नई दिल्ली। “लोग दीवाली की तैयारी कर रहे थे हमारे घरों को उजाड़ा जा रहा था”, यह कहना है खड़क गांव की महिलाओं का जिनके घरों पर बुलडोजर चला है। स्थानीय लोगों के अनुसार अक्टूबर 2022 के आखिरी सप्ताह में इस गांव में लगभग 50 से 60 घरों पर डीडीए का बुलडोजर चला था।
जिसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय के लोगों का घऱ है। खड़क गांव के अंदर जाते वक्त बीच की गलियों में घरों को तोड़ा गया है, जिसमें से कुछ घरों को पूरी तरह से मिट्टी में मिला दिया गया है तो कुछ घरों के कुछ हिस्सों को इस तरह से तोड़ा गया है कि वो अपने आप गिर जाएं।
घर भी गया और बेटा भी
ऐसा ही घर है अंजुम का। अंजुम के घर के दाएं और बाएं दोनों तरफ के घरों में भी बुलडोजर चला है। जिसमें इनका 35 गज का एक मंजिला मकान पूरी तरह से धराशयी कर दिया गया। घर टूटने के कुछ दिन तक वह वहीं त्रिपाल बिछाकर अपने परिवार के साथ रहीं। उसके बाद बढ़ती ठंड को देखते हुए अब किराए के मकान में रहने चली गई थी।
अंजुम उन दिनों को याद करते हुए आंखों में आंसू भर लेती हैं, क्योंकि उन्होंने अपना सिर्फ घर ही नहीं खोया बल्कि डीडीए की इस सख्ती के कारण अपने दो महीने के बेटे को भी खो दिया है।
अंजुम कहती हैं कि दोपहर के वक्त घर को तोड़ने के लिए आए थे। बोले जल्दी-जल्दी सामान निकाल लो। दोपहर का वक्त था कोई पुरुष घर पर नहीं था। इतनी जल्दी सामान निकाल पाना संभव नहीं था।
“मैं बोलती रही कि मेरे बेटे की तबियत खराब है, दवाई निकाल लेने दीजिए”। लेकिन उन्होंने मेरी एक नहीं सुनी। जिसका नतीजा यह हुआ कि पैसे और दवाई के अभाव में मुझे अपने बच्चे से हाथ धोना पड़ा।
घर और बच्चे की चिंता में मैं खुद भी बहुत दिनों तक बीमार रही। आखिर में कम कमाई के बीच में ही किराए पर रहने चले गए।
गहने लूट लिए
अंजुम के घर के बायीं ओर एक दो मंजिला मकान को आधा अधूरा तोड़ा गया है। जिसमें सरिये बाहर की तरफ लटक रहे हैं। यह घर किसी भी वक्त टूट सकता है। मेरे सामने खड़क गांव की महिलाएं खड़ी थीं। जो बताती हैं कि अब इस घर के लोग अपने गांव वापस चले गए हैं। उनके घर का एक भी सामान नहीं बचा।
महिलाओं का कहना था कि डीडीए के दस्ते में शामिल कर्मियों ने उनके घर की अलमारी में बड़े-बड़े रॉड से मारकर सारा सामान लूट लिया। इसमें सोने के गहने भी थे। इतनी सारी चीजें हो रही थीं और हमलोग सिर्फ खड़े होकर तमाशा देख रहे थे कि कैसे लोगों के घरों को हमारे सामने तोड़कर लूटा जा रहा था।
बाथरुम तोड़ दिया
अंजुम के दाहिनी ओर के घर की स्थिति भी ऐसी ही थी। रेशमा इसी घर में रहती हैं। इस घर के अगले हिस्से को तोड़ दिया गया है। जिसमें बाथरुम था। अब इस जगह को किसी तरह से ढंका गया है ताकि उसे इस्तेमाल किया जा सके।
रेशमा ने बताया कि उनका परिवार लंबे समय से यहां रह रहा है। घर तोड़े जाने से पहले उन्हें किसी भी तरह की कोई सरकारी नोटिस नहीं दी गई थी। जब मैंने पूछा कि आपके पास घर के पेपर हैं? उधर से जवाब आया हां!
रेशमा का दो मंजिला मकान था। जिसका अगला हिस्सा अब टूट गया है। वह कहती हैं कि बाथरुम टूट जाने के कारण हमें बहुत परेशानी हो रही है। बाथरुम बनाने के लिए हमने सीमेंट, बालू गिराया था। लेकिन पुलिस ने आकर उसे बनाने से मना कर दिया। अब ऐसे ही रह रहे हैं।
घर की बिजली भी काट दी गई है। बच्चों की परीक्षा होनी है आगे गर्मी भी आ रही है। रोज-रोज किससे बिजली मांगेंगे? बच्चे पढ़ नहीं पा रहे हैं। वह कहती हैं कि बिजली के लिए मेरे पति बिजली विभाग से बात करने के गए थे। लेकिन उन्होंने बिजली देने से इंकार कर दिया।
खड़क गांव के लोगों की समस्या राजनीति भी है। यह क्षेत्र छतरपुर विधानसभा के अंतर्गत आता है। करतार सिंह तंवर यहां के विधायक हैं। लोगों का दबी जुबान से कहना था कि विधायक ने लोगों की एक नहीं सुनी है। बल्कि छोटे-छोटे दलालों ने लोगों को बेवकूफ बनाने का काम किया है।
इस गांव में ज्यादातर लोग बाहर से आकर बसे हैं। जिसमें बड़ी संख्या मजदूर तबके की है। जमीन लेकर मकान बनाया है। गांव दिखाती हुईं मेरे साथ चल रहीं महिलाओं ने मुझे बताया कि हमें तोड़ने की खबरें इधर-उधर से सुनने को मिलती थी।
जैसे ही यह खबर आग की तरह फैलती। गांव के कुछ लोग वकील कराने और कानूनी प्रक्रिया के लिए हमसे पैसा मांगकर ले जाते थे। हर बार हमारे साथ ऐसा ही होता आया था।
एक बार फिर दलालों ने हमसे पैसा मांगा और हमने देने से मना कर दिया। जिसके बाद ही कई लोगों के घरों में बुलडोजर चल गया।घर चला गया है अब जमीन न चली जाए।
रामवती लगभग 60 साल की होंगी। गली में सबसे पहले उनका ही घर तोड़ा गया है। गली की दूसरी तरफ का नजारा सिर्फ लाल ईटों ओर सीमेंट के कुछ टुकड़ों से भरा पड़ा है। यहां लगभग तीन से चार घरों को पूरी तरह से धराशयी कर दिया गया है।
रामवती आज भी अपने टूटे हुए घर में तिरपाल लगाकर रह रही है। घर के अन्य सदस्य इसी गांव में किराए के मकान में रह रहे हैं। रामवती कहती हैं कि मैं यहां इसलिए रह रही हूं ताकि जमीन बची रहे। ऐसा न हो पहले घर चला गया और अब जमीन भी जाती रही।
घटना वाले दिन को याद करते हुए वह बहुत गुस्से में कहती हैं कि बुलडोजर चलाने का समय सुबह नौ से शाम के पांच बजे तक का होता है। लेकिन खड़क गांव में डीडीए का बुलडोजर दोपहर को 12 से 1 बजे के बीच आया और शाम को सात-आठ बजे तक चलता रहा। इसका समय ही बहुत संदेहपूर्ण है।
वह हमें बताती हैं कि उनका परिवार पिछले 15 साल से खड़क गांव में रह रहा है। इससे पहले वह महिपालपुर में रहती थीं। जिस दिन घर टूटा ज्यादातर लोग घरों से बाहर थे। पुरुष काम पर थे और महिलाएं स्कूल की छुट्टी होने पर अपने बच्चों को स्कूल से लेने गई थीं। ऐसे समय में भारी पुलिस बल द्वारा रास्ते को बंद कर दिया गया। जिसके कारण भी लोग अपने घरों के सामान को बचा नहीं पाए हैं।
अभी भी लोगों में डर का माहौल
इस गांव के ज्यादातर लोगों को इस बात का डर है कि कहीं उनका घर भी न तोड़ दिया जाए। सुनीता उनमें से एक हैं। जो बिहार की रहने वाली हैं। वह कहती हैं कि यहां ज्यादातर लोगों ने लंबे समय से जमीन खरीदकर अपनी सामर्थ्य के हिसाब से मकान बनवाया है। वह मुझे अपने घर का हाउस नंबर दिखाती हैं और कहती हैं कि हमारे घरों में बिजली का मीटर लगा हुआ है। पानी आता है, सारे दस्तावेज इसी घर के पते पर बने हुए हैं। हम लोग वोट भी इसी घर के आधार पर देते हैं। ऐसे में हम कैसे मान लें कि हम गैरकानूनी तरीके से रह रहे हैं।
सुनीता सवाल करते हुए कहती हैं कि जब हम वोट देते हैं, तब सरकारों को नहीं दिखता है कि हम लोग कहां रह रहे हैं। ये बुलडोजर की राजनीति के बीच हम गरीबों के आशियाने को उजाड़ा जा रहा है।
वह कहती हैं हमारे मुहल्ले में रहने वाले ज्यादातर लोग यूपी बिहार से आकर बसे हैं। हम लोगों ने पाई-पाई जोड़कर एक छत बनाई है। अब हम इसे बचाने की जद्दोजहद में लगे हैं। पहले तो लोग हमसे घर बचाने के नाम पर हर बार पैसे ठगकर ले जाते थे। अब हम महिलाओं ने ठाना है कि हम खुद ही यह लड़ाई लड़ेंगे।
इसके लिए हम लगातार संघर्षरत हैं। जंतर-मंतर से लेकर दिल्ली एलजी के दफ्तर पर कई बार जाकर धरना प्रदर्शन दिया है। जिसका नतीजा यह है कि फिलहाल कोर्ट ने इस पर स्टे लगा दिया है।
पॉवर ऑफ अटॉर्नी की जमीन पर घर
इसी गांव की एक महिला ने नाम न लिखने की शर्त पर हमसे बात करते हुए कहा कि यहां ज्यादातर लोग रोज कमाने खाने वाले हैं। इसमें से कुछ की ही स्थिति थोड़ी अच्छी होगी। दिल्ली के बाकी इलाकों में जमीन लेकर घर बनाना या घर खरीदना हम लोगों के लिए संभव नहीं है। दूसरी ओर घर भी जरुरी है।
इसलिए लोगों की मदद से यह पॉवर ऑफ अटॉर्नी की जमीन लेकर घर बनवाया है। जिससें 15-20 साल से लोग रह रहे हैं। जिनके पास इस गांव के पते के सारे दस्तावेज हैं। ऐसे में हमारे घरों को कैसे तोड़ा जा रहा है। यह समझ में नहीं आ रहा है।
खड़क गांव में पॉवर ऑफ अटॉर्नी की जमीन है। इसकी कानूनी प्रक्रिया को जानने के लिए हमने सुप्रीम कोर्ट के वकील अमित श्रीवास्तव से बातचीत की। वह कहते हैं कि इस जमीन के दस्तावेज कानूनी नहीं होते हैं न ही इसकी कोई प्रमाणिकता होती है।
लेकिन पॉवर ऑफ अटॉर्नी के मामले में दिल्ली और देश के अन्य जगहों में एक निर्धारित कानून है। जिसके तहत कोई भी व्यक्ति अगर 12 साल तक किसी प्रॉपर्टी पर रहता है और इतने सालों में अगर कोई व्यक्ति और संस्था इस पर अपना कोई दावा नहीं करती है तो यह प्रॉपर्टी उसी की मानी जाती है। जो वहां रह रहा था।
वह बताते हैं कि 70 के दशक से पहले दिल्ली में खेतिहर जमीन हुआ करती थी। जिस पर सरकार का कोई अधिकार नहीं होता था। यह लोगों की निजी संपत्ति होती थी। लेकिन 80 के दशक के बाद जमींदारों ने अपनी जमीनों को बेचना शुरु कर दिया। जिसमें कुछ सरकारों ने अपनी ज़रूरत के हिसाब से रख लिया और उसका मुआवजा दे दिया। बाकी की जमीन उस जमींदार की ही रही। जिनकी आगे की पीढ़ी ने इसकी कॉलोनी कटवा दी। जो खसरा नंबर के हिसाब से जमीन को काट देते थे और बाद में उसे बेचा जाता था।
खड़क गांव के बारे में बात करते हुए वह कहते हैं कि अगर लोगों के पास बिजली बिल उस घर के पते के अनुसार है और लोग 15 साल से रह रहे हैं तो इस हिसाब से घर तोड़ा जाना गैरकानूनी है। जिसके लिए पीड़ित हाईकोर्ट भी जा सकते हैं।
आपको बता दें कि पॉवर ऑफ अटॉर्नी (Power Of Attorney) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक व्यक्ति अपना अधिकार दूसरे व्यक्ति को दे देता है। जो पॉवर ऑफ अटॉर्नी एक्ट 1882 द्वारा नियंत्रित होता है। जिसके अनुसार एक व्यक्ति दूसरे शख्स को अपना कानूनी प्रतिनिधि घोषित करता है। इसमें घोषित प्रतिनिधि को एजेंट और घोषित करने वाले को प्रिसिंपल कहा जाता है।
(जनचौक संवादाता पूनम मसीह रिपोर्ट)