नई दिल्ली। राजधानी की सड़कों पर आज यानि सोमवार को एक बार फिर किसानों का हुजूम उमड़ पड़ा। हरा, लाल और पीले झंडे लिए रेल, बस और ट्रैक्टर से आए हजारों किसानों का यह हुजूम दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित किसान महापंचायत में शामिल हुआ। 14 महीने तक किसानों ने इंतजार किया। लेकिन मोदी सरकार ने उनके साथ किए गए वादे और समझौते को पूरा नहीं किया। अब किसानों को महसूस हो रहा कि दिल्ली बॉर्डर से किसानों को उठाने के लिए सरकार ने वादारूपी छल का सहारा लिया था।
पंजाब के बरनाला से आए किसान बलविंदर सिंह ने कहा कि “इस बार किसान दिल्ली धरना देने नहीं बल्कि केंद्र सरकार को चेतावनी देने आए थे। किसानों से किए गए वादे को केंद्र सरकार ने पूरा नहीं किया तो एक बार फिर हम सड़कों पर उतर कर संघर्ष करेंगे।”
उन्होंने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा कि मोदी सरकार ने 14 महीने में किसानों के हित में कोई काम नहीं किया। अब जब पहले की मांग को ही पूरा नहीं किया गया तो आज की समस्याओं पर क्या विचार किया जायेगा। साल भर में किसानों की समस्याएं और बढ़ गई हैं। महंगाई बढ़ गई है, किसानों का कर्ज बढ़ गया है, खाद-बीज के दाम बढ़ गए हैं।
बलविंदर सिंह पंजाब के छोटे किसान हैं, वह कुल 16 किल्ला जमीन पर खेती करते हैं। उनके पास खुद की 5 किल्ला जमीन है, 11 किल्ला जमीन वह ठेके पर लिए हैं। बलविंदर कहते हैं कि उपज का सही मूल्य न मिलने के कारण परिवार को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
इस बार किसान महापंचायत में किसान ही नहीं बल्कि मनरेगा मजदूर, बटाई और ठेके पर जमीन लेकर खेती करने वाले लोग भी भारी संख्या में आए थे। आजमगढ़ के खिरियाबाग में हवाई अड्डे के विरोध में शामिल महिलाएं भी रामलीला मैदान में आई थीं। इस तरह इस बार किसान आंदोलन ने व्यापक रूप ले लिया है। सिर्फ किसान ही नहीं बल्कि समाज के अन्य तबके भी किसानों के साथ जुड़कर अपनी समस्याओं को सरकार तक पहुंचाना चाहते हैं।
लुधियाना से आए गुरदयाल सिंह कहते हैं कि खेती दिनोंदिन घाटे का सौदा होती जा रही है। घर-परिवार की मर्यादा बचाने के लिए किसान अपनी जमीन पर खेती करना नहीं छोड़ सकते हैं और खेती फायदेमंद रह नहीं गई है। सरकार भी नहीं चाहती कि किसान खेती करें। वह किसानों को अडानी-अंबानी का मजदूर बनाना चाहती है। चाहे केंद्र सरकार हो या राज्य की सरकार, वह किसानों से उनकी जमीन लेकर कॉर्पोरेट को देना चाहती हैं।
किसान महापंचायत में महाराष्ट्र के प्याज और कपास के किसान, तो राजस्थान के संतरा उपजाने वाले किसान भी आए थे। अधिकांश किसानों का कहना था कि मौसम और सरकार की मार से किसान बेहाल हैं।
शेतकरी संघर्ष समिति, बीड, महाराष्ट्र के भाई गंगा भीषन थावरे कहते हैं कि हमारे जिले में किसान नकदी खेती में कपास, सोयाबीन और गन्ना उपजाते हैं, और खाने के लिए ज्वार, बाजरा, गेहूं उपजाते हैं। लेकिन कपास और सोयाबीन की लागत जिस हिसाब से बढ़ रही है, उसकी तुलना में उपज का मूल्य नहीं मिल रहा है।
गंगा थावरे कहते हैं कि एक एकड़ में कपास बोने के लिए बीज का एक बैग चाहिए, एक बैग कपास के बीज की कीमत 15 सौ रुपये है। और 15 हजार की खाद डालनी पड़ती है। एक एकड़ कपास में कुल खर्च लगभग 35 हजार पड़ता है। एक एकड़ में लगभग पांच क्विंटल कपास की पैदावार होती है। कपास इस समय साढ़े सात हजार रुपये क्विंटल है। सब मिलाकर लागत ही निकलती है। किसानों की मेहनत का कोई मूल्य नहीं मिलता। अब आप समझ सकते हैं कि कपास की खेती करने वाले किसान आत्महत्या क्यों कर रहे हैं?
सोयाबीन किसानों के साथ भी यही समस्या है, जितना वे खेती में लगात लगा देते हैं, उपज का सही मूल्य न मिलने के कारण उन्हें कोई फायदा नहीं होता है।
महाराष्ट्र में किसानों की एक और समस्या है। ये आदिवासी किसान हैं जो कई पीढ़ियों से वन भूमि पर खेती करते आ रहे हैं। लेकिन अब सरकार उन्हें उजाड़ रही है। कानून बनने के बावजूद किसानों को जमीन पर मालिकाना हक नहीं मिल रहा है।
महाराष्ट्र के धुले जिले के राकेश बोसे कहते हैं कि सन् 2000 में वन अधिकार कानून बना। जिसके तहत व्यक्तिगत और सामुदायिक स्तर पर अनुसूचित जनजातियों को पुश्तैनी जमीन पर अधिकार देने की घोषणा की गई थी। लेकिन अभी तक जनजातियों को उनकी पुश्तैनी जमीन पर अधिकार नहीं दिया गया। शासन-प्रशासन के लोग बीच-बीच में हमें उजाड़ने के लिए आ जाते हैं। हमारे लिए तो कृषि उपज के साथ कृषि जमीन को पाने के लिए भी संघर्ष करना है।
महाराष्ट्र के नंदुरबार के अशफाक कुरैशी कहते हैं कि एक तो प्याज किसानों को उपज का सही दाम नहीं मिल रहा है, रही-सही कसर दो दिन पहले हुई बारिश ने पूरी कर दी। प्याज किसानों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। अशफाक कहते हैं कि प्याज की सही कीमत मिले तो प्याज किसान खुशहाल हो सकते हैं। लेकिन अब तो प्याज चार-पांच रुपये किलो बिक रहा है। इस कीमत से तो लागत भी नहीं निकलेगी।
किसान महापंचायत में लखनऊ से आए रामस्वरूप कहते हैं कि किसान बार-बार दिल्ली आकर सरकार से अपनी समस्याओं को बता रहे हैं। लेकिन सरकार दुष्प्रचार में लगी है। भाजपा के नेता और मंत्री कहते हैं कि हमने किसानों की आय दोगुनी कर दी। किसान नेता उन्हें बरगला रहे हैं।
अखिल भारतीय किसान महासभा के हन्नान मुल्ला ने कहा कि सरकारों को यह नहीं भूलना चाहिए कि किसान अन्नदाता के साथ वोटदाता भी हैं। अगर किसान अपना वोट नहीं देंगे तो वो सरकार नहीं बने रह सकते।
संयुक्त किसान मोर्चा के दर्शन पाल ने कहा कि केंद्र सरकार ने किसानों से किए वादे को 14 महीने में भी पूरा नहीं किया। सरकार ने किसानों के साथ वादाखिलाफी की। अब हम 30 अप्रैल को किसान संगठनों की बैठक में तय करेंगे कि आगे आंदोलन का क्या स्वरूप होगा।
नर्मदा बचाओ आंदोलन की मेधा पाटेकर ने कहा कि किसानों, आदिवासियों और महिलाओं के हिंत में चलने वाले संघर्ष कभी रूके नहीं थे। हां! यह जरूर है कि किसान आंदोलन को कुछ दिनों के लिए स्थगित कर दिया गया था। मोदी सरकार किसानों की जमीन, आदिवासियों का जल, जंगल,जमीन उनसे लेकर कॉर्पोरेट को सौंपना चाहती है। देश के खनिज को अडानी-अंबानी को सौंपने के बाद अब वह जमीन और जंगल को भी कॉर्पोरेट को सौंप देना चाहती है।
अखिल भारतीय किसान महासभा के हन्नान मुल्ला ने कहा कि आने वाले दिनों में आंदोलन का क्या स्वरूप होगा, इसे अभी नहीं कहा जा सकता है। लेकिन किसान संगठन अन्नदाता के लिए संघर्ष करते रहेंगे। किसान महापंचायत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, केरल और उत्तर प्रदेश के किसानों की संख्या ज्यादा थी।