Saturday, April 20, 2024
प्रदीप सिंह
प्रदीप सिंहhttps://www.janchowk.com
दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

फैसले के बावजूद उप-राज्यपाल का अड़ंगा, दिल्ली सरकार फिर पहुंची सुप्रीम कोर्ट  

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी दिल्ली सरकार और उप-राज्यपाल में अधिकारों को लेकर विवाद थमता नजर नहीं आ रहा है। फैसले के एक दिन बाद ही सरकार और उप-राज्यपाल में ठन गई। दिल्ली सरकार ने एक अधिकारी का तबादला किया और उप-राज्यपाल ने तबादले को अवैध बताते हुए उस पर रोक लगा दी है। इसके बाद केजरीवाल सरकार ने शुक्रवार को फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने अधिकारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग का मुद्दा उठाया। और आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार अधिकारियों का ट्रांसफर नहीं करने दे रही है। सर्वोच्च अदालत के स्पष्ट आदेश के बावजूद दिल्ली के उप-राज्यपाल सरकार के कामकाज में रोड़ा अटका रहे हैं।  

ताजा विवाद सेवा विभाग के सचिव आशीष मोरे के ट्रांसफर से जुड़ा है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र के GNCTD अधिनियम 2021 (संशोधन) के खिलाफ दिल्ली सरकार की याचिका पर बड़ा फैसला सुनाया था। अदालत ने दिल्ली सरकार को अधिकारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग का अधिकार दिया था। फैसले के बाद केजरीवाल ने नौकरशाही में बड़े फेरबदल के संकेत दिए थे, और सेवा विभाग के मंत्री सौरभ भारद्वाज ने गुरुवार को अपने विभाग के सचिव आशीष मोरे को सेवा सचिव पद से हटा कर अनिल कुमार सिंह को सर्विसेज विभाग का सचिव बनाया। वह 1995 बैच के आईएएस अधिकारी हैं और जल बोर्ड के सीईओ भी रह चुके हैं। लेकिन उप-राज्यपाल ने इस ट्रांसफर में प्रक्रिया का पालन न करने का आरोप लगाते हुए रोक लगा दी है।

एलजी सचिवालय और सेवा विभाग के सूत्रों का दावा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आधिकारिक प्रति आने के पहले ही आशीष मोरे के ट्रांसफर का पत्र आ गया, ट्रांसफर में निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। दूसरा, सेवा विभाग के सूत्रों का कहना है कि दिल्ली में एक अधिकारी का तबादला कार्यकाल पूरा होने से पहले केवल सिविल सेवा बोर्ड द्वारा किया जा सकता है, जिसके प्रमुख मुख्य सचिव और अन्य दो वरिष्ठ नौकरशाह सदस्य होते हैं, लेकिन सेवा सचिव के तबादले में इस प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।   

गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आम आदमी पार्टी ने राउज एवेन्यू रोड पर स्थित पार्टी मुख्यालय के बाहर जश्न मनाया। यह जश्न चुनावी जीत जैसा था। आखिरकार, कानूनी जीत भाजपा शासित केंद्र के साथ आठ साल पुराने विवाद की परिणति थी।

मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया कि सहकारी संघवाद की भावना में, केंद्र को संविधान द्वारा बनाई गई सीमाओं के भीतर अपनी शक्तियों का प्रयोग करना चाहिए।

सर्वोच्च अदालत के फैसले की सराहना करते हुए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा “आने वाले दिनों में, आप प्रशासनिक अधिकारियों में एक बड़ा बदलाव देखेंगे। उनके द्वारा किए गए काम के आधार पर कई अधिकारियों और कर्मचारियों का तबादला किया जाएगा। कुछ अधिकारी हैं, जिन्होंने पिछले डेढ़ साल में दिल्ली के लोगों के काम को ठप कर दिया।”

एक संवाददाता सम्मेलन में, कैबिनेट मंत्री गोपाल राय, आतिशी और सौरभ भारद्वाज ने कहा कि यह फैसला दिल्ली के लोगों की जीत है और उन्होंने चुनी हुई सरकार की शक्तियों को “अवैध रूप से छीनने” के लिए केंद्र सरकार की आलोचना की।

अरविंद केजरीवाल ने 2015 में दूसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में पदभार संभाला था, पिछले आठ सालों तक राष्ट्रीय राजधानी में निर्वाचित सरकार और उप-राज्यपाल के बीच शक्ति संघर्ष होता रहा। दिल्ली के उप-राज्यपाल के पद पर चाहे जो भी व्यक्ति रहा हो, दिल्ली सरकार के साथ अधिकारों को लेकर जंग छिड़ी रही। दिल्ली सरकार और उप-राज्यपाल के बीच नवीनतम विवादों में दिल्ली सरकार का शिक्षकों को प्रशिक्षण के लिए फिनलैंड भेजने का प्रस्ताव, डीईआरसी के अध्यक्ष की नियुक्ति और उपराज्यपाल से मुख्यमंत्री आवास के निर्माण पर रिपोर्ट मांगना और भ्रष्टाचार के कथित मामलों की जांच को हरी झंडी दिखाना शामिल है।

मुख्यमंत्री द्वारा लिए गए लगभग हर फैसले पर आप सरकार और उपराज्यपाल कार्यालय के बीच टकराव हुआ। सीसीटीवी कैमरे लगाने के मुद्दे पर तो मुख्यमंत्री ने अन्य कैबिनेट मंत्रियों के साथ तत्कालीन एलजी अनिल बैजल के कार्यालय पर आठ दिन तक धरना दिया था। अभी हाल ही में केजरीवाल ने फ़िनलैंड में प्रशिक्षण के लिए शिक्षकों को भेजने को लेकर एल-जी वीके सक्सेना के कार्यालय तक एक विरोध मार्च का नेतृत्व किया था। दिल्ली कैबिनेट ने बार-बार आरोप लगाया है कि अधिकारी सीधे उप-राज्यपाल से आदेश लेते हैं और चुनी हुई सरकार को जानकारी तक नहीं देते।

अरविंद केजरीवाल सरकार आरोप लगाती रही है कि अखिल भारतीय सेवाओं और दानिक्स (दिल्ली, अंडमान और निकोबार, लक्षद्वीप, दमन और दीव और दादरा और नगर हवेली (सिविल सेवा)) जैसे संयुक्त यूटी कैडर के नौकरशाह निर्वाचित सरकार के प्रशासनिक निर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं।  

फैसले में दिल्ली सरकार की शक्तियों के बारे में विस्तार से बताया गया है कि भारतीय प्रशासनिक सेवा, या संयुक्त कैडर सेवाओं जैसी सेवाओं पर विधायी और कार्यकारी शक्ति, जो दिन-प्रतिदिन के प्रशासन के संदर्भ में दिल्ली सरकार की नीतियों और दृष्टि के कार्यान्वयन के लिए प्रासंगिक हैं।

आप प्रवक्ता ने कहा “मुझे लगता है कि यह कहना उचित होगा कि यह राष्ट्रीय राजधानी में लोकतंत्र का पुनर्जन्म है। यह सिर्फ आप सरकार या सीएम अरविंद केजरीवाल की व्यक्तिगत जीत नहीं है। यह दिल्ली के लोगों और लोकतंत्र को पोषित करने वाले हर भारतीय की जीत है।”

लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उप-राज्यपाल कार्यालय ने जिस तरह से दिल्ली सरकार के एक मंत्री द्वारा सेवा सचिव के ट्रांसफर की फाइल को रोक दिया है, वह आने वाले दिनों में दिल्ली सरकार के लिए शुभ संकेत नहीं है।

(प्रदीप सिंह की रिपोर्ट।)

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