Friday, March 29, 2024

अमरोहा-1: दलित शिक्षकों को हाशिये पर फेंकता राजपूत प्रबंधन

“उसे तो कुछ आता ही नहीं, पढ़ाना। पता नहीं चयन बोर्ड ने कितने पैसे लेकर उसकी नियुक्ति कर दी। लेक्चरर का चयन इंटर क्लास को पढ़ाने के लिये होता है लेकिन ये छठी क्लास को नहीं पढ़ा पाता। पता नहीं कितने रुपये लेकर इसे कर दिया भर्ती।” मैंने पूछा किसकी बात कर रहे हैं तो बोले सुरेंद्र कुमार की। उपरोक्त शब्द एक इंटर कॉलेज के राजपूत प्रबंधक ने अपने स्कूल के इंग्लिश विषय के लेक्चरर और 10 साल प्रिंसिपल के पद पर कार्यरत रहे एक दलित शिक्षक के बारे में जनचौक के संवाददाता से कहे हैं। मैनेजर साहेब की बातें इसी स्कूल के एक सहायक अध्यापक सतीश कुमार और सूरज सिंह के आरोपों की पुष्टि थी। 

दरअसल जनचौक संवाददाता ने प्रबंधक से बात करने के पहले सूरज सिंह से फोन पर बातें की थी। प्रबंधक पर गंभीर आरोप लगाते हुये सूरज सिंह ने कहा कि – “प्रबंधक हम दलित शिक्षकों के साथ गाली गलौज करता है और हमारे लिये जाति सूचक शब्दों का इस्तेमाल करता है। सामाजिक व्यवस्था में निचले पायदान पर होने के नाते वो हमसे भेदभाव करते हैं। उन्हें ये बुरा लगता है कि हम दलित होकर अच्छा क्यों कर रहे हैं। अच्छा खा क्यों रहे हैं, अच्छा पहन क्यों रहे हैं, अच्छी तरह से मेंटिनेंस क्यों कर रहे हैं। ये उन्हें खलता है। दलित सुनते ही वो कहते हैं अयोग्य होगा। कोटे से आया होगा। इस तरह का ख्याल है उनका। लेकिन वो हमारी योग्यता पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगा सकते। सारे दलित शिक्षक चयन आयोग से आये हैं और अपने विषय में एक्सपर्ट हैं।”   

सुरेंद्र कुमार, शिक्षक

एक और सहायक अध्यापक सतीश कुमार आत्म उत्पीड़न का दर्द साझा करते हैं- “साल 2021 की बात है। मैं क्लास ले रहा था। कुछ बच्चों ने आकर कहा आपको मैनेजर साहेब बुला रहे हैं। मैंने कहा क्लास खत्म करके आता हूं। बच्चों ने जाकर प्रबंधक को बताया तो प्रबंधक ने छात्रों को हमारे ख़िलाफ़ उकसाते हुये कहा न आयें तो टांगे खींचकर लाओ। उन्हीं छात्रों ने लौटकर यह बात मुझे बताई। प्रबंधक की नज़र में यह है हमारी औकात।”

आखिर क्या है पूरा मामला, बात करते हैं विस्तार से। देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले के पतेई खालसा में ‘जनता इन्टर कॉलेज पतेई खालसा अमरोहा’ के नाम से एक इंटरमीडिएट कॉलेज है। यह एक वित्तपोषित कॉलेज है। इस कॉलेज में यूँ तो सहायक अध्यापकों के 17 पद व लेक्टरर के 2 पद स्वीकृत हैं। फिलहाल कॉलेज में 12 सहायक अध्यापक और 1 लेक्चरर कार्यरत है। जिसमें 6 शिक्षक दलित बिरादरी से हैं। इस स्कूल के प्रिंसिपल डॉ. क़मर अब्बास ज़ैदी को आयोग द्वारा जनवरी 2022 में नियुक्ति दी गई है। जबकि साल 1993 से इस कॉलेज के प्रबंधक है धर्मवीर सिंह जो कि ठाकुर बिरादरी से आते हैं। 

धर्मवीर मैनेजर

क्या है पूरा मामला

साल 2005 में चयन बोर्ड द्वारा सुरेंद्र कुमार की नियुक्ति इंग्लिश विषय के प्रवक्ता पद पर जनता इंटर कॉलेज पतेई खालसा अमरोहा में हुआ। साल 2005 में ही सतीश कुमार और हीरालाल की सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्ति हुई। जबकि सूरज सिंह की नियुक्ति साल 2013 में हुई। साल 2009 में स्कूल में प्रधानाचार्य का पद खाली हुआ तो वरिष्ठता क्रम के आधार पर सीनियर मोस्ट प्रवक्ता सुरेंद्र कुमार का ऑफिसिएटिंग प्रिंसिपल के पद पर तदर्थ रूप में पदोन्नति हो गई। और वो इस पद पर 2018 तक सेवारत रहे। 

सहायक अध्यापक सूरज सिंह जनचौक को बताते हैं कि पेशे से अधिवक्ता धर्मवीर सिंह साल 1993 से लगातार विद्यालय के प्रबंधक के पद पर हैं। जनता इंटर कॉलेज के पास 100 बीघे के क़रीब कृषि ज़मीन है, उससे जो आय होती है उसे प्रबंधक महोदय स्कूल में खर्च करने के बजाय खुद खा जाते हैं। विद्यालय के पास ही प्रबंधक महोदय रहते हैं और विद्यालय की खाली ज़मीन पर प्रबंधक महोदय ने अवैध क़ब्ज़ा कर लिया और कूड़ा आदि फेंककर गंदगी फैलाना शुरू कर दिया। 

सूरज सिंह

सुरेंद्र कुमार बताते हैं कि साल 2009 में वे आफिशीएट प्रिंसिपल बन गए थे और लगातार काम कर रहे थे। 2017 में कॉलेज के एक प्लॉट पर क़ब्जा करने के संबंध में मैंने मैनेजर साहेब को एक पत्र लिखा कि इस पर अवैध लोगों ने क़ब्ज़ा कर लिया है। उसी पत्र से वो चिढ़ गये क्योंकि वो प्लॉट उन्हीं के द्वारा क़ब्ज़ा किया जा रहा था। तो उन्होंने मुझसे कहा कि आप कौन होते हैं बोलने वाले। 

लिखने वाले कौन हैं कहां से अधिकार है। सिड्यूल कास्ट होने के नाते वो हमसे ज़्यादा फिट महसूस नहीं करते थे। बाद में इसी विद्वेष के कारण जून 2017 का एक महीने का उनका वेतन काट दिया। उसके प्रति आपत्ति जिला विद्यालय निरीक्षक ये यहां दी गई और सुनवाई में सारे विभागीय नियम क़ानून और हाईकोर्ट के वगैरह के निर्णय से स्पष्ट हुआ कि वेतन काटने के लिये प्रबंधक एनटाइटल नहीं है, वे वेतन नहीं काट सकते। 

आगे की बात हीरालाल बताते हैं कि यहां हारने के बाद मार्च 2018 में अनर्गल आरोप लगाकर सुरेंद्र कुमार का डिमोशन कर उन्हें प्रिंसिपल के पद से हटाकर मूल प्रवक्ता के पद पर भेज दिया। जब इसके प्रति उन लोगों ने आपत्ति दर्ज़ की तो जिला विद्यालय निरीक्षक ने उनके प्रस्ताव को नियम विरुद्ध बताते हुए कैंसिल कर दिया। इसके ख़िलाफ़ मैनेजमेंट कमेटी हाईकोर्ट गई वहां से उन्हें स्टे नहीं मिला और जनवरी 2019 में मैनजमेंट कमेटी की याचिका ख़ारिज़ हो गई। और तभी बोर्ड परीक्षा शुरु हो गई, बोर्ड परीक्षा संपन्न होने के ठीक अगले ही दिन यानि 4 अप्रैल 2019 में मैनेजमेंट ने उन्हीं आरोपों के आधार पर सुरेंद्र कुमार जी को सस्पेंड कर दिया। सस्पेंसन रद्द हुआ तो मैनेजमेंट इसके ख़िलाफ़ हाईकोर्ट गया वहां से भी कुछ नहीं हुआ। सस्पेंसन रद्द होने के दौरान ही मैनेजमेंट ने सुरेंद्र कुमार के टर्मिनेशन (सेवा समाप्ति) का प्रस्ताव चयन बोर्ड को भेज दिया।   

घास वाले हिस्से पर प्रबंधक का कब्जा

सुरेंद्र कुमार बताते हैं कि इस प्रकरण में चयन बोर्ड द्वारा सुनवाई की गई और मैनेजमेंट के आरोपों को निराधार पाया गया। और उनके प्रस्ताव को अनानुमोदित (डिसअप्रूव) कर दिया गया। फिर उसके उन्होंने हाईकोर्ट में चैलेंज किया। याचिका पर अभी चल रही है। उसके बाद मार्च 2021 में मैनेजमेंट ने सुरेंद्र कुमार की नियुक्ति ही निरस्त कर दी। डीआईएस ऑफिस भेजा फिर वहां से आयोग चला गया। आयोग ने मना कर दिया। नियुक्ति निरस्तीकरण में मामला हाईकोर्ट गया और वहां से सुरेंद्र कुमार को क्लीनचिट मिली। सुरेंद्र कुमार बताते हैं कि इस तरह मुझ पर कार्रवाई पर कार्रवाई चल रही है। मेरी सारी इनक्रीमेंट रोक दी गई है। जब मैं प्रिंसिपल था उस समय का भी नहीं मिला। 

सुरेंद्र कुमार कॉलेज प्रबंधन द्वारा दलित शिक्षकों के उत्पीड़न के संदर्भ में आगे कहते हैं कॉलेज की संपत्ति को बचाने के लिये प्रयास किया तो ये कार्रवाइयां शुरु हो गईं। कॉलेज के तमाम दलित शिक्षकों को टारगेट किया जा रहा है और उनके ख़िलाफ़ भी कार्रवाई पर कार्रवाई हो रही है। उनके भी इन्क्रीमेंट नहीं दिये जा रहे। अथॉरिटी में जाते हैं तो वहां भी सुनवाई नहीं होती। 2021 मार्च से सितम्बर तक का वेतन नहीं दिया आज तक और कारण भी नहीं बता रहे कि क्यों वेतन रोका है। 

जुलाई 2021 का वेतन वृद्धि का पैसा नहीं दिया। ये कार्रवाई और हैरसमेंट हो रहा है। उनका साथ देने वाले दलित शिक्षकों हीरालाल, सतीश कुमार और सूरज सिंह का मार्च 2021, जुलाई 2021, सितंबर 2021 का वेतन अकारण काट दिया। तीनों शिक्षकों ने प्रत्यावेदन दिया पर कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। जुलाई 2022 की वेतन वृद्धि रोक दी गई है। कोई सूचना नहीं दी लिखा पढ़ी नहीं की। 

चहेतों को नियम विरुद्ध जाकर पहुंचाया जा रहा फायदा

शिक्षक सूरज सिंह अपने साथ मैनेजमेंट द्वारा किये जा रहे शोषण उत्पीड़न को साझा करते हुये कहते हैं मेरे स्कूल का मैनेजमेंट और अधिकारीगण दलित जाति से होने के चलते अकारण ही विगत कई सालों से शोषण कर रहे हैं। 2017 से कई घटनायें हैं मेरे साथ। कभी बिना बात के वेतन काट दिया। कभी डिमोशन कर दिया। कभी टर्मिनेशन कर दिया। यह दीगर बात है कि मैनेजमेंट की सारी कार्रवाइंया हाईकोर्ट से खत्म होती गई और हम अपनी जगह वापिस आते गये। कभी तीन महीने का वेतन काट दिया। कभी नियम के परे जाकर वेतनवृद्धि रोक दिया। जबकि उनकी अपनी बिरादरी के और रिश्तेदार आदि जो स्कूल में है उनके तमाम अपराधों के बावजूद उनको पदोन्नति व वेतन वृद्धि दी जाती है। यह पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाया जा रहा है।  

सतीश कुमार बताते हैं कि दलित शिक्षकों के बरक्श स्टॉफ के जो लोग मैनेजमेंट के साथ हैं उनमें से एक का जेल में रहने के दौरान का वेतन भी दे दिया गया है। जेल में रहने के समय कोई कार्रवाई नहीं की। कुछ फर्जी टीचर हैं, उनकी मार्कशीट पर आपत्ति है उन्हें वेतन संरक्षण दिया जा रहा है। एक शिक्षक की बीएड की मार्कशीट संदिग्ध है। 2019 में वित्त नियंत्रक प्रयागराज शिक्षा निदेशालय की ऑडिट टीम ने विद्यालय का ऑडिट किया और अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि इनकी मार्कशीट संदिग्ध है, उनकी जांच करायी जाये। लेकिन जांच नहीं करायी गई। इसके अलावा बिना पद सृजन और बिना विषय की मान्यता के कुछ अध्यापकों को प्रबंधक ने नियुक्त कर लिया जो कि नियम के विरुद्ध है। इसके संदर्भ में भी प्रयागराज वित्त नियंत्रक के रिपोर्ट में आपत्ति दर्ज़ है। ये सभी ओबीसी और जनरल वर्ग के हैं। 

सतीश कुमार बताते हैं कि उनका प्रमोशन रोककर वरिष्ठता क्रम में पांचवें नंबर की अध्यापिका जो कि ब्राह्मण समुदाय से थी उनका नाम भेज दिया गया। उनका नाम नहीं भेजा। जिला विद्यालय निरीक्षक को उन्होंने लेटर भेजा, प्रबंधक को लेटर भेजा। जिला विद्यालय निरीक्षक ने इन्हें 2 लेटर जारी किये और उसके बावजूद प्रबंधन ने उनका नाम नहीं भेजा। प्रबंधक ने उनकी रजिस्ट्री नहीं ली वापस कर दी। 

बता दें कि प्रमोशन के मामले प्रबंधन देखता है। डीआईएस फिर संयुक्त शिक्षा निदेशक के भेजता है। सतीश कुमार का कहना है कि प्रमोशन का मामला वरिष्ठता क्रम के आधार पर होता है। प्रबंधन कह रहा है यहां पर वरिष्ठता का कोई मामला नहीं है। प्रवक्ता भी जो कमीशन से आया है वो एससी बिरादरी का है आप भी एससी हो इसलिये सुपर सीट एससी से भर जायेगा। जबकि सीधी भर्ती में भले ही आरक्षण लागू हो लेकिन पदोन्नति में वरीयताक्रम ही माना जाता है। सतीश कुमार बताते हैं कि उनकी नियुक्ति साल 2005 में हुई थी जबकि ब्राह्मण शिक्षिका की नियुक्ति 2012 में हुई है। उनका पद भी वहां सृजित है न मान्यता है। गृह विज्ञान की मान्यता नहीं है। ऑडिट रिपोर्ट में आपत्ति है इस पर कि मान्यता नहीं है तो कैसे वेतन दे रहे हो। जो गैर दलित हैं उन्हें लीक से हटकर, नियमों को दरकिनार कर फायदा दिया जा रहा है। और दलितों को नियमों में होते हुये भी हतोत्साहित किया जा रहा है।  

प्रशासन कर रहा प्रबंधक का समर्थन

शिक्षक सूरज सिंह सामाजिक भेदभाव का आरोप लगाते हुए कहते हैं चूंकि मैनेजर सवर्ण हैं और राजपूत जाति से हैं इसलिये कोई कार्रवाई नहीं हो रही। प्रशासन उन्हें सपोर्ट कर रहा है। और हम लोग दलित है तो हमें बेवजह परेशान किया जा रहा है। हम अपने ख़िलाफ़ उत्पीड़न की शिकायत लेकर राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग गये थे वहां से डीएम और एसपी के लिये लेटर ज़ारी हुआ कि इनके ख़िलाफ़ जांच करके एफआईआर दर्ज़ की जाये लेकिन स्थानीय पुलिस ने राजनीतिक दबाव में बिना कोई कार्रवाई किये झूठी रिपोर्ट बनाकर आयोग को भेज दी। हमारा शोषण लगातार ज़ारी है। सूरज सिंह प्रबंधन से अपनी और अपने साथी शिक्षकों की जान का ख़तरा बताते हुए कहते हैं मैनेजर का घर विद्यालय के पास है तो हमें शारीरिक नुकसान और जान का ख़तरा है। हमने कई बार लिखकर दिया है लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई क्योंकि विभागीय अधिकारी भी सवर्ण जाति से हैं।   

एससी एसटी एक्ट का केस दर्ज़ कराया है और एडीजे अमरोहा में तलब होने के ऑर्डर हो गये हैं लेकिन मैनेजर ने उस ऑर्डर को चैलेंज करने हाईकोर्ट चले गये हैं वहां तारीख लगी है। सबूतों के आधार पर केस दर्ज हुआ है। और पर्याप्त सबूत हैं जिससे साबित होता है जातिगत दुर्भावना के चलते प्रबंधक ने दलित शिक्षकों के ख़िलाफ़ कार्रवाई और पक्षपात किया गया।   

प्रबंधक और उनके समधी पर गबन का आरोप

शिक्षक सूरज सिंह आरोप लगाते हैं कि प्रबंधक विद्यालय के स्वरूप में तोड़-फोड़ करके प्रबंधक विद्यालय की ज़मीन को अपने क़ब्जे में ले रहे हैं इसके ख़िलाफ़ भी कोई कार्रवाई नहीं हुई है। डीआईएस ने उन्हें दोषी माना है। उनके खिलाफ़ डीआईएस का ऑर्डर है कि मैनेजर और उनके रिश्तेदार प्रवक्ता द्वारा विद्यालय का धन गबन किया गया है और उसे 15 दिन के अंदर जमा करें। इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं हुई। और साथ ही विद्यालय का अभिलेख चुरा लिया चोरी करके ले गये इस मामले में उनके ख़िलाफ एफआईआर दर्ज़ है, विवेचना चल रही है लेकिन कोई विभागीय कार्रवाई नहीं हुई। 

सुरेंद्र कुमार के कार्यकाल में स्कूल ने की अभूतपूर्व तरक्की

शिक्षक सतीश कुमार बताते हैं कि सुरेंद्र कुमार के प्रधानाचार्य पद पर रहते हुए स्कूल ने बहुत विकास और ख्याति अर्जित की। 2019 में जब तत्कालीन प्रिसिपंल साहेब रिटायर हुये तो छात्र संख्या लगभग 1000 थी। जो कि सुरेंद्र कुमार के कार्यकाल में डेढ़ गुना बढ़ोत्तरी के साथ 1500 के आस पास पहुंच गई। शिक्षा विभाग के जिला विद्यालय निरीक्षक द्वारा कॉलेज को ‘ए’ ग्रेड का अवार्ड मिला। कॉलेज अच्छा चल रहा था, बच्चों की संख्या भी काफी अच्छी थी। जिला स्तर मंडर स्तर पर जो प्रतियोगितायें होती थी उसमें भी बच्चों ने पार्टिसिपेट करते थे और अच्छी पोजीशन लाते थे। सारे लोगों ने मेहनत की।

कॉलेज की पोजीशन अच्छी थी, रिजल्ट अच्छा था। लेकिन छात्र संख्या बढ़ाने पर तत्कालीन प्रिंसिपल सुरेंद्र कुमार पर आरोप मढ़ते हुये मैनेजमेंट ने पूछा कि आपने इतनी संख्या क्यों बढ़ा ली। सेक्शन कैसे चला रहे हो। प्रिंसिपल के सस्पेंशन में आधार ये बनाया गया कि बच्चों की संख्या क्यों ज़्यादा है। छात्रहित में काम करने से भी उन्हें दिक्कत हुई। विद्यालय का नाम जनपद और मंडल स्तर पर ज़रूर आता था। संसाधन न आड़े आते तो प्रदेश स्तर पर भी स्कूल के छात्र नाम रोशन करते। हर प्रतियोगिता में स्कूल का नाम आता था। इससे भी लोग चिढ़ रहे थे कि दलित के नेतृत्व में स्कूल का नाम रोशन हो रहा है। प्रधानाचार्य रहते सुरेंद्र कुमार के साथ प्रबंधक द्वारा साथ गाली गलौज किया जाता है। जाति सूचक शब्दों को बोला जाता। 

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

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