नई दिल्ली। आरएसएस जिस तरह देश में सत्ता और संस्थानों पर काबिज है, उसके लिए दिल्ली यूनिवर्सिटी में सावरकर का बुत दिन दहाड़े समारोहपूर्वक लगाना भी मुश्किल काम नहीं था। संसद में सावरकर का बुत समारोह के साथ ही लगाया गया था और वाम के लोग भी उसमें शामिल थे।
लेकिन, सावरकर का और आरएसएस का जैसा इतिहास है, शायद उसे दोहराने के लिए आरएसएस की विद्यार्थी विंग एबीवीपी ने रात के अंधेरे में गुपचुप ढंग से सावरकर का बुत खड़ा कर दिया। एक खम्भे पर भगत सिंह और सुभाष चंद्र बोस के सहारे। भगत सिंह के बोस से जिस क़दर राजनीतिक मतभेद थे, उन्होंने लिखकर ही व्यक्त किए थे। लेकिन सावरकर और सावरकर की विचारधारा के लोगों से दोनों के ही रास्ते ठीक उलट थे। दोनों के लेखन और दोनों की राजनीति में यह स्पष्ट है। रात के अंधेरे में इस तरह सावरकर के बुत को लगा दिए जाने की आलोचना करने वाले इसी तरह रात में बाबरी मस्जिद में मूर्तियां रख दिए जाने को भी याद कर रहे थे।
कल ये पूरा मसला सोशल मीडिया पर चलता रहा। आज सोशल मीडिया से ही पता चला कि एनएसयूआई के एक कार्यकर्ता ने भगत और बोस के बुतों पर फूलों का हार पहनाने के बाद सावरकर के बुत पर जूते की माला डाल दी और उस पर काला पेन घिस दिया। इस दौरान एक युवक जो शायद एबीवीपी का हो, उसने और गार्ड्स ने इस युवक को रोकने की कोशिश भी की। जो वीडियो वायरल हो रहा है, उसमें इस कार्रवाई के बाद युवक भगत सिंह ज़िंदाबाद के नारे लगवाने के बाद एनएसयूआई ज़िंदाबाद के नारे भी लगाता है।
(यह टिप्पणी पत्रकार धीरेश सैनी की एफबी वाल से ली गयी है।)
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