Thursday, April 25, 2024

बीबीसी डॉक्यूमेंट्री: कठघरे में तो ब्रिटेन खड़ा हुआ है

बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री- मोदी क्वेश्चन– से गोधरा ट्रेन अग्निकांड, गुजरात दंगों या उसमें गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की कथित भूमिका के बारे में कोई नई जानकारी सामने नहीं आई है। यानी इसमें फरवरी-मार्च 2002 के घटनाक्रमों के बारे में ऐसा कोई नया तथ्य नहीं बताया गया है, जो पिछले 22 साल से चर्चा में ना रहा हो। जो एक नई बात इससे सामने आई है, उसका संबंध ब्रिटेन से है और उससे ब्रिटेन सरकार कठघरे में खड़ी हुई है।

बीबीसी नई खबर यह ब्रेक की है कि ब्रिटेन के राजनयिकों ने उन घटनाक्रमों की ‘जांच’ की थी। वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि गोधरा कांड के बाद मुस्लिम समुदाय के खिलाफ हिंसा हो रही थी, तब कानून-व्यवस्था की एजेंसियों ने अपना कर्त्तव्य नहीं निभाया। दंगाई बेखौफ होकर हिंसा करते रहे। ब्रिटिश सरकार को भेजी अपनी रिपोर्ट में राजनयिकों ने कहा था कि इन दंगों के लिए ‘नरेंद्र मोदी सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं।’

बीबीसी ने कहा है कि ये दस्तावेज उसके हाथ लग गया है, जिसकी पंक्तियों को हाइलाइट करके डॉक्यूमेंट्री में दिखाया गया है। साथ ही उस ‘जांच’ से संबंधित एक अधिकारी का बाइट भी उसमें शामिल की गई है, हालांकि उसकी पहचान जाहिर नहीं की गई है।

ऐसे में इस सवाल का आधार है कि बीबीसी ने इस दस्तावेज से संबंधित खबर को न्यूज स्टोरी के रूप में ब्रेक क्यों नहीं किया? इसके बहाने उसने दो किस्तों की पूरी डॉक्यूमेंट्री बनाने का निर्णय क्यों लिया? इसकी पहली किस्त बुधवार को प्रसारित की गई, जिसमें 2002 के दंगों से जुड़े घटनाक्रम और उसके भारतीय राजनीति में मोदी के उदय की कहानी बताई गई है। चर्चा है कि 24 जनवरी को दिखाई जाने वाली दूसरी किस्त में बतौर प्रधानमंत्री मोदी के शासनकाल में अपनाई गई अल्पसंख्यक विरोधी नीतियों और उनके नतीजों को दिखाया जाएगा।

बहरहाल, मूल बात यह है कि अगर ब्रिटिश ‘जांच’ और उसके निष्कर्षों की बात छोड़ दें, तो 59 मिनट की पहली किस्त सिर्फ घटनाओं की पैडिंग (यानी दोहराव) है। इसीलिए डॉक्यूमेंट्री की पहली किस्त से नरेंद्र मोदी, उनकी सरकार और उनके नेतृत्व वाली भाजपा पर कोई नए सवाल नहीं उठे हैं। उनसे संबंधित जिन सवालों का जिक्र किया गया है, भारत की जनता उनके साथ गुजरे दो दशकों से उलझी हुई है। इसीलिए जरूरी उस नए सवाल को चर्चा में लाना है, जिस पर इस डॉक्यूमेंट्री से जोर पड़ता है। सवाल यह है कि ब्रिटेन ने अपनी उस ‘जांच’ के निष्कर्षों के साथ क्या किया?

डॉक्यूमेंट्री में बताया गया है कि तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने मोदी का कूटनीतिक बहिष्कार किया। उसके साथ ही इस बात का भी जिक्र है कि 2005 में अमेरिका ने मोदी के वीजा को रद्द कर दिया था। लेकिन इसमें इस बात का उल्लेख नहीं है कि 2012-13 में जब मोदी के राष्ट्रीय क्षितिज पर उभरने के संकेत मिलने लगे, तब ब्रिटेन उन पहले देशों में था, जिनके राजनयिक गुजरात जाकर मोदी से तार जोड़ने की होड़ में शामिल हुए। और जब 2014 में मोदी भारत के प्रधानमंत्री बन गए, तो अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा 2015 के गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि बनकर नई दिल्ली आए और इस तरह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नए भारतीय प्रधानमंत्री की ‘मेनस्ट्रीमिंग’ करने में सबसे अहम भूमिका निभाई।

इन बातों को इसलिए याद करना जरूरी है, क्योंकि इनसे ब्रिटेन और दरअसल पूरे पश्चिम का मानव अधिकारों और लोकतंत्र से संबंधित पाखंड बेनकाब होता है। अगर ब्रिटेन की अपनी कथित जांच इस निष्कर्ष पर पहुंची थी कि ‘मोदी गुजरात दंगों के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं’, तो उनका राजनीतिक सितारा चमकते ही ब्रिटिश सरकार उन्हें मनाने की होड़ में क्यों लग गई? अगर सचमुच पश्चिमी देश मानव अधिकारों की परवाह करते हैं, तो क्या ब्रिटेन, अमेरिका और अन्य देश अपनी इस आस्था के लिए भारत के उभरते बाजार से जुड़े अपने-अपने हितों की बलि नहीं चढ़ा सकते थे?

दुनिया के आधुनिक इतिहास से परिचित हर व्यक्ति जानता है कि उन्होंने ऐसा कभी नहीं किया है। अभी हाल में अमेरिका में चर्चित हुई एक किताब ने बताया है कि किस तरह 20वीं और 21वीं सदी में अमेरिका और उसके साथी देशों ने कहीं ‘मुस्लिम कट्टरपंथ’ का मुकाबला करने के लिए सैन्य या खुफिया हस्तक्षेप किया, तो उसी समय किसी अन्य देश में मुस्लिम कट्टरपंथी ताकतों को अपना दोस्त बनाया। अफगानिस्तान में सोवियत संघ के खिलाफ मुजाहिदीन को खड़ा करने और फिर मकसद सध जान के बाद उन्हीं मुजाहिदीन के खिलाफ जंग करने का उनका इतिहास हालिया है। इसलिए एक पल के लिए भी यह समझना कि उन देशों या उनके मीडिया को धार्मिक स्वतंत्रता, धार्मिक आधार पर उत्पीड़न या मानव अधिकारों के हनन की परवाह है, सिर्फ नाजानकारी या फिर जानबूझ कर आंख बंद रखने का ही परिणाम हो सकता है।

इसीलिए यह सवाल उठता है कि आखिर इस मौके पर बीबीसी को वह दस्तावेज क्यों लीक किए गए? और उन दस्तावेजों के आधार पर खबर दिखा देने के बजाय बीबीसी ने अल्पसंख्यक विरोधी नजरिए को पृष्ठभूमि बना कर नरेंद्र मोदी की पूरी कहानी दिखाने का फैसला क्यों किया?

क्या इसका संबंध यूक्रेन युद्ध में भारत सरकार के अपनाए तटस्थ रुख से है? गुजरे 10 महीनों में पश्चिमी देशों के बार-बार डाले गए दबाव के बावजूद मोदी सरकार रूस से व्यापारिक रिश्ते बनाए रखने के अपने रुख पर कायम रही है। तो क्या ब्रिटेन के जरिए अब यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि पश्चिम का सब्र जवाब दे रहा है?

या इसका संबंध भारतब्रिटेन के बीच मुक्त व्यापार समझौते के लिए चल रही वार्ता में भारत सरकार पर दबाव बनाने से है? जिस समय ब्रिटेन गहरे आर्थिक संकट और राजनीतिक अस्थिरता के दौर में है, यह समझौता उसके लिए बेहद अहम हो गया है।

वैसे भी गुजरात दंगे और अल्पसंख्यक विरोधी अभियान नरेंद्र मोदी और उनके नेतृत्व में भाजपा के उदय की कहानी का सिर्फ एक हिस्सा है। इस कहानी का दूसरा पहलू मोदी की आर्थिकी का ‘गुजरात मॉडल’ है। गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए मोदी ने इस मॉडल के जरिए देश के सबसे बड़े पूंजीपतियों को आकर्षित किया था। अपनी इजारेदारी कायम करने की कोशिश में जुटे उन पूंजीपतियों को मोदी में एक ऐसा नेता नजर आया था, जो उनकी महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए अनुकूल परिस्थितियां निर्मित करने में सक्षम हो। 2007 के बाद से ‘वाइब्रेंट गुजरात’ नाम से होने वाले इन्वेस्टर सम्मेलनों में वे पूंजीपति मोदी को भावी प्रधानमंत्री घोषित करने लगे थे। 2012-13 आते-आते वे पूंजीपति इस निष्कर्ष पर पहुंच गए थे कि अब उस भावी को वर्तमान में बदलने का समय आ गया है। उसके बाद उनका पूरा तंत्र और उनसे नियंत्रित मीडिया इस लक्ष्य को पूरा करने के अभियान में जुट गया था।

लेकिन बीबीसी या साम्राज्यवादी हितों से जुड़ा कोई मीडिया कहानी के इस पहलू को पेश करने का जज्बा नहीं दिखा सकता। इसलिए राजनीति में उत्थान-पतन की उनकी सारी कथा आज के दौर में ‘कल्चर वॉर’ और पहचान आधारित प्रश्नों तक सीमित रह गई है। द मोदी क्वेश्चन नाम से बनी डॉक्यूमेंट्री भी इसका अपवाद नहीं है।

(सत्येंद्र रंजन वरिष्ठ पत्रकार और अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार हैं।)

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K M Venugopalan
K M Venugopalan
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1 year ago

idhar ka documentary link click karne par (Joshi Mat ke bare mei interviewi ) alag jagah par pahunchta hai. hai..

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