Saturday, April 27, 2024

भाजपा नेतृत्व के फैसले से क्या बढ़ेगा योगी-आरएमडी में शीतयुद्ध?

गोरखपुर। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके शहर गोरखपुर से चार बार विधायक रहे व वर्तमान में राज्यसभा सदस्य डॉ राधा मोहन अग्रवाल के बीच के राजनीतिक रिश्तों को लेकर शीतयुद्ध की चर्चा पिछले डेढ़ दशक से होती रही है। अब एक बार फिर भाजपा नेतृत्व के एक फैसले से यह चर्चा गरमाना स्वाभाविक है। पार्टी ने राज्य सभा सदस्य व गोरखपुर के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ राधा मोहन अग्रवाल अर्थात आरएमडी को राष्ट्रीय महामंत्री की जिम्मेदारी दी है।

भाजपा के फायर ब्रांड नेताओं में जब से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नाम की चर्चा शुरू हुई, तब से उनके चाहने वाले उन्हें मोदी के विकल्प के रूप में देखने लगे हैं। यह चाहत पीएम नरेन्द्र मोदी व गृहमंत्री अमित साह के भक्तों को खटकना स्वाभाविक है। ऐसे में पार्टी का एक हिस्सा योगी आदित्यनाथ को उनके घर में ही घेरने की कवायद करता रहा है। हाल में आरएमडी को संगठन में बड़ी जिम्मेदारी देने को इसी रूप में देख जा रहा है। जिसे समझने के लिए नरेन्द्र मोदी व पार्टी नेतृत्व के पिछले एक वर्ष में गोरखपुर को लेकर लिए गए फैसलों की चर्चा जरूरी है।

2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने लगातार चार बार गोरखपुर सदर सीट से विधायक रहे डॉ राधा मोहन अग्रवाल का टिकट काटकर भाजपा ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बतौर प्रत्याशी मैदान में उतारा। इस फैसले को लेकर डॉ अग्रवाल के राजनीतिक करियर को लेकर कयास लगाए जाने लगे। विभिन्न मामलों को लेकर मुखर रहे डॉ राधा मोहन की पार्टी नेतृत्व के प्रति नाराजगी स्वाभाविक थी। हालांकि इस सवाल पर वे मुखर होकर कभी विरोध नहीं किए। यहां तक योगी आदित्यनाथ के नामांकन में शामिल होकर एकजूटता का संदेश दिए।

इससे इतर आरएमडी के बयानों में मुख्यमंत्री को लेकर एक दूरी साफ नजर आई। विधान सभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री ने अपने मंत्रालय में जगह न देकर राधा मोहन की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। इस बीच पार्टी ने चुनाव के तीन महीने बाद जुलाई, 2022 में उन्हें राज्यसभा का सदस्य बना दिया। इसके बाद बीते वर्ष सितंबर में उन्हें संगठनात्मक जिम्मेदारी दी। लोकसभा चुनाव के लिए लक्षद्वीप का प्रभारी और केरल का सह प्रभारी बना दिया। संगठनात्मक जिम्मेदारी का यह क्रम अब केंद्रीय कार्यकारिणी में महामंत्री पद तक पहुंच गया है।

उधर योगी आदित्यनाथ के विरोध के चलते वर्ष 2002 में चुनाव हारने वाले भाजपा के कद्दावर नेता शिव प्रताप शुक्ल को पार्टी ने पहले राज्यसभा में भेजा, फिर केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री की जिम्मेदारी दी। योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद शिव प्रताप शुक्ल को हिमाचल प्रदेश का राज्यपाल बनाया। पूर्वांचल में ठाकुर व ब्राम्हण बाहुबलियों के एक दूसरे के खिलाफ गोलबंदी की राजनीति का दशकों से गोरखपुर केंद्र रहा है। ऐसे में शिव प्रताप शुक्ल का राजनीतिक कद बढ़ाकर सामाजिक संतुलन बनाये रखने का पार्टी नेतृत्व ने हाल के वर्षों में लगातार कोशिश की है। लिहाजा भाजपा में योगी विरोधियों के लिए कथित तौर पर शिव प्रताप शुक्ल खेमा सुरक्षित स्थान बन गया है।

पिछले दिनों गोरखपुर में गीता प्रेस के शताब्दी समारोह के समापन पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का आना हुआ। कार्यक्रम के बाद बिना किसी पूर्व सूचना के प्रधानमंत्री की गाड़ियों का काफिला अचानक घंटाघर की तरफ मुड़ा तब भी सियासी गलियारों में चर्चा हुई थी। संकरी गलियों में कदम रखते हुए पीएम नरेन्द्र मोदी केन्द्रीय वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी के आवास पहुंचे तो पूरे प्रदेश में यह खबर जंगल में आग की तरह पहुंची कि जब पीएम गोरखनाथ मंदिर नहीं गए तो वे किन वजहों से पंकज चौधरी के घर पहुंच गए? यह कहा जाता है कि योगी और पंकज की कमेस्ट्री ठीक नहीं है। ऐसे में प्रधानमंत्री का पंकज चौधरी के घर जाना सीएम के समर्थकों के लिए एक बड़ा संदेश है।

ये राजनीतिक पहलकदमियां व संगठन में फेरबदल के माध्यम से यह साफ हो गया कि भाजपा में जब गोरखपुर की बात होगी तो मात्र योगी आदित्यनाथ ही नहीं शिव प्रताप शुक्ल व डॉ राधा मोहन अग्रवाल भी होंगे। ये दोनों चेहरे योगी आदित्यनाथ को घेरने के लिए काफी हैं, या यूं कहें तो पार्टी में गोरखपुर सहित पूर्वांचल को लेकर दबाव की राजनीति करने वालों को संतुलित करने का यह बेहतर रास्ता है।

हिंदू महासभा से पहली बार विधान सभा पहुंचे आरएमडी

पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री व पेशे से बाल रोग विशेषज्ञ रहे डॉ राधा मोहन अग्रवाल के राजनीतिक करियर पर गौर करें तो बतौर जनप्रतिनिधि ही पार्टी और जनता दोनों के बीच लंबे समय तक उनकी पहचान रही। 2002 में हिंदू महासभा से भाजपा के प्रत्याशी शिव प्रताप शुक्ल को हराकर वह पहली बार विधायक बने और विधायक के तौर पर ही वह बाद में भाजपा में शामिल हो गए। उसके बाद लगातार तीन बार वह भाजपा के टिकट पर नगर विधायक बने।

अखिलेश ने अग्रवाल को की थी टिकट की पेशकश

गोरखपुर सदर सीट से टिकट न मिलने पर तब समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने राधा मोहन दास अग्रवाल को अपनी पार्टी से टिकट देने की बात कही थी। मगर अग्रवाल की अपनी पार्टी के प्रति निष्ठा प्रबल रही और वह भाजपा में बने रहे, जिसका उन्हें इनाम भी मिला। बाद में भाजपा ने उन्हें राज्यसभा भेजा, फिर पार्टी उन्हें राष्ट्रीय महामंत्री भी बनाया है। राष्ट्रीय कार्यकारिणी में महामंत्री जैसा बड़ा पद मिलना डॉ आरएमडी अग्रवाल के लिए इसलिए भी मायने रखता है, क्योंकि इससे पहले उन्हें राष्ट्रीय कौन कहे, प्रदेश कार्यकारिणी में भी कभी जगह नहीं मिली थी। हमेशा उनकी पहचान एक जनप्रतिनिधि की रही है।

छात्र जीवन से राजनीति में सक्रिय रहे डॉ राधा मोहन डीएवी इंटर कॉलेज गोरखपुर के वर्ष 1968 में कनिष्ठ उपाध्यक्ष, 1969 में कनिष्ठ अध्यक्ष, 1970 में डीएवी इंटर कॉलेज गोरखपुर के वरिष्ठ उपाध्यक्ष, अध्यक्ष जूनियर डाक्टर एसोसिएशन (1977), काशी हिंदू विश्वविद्यालय महामंत्री, टीचर एसोसिएशन (1981), अभा केंद्रीय विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के 1981 में पदाधिकारी रहे। इसके अलावा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में विभाग संयोजक, स्वदेशी जागरण मंच गोरखपुर विभाग संयोजक, कश्मीर बचाओ मंच गोरखपुर विभाग संयोजक, प्रज्ञा प्रवाह गोरखपुर सचिव, विश्व संवाद केंद्र, गोरखपुर में अपनी जिम्मेदारी निभाई।

फिलहाल समाजवादियों के गढ़ में भाजपा के बढ़ते प्रभुत्व के बीच गोरखपुर में सत्ता के तीन केंद्र बने रहने की उम्मीद है। जिनमें सबसे पहले पार्टी की नींव रखने वालों में हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल, इसके बाद भाजपा नेतृत्व को भी समय समय पर चुनौती देने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, तीसरा प्रमुख चेहरा नव नियुक्त पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री डॉ राधा मोहन अग्रवाल।

इन तीनों के सहारे भाजपा शीर्ष नेतृत्व शक्ति संतुलन बनाये रखने के मूड में है। इन सबके बीच आपसी सत्ता संघर्ष को लेकर पूर्वांचल में तैयार हो रही जमीन में दो नेताओं के बीच का शीतयुद्ध जारी रहने के आरोपों से इंकार नहीं किया जा सकता।

(गोरखपुर से जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट।)

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