Sunday, April 28, 2024

निज्जर घटना के बाद FBI ने अमेरिका में रहने वाले सिख एक्टिविस्टों को भी किया था आगाह

नई दिल्ली। कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया के एक गुरूद्वारे के बाहर 18 जून, 2023 को एक हाई-प्रोफाइल कनाडाई सिख कार्यकर्ता की हत्या के बाद एफबीआई ने अमेरिका में भी कई सिख कार्यकर्ताओं को सतर्क रहने का संदेश दिया था। इस सिलसिले में खुफिया विभाग के कई अफसरों ने बाकायदा इन कार्यकर्ताओं से मिलकर उन्हें इसकी जानकारी दी थी।

द इंटरसेप्ट की एक खबर के अनुसार अमेरिकी नागरिक और राजनीतिक कार्यकर्ता प्रीतपाल सिंह ने बताया कि कैलिफोर्निया में राजनीतिक आयोजन में शामिल दो अन्य सिख अमेरिकियों को निज्जर की हत्या के बाद एफबीआई से फोन आए और उनसे मुलाकात की गई। सिंह ने कहा, “जून के अंत में एफबीआई के दो विशेष एजेंट मुझसे मिलने आए जिन्होंने मुझे बताया कि उन्हें सूचना मिली है कि मेरी जान को खतरा है। उन्होंने हमें साफ तौर से यह नहीं बताया कि ख़तरा कहां से आ रहा है, लेकिन उन्होंने कहा कि मुझे सावधान रहना चाहिए।”

सुरक्षा कारणों से नाम न बताने की शर्त पर दो अन्य सिख कार्यकर्ताओं ने भी बताया कि एफबीआई ने उनसे भी लगभग उसी समय मुलाकात की थी जब सिंह ने उनसे मुलाकात की थी। पूरे अमेरिका में सिखों को संभावित खतरों के बारे में पुलिस चेतावनियां मिली हैं, कैलिफ़ोर्निया में स्थित गैर-लाभकारी संगठन ‘इन्साफ़’ के सह-निदेशक सुखमन धामी ने भी बताया है कि, “हमें यह भी संदेश मिला है कि सिख आत्मनिर्णय की राजनीति से जुड़े कुछ समुदाय के नेताओं से हाल ही में कानून प्रवर्तन ने मुलाकात की है और चेतावनी दी है कि वे निशाने पर हो सकते हैं।”

बीते गुरुवार को, कनाडाई ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन की एक रिपोर्ट से पता चला कि कनाडा ने सिग्नल और दूसरी खुफिया जानकारी के आधार पर निज्जर हत्या मामले में भारत की एजेंसियों के शामिल होने के प्रति संदेह जाहिर किया है। इसमें वह जानकारी भी शामिल है जो कनाडा में भारतीय राजनयिकों की बातचीत और अमेरिका के ‘फाइव आईज खुफिया गठबंधन’ में अज्ञात भागीदारी से मिली है। इस हफ्ते की शुरुआत में कनाडा ने एक उच्च भारतीय राजनयिक को निष्कासित कर दिया था जो देश में भारतीय खुफिया एजेंसी के प्रमुख थे।

भारत ने आक्रामक रुख अपनाते हुए आरोपों को “बेतुका” कहकर खारिज कर दिया था और कनाडा पर सिख आतंकवादी और चरमपंथी समूहों को संरक्षण देने का आरोप लगाया था। भारत की आतंकवाद निरोधक एजेंसी ने गुरुवार को उन प्रदर्शनकारियों के बारे में भी जानकारी दी, जिन्होंने कथित तौर पर इस साल की शुरुआत में सैन फ्रांसिस्को में भारतीय वाणिज्य दूतावास में आग लगाने की कोशिश की थी।

अमेरिका ने आरोपों पर चिंता जाहिर की है और विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने शुक्रवार को कहा कि अमेरिका अपनी जांच में कनाडा का सहयोग कर रहा है। इस हफ्ते दिए अपने बयान में अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवान ने कहा कि भारत के पास न्यायेतर हत्याओं जैसी कार्रवाइयों को अंजाम देने के लिए “विशेष छूट” नहीं है।

अमेरिका भारत के साथ व्यापार करने वाला सबसे बड़ा देश है और यह भी साफ है कि यह रिश्ता कनाडा-भारत व्यापार से कहीं ज्यादा बढ़कर है। मोदी सरकार से असहमति रखने वाले सिखों के खिलाफ अमेरिकी धरती पर भारत की कोई भी लक्षित कार्रवाई दोनों देशों के बीच दरार पैदा कर सकती है, क्योंकि वे चीन का सामना करने के लिए गठबंधन बना रहे हैं।
जिन सिख अमेरिकियों को धमकियां मिली हैं, उनका कहना है कि वे डरे हुए नहीं हैं, लेकिन वे चाहते हैं कि अमेरिकी सरकार उनकी सुरक्षा के लिए कदम उठाए और दक्षिणपंथी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली आक्रामक और सत्तावादी भारतीय सरकार के खिलाफ उनके साथ खड़े हो।

सिंह आगे कहते हैं, ”अगर भारत कनाडाई लोगों को निशाना बना सकता है, तो अमेरिकी अगले होंगे। यह हमारी लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करता है, व्यक्तिगत अधिकारों और स्वतंत्रता को कम करता है और संयुक्त राज्य अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता को चुनौती देता है।” उन्होंने कहा, “बाइडेन प्रशासन से हम तत्काल समर्थन की उम्मीद करते हैं। लेकिन बाद में हम कोई सहानुभूति और प्रार्थना नहीं चाहते।”

ब्रिटिश कोलंबिया गुरुद्वारा परिषद के प्रवक्ता मोनिंदर सिंह कहते हैं कि जून में निज्जर के मारे जाने से पहले, कनाडाई खुफिया अधिकारियों ने उन्हें और पांच अन्य सिख समुदाय के नेताओं को चेतावनी दी थी कि उनकी जान खतरे में है। लेकिन उन्होंने कभी भी साफ़ तौर से यह नहीं कहा कि ख़तरा भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी से था।

सिंह ने यह भी कहा कि रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस के एजेंटों ने अपनी मीटिंग में निज्जर को विशेष रूप से जोखिम में बताया था, क्योंकि भारत से सिखों की आजादी की वकालत करने वाले अभियान के वो एक प्रमुख व्यक्ति थे। साल 2020 में, भारतीय राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने उनके राजनीतिक कामों को “सिखों को अलगाव के लिए वोट करने, भारत सरकार के खिलाफ आंदोलन करने और हिंसक गतिविधियों को अंजाम देने के लिए उकसाने की कोशिश” के रूप में चिन्हित किया।

निज्जर के लंबे समय से दोस्त रहे सिंह ने कहा, ”मैं हर बैठक से पहले और बाद में उनसे बातचीत करता था। मुझे फादर्स-डे के बाद सोमवार की सुबह फिर से उनसे मिलना था, लेकिन एक रात पहले ही उनकी हत्या कर दी गई।”

जहां निज्जर को कनाडाई सिख समुदाय के कुछ हिस्सों में एक नेता के रूप में देखा जाता है, वहीं भारत सरकार ने उसे एक आतंकवादी के रूप में चित्रित किया है जो ब्रिटिश कोलंबिया में अपने घर से भारत में कई आपराधिक गतिविधियों में शामिल था। उन पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत आरोप लगाया गया था, जिसका इस्तेमाल मोदी सरकार ने उनसे असहमति रखने लोगों के खिलाफ बिना मुकदमे के अनिश्चित काल तक हिरासत में रखने के लिए किया है।

कनाडा एक बड़े राजनीतिक रूप से सक्रिय सिखों का घर है, जिसका संघीय सरकार में एक छोटा लेकिन प्रभावशाली प्रतिनिधित्व है। कुछ कनाडाई सिख भारत के पंजाब राज्य में खालिस्तान नामक एक अलग राज्य की स्थापना के आंदोलन का समर्थन करते हैं।

1980 और 1990 के दशक में, भारत सरकार ने वहां एक राष्ट्रवादी विद्रोह को बेरहमी से दबा दिया था, हज़ारों सिखों को अलग-अलग तरीके से मार दिया गया, प्रताड़ित किया गया, या गायब कर दिया गया। जिसके बाद आंदोलन का समर्थन करने वाले कई लोग अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन भाग गए, जहां वे बड़े प्रवासी भारतीयों का हिस्सा बन गए। 1985 में, तीव्र हिंसा के दौर में, पश्चिम में रहने वाले सिख अलगाववादियों ने मॉन्ट्रियल से लंदन जा रहे एयर इंडिया के एक विमान पर बमबारी की, जो उस समय आतंकवाद का सबसे घातक कृत्य था।

हालांकि खालिस्तान आंदोलन ने हाल के वर्षों में अपनी गति खो दी है, लेकिन प्रवासी भारतीयों में अलगाववादी इस उद्देश्य के लिए लड़ना जारी रखते हैं, जिससे उन्हें भारत सरकार के साथ लगातार संघर्ष करना पड़ता है।

सिख एक्टिविस्टों ने लगातार पश्चिमी देशों में रहते हुए भारतीय दूतावासों पर एकजुट होकर विरोध प्रदर्शन किये, कभी-कभी भारत सरकार की घोर आलोचना भी की है, और भारत सरकार की संपत्ति को नुकसान भी पहुंचाया है। अमेरिकी विदेश विभाग ने सैन फ्रांसिस्को में कुछ प्रदर्शनकारियों द्वारा की गई बर्बरता की निंदा की थी जिन्होंने जुलाई में भारतीय दूतावास के एक हिस्से में आग लगाने का प्रयास किया था हालांकि इस घटना में कोई बड़ी क्षति या चोट नहीं आई थी।

भारत ने सिख अलगाववादियों पर, भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देने, उसके राजनयिकों को धमकी देने और उसके दूतावासों और विदेशी कार्यालयों को खतरे में डालने का आरोप लगाया है। कनाडा में, भारत में अलगाववाद के समर्थन सहित सिख राजनीतिक सक्रियता पर नकेल कसने के लिए कनाडाई सरकार से भारतीयों के आह्वान को बड़े पैमाने पर अस्वीकार कर दिया गया है।

मानवाधिकार वकील और जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय में कानून के प्रोफेसर अर्जुन सेठी ने कहा, “खालिस्तान आंदोलन को आज पंजाब में बहुत कम समर्थन प्राप्त है। फिर भी भारत सरकार अपने वोट बैंक को मजबूत करने, अपनी घरेलू विफलताओं से ध्यान हटाने और अपने राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए इसके महत्व को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रही है।”

मोनिंदर सिंह इस बात पर बातचीत करते हैं कि निज्जर को कैसे भारतीय प्रेस और सोशल मीडिया में एक आतंकवादी के रूप में चित्रित किया गया, उन्होंने कहा कि निज्जर भारत में सिख अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करने और उनके राजनीतिक आत्मनिर्णय के लिए लड़ने के लिए प्रतिबद्ध थे।

उन्होंने कहा, “हरदीप के मामले में, वे कुछ समय से प्रेस में उसे आतंकवादी और उग्रवादी के रूप में चित्रित कर रहे थे। उस सारे राक्षसीकरण के बाद, उन्होंने उसकी मौत पर जश्न के साथ प्रतिक्रिया व्यक्त की है,’’। आगे उन्होंने कहा कि “वे इसे इस नजरिए से ले रहे हैं कि वे जीत गए हैं और वे जीत का चक्कर लगा रहे हैं। लेकिन जिस तरह से हम इसे देखते हैं, यह मुद्दा खत्म नहीं हुआ है।”

हाल के वर्षों में, खालिस्तान आंदोलन से जुड़े सिख सदस्यों की ऐसी परिस्थितियों में मौत हो गई है जिन्हें कुछ लोगों ने संदिग्ध माना है। इनमें ब्रिटेन में एक सिख कार्यकर्ता अवतार सिंह खांडा भी शामिल हैं, जिनके परिवार के सदस्यों का आरोप है कि वह इस साल की शुरुआत में जहर के शिकार थे। 2022 में, रिपुदमन सिंह मलिक नाम के एक 75 वर्षीय सिख कनाडाई व्यक्ति, जिसे एयर इंडिया बमबारी में शामिल होने से बरी कर दिया गया था, उन्हें ब्रिटिश कोलंबिया में उसके दफ्तर के सामने गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।

भारतीय सुरक्षा प्रतिष्ठान से जुड़ी लोकप्रिय मीडिया हस्तियों ने भी हाल के दिनों में कनाडा में रहने वाले अन्य लोगों के खिलाफ अपनी निजी जानकारी और पते ऑनलाइन पोस्ट करके अप्रत्यक्ष धमकियां जारी की हैं।

इन आरोपों की कोई पुष्टि नहीं हुई है कि भारत सरकार हाल ही में सिख प्रवासी कार्यकर्ताओं की मौतों या उनके खिलाफ धमकियों में शामिल थी, लेकिन निज्जर की हत्या की कनाडा की जांच एक बड़े पैटर्न पर प्रकाश डाल सकती है।

सेठी ने कहा, “अतीत में सिख प्रवासी सदस्यों की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हुई है। जो बात इस मामले को इतना अनोखा बनाती है वह यह है कि कनाडा आरोप लगा रहा है कि भारत सरकार इससे जुड़ी थी, और यह निष्कर्ष उन देशों द्वारा इकट्ठा की गई खुफिया जानकारी पर आधारित था जो फाइव आईज़ गठबंधन का हिस्सा हैं।”

मोनिंदर सिंह ने कहा कि निज्जर की मौत में भारत की संलिप्तता का कनाडा का आरोप इस बात का पर्याप्त सबूत है कि सिख प्रवासी समुदाय के कई सदस्यों ने लंबे समय से दावा किया है कि भारत सरकार पश्चिमी धरती पर उन्हें निशाना बना रही है।

उन्होंने कहा, “सिख समुदाय में यह भावना है कि यह उस बात की पुष्टि भी है जो हम कई वर्षों से कहते आ रहे हैं, यानी कि यह विदेशी हस्तक्षेप यहां मौजूद है।

(द इंटरसेप्ट की खबर का हिंदी अनुवाद जनचौक के उप-संपादक रितिक जावला द्वारा)

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