पैदल चलना हो सकता है जलवायु परिवर्तन का स्थाई समाधान

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पैदल चलना जलवायु परिवर्तन की वैश्विक समस्या का स्थानीय समाधान हो सकता है। यह मनुष्य की आदिम गतिविधियों में से है। जीवाश्म ईंधनों पर आधारित यंत्रचालित वाहनों का प्रचलन बढ़ने के बाद भी पैदल चलने का कोई विकल्प नहीं है। परन्तु विकास की प्रचलित समझदारी में इसे समुचित सम्मान और सुविधा नहीं दी जा रही। सड़कों की संरचना से पैदल चलने वालों का स्थान समाप्त-सा हो गया है। भारत, खासकर बिहार की स्थिति अधिक खराब है।

आंकड़े बताते हैं कि किसी काम के लिए होने वाली यात्राओं में से एक तिहाई पैदल पूरी की जाती है। राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन(एनएसओ) के अनुसार आज भी 60 प्रतिशत बच्चे पैदल स्कूल जाते हैं। लेकिन सड़कों की हालत ऐसी है कि भारत में सड़क दुर्घटनाओं में मरने वाले लोगों में 17 प्रतिशत पैदल चलने वाले होते हैं। यह आंकड़ा सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट का है। चिंताजनक यह है कि 2014 में सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों की संख्या 2019 में 85 प्रतिशत बढ़ गई है। अर्थात हमारी सड़कें पैदल चलने वालों के लिए अधिक असुरक्षित होती जा रही हैं।

पूरी दुनिया में हो रहे जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा कारण जीवाश्म ईंधनों का अत्यधिक उपयोग है। जीवाश्म ईंधनों का सर्वाधिक उपयोग वाहनों में होता है। जिन इलेक्ट्रिक इंजनों से चलने वाले वाहनों को विकल्प के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है,उनको चलाने वाली बिजली तो जीवाश्म ईंधनों से ही बनती है। जिन अक्षय ऊर्जा स्रोतों को विकल्प के तौर आजमाया जा रहा है, उनमें कोई स्रोत जीवाश्म ईंधनों की जगह लेने की स्थिति में नहीं है। इसलिए ईंधन आधारित वाहनों के उपयोग में कटौती करने के सिवा कोई चारा नहीं है। छोटी दूरी की यात्राओं के लिए साइकिल और साइकिल रिक्सा को प्रोत्साहित किया जा सकता है।

वर्तमान नगर व्यवस्था और सड़क संरचना में पैदल चलने वालों के लिए कोई स्थान नहीं है। जबकि उनके लिए साफ-सुथरा, उपयुक्त ऊंचाई व चौड़ाई वाले, बाधा रहित, गार्ड-रेलिंग से सुरक्षित व बुनियादी सुविधाओं से युक्त फुटपाथ बनाने का प्रावधान इंडियन रोड कांग्रेस की मार्गदर्शिका में किया गया है। यह मार्ग-दर्शिका कागजों में ही रह गयी है। प्रावधान तो सड़क पार करने के लिए समुचित अंतराल पर जेब्रा-क्रासिंग बनाने का भी है। पर इसकी सोच सड़क बनाने वालों में नहीं दिखती। बूढ़े, बच्चे, महिलाएं व दिव्यांग (विकलांग) इस कठिनाई को अधिक झेलते हैं।   

इन्हीं समस्याओं का समाधान खोजने में सस्टनेबल अर्बन मोबिलिटी नेटवर्क का गठन हुआ है और वह 11 जनवरी को पैदल-यात्री दिवस मना रही है। उसके अभियान से प्रभावित होकर पुणे शहर में एक सड़क को पैदल चलने वालों के लिए आरक्षित कर दिया गया है। वहां 11 दिसंबर को पैदल-यात्री दिवस मनाया गया। इसके साथ ही देशभर में सड़कों पर पैदल चलने वालों के लिए सुरक्षित और सुविधाजनक व्यवस्था की मांग शुरू हो गई है। इसके लिए झटका डॉट ओआरजी नामक वेबसाइट बनाकर हस्ताक्षर अभियान चलाया जा रहा है। आज कई देशों के कई शहरों में लोग समूह में पैदल चले। 

पैदल यात्री दिवस मनाने के माध्यम से समाज के सामने इसकी उपयोगिता और अपरिहार्यता को रेखांकित किया जा रहा है जिससे पैदल यात्री के साथ तिरस्कार के बजाए सहज सम्मान की भावना उत्पन्न हो। साथ ही जलवायु परिवर्तन की समस्या को देखते हुए अधिक प्रकृति सम्मत जीवनशैली को यथाशीघ्र अपनाने की आवश्यकता को रेखांकित किया जा सके। यह समय की आवश्यकता है।

(अमरनाथ झा वरिष्ठ पत्रकार होने के साथ पर्यावरण मामलों के जानकार भी हैं। आप आजकल पटना में रहते हैं।)

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