ज़मीन की लूट के खिलाफ जंग-1: जब आधी रात को प्रशासन ने बोला लोगों के घरों पर धावा

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खिरियाबाग (आज़मगढ़)। जिस किसी को यह अहसास न हो कि घर-दुवार उजाड़े जाने और खेती-बारी छीने जाने और किसी अनिश्चित-अनजान जगह पर फेंके जाने ( विस्थापित होने ) का भय  कितना मारक होता है, कितना तोड़ देता है, किस कदर भीतर से हिला कर रख देता है, कितना बेचैन कर देता है, कैसे रातों की नींद और दिन का चैन छीन लेता है, कैसे चेहरों की रंगत को बिगाड़ देता, कैसे भविष्य के लिए संजोए गए सारे स्वप्नों को मटियामेट कर देता है, सारी योजनाओं पर पानी फेर देता है उन लोगों को खिरिया बाग (आज़मगढ़) ज़रूर जाना चाहिए, जहां उन आठ गांवों के लोग धरनारत हैं, जिन गांवों के घरों को उजाड़ने और खेती-बारी पर कब्जा करने का फरमान शासन-प्रशासन ने जारी कर दिया है और गांव वालों से यह कह दिया गया है कि उन्हें हर हालात में अपने पुरखों के गांव-घर, बाग-बगीचे और खेती-बारी को छोड़ना ही पड़ेगा और किसी अन्य अनिश्चित-अनजान जगह पर भागना ही पडे़गा और कोई दूसरा रास्ता नहीं है, क्योंकि इसी जगह पर आज़मगढ़ के भावी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का रनवे बनना है, जिसे केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार आज़मगढ़, उत्तर प्रदेश और देश के ‘विकास’ के लिए बहुत जरूरी मानती है।

खिरिया बाग आंदोलन की जमीनी रिपोर्ट तैयार करने के लिए जनचौक की टीम आंदोलनकारियों से मिलने उनके गांव गई और 27 दिसंबर से 30 दिसंबर के बीच उनके बीच रही। हम चार दिनों में प्राप्त की गई जानकारियों और अनुभवों को आपसे साझा करना चाहते हैं। जब हम 

पहुंचे तो इस आंदोलन के 76 दिन पूरे हो चुके थे। यह आंदोलन 13 अक्टूबर से चल रहा है। 12 अक्टूबर को 11 बजे दिन से लेकर 6 बजे शाम तक और रात करीब 1 बजे से लेकर सुबह 5 बजे तक का समय इन गांवों में पुलिसिया तांडव का समय था। जिसके बारे में बताते हुए इस आंदोलन की एक अगुवा  सुनीता ( दलित, उम्र 22 वर्ष) बताती हैं कि 11 बजे दिन को खिरिया बाग ( जमुआ गांव) में धड़ाधड़ 2 ट्रक पीएसी, करीब 20-22 मोटर साइकिलों पर पुलिस, 112 नंबर वाली पीसीआर की दो गाड़ी  और कुछ गाड़ियों-कारों में अफसर टाइप ( एसडीएम, तहसीलदार और कानूनगो-लेखपाल आदि) उतरे। उन्होंने जरी (जमीन नापने की कड़ी) निकालना शुरू किया। सबसे पहले फूलमती (दलित महिला, 55 वर्ष) ने उनसे पूछा कि आप लोग क्यों आएं हैं? क्या बात है? उन्हें कोई जवाब नहीं मिला, फूलमती ने गांव के लोगों को आवाज लगाई, धीरे-धीरे कुछ अन्य महिलाएं, लड़कियां और नौजवान जुट गए। अधिकांश पुरूष या तो दिहाड़ी मजदूरी करने गए थे या अपने खेतों में काम कर रहे थे। गांव के लोगों ने वहां आए अधिकारियों से पूछा कि आप लोग क्यों आएं हैं, क्या नाप रहे हैं, पहले उन्हें गोल-मोल जवाब देकर टालने की कोशिश की गई।

जोर देने पर उन्होंने कहा कि हम सर्वे करने आए हैं, यहां एयरपोर्ट बनेगा। फिर गांव वालों ने उनसे पूछा कि सर्वे करने का कागज दिखाइये, लेकिन मौके पर मौजूद अफसरान ने कोई कागज नहीं दिखाया। इसके बाद गांव के लोगों ने विशेषकर महिलाओं-लड़कियों और कुछ नौजवानों ने उन्हें सर्वे करने से रोकने की कोशिश की, उनसे जरीब छीनने लगे। इसके चलते पुलिस और गांव वालों के बीच धक्का-मुक्की होने लगी। पुलिस ने धमकाने-डराने की तमाम तरह की कोशिशें कीं, लेकिन उसके बाद भी गांव वाले हटे नहीं, विशेषकर महिलाएं। करीब 5 बजे तक यह सब चलता रहा, फिर पुलिस-पीएसी ने आक्रामक रूख अख्तियार किया, डंडों और गालियों के साथ गांव वालों पर टूट पड़े।

अधिकांश लोग डर कर भाग गए, लेकिन सुनीता, कुटुरी देवी (सुनीता की मां) और रंजना डट कर खड़ी रहीं, उनका साहस देखकर गांव की महिलाएं और अन्य लोग फिर सर्वे रोकने के लिए आए। संघर्ष के दौरान पुलिस वाले गालियां भी बकते रहे, विशेषकर जब उन्हें यह पता चला कि अधिकांश महिलाएं-लड़कियां दलित टोले की हैं, तो उन्होंने जाति सूचक गालियां भी दीं।अन्ततोगत्वा सरकारी अमले को जाना पड़ा, वे गांव के चार नौजवानों को भी उठा कर ले गए और जाते-जाते कह गए कि दिन में सर्वे नहीं करने दोगे, तो हम रात को आएंगे, सर्वे हर हालात में हम करेंगे। 

सुनीता की मां कुटुरी बताती हैं कि “हम लोग इस आशंका में सोए नहीं कि पता नहीं कब पुलिस गांव पर धावा बोल दे और यही हुआ। गांव के एक छोर पर गाडियों की तेज रोशनी दिखाई दी और उसमें से उतरते हुए बूटों की आवाज लोगों को सुनाई देने लगी। यह करीब रात के 1 से 1.30 बजे की बात है। गांव वालों ने चोर-चोर चिल्लाया, बदले में पुलिस-पीएसी वाले भी गांव वालों को चोर-चोर कहकर चिल्लाने लगे। गाड़ियों और टार्च की रोशनी में सर्वे का काम रात को 2 बजे शुरू करने की कोशिश हुई”। पहले तो लोगों की हिम्मत नहीं हुई कि उन्हें रोकें, लेकिन लड़कियों-महिलाओं ने साहस दिखाया और पुलिस वालों से भिड़ गईं।

कुटुरी देवी

घंटों तक पुलिस वालों और गांव वालों के बीच संघर्ष चलता रहा। पुलिस वालों ने लाठी चार्ज भी किया। कुछ लोगों को चोटें आईं। एक व्यक्ति का हाथ टूट गया। रात में हुए इस संघर्ष का वीडियो भी गांव वालों ने तैयार किया है। सुनीत कहती हैं कि “अगर हमारी बातों पर विश्वास न हो तो पुलिस की काली करतूतों को जानने के लिए यह वीडियो देख लीजिए। आखिर गांव वालों से हार कर पुलिस चली गई, लेकिन धमकी देकर गई, हम लोग फिर जल्दी ही आएंगे”। 12 अक्टूबर की उस रात के बाद से गांव के लोग हमेशा आशंका में जीते हैं कि पता नहीं कब पुलिस आए जाए। 

अपना घर-जमीन और गांव बचाने के लिए 12 अक्टूबर से गांव वालों ने खिरिया बाग में अनिश्वित कालीन धरना शुरू कर दिया और ‘घर-जमीन बचाओ संयुक्त मोर्चा’ का गठन किया। तब से खिरिया बाग में आठों गांवों के लोग धरना दे रहे हैं। उनकी पहली और अंतिम एकमात्र मांग यह है कि आज़मगढ़ अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के मास्टर प्लान को रद्द किया जाए, क्योंकि आज़मगढ़ के लोगों को इस तरह के किसी हवाई अड्डे की जरूरत नहीं है। जिन्हें जहाज पकड़ना है, उनके लिए दो-ढाई घंटे की दूरी पर लखनऊ और बनारस का हवाई अड्डा है, इसके साथ ही पहले से ही आज़मगढ़ में 104 एकड़ में फैला हवाई अड्डा मौजूद है, जहां से जहाजें उड़ सकती हैं। वे घर-जमीन के बदले में किसी तरह के भी मुआवजा और घर-गांव छोड़कर कहीं और बसने (विस्थापित) की बात सुनने को भी तैयार नहीं हैं। धरनारत लोग यह भी कह रहे हैं कि 17 साल पहले ( 2005) यहां हवाई अड्डा ( घरेलू उड़ान के लिए) के लिए 104 एकड़ जमीन अधिग्रहीत की गई, उस पर निर्माण कार्य भी हुआ है, लेकिन आज तक एक हवाई जहाज भी नहीं उड़ा।

सुनीता

हर बार कहा जाता है कि अगले साल उड़ेगा, लेकिन वह अगला साल 17 वर्षों में कभी नहीं आया। इसके साथ ही आंदोलन से जुड़े एडवोकेट सुजाय उपाध्याय सवाल उठाते हैं कि “जब वर्तमान हवाई अड्डे के उत्तर और दक्षिण- पूर्व दिशा में पर्याप्त जमीन (अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के रनवे के लिए सरकार द्वारा अधिग्रहण के लिए घोषित जरूरी जमीन 670 एकड़) उपलब्ध है, जहां नहीं के बराबर आवासी मकान है और वहां की बहुत सारी जमीन ऊसर भी है, तो आखिर क्यों पश्चिम दिशा के उन आठ गांवों के मकान-जमीन ( 670 एकड़) को लिया जा रहा है, जो सघन आबादी वाले हैं, जहां 40 हजार से अधिक आबादी रहती है और जमीन बहुत ही ऊपजाऊ है, जहां बहु फसली खेती होती है, जो इन गांव के लोगों की जीविका का सबसे बड़ा साधन है। जब पहले से बने हवाई अड्डे ( आजमगढ़ हवाई अड्डा) पर 17 सालों में कोई जहाज नहीं उड़ा, तो फिर एक नए अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के रनवे के लिए जमीन क्यों ली जा रही ( 670 एकड़ ) ?”

इस बारे में गांव वालों की राय करीब एक है। सब करीब एक स्वर से कहते हैं कि हमसे जमीन छीन कर बड़े-बड़े लोगों ( अंबानी-अडानी) को सौंपी जाएगी। इसी बात को धरनारत लोगों ने अपने एक पर्चे के शीर्षक में इसको इस रूप में व्यक्त किया है- “ एयरपोर्ट तो बहाना है, हमारी जमीनों की लूट असल निशाना है।” फिलहाल 30 दिसंबर को डीएम के नेतृत्व में आज़मगढ़ जिला प्रशासन और आठ गांवों के लोगों द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के बीच वार्ता हुई, जिला प्रशासन गोल-मोल बाते करता रहा, उनकी सारी बातों का निष्कर्ष यह था कि घर-जमीन अधिग्रहण के लिए सर्वे तो होगा, उसे कोई रोक नहीं सकता है, दूसरी तरफ गांव वाले किसी हालात में सर्वे नहीं होने देने के लिए कृतसंकल्प लगते हैं। मकान-जमीन बचाओ संयुक्त मोर्चा के अध्यक्ष रामनयन यादव ने साफ शब्दों में डीएम से कहा कि हम तब तक धरना बंद नहीं करेंगे, जब तक हमें हमारे घर-जमीन को न लेने का लिखित आश्वासन नहीं मिल जाता है और अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का मास्टर प्लान रद्द नहीं कर दिया जाता।

(आजमगढ़ के खिरिया से लौटकर शेखर आजाद के साथ डॉ. सिद्धार्थ की रिपोर्ट।)              

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