लेखक, छात्र, राजनेता, मजिस्ट्रेट और जज सभी फ़ासीवाद के खिलाफ एकजुट हों: अरुंधति रॉय

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नई दिल्ली। चर्चित लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता अरुंधति राय ने लेखकों, छात्रों, राजनेताओं, मजिस्ट्रेटों, जजों सभी से फ़ासीवाद के खिलाफ एकजुट हो जाने की अपील की है। उन्होंने कहा कि पूरा समाज सड़ चुका है। देश का हर अंग सड़ गया है और इन सबसे ज्यादा यहां का मीडिया सड़ा हुआ है। ये बातें उन्होंने दिल्ली स्थित प्रेस क्लब में आयोजित एक कार्यक्रम में कहीं। उन्होंने कहा, “इस देश में आज कोई भी प्रख्यात व्यक्ति नहीं है। हर व्यक्ति सूची में है या फिर प्रतीक्षा सूची में है या फिर उसका नाम आरएसी में दर्ज है और हमें नहीं पता कि यहां आप से बात करने वाला अगला समूह कौन होगा जब यह जेल चला जाएगा।”। 

उन्होंने कहा कि मैं उन सभी को सलाम करती हूं जो खड़े हुए और इस समय जेल की सींखचों के पीछे हैं। इसमें भीमा कोरेगांव से जुड़े लोग, पत्रकार, वकील, एकैडमीशियन, छात्र, प्रोफ़ेसर और एंटी सीएए एक्टिविस्ट आदि सभी शामिल हैं।

अपनी बात रखते हुए अरुंधति रॉय ने कहा कि आज़ादी के बाद हमें संविधान मिला। इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ जब यह सभ्यता जो जाति आधारित श्रेणीबद्ध समाज के हिसाब से चल रही थी उसमें हमें एक कानूनी दस्तावेज मिला जिसने कहा कि सभी भारतीय बराबर हैं। और आज पुलिस, राजनेता और यहां तक कि कोर्ट में बैठे जज एक दूसरा संविधान पढ़ा रहे हैं। यह बिल्कुल उससे अलग है जिसे हम जानते थे और हमें पढ़ाया गया था।  

और आज हम इस देश में अपने लिए नागरिकता की भीख मांग रहे हैं। सैकड़ों, हजारों लोग चाहे वो कश्मीरी हों, पूर्वोत्तर से हों, आदिवासी हों या फिर तमाम अनाम लोग देशद्रोह के आरोप में या फिर यूएपीए के तहत आज जेलों में बंद हैं। यहां मौजूद पैनल के लोगों को जो एक मांग करनी चाहिए वो है राजद्रोह और यूएपीए जैसे काले कानूनों को हटाने की मांग। क्योंकि यह कानून नहीं, बल्कि ढीले-ढाले शब्दों का एक समूह है। जो राज्य को किसी भी शख्स को किसी भी मामले में आरोप लगाकर महीनों और सालों तक जेल में रखने की इजाजत देता है। अगर यह कानून खत्म नहीं किया जाता है तो हमारा कोई भी आन्दोलन या विरोध हमारी कोई मदद नहीं कर सकता। 

प्रख्यात लेखिका ने कहा कि हाथरस में जो हुआ वो बताता है कि हमारे देश का हर अंग सड़ चुका है। एक दलित लड़की शिकायत करती है कि उसके साथ सामूहिक बलात्कार हुआ, वह तीन वीडियो में अलग-अलग तीन बार कहती है कि मेरे साथ सामूहिक बलात्कार हुआ। और इन लोगों ने किया है। अपराधियों का नाम बताती है। आप सभी जानते हैं वो किस जाति से आते हैं। लेकिन पुलिस केस दर्ज नहीं करती। उसे अस्पताल ले जाया जाता है। डॉक्टर उसके बलात्कार की जांच नहीं करते। उसके बाद वे सभी केवल उसके गले पर पड़े गला घोंटने के निशान को केंद्रित करना शुरू कर देते हैं। उसके बाद धीरे-धीरे पुलिस, मेडिकल समुदाय और न्यायिक समुदाय  जाति के नजरिये से सारी चीजों को देखना शुरू कर देता है। और कहना शुरू कर देता है कि उसकी मां ने ऐसा किया है। उसके भाई ने उसकी हत्या की है। 

उन्होंने कहा कि हमारे समाज का हर हिस्सा सड़ चुका है और सबसे अधिक मेनस्ट्रीम मीडिया सड़ गया है। आज जिनको आप पत्रकार या एंकर मानते या देखते हैं दरअसल वे रीढ़ विहीन पालतू पशु हैं। मोटा कारपोरेट वेतन लेकर ये लोग लोगों की जिन्दगी से खेल रहे हैं, उनकी जिन्दगी बर्बाद करने का खेल कर रहे हैं। उमर खालिद को ही देख लीजिये, कितने सालों से ये लोग उनके बारे में झूठ बोल रहे हैं? और कितनी बार उन्होंने उसकी जिंदगी को खतरे में डाला। और यह सब कुछ उसके खिलाफ तैयार होता गया। और उसी का नतीजा है कि आज वो जेल में हैं। अगर भारतीय मीडिया नहीं होता तो हम फासीवाद के इस चरण में नहीं होते।

आज देश में लोग भूखे हैं, बेरोजगार हैं, देश की अर्थव्यवस्था गिर चुकी है पर हम लोग नफ़रत की राजनीति में उलझा दिए गये हैं। यह सब कुछ इसी कथित मुख्यधारा की मीडिया द्वारा किया गया है। 

आज एक ऐसा दल शासन कर रहा है जिसे विपक्ष पसंद नहीं। चुनाव के नाम पर तमाशा हो रहा है। क्या हम सही में लोकतंत्र हैं? यह एकदलीय लोकतंत्र है। और यह असहनीय है। इस फासीवादी सत्ता को अब और बरकरार नहीं रखा जा सकता है। यही कारण है कि आप देख सकते हैं व्यक्तिगत तौर पर ही सही एक के बाद एक जज हों, मजिस्ट्रेट हों, चाहे मुख्यमंत्री हों उन्हें यह बात समझ में आने लगी है। 

हमारे पास एक ऐसी सत्ताधारी पार्टी है जो बहुत शातिर है, उसे चुनाव जीतना आता है लेकिन उसे इतने बड़े देश में किस तरह शासन करना है। इसकी समझ नहीं है। इसलिए इस ग़लतफ़हमी में मत रहिये कि यहां लोकतंत्र है, मीडिया है, शोर है यानी विरोध और बोलने की आज़ादी है। इस गलतफ़हमी से बाहर आइये। 

जो कार्पोरेट इन मीडिया घरानों को चलाते या फंड देते हैं उन्हें भी समझ में आनी चाहिए। कुछ को तो अहसास होने भी लगा है। क्योंकि उन्हें पता है कि इस तरह का माहौल उचित नहीं है। क्योंकि विश्व की अर्थव्यवस्था बेहद एकीकृत है। यहां तक कि जो बीजेपी को समर्थन करते हैं, उसके लिए काम करते हैं। वो भी खत्म हो जाएंगे। ऐसे लोग जो यहां हिंदू राष्ट्र चाहते हैं और उनके बच्चे अमेरिका में हैं।

सच्चाई यह है कि उसकी अगली पीढ़ी पढ़ाई में इस लायक नहीं रह पाएगी कि वह दूसरे देशों में पढ़ सके और वहां के बच्चों से मुकाबला कर सके। उन्होंने कहा कि कहानी खत्म हो गयी है। जब तक कि हम लोगों में से हर शख्स जो इस बात को महसूस करता है कि वह फासीवाद के खिलाफ है, उठ खड़ा नहीं होता है। हम में से हर एक वह कोई जज हो या कि राजनेता, आप लेखक हों या कि छात्र, आप छोटे मजिस्ट्रेट हों, आप जो भी हों। अब खड़े होने का समय आ गया है। 

(प्रस्तुति वरिष्ठ पत्रकार नित्यानंद गायेन।)

नित्यानंद गायेन।
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