Tuesday, April 23, 2024

राष्ट्रीय विज्ञान दिवस: वैज्ञानिक चेतना से खत्म होगा जात-पात, सांप्रदायिक नफरत और अंधविश्वास

कृषि प्रधान देश होने के साथ ही हमारा देश पर्व प्रधान भी है। तीन राष्ट्रीय त्योहार तो हैं ही। पूंजी का प्रवाह आया तो उसके साथ पूंजीवादी पर्व भी आ जुड़े। फिर अस्मिता विमर्श और अस्मितावादी राजनीति का बोलबाला हुआ तो दलित-बहुजन-आदिवासी समाज के महान व्यक्तियों के जन्म और परिनिर्वाण दिवस मनाने का दौर शुरू हुआ।

जातीय चेतना के विकास के साथ ही तमाम जातियों की भूली-बिसरी शख्सियतों के दिवस के कार्यक्रम शुरू हो गए। लेकिन समाज और नागरिकों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञान अर्जित करने और सुधार की भावना का विकास करने वाले ‘राष्ट्रीय विज्ञान दिवस’ को सरकार के रहम-ओ-करम पर छोड़ दिया गया।

देर से ही सही पर सवेरा हुआ है नागरिकों और समाज के कुछ लोगों को यह बात समझ में आई है। 28 फरवरी को कई संगठनों ने अपने स्तर पर ‘विज्ञान दिवस’ मनाकर बच्चों, मजदूरों, आदिवासियों और किसान समाज में वैज्ञानिक चेतना का विकास, अंधविश्वास भगाने और समानता, बराबरी, भाईचारा और बहनापा कायम करने का काम शुरू किया है।

‘राष्ट्रीय विज्ञान दिवस’ पर कार्यक्रम

विज्ञान से दूर होगा जात-पात और ऊंच-नीच का भेद

ग्रामीण क्षेत्र में विज्ञान के लिए कार्य करने वाली संस्था ‘विज्ञान विकल्प’ है ने प्राथमिक विद्यालय जसरा (प्रथम) प्रयागराज में ‘राष्ट्रीय विज्ञान दिवस’ के मौके पर कार्यक्रम का आयोजन किया। विद्यालय के बच्चों ने इसमें बढ़ चढ़ कर भाग लेते हुए विज्ञान संबंधी अपने चार्ट, निबंध, मॉडल और भाषण पेश किये।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विज्ञान भूषण विजय चितौरी ने बच्चों की वैज्ञानिक प्रतिभा को सराहना करते हुए कहा कि ‘राष्ट्रीय विज्ञान दिवस’ हर विद्यालय में अनिवार्य रूप से मनाया जाना चाहिए। इससे भावी पीढ़ी में वैज्ञानिक सोच का विकास होगा।

‘विज्ञान विकल्प’ संस्था के संयोजक पवन कुमार यादव ने वैज्ञानिक सीवी रमन के जीवन और वैज्ञानिक शोध पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रधानाध्यापिका मनीषा यादव ने किया। इस अवसर पर शिक्षक विशाल, ममता, उमा राय और पूनम सिंह ने बच्चों से व्यवहारिक जीवन में विज्ञान और अंधविश्वास को लेकर संवाद कायम किया। कार्यक्रम के अंत में प्रतिभागी बच्चों को पुरस्कृत किया गया।

विज्ञान दिवस पर पोस्टर प्रदर्शनी

कार्यक्रम के आयोजक पवन यादव जनचौक को बताते हैं कि जब तक समाज में वैज्ञानिक चेतना नहीं आएगी तब तक न तो समाज से अंधविश्वास खत्म होगा, न जात- पात का भेद और न ही सांप्रदायिक नफरत। वो आगे कहते हैं कि ब्राह्मण, ठाकुर, बनिया दुर्गा और शिव की ताबीज पहन रहा है। दलित अंबेडकर की ताबीज पहन रहा है। भंगी वाल्मीकि की ताबीज धारण कर रहे हैं। पिछड़ा समाज फुले और मुलायम की ताबीज पहन रहा है।

स्कूल में ही क्यों मनाया? स्कूल के बाहर गांव के लोगों के बीच क्यों नहीं मनाया ‘राष्ट्रीय विज्ञान दिवस’? इस सवाल के जवाब में पवन यादव बताते हैं कि वो पिछले तीन साल से ‘विज्ञान दिवस’ मनाते आ रहे हैं। और यह पहली बार है जब उन्होंने स्कूल में ‘विज्ञान दिवस’ मनाया है। इससे पहले वो स्कूल के बाहर ही ‘विज्ञान दिवस’ मनाते रहे हैं, जिसमें मज़दूर किसान और आदिवासी समुदाय के लोग शामिल होते रहे हैं।

पवन आगे कहते हैं कि जहां तक समाज से अंधविश्वास दूर करने की बात है, तो बड़े लोग अपनी आस्था और विश्वास को लेकर अड़ियल होते हैं इसलिए अब उन्होंने बच्चों के बीच ‘विज्ञान दिवस’ मनाने की शुरुआत की है। जिसमें 1 से 8 कक्षा के बच्चे शामिल हुए।

विज्ञान दिवस पर स्कूल में कार्यक्रम

पवन यादव आगे बताते हैं कि कार्यक्रम में सूर्यग्रहण के बारे में बच्चों से पूछा गया तो किसी ने बताया बजरंग बली खा लिए। 20-25 बच्चों ने बताया कि उन्हें राहु केतु ने खा लिया। तो उन बच्चों को सूर्यग्रहण का वैज्ञानिक कारण बताया गया। इससे बच्चा तो जानेगा ही वो अपने परिवार, पड़ोस और समाज को भी सूर्य ग्रहण के बारे में बताकर उससे जुड़े अंध-विश्वास को दूर करेगा।

वो आगे बताते हैं कि बच्चों को एक सप्ताह पहले टॉपिक दिया गया था। बच्चे उस पर निबंध, चार्ट, प्रोजेक्ट आदि बनाकर लाये। पवन यादव जोर देकर कहते हैं कि कार्यक्रम प्रयोग की अवस्था में है अभी। जलवायु और विज्ञान को लेकर लोगों को जागरूक करना और उनमें समझ विकसित करना ही कार्यक्रम का उद्देश्य है, जो आगे भी जारी रहेगा।

सौरमंडल, पृथ्वी और जीव की उत्पत्ति कैसे हुई बच्चे जान जाएंगे तो धर्म और ईश्वर को नकार देंगे

‘राष्ट्रीय विज्ञान दिवस’ के अवसर पर दिशा संस्थान ने पीके पब्लिक स्कूल धर्मापुर, जौनपुर में ‘विज्ञान दिवस’ मनाया। कार्यक्रम में पुस्तक यात्रा और पोस्टर प्रदर्शनी के साथ विज्ञान पर बच्चों के साथ संवाद मुख्य आकर्षण रहा। फिर छोटे-छोटे वीडियो के माध्यम से दुनिया कैसे बनी, हमारा सौरमंडल कैसे बना, जीव की उत्पत्ति कैसे हुई, इन विषयों पर बच्चों के साथ लंबी चर्चा की गई।

विज्ञान दिवस पर प्रदर्शनी

बच्चों को बिग बैंक की थ्योरी, सौर मंडल कैसे बना और हमारी धरती का निर्माण कैसे हुआ, इन विषयों पर गंभीरता के साथ सत्र चलाए गये। सत्र के दौरान युवाओं को जीव की उत्पत्ति, धरती पर मानव का फैलाव कैसे हुआ, इन सभी विषयों पर विस्तार पूर्वक बातें हुई।

एक साथ बहुत सारी किताबें देखकर कॉलेज के बच्चे खुशी से झूम उठे। सबसे बड़ी बात उनके लिए यह थी की किताबों की ढेर सारी वराईटी देख उनके समझ में ही नहीं आ रहा था कि वे कौन सी किताबें चुनें। फिर भी बच्चों ने बहुत सारी किताबों को पसंद किया और पढ़ा।

बच्चों ने विज्ञान की दुनिया, नौजवानों से दो बातें, धरती का रहस्य, हम और हमारा सौर मंडल, मैने हार नहीं मानी, हम कैसी दुनिया चाहते हैं, चंपक, कोंपल, भगत सिंह, जिन्होंने इतिहास का रुख मोड़ा आदि किताबों को पसंद किया। पुस्तक यात्रा में एक सौ पचास बाल साहित्य को किशोरों युवाओं के लिए लगाया गया था।

पुस्तक यात्रा

कार्यक्रम में छात्रों को ‘विज्ञान दिवस’ के बारे में बताया गया। इसके साथ ही कुछ वैज्ञानिक ट्रिक को भी बच्चों को दिखाया गया। विद्यालय के बच्चों ने इस कार्यक्रम में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। विद्यालय परिवार ने भी पूरा सहयोग किया।

बच्चों को विज्ञान के प्रयोग दिखाकर ही खत्म होगा चमत्कार का धंधा

‘राष्ट्रीय विज्ञान दिवस’ के अवसर पर 28 फरवरी को साइंस फॉर सोसायटी द्वारा गोजानी प्राइमरी स्कूल रामनगर में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के आयोजकों ने जनचौक को बताया कि कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य बच्चों में विज्ञान के प्रति चेतना जगाना तथा अंधविश्वास को दूर भगाना है।

कार्यक्रम में एक्टिविटी के माध्यम से चमत्कार के पीछे छिपे विज्ञान को प्रदर्शित किया गया। कार्यक्रम प्रस्तुत करते हुए सोसाइटी के संयोजक मदन मेहता ने बच्चों को बताया कि आग के संपर्क में 3 सेकेंड से अधिक आने पर ही इंसान की त्वचा झुलसती है।

चमत्कार का पर्दाफाश करते मदन मेहता

आग को लेकर ढोंगी-पाखंडी लोगों द्वारा जो चमत्कार दिखाए जाते हैं, उनका खुलासा करते हुए उन्होंने एक्टिविटी के माध्यम से जलते हुए कपूर को मुंह में रखकर कर दिखाया। इसके बाद बच्चों ने भी इस प्रयोग को किया। सीवी रमन के बारे में जानकारी लेते हुए बच्चों ने विज्ञान के खेलों को समझा और कार्यक्रम में प्रयोगात्मक भागीदारी की।

कार्यक्रम में किसान संघर्ष समिति के संयोजक ललित उप्रेती ने बच्चों को बताया कि पारदर्शी पदार्थ से गुज़रने पर प्रकाश की किरणों में आने वाले बदलाव पर की गई इस महत्‍वपूर्ण खोज के वैज्ञानिक सीवी रमन को भौतिकी के नोबेल पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया। साल 1930 में यह पुरस्कार ग्रहण करने वाले भारत ही नहीं बल्कि एशिया के पहले वैज्ञानिक थे।

विद्यालय की अध्यापिका सरला जोशी ने कार्यक्रम के लिए साइंस पार्क सोसाइटी का आभार व्यक्त करते हुए, समाज में वैज्ञानिक चेतना के प्रचार प्रसार की जरूरत को रेखांकित किया। इस दौरान उषा पटवाल, मुकेश जोशी, राजेंद्र सिंह समेत विद्यालय के अध्यापक एवं सैकड़ों छात्र-छात्राएं मौजद रहे।

कार्यक्रम में किताबें

कब शुरू हुआ राष्ट्रीय विज्ञान दिवस

28 फरवरी 1928 को चंद्रशेखर वेंकेटरमन ने रमन प्रकीर्णन-रमन प्रभाव की खोज की थी। इस खोज के लिये उन्हें साल 1930 में नोबल पुरस्कार से नवाजा गया था। समाज में वैज्ञानिक सोच पैदा करने के उद्देश्य से हर साल इसी दिन यानी 28 फरवरी को ‘राष्ट्रीय विज्ञान दिवस’ मनाया जाता है।

साल 1986 में भारत सरकार ने इसकी घोषणा की और 28 फरवरी 1987 से ‘राष्ट्रीय विज्ञान दिवस’ मनाने की शुरुआत हुई। राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तत्वाधान में यह आयोजन किया जाता है।

वहीं अंतर्राष्ट्रीय विश्व विज्ञान दिवस प्रत्येक साल 10 नवंबर को मनाया जाता है। विश्व वैज्ञानिक दिवस 2001 में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन यूनेस्को द्वारा घोषित किया गया।

चंद्रशेखर वेंकेटरमन

जैसा एजेंडा वैसी थीम रखती है सरकार  

सरकार अपने एजेंडे के तहत हर साल एक थीम देकर विज्ञान दिवस मनाती आ रही है। इस साल भारत G-20 देशों की मेजबानी कर रहा है इसलिए इस साल विज्ञान दिवस की थीम ‘वैश्विक भलाई के लिए वैश्विक विज्ञान’ रखा गया है। 14 मई 2014 को सत्ता में आने के बाद नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा मनाये जाने वाले विज्ञान दिवस की थीम में राष्ट्र को 2015 में प्रवेश मिला। थीम थी- राष्ट्र निर्माण के लिए विज्ञान।

2016 की थीम ‘राष्ट्र के विकास के लिए वैज्ञानिक मुद्दे’। साल 2020 में कोरोना के खिलाफ प्रधानमंत्री के ‘ताली थाली अभियान’ में महिलाओं ने जबर्दस्त भागीदारी की और 2020 की थीम ‘वीमेन इन साइंस’ रखी गई।

11 मार्च 2011 को जापान में आए भूकम्प के बाद उठी सुनामी के चपेट में फुकुशिमा परमाणु ऊर्जा उत्पादन संयंत्र में विकिरण रिसाव की दुर्घटना हुई और भारत के तमिलनाड़ू के तिरुनेलवेली जिले में कुडनकुलम परमाणु संयंत्र के लेकर विरोध हो रहा था, तब साल 2012 का थीम रखा गया स्वच्छ ऊर्जा विकल्प और परमाणु सुरक्षा। तब यूपीए की सरकार थी।

विज्ञान दिवस पर प्रदर्शनी

जीएम फसलों को लेकर जब किसानों में आत्महत्या और विरोध का दौर शुरू हुआ तो साल 2013 की थीम रखी गई– ‘आनुवांशिक रूप से संशोधित फसलें और खाद्य सुरक्षा’। 2002 वेल्थ फ्रॉम वेस्ट थीम रखी गई।

साइंटिफिक टेम्पर हमारे संविधान का हिस्सा है- गौहर रजा

मशहूर वैज्ञानिक, समाजिक कार्यकर्ता और गजलगो गौहर रजा कहते हैं कि “तर्कशीलता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण हमारे संविधान के आधार हैं। वो आगे कहते हैं कि संविधान को बनाने वाले चाहते थे कि इस आजाद मुल्क़ के आजाद मनुष्य का दृष्टिकोण वैज्ञानिक दृष्टि और साइंटिफिक टेंपर सें संपन्न हो। एक ऐसे समाज का जो जख़्मी था, जो असंगठित था, जो लूटे निचोड़े जाने के बाद गरीब था।

तर्कशीलता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण क्या है इस सवाल पर गौहर रजा नेहरू की किताब ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ का हवाला देकर कहते हैं कि कुल 10 पेज में नेहरू ने तर्कशीलता, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और सैइंटिफिक टेंपर के बारे में लिखा है।

जवाहर लाल नेहरू की ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’

नेहरू कहते हैं कि ‘साइंस एक तहकीकात है, बहादुर मगर आलोचनात्मक। ये तलाश है सच और नए ज्ञान की। ये रवैया है ऐसा जिसमें किसी चीज को तब तक न माना जाए, जब तक उसे परख न लिया जाए। ये नए सबूत की रौशनी में पुरानी मान्यताओं को बदलने की हिम्मत है।

नेहरू आगे कहते हैं कि ये पुरानी थियरीज के बजाय परखे हुए सच पर भरोसा करना है। और ये अपने सोच को अनुशासित करने की सलाहियत है। ये सलाहियत नेहरू का कहना है उस वख्त जिसको बहुत सारे वैज्ञानिकों ने बाद में मान लिया। ये आधार होगी हमारे आगे आने वाले वक्तों में समाज की’। 

अस्सी के दशक में बाबा और प्राइवेट मीडिया आये, अंधविश्वास लाये

अस्सी के दशक में बहुत से बाबा आये और अंधविश्वासों के सहारे समाज को पीछे खींचने लगे। इन बाबाओं ने लोगों को बेवकूफ बनाकर उनसे पैसे बनाये और अपनी अंधविश्वास की फैक्ट्री लगायी, चैनल बनाये, मठ बनाये और सत्ता अपनी स्थापित की। 80 के दशक और उसके बाद के नेता, बाबाओं के बीच में परवरिश पाए, इसलिए वो समाज को पीछे ले जाना चाहते हैं।

नरेंद्र दाभोलकर और गोविंद पान्सारे

वो मजदूरों, किसानों और गरीबों को अंधविश्वास और रूढ़ियों में जकड़ना चाहते हैं ताकि वो सवाल न पूछ सकें, अपना हक न मांग सकें। अंधविश्वास उन्मूलन करने वाले नरेंद्र दाभोलकर और गोविंद पान्सारे की हत्या इन बाबाओं ने करवाई। अस्सी के दशक के नेता इन बाबाओं की शरण में गये। बाबा राजनेता और पूंजिपतियों ने मिलकर गठबंधन तैयार किया।

मीडिया और अंधविश्वास का गहरा सम्बध हैं। आजाद प्राइवेट मीडया आया तो लगा कि मीडिया जनता तक विज्ञान और तकनीकि को पहुंचाएगा। लेकिन साइंस और टेक्नोलॉजी के बजाय मीडिया बाबाओं के प्रोडक्ट को ही लोगों तक पहुंचाने लगा। और इस तरह मीडिया के स्तर पर भी समाज को पीछे ढकेलने की कोशिश की गई।

वैज्ञानिक संस्थाओं में हिंदुत्व का प्रवेश

प्रधानमंत्री तर्कशील होते हैं तो अनुसंधान संस्थान बनाते हैं, जैसे नेहरू ने बनाए। जब प्रधानमंत्री अंधविश्वासी होता है तो वो नाले पर गैस बनाता है। क्लाइमेंट चेंज पर स्कूली छात्र सवाल करता है, तो जवाब में वो कहता है कि क्लाईमेट में बदलाव नहीं आया हमारी सहनशक्ति ही कम हो गई।

प्रधानमंत्री प्लास्टिक सर्जरी को भारत की खोज बताते हुये दावा करता है कि शिव ने गणेश की प्लास्टिक सर्जरी करके दुनिया की पहली प्लास्टिक सर्जरी की। वो अनुसंधान संस्थाओं को तोड़ता है उनका फंड खत्म कर देता है।

प्रधानमंत्री मोदी

साल 2014 में भाजपा की सरकार बनते ही वैज्ञानिक संस्थाओं में हिन्दुत्व का प्रवेश हो गया। वैज्ञानिक संस्थाओं को सरस्वती की खोज और संजीवनी की खोज के प्रोजेक्ट में लगा दिया गया। आयुष मंत्रालय गोबर में कीटनाशक व गौमूत्र में ऑक्सीजन पर शोध करवाने लगा।

विज्ञान एवं तकनीकि विभाग का इक्विटी अधिकारिता और विकास के लिए विज्ञान (SEED) पंचगव्य पर शोध परियोजना शुरू करवाता है। साथ ही टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान (TIFR), काउंसिल फॉर साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR) जैसे तमाम शोध संस्थानों के बजट में कटौती कर दी गई, जिससे पहले से चले आ रहे तमाम रिसर्च बंद हो गये।

देश का स्वास्थ्य मंत्री, स्कूलों में सेक्स एजुकेशन प्रतिबंधित करने को कहता है। वो वेदों को आइंस्टीन के सिद्दांत से बेहतर बताता है। देश का एमपी कहता है हमें डार्विनवाद में विश्वास नहीं है इसलिए इसे कोर्स से हटा दो। जज कहता है मोर के आंसू चुगकर मोरनी गर्भवती हो जाती है।

बच्चों ने बनाए पोस्टर

ये लोग टीवी पर बकवास करके हमारे बच्चों को अंधविश्वास में झोंकते हैं और अपने बच्चों को ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज में पढ़ने के लिए भेजते हैं। ऐसे में बच्चों और समाज में वैज्ञानिक चेतना के विकास के लिए सिर्फ स्कूलों और सरकारी संस्थाओं के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। इसके लिए समाज के तमाम समाजिक व नागरिक समूहों को प्रयास करना होगा।

छिट-पुट ही सही हिन्दी पट्टी के क्षेत्र में यह प्रयास शुरू हुआ है। ऐसी उम्मीद बंधती दिख रही है कि आने वाले समय में विज्ञान दिवस का आयोजन गांव के चौपालों, शहर की गलियों, हर एक स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी और सरकारी व निजी संस्थाओं में किया जायेगा।

(प्रयागराज से सुशील मानव की रिपोर्ट)

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