नई दिल्ली। जब तमिलनाडु के मुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म की तीखी आलोचना की तब उसका कठोर प्रतिकार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया। उन्होंने कहा कि “रावण, हिरण्यकश्यप और कंस ने ईश्वरीय सत्ता को चुनौती दी थी, लेकिन उनका सबकुछ मिट गया, कुछ नहीं बचा, पर ईश्वर बचा और आज भी है, सनातन धर्म है और कभी नहीं मिट सकता।” उन्होंने इसी बयान में बाबर और औरंगजेब का भी नाम लिया और ईश्वर का शुक्रिया अदा किया कि उत्तर प्रदेश में सनातन धर्म विकसित हो रहा है।
शायद ही कोई इस बात से सहमत हो कि सनातन धर्म में नशा, खासकर शराब जैसी वस्तु की मान्यता है। इस पर विवाद हो सकता है और इस संदर्भ में सुरा जैसी शब्दावलियों को लाया जा सकता है। भांग को लेकर भी विवादास्पद स्थिति है। लेकिन, आज जिस पर कोई विवाद नहीं हो सकता, वह है उत्तर प्रदेश देश के अन्य राज्यों को पीछे छोड़ते हुए शराब से राजस्व की कमाई में अव्वल नंबर पर आ गया है।
2022-23 में उत्तर प्रदेश आबकारी नीति में बदलाव किया गया। कर की मात्रा में बढ़ोतरी हुई लेकिन शॉप खोलने में ढील दी गई। यहां ई-लॉटरी की व्यवस्था को लागू किया गया जिससे विवाद न पैदा हो। शराब बनाने के लाइसेंस में भी काफी सावधानियां बरती गईं जिससे कि तरफदारी जैसी बात की गुंजाइश न हो। दरअसल, इस दिशा में पिछले 6 वर्षों से काम चल रहा था और बाधाओं को हटाया जा रहा था। इसका परिणाम आया और ‘पिछले 6 सालों में आबकारी कर लगभग तिगुना हो गया’।
“उत्तर प्रदेश में 2016-17 में लगभग 61 डिस्टिलरी थीं जो अब 98 हो गई हैं। अभी 85 और सक्रिय होने की ओर बढ़ रही हैं। उत्तर प्रदेश एथेनॉल के उत्पादन में अग्रणी हो रहा है, यहां 153 करोड़ लीटर ऐथेनॉल बनाया जा रहा है। यह देश में सबसे अधिक है। अब उत्तर प्रदेश में छोटे स्तर के शराब ढालने वाले, प्राथमिक विक्रय केंद्र और रेट्रो बॉर हैं। हमने अभी हाल में मुजफ्फरनगर और बरेली में दो वाइन बनाने वाले केंद्रों को मान्यता दी है।” यह राज्य मंत्री नितिन अग्रवाल का बयान है।
यहां यह बता देना उपयुक्त होगा कि ऐथेनॉल का प्रयोग बहुस्तरीय है। यह चीनी के साथ पैदा होने वाला उत्पाद है जो शराब, दवा, रसायन और औद्योगिक जरूरतों में प्रयुक्त होता है। वहीं एक खबर में बताया गया है कि 2016-17 में उत्तर प्रदेश में आबकारी राजस्व 14,273.33 करोड़ रुपये था जो 2022-23 के मध्य तक 42,000 करोड़ रुपये हो चुका था। 6 साल में लगभग तीन गुने की बढ़ोतरी कोई मामूली बात नहीं है। 2023-24 के लिए इस राशि को 58,000 करोड़ रुपये पहुंचा देने का लक्ष्य रखा गया है।
मंत्री नीतिन अग्रवाल के अनुसार अयोध्या, मेरठ और देवीपाटन आबकारी राजस्व में सबसे ऊपर हैं जबकि कानपुर, झांसी और बस्ती डिवीजन पिछड़ रहे हैं, और इसे ठीक करना है। खबर के अनुसार इस दौरान 2 लाख रेड किये गये जिसमें 7,500 लोगों को गिरफ्तार किया गया और 5 लाख लीटर शराब को कब्जे में लिया गया।
प्रति दिन शराब की बिक्री में नोएडा-गाजियाबाद और आगरा-मेरठ सबसे ऊपर हैं, जहां प्रतिदिन क्रमशः 13 से 14 करोड़, 12 से 13 करोड़ और लगभग 10 करोड़ की शराब बिकती है। पूरे उत्तर प्रदेश में यह राशि 115 करोड़ रुपये प्रतिदिन की है। यह दो साल पहले तक 85 करोड़ रुपये था, जो 35 प्रतिशत की दर से बढ़कर 115 करोड़ रुपये प्रतिदिन हो गया है। दो धार्मिक नगरी वाराणसी और प्रयागराज में यह क्रमश 6 से 8 करोड़ रुपये और औसतन 4.5 करोड़ रुपये प्रतिदिन है।
अगस्त, 2023 तक राजस्व संग्रहण में 2022 की तुलना में आबकारी से आया रुपया लगभग 18 करोड़ कम था। आबकारी अधिकारियों का कहना था कि दरअसल यह कमी आबकारी में संग्रहण की प्रक्रिया की वजह से है जो आने वाले समय में तेजी से पूरा होता हुआ दिखाई देगा।
दिल्ली में आप पार्टी की राज्य सरकार जिस आबकारी नीति को अपनाया, वह आज विवाद के घेरे में पहुंच गई और इस सरकार के कई मंत्री जेल में बंद हैं। अभी हाल ही में ईडी ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी नोटिस जारी किया है। यह स्पष्ट नहीं है कि यह नोटिस किस संदर्भ में जारी की गई है। दिल्ली की आप पार्टी की राज्य सरकार आबकारी नीति में बुरी तरह उलझ चुकी है। वहीं उत्तर प्रदेश में एक पीठाधीश योगी मुख्यमंत्री के नेतृत्व में एक ऐसी आबकारी नीति अपनाई गई जिसने देश के सारे राज्यों को पीछे छोड़ दिया।
इस संदर्भ में उत्पाद शुल्क आयुक्त सेंथिल पांडियन का द प्रिंट को दिये बयान का पढ़ा जाना चाहिए- “कर्नाटक अब दूसरे स्थान पर है। हमारी नीति ने उद्योग के एकाधिकार को तोड़ने के लिए लाइसेंस शुल्क आधारित प्रणाली से उपभोग आधारित प्रणाली में पूरी तरह से स्थानांतरित कर दिया। हमने दुकानों की संख्या भी प्रति व्यक्ति दो तक सीमित कर दी है। आवंटन पैटर्न को पहले नीलामी आधारित मॉडल से इ-लॉटरी प्रणाली में बदल दिया गया था। हमने ट्रैक और ट्रेस सिस्टम स्थापित करने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग किया है। और, यह सब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सहयोग और मार्ग-दर्शन से हुआ है।”
उत्तर प्रदेश, जहां दावा किया जा रहा है कि यहां सनातन धर्म विकास की ओर है वहां शराब से बढ़ता हुआ राजस्व कुछ और ही दृश्य दिखा रहा है। इस राज्य में धर्म और नैतिकता की बार सिर्फ दुहाई ही नहीं दी जाती, इसके लिए बाकायदा पुलिस और प्रशासन ‘पहलकदमी’ भी लेती है। मुख्यमंत्री ‘बुरे तत्वों’ से कड़ाई से निपटने के लिए मंच से घोषणा करते हैं। मांस की बिक्री पर भी रोक लगा दी जाती है जिससे कि धर्म की भावनाएं आहत न हों और कोई विवाद की स्थिति न बने। लेकिन, शराब की कमाई के संदर्भ में नैतिकता का असर नहीं दिख रहा है।
यहां यह हमें जरूर एक बार इतिहास के भीतर झांक लेना चाहिए। उत्तर प्रदेश में गाजीपुर एक जिला है। 18वीं सदी में अंग्रेजों ने यहां एक अफीम की फैक्ट्री खोली। यह सिर्फ राजस्व की उगाही का ही माध्यम नहीं बना। इसने दुनिया के इतिहास पर जो निर्णायक असर डाला, उससे आज भी दुनिया की राजनीति उबर नहीं पाई है। इसने भारत सहित दक्षिण एशिया और खासकर चीन पर गहरा असर डाला। इसने भारत की भी भू-राजनीतिक स्थिति को बदल दिया।
राज्य राजस्व के लिए ‘नशा पैदा’ करने वाली वस्तुओं को न सिर्फ नियंत्रित करती है बल्कि उस पर एकाधिकार भी बनाती है। उत्तर प्रदेश की वर्तमान सरकार इसमें पीछे नहीं है। यह राजस्व का एक आसान रास्ता है लेकिन यह उतना ही समाज को पतन की गर्त में पहुंचा देने वाला रास्ता भी है। अभिजात्य वर्ग द्वारा अभिजात्य संस्कृति के नाम पर जो कथित नैतिकता और मूल्य को स्थापित किया जाता है शहर के आम लोगों तक बड़ी आसानी से वह ग्राह्य होता चला जाता है।
शहरों में नशा के विविध रूप भी इसी अभिजात्यता की निशानी बन गये हैं और बड़ी तेजी शहरों के उभार के साथ शराब के राजस्व में भी वृद्धि करते जाते हैं। जब यही अभिजात्यता छनते हुए गांवों तक पहुंचती है, तब वहां यह कुछ और ही रूप ले चुकी होती है। भयावह गरीबी, बेरोजगारी और हिंसा से ग्रस्त उत्तर-प्रदेश में धर्म, अभिजात्यता, नैतिकता एक नये रूप में विकसित हो रही है। यह एक नया कॉकटेल है जो बेहद विद्रूप और निहायत पतनशील है।
(अंजनी कुमार पत्रकार हैं।)
+ There are no comments
Add yours