2 फरवरी, 2022 को ‘जनचौक’ के पहला पन्ना पर झारखंड के स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह की छपी ग्राउंड रिपोर्ट ‘मुर्मू को माओवादी बनाने पर आमादा थी झारखंड पुलिस’ को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने संज्ञान लेते हुए हजारीबाग एसपी को नोटिस भेजकर 4 सप्ताह के अंदर जवाब मांगा है।
दरअसल, 29 जनवरी, 2022 को झारखंड के हजारीबाग जिला के विष्णुगढ़ थानान्तर्गत नरकी खुर्द गांव के रोहनियां टोला निवासी आदिवासी-मूलवासी विकास मंच के कार्यकर्ता बालदेव मुर्मू को 11 बजे दिन में विष्णुगढ़ थाना की पुलिस ने उनके गांव से ही जबरन बिना किसी वारंट के हिरासत में ले लिया था। हिरासत में लेने के बाद उन्हें 54 घंटे तक विष्णुगढ़ थाना के हाजत व हजारीबाग के डीएसपी ऑफिस के हाजत में रखा गया था। इस दौरान ना तो उन्हें ठीक से खाना दिया गया था और ना ही ठीक से सोने दिया गया था। उनसे कई एजेंसियों द्वारा पूछताछ की गयी थी और उन पर दबाव बनाया जा रहा था कि वे कबूल लें कि उनका माओवादियों से कनेक्शन है और वह भी एक माओवादी हैं, लेकिन उन्होंने यह कबूलने से इंकार कर दिया।
दूसरी तरफ उनकी गिरफ्तारी के बाद लगातार सोशल साइट्स व थाने पर विरोध होने लगा। उनके वकील ने भी 31 जनवरी को रांची उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को आवेदन लिखकर बालदेव मुर्मू के अवैध हिरासत में रखने की जानकारी दी थी। 31 जनवरी को ही ह्यूमन राइट डिफेंडर अलर्ट (एचआरडीए) ने एनएचआरसी में इस बावत शिकायत दर्ज की थी। तब जाकर 54 घंटे के बाद 31 जनवरी की शाम में उन्हें छोड़ा गया था।
2 फरवरी को इस पूरे मामले को समेटते हुए ग्राउंड रिपोर्ट ‘जनचौक’ के पहला पन्ना पर प्रकाशित हुई थी, रिपोर्ट प्रकाशित होते ही झारखंड के कोडरमा जिले के डोमचांच निवासी मानवाधिकार जन निगरानी समिति के राष्ट्रीय संयोजक अधिवक्ता ओंकार विश्वकर्मा ने इस रिपोर्ट के लिंक के साथ-साथ पूरी रिपोर्ट को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) को भेजा। एनएचआरसी ने एचआरडीए व अधिवक्ता ओंकार विश्वकर्मा की शिकायत को एक साथ नत्थी करते हुए गिरिडीह एसपी को नोटिस भेजा।

भेजे गये नोटिस में एनएचआरसी ने लिखा है कि मानव अधिकार रक्षक व आदिवासी-मूलवासी विकास मंच के कार्यकर्ता बालदेव मुर्मू की गिरफ्तारी के बाद सुप्रीम कोर्ट के डीके बसु गाइडलाइन का पालन नहीं किया गया है क्योंकि पुलिस पर आरोप है कि उन्हें 48 घंटे के अंदर मजिस्ट्रेट के सामने प्रस्तुत नहीं किया गया और ना ही उनके परिवार को उनकी गिरफ्तारी की सूचना दी गयी। इसलिए एनएचआरसी इस मामले में हस्तक्षेप कर रही है और 4 सप्ताह के अंदर गिरिडीह एसपी से इस मामले पर जवाब मांग रही है।

अधिवक्ता ओंकार विश्वकर्मा कहते हैं कि मैंने ‘जनचौक’ पर प्रकाशित पत्रकार रूपेश कुमार सिंह की कई रिपोर्ट को एनएचआरसी को भेजा है, जिसमें कई पर एक्शन भी लिया गया है। मैं झारखंड व झारखंड से बाहर भी मानवाधिकार हनन की घटना के बारे में जब अखबारों में पढ़ता हूं, तो कई बार समाचारपत्र में प्रकाशित खबर के आधार पर भी एनएचआरसी में शिकायत दर्ज करा देता हूं। ऐसे मामले में भी कई बार कार्रवाई होती है और पीड़ित को मुआवजा व दोषियों को सजा भी मिलती है।
वे बताते हैं कि ‘जनचौक’ के पहला पन्ना पर 28 फरवरी, 2022 को प्रकाशित पत्रकार रूपेश कुमार सिंह की ग्राउंड रिपोर्ट ‘एक आदिवासी कार्यकर्ता को झारखंड पुलिस ने कैसे बना दिया माओवादी!’ के आधार पर भी हमारी टीम जल्द ही एनएचआरसी में शिकायत दर्ज कराएगी क्योंकि इस मामले में भी दो आदिवासी छात्रों को बिना किसी वारंट के 48 घंटे से ज्यादा हिरासत में रखा गया और आदिवासी कार्यकर्ता भगवान दास किस्कू को तो जेल ही भेज दिया गया।
(रांची से रूपेश कुमार सिंह की रिपोर्ट।)
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