Saturday, April 20, 2024

ग्राउंड रिपोर्ट: “मरन तो हम गरीबन का है, जब भी आते हैं (मोदी) बोट बंद हो जाती है”

वाराणसी की बात जैसे ही शुरू होती है। दिमाग में सबसे पहले घाट उसके बाद टीवी पर दिखाई जाने वाली इन घाटों पर बहस और मोदी जी की तस्वीर तुरंत जहन में आ जाती है। क्योंकि वह स्वयं कहते हैं मुझे मां गंगा ने बुलाया है। ताकि मैं यहां का विकास कर सकूं। वाराणसी जाने से पहले मेरे जहन में भी यह सारी चीजें थीं। दूसरा यह भी था कि वाराणसी की जनता इस विकास से बहुत खुश है। सबका जीवन हंसी खुशी चल रहा है। सड़कें गलियों की हर तरह की मरम्मत हो गई है। अब जनता को किसी तरह की परेशानी नहीं होगी।

इस दौरान घाटों की पहचान कहे जाने वाले मल्लाहों की बस्ती में जाना हुआ। वाराणसी के शिवाला में जैसे ही मेरे पांव आगे बढ़े सबसे पहले सीवर के पानी से पाला पड़ा। माहौल में जैसे ही एंट्री की अंजलि नाम की एक महिला बड़े सहज भाव से कहती है आप स्वयं ही देख लीजिए कैसे हमारी गली चमक रही है। मोदी जी विकास की जितनी मर्जी हुंकार भरकर कहें कि गली-गली चमका दी है। लेकिन सच्चाई तो यह है कि अगर अंधेरे में कोई अंजान आदमी हमारी गली में आ जाए, तो गिरने से हाथ पैर तुड़वा लेगा।

बच्चों की पढ़ाई लिखाई बंद

कहते हैं कि वाराणसी में 84 घाट है लेकिन खबरों की मानें तो यहां तो 88 घाट हैं। हर घाट के किनारे घनी आबादी बसती है। किसी घाट के किनारे संपन्न लोग रहते हैं तो कहीं रोज कमाने खाने वाले लोगों का भी बसेरा है। शिवाला का भी ऐसा ही माहौल है। जहां ज्यादातर निषाद समाज के लोग रहते हैं। इनका मुख्य पेशा नाव चलाना है। जहां कई लोगों के पास अपनी नाव(बोट) भी नहीं है। वे भाड़े पर लेकर नाव चलाते हैं। ताकि उनका गुजर बसर हो सके। इसी मुहल्ले में कई महिलाओं से मेरी मुलाकात हुई, जो भाजपा के पांच साल के कार्यकाल को अपने अनुभव के आधार पर याद करती हैं। मेरा इस मुहल्ले में जाना शाम को हुआ था। गली के बीच दम घुटते घर आपको सोचने पर मजबूर कर देंगे।

ऐसे ही एक कोने में खड़ी अनीता अपने घर को दिखाती हैं। अंधेरे में समझ में भी नहीं आ रहा था कि यह अंदर जाने का रास्ता है। जगह इतनी कि बस एक पतला इंसान ही पार हो सके। अनीता गर्भवती हैं। वह महामारी के दौरान लॉकडाउन के दिन को याद करते हुए बताती हैं कि वह एक ऐसा दौर था, जब जीवन बहुत मुश्किल में था। वह बताती हैं कि “जीवनयापन करने के लिए छागोल(बकरी) और सोने की बाली को बेचकर खाने का इंतजाम करना पड़ा। लॉकडाउन के कारण सब कुछ बंद था, कोई काम नहीं हो रहा था। सरकार से मदद के तौर पर जो मिलता था, वह तो आप स्वयं ही जानती हैं”। वह बताती हैं कि “पैसे के अभाव में अपने बच्चों का स्कूल छुड़वा दिया। इसका कारण यह था कि कमाई हो नहीं रही थी और स्कूल में बिना फीस दिए कोई उपाय नहीं था। इसलिए बच्चों की पढ़ाई छुड़वा दी”।

इलाके की गलियां।

इस मुहल्ले के कई घरों की यही कहानी है। जहां पैसों के अभाव में बच्चों का स्कूल जाना छुड़ा दिया गया। इसी बातचीत के बीच सुनीता भी शामिल हो जाती हैं। वह भी वही बताती हैं जो अनीता बताती हैं। वह कहती हैं कि उनकी बेटी क्लास 4 में पढ़ती थी। लेकिन पैसों के अभाव के कारण बच्ची को ऑनलाइन क्लास नहीं करवा पा रही हैं। वह बताती हैं कि पहले वह स्वयं भी काम करती थीं। ताकि घर की आर्थिक स्थिति स्थिर बनी रहे। सुनीता एक छोटी दुकान लगाती थीं। बनारस में ऐसे कई लोग हैं। जो श्रद्धालुओं को फूल, धूप, अगरबत्ती बेचते हैं। जिनसे उनकी ठीक ठाक कमाई हो जाती थी। लेकिन सरकारी बाबुओं को यह भी रास नहीं आया। मोदी जी कहते हैं कि वह गरीबों के नेता हैं। लेकिन इसकी दूसरी तरफ उनके ही संसदीय क्षेत्र में गरीबों का यह हाल है। सुनीता बताती हैं कि बरसात में तो चार महीने वैसे ही कोई काम नहीं होता है। इसलिए वह दुकान लगाती थीं। लेकिन पुलिस वालों ने इतना परेशान किया कि उन्होंने दुकान ही बंद कर दी।

महंगाई डायन खाए जात हे

महिलाओं की परेशानी यहीं नहीं खत्म हुई। वहीं पास में खड़ी मीना कहती हैं कि मोदी और योगी कहते हैं कि उनके राज में जनता बहुत खुश है। क्या खुशी है मुझे तो समझ में नहीं आता है। उज्जवला योजना से सरकारी सिलेंडर तो मिल गया है। लेकिन उसको भराएं कैसे। आप ही बता दीजिए। महंगाई आसमान छू रही है। सिलेंडर सीधा 1000 का हो गया है। अब इंसान राशन लाए या राशन को पकाने के लिए सिलेंडर। सरकार हम महिलाओं को भी कोई रोजगार दे दे तो अच्छा होगा। ताकि घर के खर्चों में कुछ बंटवारा हो जाए। लेकिन सरकार है कि रोजगार के बारे में बात ही नहीं करती है। इसी बात पर मुन्नी का कहना है कि हमारा तो रोजगार नाव ही है। वह रोजगार पिछले 18 महीने से अच्छे से चल नहीं पा रहा है। ऊपर से प्रशासन वाले सीएनजी वाले बोट चलाने को कह रहे हैं। वह बताती हैं कि इस समय तो रोजी-रोटी बमुश्किल ही चल पा रही है। लेकिन इससे सरकार को क्या लेना देना। उनके लिए तो सब वोट मयाने रखते हैं। मोदी जी का क्या है “वह कहते हैं कि मुझे गंगा मैय्या ने बुलाया है। और डुबकी मार कर चले जाते हैं। मरन तो हम गरीबन का है। जब भी आते हैं बोट बंद हो जाती है। अब ऐसे हाल में सरकार हम लोगों से क्या उम्मीद करती है”?

इन महिलाओं से बातचीत के दौरान एक बात तो समझ में आ गई है कि जिस वाराणसी के विकास का गुणगान टीवी चैनलों पर दिखाया जा रहा है। उस विकास की कहानी से यह कोसों दूर है। बढ़ती महंगाई से सिर्फ इस वक्त पूरा देश परेशान है। बुढ़िया नाम की महिला कहती है कि 100 रुपए के सरकारी राशन से क्या घर चलता है। सरकार सोचती है कि 100 रुपए का राशन देकर हम पर बहुत बड़ा एहसान कर दिया है। इंसान सिर्फ गेहूं, चावल से ही घर चलाएंगे क्या? नून, चीनी की भी जरूरत होती है। वह कहती है कि मंहगाई की मार देखिए सरसों का तेल 200 रुपए किलो है। और सरकार सोचती है कि मुफ्त राशन देने से ही लोगों के जीवन में खुशहाली आएगी। इससे कुछ नहीं होगा। बचवन को रोजगार नहीं मिल पा रहा है। “हमारे लिए तो कोई अच्छे दिन नहीं हैं”।

बुढ़िया के स्वर में स्वर मिलाती हुई उज्जवला कहती हैं कि “एक दौर इंदिरा गांधी का था, जब सोना इतना सस्ता था कि हम जैसे गरीब लोग भी पहनते थे। आज तो सोना 50 हजार तक पहुंच गया है। गरीब लोग तो सिर्फ लेने के बारे में सोच ही सकते हैं। हम गरीबन की तो मोदी नहीं, राम ही नैय्या पार करेंगे”। वह अपने दौर की बात करते हुए कहती हैं कि “मैंने अपने जीवन में कई नेताओं को गंगा में डुबकी लगाते हुए और बाबा विश्वनाथ के दर्शन करते हुए देखा था। लेकिन किसी ने भी गंगा मैय्या को नहीं बांटा, लेकिन मोदी जी ने तो यह कमाल भी कर दिया। हमारी गंगा मैय्या को दो भागों में बांट दिया है”।

यह सभी महिलाएं घर का ही काम करती हैं। हो सकता है राजनीति में इनकी ज्यादा रुचि न हो। लेकिन महंगाई के इस दौर में घर चलाती यह महिलाएं इतना जरुर समझ सकती हैं कि सरकार की कौन सी नीतियां उनके लाभ के लिए हैं और कौन सी वोट के लिए।

नोट- इस मौके पर जब मैंने कुछ महिलाओं की तस्वीरें लेने की कोशिश की तो उन्होंने देने से मना कर दिया।

 (वाराणसी से पूनम मसीह की रिपोर्ट।)

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