आरएसएस ने पहले द्विज-सवर्ण नेताओं को आगे करके भारत की सत्ता पर कब्जा करने की कोशिश किया, वह कमोबेश असफल रहा। जनसंघ से लेकर भाजपा के अटल-आडवाणी तक इसका उदाहरण हैं। उसके बाद आरएसएस ने दलितों-आदिवासियों और अन्य पिछड़े वर्ग की सामाजिक पृष्ठभूमि के नेताओं को आगे करके इन तबकों का वोट लेकर भारत की सत्ता पर कब्जा किया। इन नेताओं को प्रधानमंत्री, मंत्री, मुख्यमंत्री और राष्ट्रपति बनाया।
इन नेताओं को आरएसएस ने सत्ता के शीर्ष पर तो नियुक्त किया, लेकिन इस शर्त के साथ कि आपका मुख्य काम इस देश के द्विज-सवर्णों, द्विज-सवर्ण पूंजीपतियों-कार्पोरेट घरानों की और ब्राह्मणवादी-मनुवादी वैचारिकी के लिए काम करना है और अपने दलित-आदिवासी और पिछड़े चेहरे का इस्तेमाल दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों को ठगने के लिए करना है। इसका प्रमाण हर साल प्रस्तुत होने वाले बजट और उसमें कैसे दलितों-आदिवासियों और पिछड़ों को ठगा जाता है, इसके कुछ स्पष्ट उदाहरणों से समझा जा सकता है।
2024-2025 के वित्तीय वर्ष में नरेंद्र मोदी सरकार ने बड़े जोर-शोर अनुसूचित जाति (दलित) अभ्युदय योजना प्रस्तुत की थी। इसे पीएम अनुसूचित जाति अभ्युदय योजना नाम दिया गया था। इसके लिए सरकार ने 2 हजार 140 करोड़ का प्रावधान किया गया था। इसका प्रचार इस तरह से किया गया था कि जैसे सरकार अनुसूचित जातियों के अभ्युदय (विकास) के लिए बहुत ही चिंतित है। सबसे पहले यह देखते हैं कि यह कुल बजट का कितना हिस्सा है। 2024-2025 का कुल बजट 48.21 लाख करोड़ का था।
साफ है कि सरकार ने अनुसूचित जातियों के अभ्युदय के लिए बजट का सिर्फ 0.04 प्रतिशत का विशेष प्रावधान किया। इससे बड़ी बात यह है कि सरकार ने जो 2 हजार 140 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था, उसका आधा भी खर्च नहीं किया। सिर्फ 800 करोड़ रूपया खर्च किया गया।
साफ है, पहले तो प्रावधान ही सिर्फ 0.04 प्रतिशत का किया गया और प्रावधान का आधार भी खर्च नहीं किया गया। साफ अनुसूचित जातियों के लिए बजट का 0.04 प्रतिशत का विशेष प्रावधान और उसमें खर्च सिर्फ 0.015 प्रतिशत। यह खेला हर साल हो रहा है। इस वित्तीय वर्ष में भी यही स्थिति कमोबेश है।
घोषणा करते समय थोड़ी दिखने में ज्यादा धनराशि, लेकिन खर्च आधा से भी कम। ऐसा इसलिए क्योंकि घोषणा हेडलाइन बनती है, लेकिन अंत में खर्च कितना हुआ, इस पर बहुत कम लोगों का ध्यान जाता है। इसका कारण यह है कि जब तक अंतिम खर्च का ब्यौरा आता है, उसी समय नया बजट प्रस्तुत हो जाता है, फिर वह हेडलाइन बन जाता है। मोदी सरकार हेडलाइन मैनेजमेंट की माहिर है। यह ठगने और लोगों को बेवकूफ बनाने का कारगर तरीका है।
इसी तरह की दूसरी ठगी का उदाहरण देखते हैं। नरेंद्र मोदी सरकार ने दलित, आदिवासी, पिछड़े, विमुक्त जनजातियों के छात्रों-नौजवानों के लिए 1 हजार 836 करोड़ रुपये की स्कॉलरशिप की जोर-शोर से घोषणा की थी। इसका खूब ढोल पीटा गया था। लेकिन मोदी सरकार यह पूरी स्कॉलरशिप मुहैया नहीं कराई। इस घोषित धनराशि में से सिर्फ 1 हजार 381 करोड़ रूपया खर्च किया गया।
इसमें भी सरकार ने करीब 500 करोड़ रुपया खर्च नहीं किया। इसमें सिर्फ घोषणा के लिए या हेडलाइन के लिए किया गया है। जो पैसा नहीं खर्च किया है, वह इतनी धनराशि है कि यदि 1हजार छात्रों को 50-50 लाख विदेशों में पढ़ने के लिए दिया जा सकता था। यहां भी वही ठगी। इस योजना का नाम PM Young Achievers Scholarship for OBC, EBC, DNTs था।
ऐसी ठगी अनुसूचित जातियों के छात्रों के लिए घोषित पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप के बारे में की गई। इसके लिए 6 हजार 360 करोड़ रूपया घोषित किया गया, लेकिन सिर्फ दिया गया 5 हजार 500 करोड़। साफ है कि 860 करोड़ रूपए की स्कॉलरशिप सरकार ने दी ही नहीं।
इससे लाखों अनुसूचित जातियों के छात्रों की जिंदगी बन जाती। उन्हें पढ़ने के बेहतरीन अवसर उपलब्ध होते। यहां हेडलाइन के लिए घोषणा कर दी गई, लेकिन खर्च सिर्फ करते समय बड़ा हिस्सा मार लिया गया है। घोषणा की वाहवाही लूट ली गई, कौन देखने जाता है कि घोषणा पूरी हुई या नहीं।
मोदी और उनकी सरकार घोषणाबाज सरकार है। खासकर आदिवासियों, दलितों और पिछड़े और अन्य वंचित तबकों के लिए। इस योजना का नाम-Post Matric Scholarship for SCs था।
अब आदिवासियों के विशेष मामले में एक ठगी को देखते हैं। अनुसूचित जनजातियों के विकास के लिए नरेंद्र मोदी सरकार ने वित्तीय वर्ष 2024-2025 के लिए 4 हजार, 300 करोड़ रुपया घोषित किया। आदिवासी हितों के चैंपियन के तौर पर इस योजना को मोदी सरकार ने प्रस्तुत किया।
हालांकि यह भी 48.21 लाख करोड़ रुपये के बजट का 1 प्रतिशत से भी कम था, लेकिन खर्च सिर्फ 3 हजार 630 करोड़ रुपया किया गया। मतलब साफ है, इसमें भी मोदी सरकार ने करीब 700 करोड़ रुपया दबा लिया। यहां भी वही ठगी। बजट घोषणा के समय हेडलाइन बनाना और खर्च नहीं करना। कौन देखता है कि खर्च हुआ या नहीं।
यही स्थिति वर्तमान प्रस्तुत बजट में है और होने वाला है। साल-दर-साल के बजट की यही स्थिति है। नरेंद्र मोदी सरकार के दलित, आदिवासी और पिछड़े नेता सिर्फ चेहरा दिखाने के लिए और इन तबकों का वोट बटोरने के लिए हैं। इनका काम समृद्ध और संपन्न द्विज सवर्णों और कार्पोरेट-पूंजीपतियों के हितों की रक्षा और सेवा करना ही है। यह ठगी के लिए धोखा की टाटी हैं और कुछ नहीं।
(डॉ. सिद्धार्थ लेखक और पत्रकार हैं।)
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