ग्राउंड रिपोर्ट: प्रधानमंत्री का दत्तक गांव नागेपुर, जहां विकास अभी पैदा ही नहीं हुआ

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नागेपुर (वाराणसी)। “बस खा-जी लें, यही बहुत है। इस सरकार में बहुत किल्लत है। … बुनकरों की स्थिति बहुत दयनीय है। पिछली सरकार में बिजली बिल दो-ढाई सौ रुपए महीने आता था, लेकिन अब 2500-3000 रुपए महिना देना पड़ रहा है। साड़ियों की बिक्री नहीं है; एक साड़ी पर 100 रुपए बच रहा है, जबकि यदि मजदूर रखें तो उसे ही अंटी से 30 रूपये और मिलाकर 130 रूपए मजदूरी देनी पड़ेगी। … लॉकडाउन के चलते सब्जी का कारोबार भी चौपट हो गया। 200-250 रुपए पसेरी बिकने वाली भिण्डी पांच रुपए पसेरी बेचना पड़ी, जबकि 2,100-2,200 रुपए किलो भिण्डी का बीज खरीदना पड़ा था। बताइए क्या करें?” ये बातें देश के प्रधानमंत्री श्री मोदी जी द्वारा गोद लिए गए गांव ‘नागेपुर’ के रहने वाले 25 वर्षीय विजय ने जनचौक की टीम से कहीं।

विजय पटेल

नागेपुर गांव वाराणसी जिला मुख्यालय से करीब 22-23 किलोमीटर की दूरी पर है, जिसे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अपने दूसरे सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत 06 मार्च, 2016 से गोद लिया था। यह गांव मोदी जी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के सेवापुरी विधानसभा के आराजीलाइन ब्लॉक में आता है। नागेपुर गांव का आदर्श गांव के रूप में चयन होने से पूर्व जयापुर गांव का चयन किया गया था। आदर्श गांव के रूप में चयन होने के उपरांत नागेपुर में क्या कुछ हुआ है? क्या छूट गया है? सरकार के कामों से स्थानीय जनता कितनी खुश है? यही जानने के लिए लगभग छ: वर्ष बाद हम अपने साथी अनुराग यादव के साथ नागेपुर बस स्टैंड पर पहुंचे।

बस स्टैंड पर सहयोगी अनुराग यादव बातचीत करते हुए।

आप जब राजातालाब से होकर नागेपुर गांव में बिना भूले-भटके पहुंचना चाहते हैं तो सबसे अच्छा सुझाव यही है कि बाजार से आप जंसा वाला मार्ग पकड़कर आगे बढ़िए और जैसे ही नहर मिले, वहां से आप बांये मुड़कर नहर की पगडंडी पकड़ लीजिए। फिर रिंगरोड के नीचे-नीचे पगडंडी से होते हुए आप जिस पहले बस स्टैंड पर पहुंचते हैं, वही है- नागेपुर बस स्टैंड।

हमारे वहां पहुंचने से पहले ही वहां पर चार-पांच स्थानीय बुजुर्ग बैठे हुए दिखे, जो आपसी बातचीत में मशगूल थे। स्कूटी रोककर हमने अपना परिचय दिया, और बातचीत शुरू की।

मैंने बातचीत की शुरुआत करते हुए उनसे पूछा कि “आप लोग तो विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र के निवासी हैं, और वह भी उस गांव के वासी, जिसे मोदी जी ने स्वयं दूसरे संसदीय आदर्श गांव के रूप में गोद लिया है। क्या गांव के विकास से आप संतुष्ट हैं?” इस सवाल को सुनते ही अमरनाथ राजभर भड़क उठते हैं।

उन्होंने कहना था “हमारे गांव का चयन भले ही संसदीय आदर्श गांव के रूप में हुआ हो, लेकिन विकास के नाम पर रत्तीभर काम नहीं हुआ है। जयापुर में तो बहुत काम हुआ है। उसके चवन्नी बराबर भी नागेपुर में कुछ हुआ हो, तो बताइए। आप पूरे गांव में घूम-घूमकर पूछ लीजिए, शायद ही कोई नंदघर, पानी की टंकी और बस स्टैंड के अलावा कोई चौथा काम गिना सके। जब काम ही नहीं हुआ है तो फिर क्या कोई बताएगा।” तब तक उनके बाजू में बैठे गुलाबी कलर की शर्ट वाला व्यक्ति बोल पड़ता है। “आदर्श गांव से तो बढ़िया काम तो लोहिया ग्राम में हुआ था, जो अखिलेश यादव के कार्यकाल में हुआ, उतना काम इनके समय में नहीं हुआ है।” हम उनका नाम जानने की कोशिश करते हैं तो पता चलता है कि वह भी राजभर हैं, सोमारु राजभर।

नागेपुर बस स्टैंड, गुलाबी कलर के शर्ट पहने सोमारु राजभर, नीला-सफेद रंग की पगड़ी बांधे शारदा राजभर और पीछे बैठे अमरनाथ राजभर जी हैं।

उसके बाद गांव की जातिगत संरचना के बारे में जानकारी प्राप्त करने के इरादे से हमने पूछा कि क्या यहां बैठे सभी लोग राजभर ही हैं तो सोमारु का कहना था, “हां, हम सब राजभर बिरादरी के हैं। हमारा सबसे अधिक वोट है, लगभग सात सौ। उसके बाद कुर्मी भाई लोग हैं, उनका भी 600 के आसपास वोट है। 300-350 की संख्या में अहीर हैं और 150-150 की संख्या में कोइरी-दलित हैं। चार-छह घर गोंड़ हैं और चार घर नाऊ। कुछ घर मुस्लिम समुदाय के लोगों के हैं।”

उन्होंने आगे कहा, “लोहिया ग्राम के अंतर्गत 42 आवास मिले थे, 4-5 की संख्या में आरसीसी वाली सड़क बनी थी, और भी बहुत काम हुए थे। अखिलेश के समय आवास का 2,85,000 रुपए मिलता था, लेकिन इनके समय में 1,25,000 रुपए मिलते हैं। बताइए महंगाई दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही है, और ये रुपए घटा दिए, उसमें भी और झमेला अलग से।” इसके बाद सोमारु चुप हो जाते हैं।

इसी बीच दो लोग और बातचीत में शामिल हो जाते हैं, जिनके बारे में पता चला कि वे दलित समुदाय के रामाशंकर और चेतनलाल हैं। दुआ-सलाम के बाद उन्होंने जानने कि कोशिश की कि हम किस विभाग से आये हैं, लेकिन जब उन्हें पता चला कि हम जनचौक के लिए पीएम के द्वारा गोद लिए गए आदर्श गाँव का हाल जानने आये हैं, तो उनके लिए यह खबर शायद मायूस करने वाली थी। इसके बावजूद उनमें से एक ने कहा, “हमरे बेटवा के रहे वदे घर नाही ह। बबुआ लिख द, ओहू के मिल जाई।” मैंने दुबारा से समझाया, तब जाकर उन्हें बात समझ में आई।

चेतनलाल की उम्र 83 वर्ष है, पेंशन भी पाते हैं लेकिन उन्हीं के साथ आये 61 वर्षीय रामाशंकर  को पेंशन नहीं मिलती है। पेंशन की बात सुन शारदा राजभर (जो पहले से ही वहां पर बैठे हुए थे, उम्र 80 वर्ष) कहते हैं कि “पेंशन हमें भी नहीं मिलती है। हम कई बेर पढ़वा-लिखवाकर भेजवाएं हैं लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ।”

आधे घंटे की बातचीत सुनने के बाद पतले और लम्बे कद-काठी के जिया लाल राजभर चुप्पी तोड़ते हैं और देशी अंदाज में कहते हैं  “भैया इस गांव की सबसे बड़ी समस्या है जल निकासी की। इस गांव की कई सड़कें दो-तीन महीने तक ठेहूना भर पानी में डूबी रहती हैं। हम सबको आने-जाने में बहुत दिक्कत होती है।” सोमारु भाई फिर से एक बार बोल उठते हैं, “मैं खुद चार महीने पानी हेलकर आता-जाता हूं।” जल-भराव की समस्या पर हमने जितने लोगों से बात की, सभी ने एकमत स्वर में कहा- बिल्कुल, हमारे गांव की सबसे बड़ी समस्या जल-भराव की है, जिसका कोई प्रबंध नहीं है।

गांव की कच्ची सड़क।

जल-जमाव के संबंध में स्थानीय प्रधान श्री मुकेश पटेल ने भी बताया कि “हमने अपने स्तर से कुछ काम करवाया है लेकिन यह समस्या लाख-दो लाख से हल होने वाली नहीं है। इसके लिए विधायक या सांसद कोटे से कम से कम एक करोड़ रुपए की जरूरत है। मैंने इसके संबंध में जिलाधिकारी और अन्य जिम्मेदार पदाधिकारियों को पत्र लिखा है।”

हम बाकी के ग्रामीणों की राय जानने के लिए बस स्टैंड से ही बांये मुड़कर गांव में प्रवेश कर जाते हैं। करीब दो सौ मीटर चलने पर सड़क के बांयी ओर नंदघर है। नंदघर का दरवाजा खुला देख हम रूक जातें हैं। आंगनबाड़ी महिला कर्मियों के साथ बात करने पर पता चला कि कोविड की वजह से बच्चों का सेंटर पर आना मना है। सभी आंगनबाड़ी कर्मी घर-घर दौरे पर हैं। गर्भवती महिलाओं को आयरन की गोलियां बांटने, कोरोना वैक्सिनेशन की रिपोर्ट तैयार करके इत्यादि के लिए यहां आए हुए हैं।

नंदघर में उपस्थित कार्यकर्ता।

कुछ दूर आगे ही सामुदायिक केन्द्र नागेपुर की बिल्डिंग है, जिसमें डॉटा इंट्री ऑपरेटर अजय पटेल बैठे हुए मिलते हैं। उनकी ज्वाइनिंग दिसंबर-2021 की है। फिर भी गांव के बारे में अच्छी जानकारी रखते हैं। उनके अनुसार “पात्र गृहस्थी राशनकार्ड (बीपीएल) के 554 और अंत्योदय कार्ड (एपीएल) के सभी कार्ड धारकों के घर स्वच्छ भारत मिशन के तहत घर-घर शौचालय निर्माण का कार्य हुआ है।” उनका दावा था कि “हमने स्वयं निरीक्षण किया है” लेकिन मौजूदा प्रधान मुकेश पटेल से पता चला कि लगभग 400 के आसपास फाइबर के शौचालय बने थे, जो आंधी आने के बाद से इस्तेमाल के लायक नहीं रहे, तो उसका निर्माण करवाने वाले ठेकेदारों ने सभी शौचालयों को उठवा कर जलवा दिया।” उन्होंने कहा कि “किस वजह से जलवाया, यह मुझे नहीं पता है लेकिन यह सच है कि फाइबर से बने सभी शौचालयों को जलवा दिया।”

सामुदायिक केंद्र पर डॉटा इंट्री ऑपरेटर अजय पटेल

हम अपने साथी के साथ प्रधान जी से मिलने के लिए आगे बढ़े ही थे कि तिराहे पर बाबा साहेब अंबेडकर की बड़ी सी मूर्ति नजर आती है। उसके बगल में ही सामुदायिक शौचालय है, जिससे पूर्व में यूनियन बैंक के द्वारा निर्मित किया गया था, “लेकिन पिछली बार रुपए उतारने के चक्कर में केवल ऊपर-झापर मरम्मत करवा कर पूर्व प्रधान के कार्यकाल के दौरान सामुदायिक शौचालय लिखवा दिया गया। ऐसा वहां पर एकत्रित लोगों में से छकू और रामराज का कहना था।” उक्त बात की पुष्टि वर्तमान प्रधान की बातों से भी हुई। तिराहे पर बैठे लोगों से बातचीत से पता चला कि वे सभी लोग दलित बिरादरी से हैं। उनसे भी आदर्श गांव के चयन से होने वाले विकास और मिलने वाले लाभों के बारे में जानकारी जुटाना चाही तो रामराज ने कहा कि “जब विधायक गांव में आज तक नहीं आए, तो विकास क्या ख़ाक होगा।” ज्ञातव्य हो कि सेवापुरी के वर्तमान विधायक एनडीए गठबंधन के सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) से नील रतन पटेल नीलू हैं, जिनकी तबियत काफी दिनों से खराब चल रही है।

गांव में लगी बाबा साहेब की मूर्ति

अंबेडकर की मूर्ति के पास एकत्र लोगों में से रामराज ने कहा कि “बाबा साहेब की मूर्ति अनावरण कार्यक्रम के दौरान स्मृति ईरानी आयी हुई थीं। उन दिनों शोर था कि गाय और ई-रिक्शा सबको फिरी में मिलेगा, लेकिन वास्तविकता यह थी कि वहां लगे कैम्प में पैसे से गाय और ई-रिक्शा मिल रहा था।”

आदर्श गांव चयनित होने के नाते हमने यह जानने की कोशिश की कि क्या सबके घर गैस सिलेंडर है, तो सभी का मानना था कि “लगभग सभी घरों में सिलेंडर है लेकिन जो गरीब है, मजदूर है; जिसे रोज-रोज रोटी के लिए आटा-पिसान जुटाना पड़ता है; कभी किसी को रोजगार मिलता है तो कभी किसी को नहीं मिलता है तो वह गैस सिलेंडर कैसे भरवायेगा। वह भी एक हजार रुपए में? लॉकडाउन ने तो स्थिति और खराब कर दिया है। इस ठंडी में तो हाथ सेंकने के लिए मुश्किल हो रही है।” अंबेडकर मूर्ति के पास मिले बलीराम का कहना था “एक हजार रुपए की गैस में सिलेंडर एक महिना काम करेगा, जबकि हजार रुपए की लकड़ी चार महिना चलेगी।”

गांव का प्राथमिक विद्यालय

वहां से हम नागेपुर प्राथमिक विद्यालय पर पहुंचते हैं। विद्यालय बाउंड्री युक्त है। विद्यालय पर सभी शिक्षक उपस्थित थे। विद्यालय के प्रधानाचार्य अनिल कुमार तिवारी अपने सहयोगी अध्यापकों के साथ गांव में घूम-घूमकर वोट डालने के लिए संकल्प पत्र भरवाते हुए, मतदान करने का आह्वान करते हुए अंबेडकर पार्क पर ही मिल गये। प्राथमिक विद्यालय से करीब सौ क़दम पर ही खुबसूरत पानी टंकी बनी हुई है। पानी टंकी भी बाउंड्री युक्त है। पता चला कि पानी की टंकी लोहिया ग्राम योजना के तहत निर्मित की गई थी।

लोहिया ग्राम योजना के तहत निर्मित पानी टंकी

पानी टंकी के कुछ दूर आगे अहीर-टोली है। वहां पर लालचंद यादव अपने नाती विशाल के साथ भैंसों को चारा खिलाते मिले। उनसे पशुओं से संबंधित योजनाओं पर बात करने पर उनका कहना था, “हमें कोई सहयोग नहीं मिलता है। सब कुछ अपने जांगर भरोसे है। इस सरकार से हम लोग परेशान हैं।” हमने उनसे प्रधान श्री मुकेश पटेल के घर की दिशा पूछी, और आगे बढ़े तो खेतों में लहलहाती फसल नजर आई। खेतों में गेहूं-सरसो के अतिरिक्त आलू एवं मौसमी सब्जियां लगी हुई हैं। हम आगे बढ़ते हुए प्रधान जी के टोले में प्रवेश करते हैं तो एक जगह हैंडलूम की आवाज सुनकर ठिठक गए। वहां पर चार लोग बैठे हुए थे, जिनसे अपना परिचय दिया। इनमे से दो उम्रदराज थे, जिनका नाम पंचम पटेल और नन्दलाल पटेल था। दो कम उम्र वाले सगे भाई – अजय और विजय पटेल थे। दोनों भाई अपने पारिवारिक सदस्यों के साथ हैंडलूम चलाते हैं। सब्जी की खेती भी करते हैं।

खाट पर बैठे उम्रदराज पंचम पटेल और नन्दलाल पटेल

पूछने पर विजय अग्रेसिव मूड में बोलना शुरू करता है- “योगी-मोदी के शासन में जनता बर्बाद हो गयी है। रोजी-रोटी की कोई व्यवस्था नहीं है; महंगाई चरम पर है। कोविड और लॉकडाउन अलग से। किसी तरह खा-जी लें, वही बहुत है। इस सरकार में बहुत किल्लत है।” बीच में हम टोकते हैं कि आपके इसी बात से स्टोरी की शुरुआत करूंगा, बोलते वक्त सोच लो। तब विजय कहता है कि “कोई डर नहीं है। बाबा इस बार और मोदी जी उस बार (2024) चले जायेंगे। आपको जहां मर्जी हो, वहां लिखिए।”

उसने बोलना जारी रखा, “हम बुनकरी का भी काम करते हैं। इनकी सरकार में  बुनकरों की स्थिति बहुत दयनीय है। पिछली सरकार में बिजली बिल दो-ढाई सौ रुपए महीने देने पड़ते थे लेकिन अब 2500-3000 रुपए महिना देना पड़ रहा है। साड़ियों की बिक्री नहीं है; एक साड़ी पर 100 रुपए बच रहा है, जबकि यदि मजदूर रखें तो उसे ही 30 और मिलाकर मजदूरी देनी पड़ेगी। रोजी-रोटी जिससे चलता था, उसका कुछ धंधा तो नोटबंदी से मंदा हो ही गया, तो कुछ जो बचा था, कोरोना और लॉकडाउन के दौरान सरकार की नीतियां और नियम ने चौपट कर दिया। हम हैंडलूम के साथ-साथ सब्जी की खेती भी करते हैं लेकिन लॉकडाउन के चलते सब्जी की खेती भी चौपट हो गयी है। 200-250 रुपए पसेरी बिकने वाली भिण्डी पांच रुपए पसेरी बेचना पड़ी, जबकि 2100-2200 रुपए किलो भिण्डी का बीज खरीदना पड़ा था। बताइए क्या करें?”

देश के प्रधानमंत्री श्री मोदी जी द्वारा गोद लिये गये गांव ‘नागेपुर’ के रहने वाले 25 वर्षीय विजय की स्थिति और सवाल केवल उसी के नहीं हैं, बल्कि उन सभी के हैं जो रोज कमाने के बाद ही किसी तरह दो रोटी खा पाते हैं। इससे पहले किसी छोटे उद्योग-धंधे में काम करते थे, लेकिन आज घर बैठे हैं या दो रुपए कमाने के लिए हर किसी परिचित-अपरिचित का मुंह ताक रहे हैं। पढ़े-लिखे और अनपढ़ या कम पढ़े-लिखे लोगों की स्थिति आज एक बराबर हो गयी है।

हथकरघा पर काम करते हुए मोखन मौर्य

प्रधान जी के द्वार पर पहुँचने पर पता चला कि वे किसी काम से बाहर निकले हुए हैं। उनके चाचा राजाराम पटेल से दुआ-सलाम के बाद हम वापस लौट आते हैं। लौटते वक्त हम मोखन मौर्य से मिलते हैं, जो हथकरघे पर थान का कपड़ा तैयार कर रहे थे। उनके अनुसार “हमने तो नोटबंदी जैसी महामारी में पैंतालीस दिन कपड़े बुनाई के नये-नये डिजाइनों का प्रशिक्षण भी लिया था। हमारे साथ 20-20 लोगों की दो टोली ने प्रधान मुकेश पटेल के आवास पर ट्रेनिंग ली थी। ट्रेनिंग के बाद बुनकरी के कुछ संसाधन देने के नाम पर एक-एक आदमी का औसतन 12000 रुपए फंसा हुआ है। रुपए फंसने का कारण यह था कि जो बुनकरी के संसाधन हमें मिल रहे थे, वे सब डुप्लीकेट थे। हम लोगों ने लेने से इंकार कर दिया जिसका नतीजा है कि आज तक हमारे पैसे नहीं मिले।” मोखन मौर्य की बातों की पुष्टि प्रधान ने भी की।

वर्तमान ग्राम प्रधान मुकेश पटेल

अगले दिन प्रधान जी स्वयं फोन करते हैं और बातचीत आगे बढ़ती है। मेरे सवाल वही हैं और प्रधान का जवाब भी कुछ संशोधन के साथ वही है, जो गांव के अन्य लोगों का कहना है। प्रधान जी बताते हैं कि “संसदीय आदर्श गांव के चयन के लिए देशभर से दिल्ली में ग्राम प्रधानों को जब पहली बार सन् 2015 बुलाया गया था, तो हम वाराणसी से अकेले गये थे। आदर्श गांव की परिकल्पना के लिए 26 तरह की योजनाओं को शामिल किया गया था। चूंकि हमारा गांव का पहले से ही राज्य सरकार द्वारा लोहिया ग्राम के अंतर्गत होने  की वजह से संसदीय आदर्श गांव के रूप में चयन नहीं हो सका और 20-25 दिन बाद उसकी जगह जयापुर गांव का चयन हो गया था।”

वे कहते है कि “आदर्श गांव चयनित होने का मतलब है स्थानीय जनता को मूलभूत सुविधाएं और विकास का लाभ मिले। शिक्षा के मामले में आपने देखा ही कि प्राथमिक विद्यालय के अलावा यहाँ पर जूनियर हाईस्कूल भी नहीं है। स्वास्थ्य सुविधा  देने के नाम पर एकबार अनुप्रिया पटेल आयी थीं, जो नंदघर के बगल में ही पांच ईंट रखकर शिलान्यास कर गईं, लेकिन न जाने स्वास्थ्य केंद्र कहां गायब हो गया; आज तक पता ही नहीं चला। पशु-चिकित्सालय के अभाव में आए दिन पशुओं की मृत्यु हो जाती है। रोजगार के नाम पर क्या हुआ। आदर्श गांव चयनित होने के समय कई घोषणाएं हुई थी, जैसे- उप डाक घर, रेलवे टिकट बुकिंग खिड़की, बैंक (बैंक तो हमारे यहां 2013 से ही है, चूंकि हमारा गांव यूनियन बैंक ने पहले से ही एडाप्ट किया हुआ था), एटीएम, सड़क पक्की हो जाएं। फाइनली कहा जाए तो संसदीय आदर्श गांव चयनित होने के बाद से हमारे गांव को कुछ उस तरह का बहुत कुछ नहीं मिल पाया। बस स्टैंड और बाबा साहेब अंबेडकर की बड़ी मूर्ति लगा देने से किसी गांव या व्यक्ति का विकास नहीं होना है।”

गांव में बना बस स्टैंड

उन्होंने आगे कहा, “सब मिला-जुला कर कहा जाए तो आदर्श गांव चयनित होने के बाद से बस स्टैंड और अंबेडकर जी की मूर्ति के अतिरिक्त हमारे गांव को कुछ नहीं मिला है। तो यही बात है कि सांसद आदर्श गांव का केवल हम नाम ढोते हैं और कुछ हुआ नहीं।”

सांसद आदर्श ग्राम योजना के अंतर्गत सभी लोकसभा सांसदों को हर वर्ष एक ग्रामसभा का विकास कर उसे जनपद की अन्य ग्रामसभाओं के लिये आदर्श के रूप में प्रस्तुत करने का लक्ष्य था। इस योजना का उद्देश्य शहरों के साथ-साथ ग्रामीण भारत के बुनियादी एवं संस्थागत ढाँचे को विकसित करना था, जिससे गांवों में भी उन्नत बुनियादी सुविधाएं और रोज़गार के बेहतर अवसर उपलब्ध कराए जा सकें। इस योजना का मुख्य उद्देश्य चयनित ग्रामसभाओं को कृषि, स्वास्थ्य, साफ-सफाई, आजीविका, पर्यावरण, शिक्षा आदि क्षेत्रों में सशक्त बनाना था, लेकिन नागेपुर गांव की हकीकत देखकर देश के अन्य गोद लिए गांवों की स्थिति खुद-ब-खुद समझी जा सकती है।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जयापुर-नागेपुर, ककरहिया, डोमरी गांव को गोद लेने के बाद जुलाई 2021 में पुरेबरियार गांव और परामपुर गांव को भी प्रधानमंत्री ने गोद लेने का ऐलान किया था। जब देश के प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र के सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत चयनित नागेपुर की यह स्थिति है तो अन्य सांसदों के क्षेत्रों में चयनित सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत चयनित गांवों की स्थिति क्या होगी?

(बनारस से भुवाल यादव की रिपोर्ट।)

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