उच्चतम न्यायालय में सोमवार 5 सितंबर को हिजाब मामले की सुनवाई शुरू हुई। जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने सुनवाई के दौरान सवाल किया कि क्या किसी धर्मनिरपेक्ष (सेकुलर) देश के सरकारी संस्थान में धार्मिक कपड़े पहनने की छूट दी जा सकती है। कर्नाटक हाईकोर्ट ने शिक्षण संस्थाओं में हिजाब के बैन के सरकारी आदेश को सही ठहराया है। उस फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई है। 7 सितंबर को इस मामले की सुनवाई फिर होगी।
सुनवाई में वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने दलील दी कि अनुच्छेद 145 (3) के अनुसार, एक संवैधानिक मुद्दे को संविधान पीठ के पास भेजा जाना चाहिए। इस मुद्दे में बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल हैं। और यह सवाल उठा कि क्या इन महिलाओं को ड्रेस कोड या सरकार के सामने झुकना चाहिए और क्या हिजाब पहनना एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है।
इस पर, जस्टिस गुप्ता ने टिप्पणी की कि स्कार्फ पहनना या नहीं पहनना एक आवश्यक प्रथा हो सकती है या नहीं हो सकती है। लेकिन सवाल यह है कि क्या सरकार ड्रेस कोड को रेगुलेट कर सकती है। इस पर वरिष्ठ वकील धवन ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट में भी जज तिलक, पगड़ी आदि पहन कर आते हैं। इस पर जस्टिस गुप्ता ने यह कहते हुए हस्तक्षेप किया कि ‘पगड़ी’ एक गैर-धार्मिक वस्तु है और शाही राज्यों में पहनी जाती थी। मेरे दादाजी इसे कानून का पालन करते हुए पहनते थे। इसकी धर्म के साथ तुलना न करें। हमारे संविधान की प्रस्तावना कहती है कि हम एक धर्मनिरपेक्ष देश हैं। एक धर्मनिरपेक्ष देश में क्या आप कह सकते हैं कि सरकारी संस्थान में धार्मिक कपड़े पहनने चाहिए? यह एक तर्क हो सकता है।
धवन ने कहा कि उच्चतम न्यायालय का फैसला महत्वपूर्ण होगा और दुनिया भर में देखा जाएगा क्योंकि कई सभ्यताओं में हिजाब पहना जाता है। उन्होंने तर्क दिया कि जब पहले यह सुझाव दिया गया था कि एक ही रंग की वर्दी का दुपट्टा पहना जा सकता है, लेकिन अब छात्राओं को क्लास रूम में हिजाब हटाने के लिए कहा जा रहा है। उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि इस मुद्दे पर हाईकोर्ट के आदेश असंगत थे क्योंकि केरल हाईकोर्ट के एक आदेश में कहा गया था कि हिजाब को अनुमति है और कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि अनुमति नहीं है।
इससे पहले याचिकाकर्ताओं के वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने कहा कि कर्नाटक शिक्षा अधिनियम महिलाओं को सरकारी शिक्षा तक पहुंच से वंचित करने की अनुमति नहीं देता है क्योंकि उन्होंने अपनी वर्दी के साथ हिजाब पहनना चुना है।
इस पर पीठ ने पूछा कि आप कहते हैं कि शैक्षणिक संस्थान नियम जारी नहीं कर सकते हैं, लेकिन राज्य के बारे में क्या है, जब तक वहां ड्रेस कोड को प्रतिबंधित करने वाला कोई कानून नहीं है तो क्या लोगों को मिनीज (छोटे कपड़ों) और मिडीज में आने दिया जाए या वो जो पहनकर आना चाहें।
इस पर वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने कहा कि ज्यादातर गर्ल्स कॉलेजों में यूनिफॉर्म कोड में लड़कियों के लिए दुपट्टे के साथ सलवार कमीज तय है। क्या आप उससे बड़ी लड़की को बता सकते हैं कि उसका अपनी मॉडेस्टी (शील) पर नियंत्रण नहीं होगा, और फिर आप ये भी कहें कि आप अपने सिर पर अपनी चुन्नी नहीं पहन सकतीं।
इस पर पीठ ने कहा कि अदालत किसी के शिक्षा के अधिकार से इनकार नहीं कर रही है। राज्य के रूप में वे यही तो कह रहे हैं कि आप यूनिफॉर्म में आएं। हर शख्स को अपना धर्म मानने का अधिकार है, लेकिन मुद्दा ये है कि क्या ड्रेस कोड वाले स्कूल या कॉलेज में इस अधिकार का प्रयोग किया जा सकता है।
पीठ ने कहा कि अदालत के अलावा रेस्तरां और गोल्फ कोर्स जैसी जगहों पर भी सख्त ड्रेस कोड का पालन किया जाता है। इस पर वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने कहा कि यह मामला एक सरकारी कॉलेज में शिक्षा पाने का है। हर कोई टैक्स देता है ,चाहे प्रत्यक्ष, चाहे अप्रत्यक्ष। यह सवाल है शिक्षा तक पहुंच और शिक्षा पाने का, वो भी समाज का एक हिस्सा जो तमाम तरह के दबाव में और उससे कहा जाता है कि ड्रेस कोड के बिना हम तुम्हें अंदर नहीं जाने देंगे? हेगड़े ने यह भी कहा कि हिजाब विवाद उडुपी का लोकल विवाद था, लेकिन राजनीति की वजह से इसे बड़ा मुद्दा बना दिया गया।
सुनवाई की शुरुआत में, वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने तर्क दिया था कि इस मामले से महत्वपूर्ण सवाल उठा है कि क्या हिजाब इस्लाम के लिए जरूरी है या नहीं। इससे पहले सुनवाई को टालने की मांग पर जज नाराज भी हुए। जस्टिस हेमंत गुप्ता याचिकाकर्ताओं के वकीलों पर नाराज हुए और कहा कि ये फोरम शॉपिंग नहीं चलेगा। पहले आपकी ओर से जल्द सुनवाई की मांग की जा रही थी और अब आप इसे टालने की मांग कर रहे हैं।
केंद्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने तर्क दिया कि एक संस्था में एकमात्र मुद्दा अनुशासन है। इस पर जस्टिस हेमंत गुप्ता ने पूछा कि हिजाब कैसे किसी संस्था के अनुशासन को तोड़ रहा है? एएसजी ने कहा कि छात्र धार्मिक अधिकारों की आड़ में स्कूल यूनिफॉर्म कोड को तोड़ नहीं सकते।
इस बीच, कर्नाटक सरकार के आदेश की पृष्ठभूमि में आते हुए, महाधिवक्ता प्रभुलिंग नवदगी ने कहा कि स्कूल अधिकारियों ने उन्हें मार्गदर्शन के लिए लिखा था। हिजाब के बाद कुछ छात्रों ने भगवा शॉल पहनी थी और इसके बाद शिक्षण संस्थानों में अशांति फैल गई थी।
इससे पहले हिजाब प्रतिबंध मामले में उच्चतम न्यायालय ने कर्नाटक सरकार को नोटिस जारी किया था। इस मामले में अदालत ने सुनवाई के लिए पांच सितंबर की तारीख तय की थी। विभिन्न याचिकाकर्ताओं ने कर्नाटक हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है, जो स्कूलों और कॉलेजों में ड्रेस के नियमों को सख्ती से लागू करने का निर्देश देता है।
कर्नाटक में हिजाब पर विवाद उस समय शुरू हुआ था, जब उडुपी के एक सरकारी स्कूल में कुछ छात्राओं को हिजाब पहनकर कक्षा में जाने पर रोक लगा दी गई थी। इसे लेकर देश के कई हिस्सों में काफी प्रदर्शन हुए थे। इसी दौरान आठ फरवरी को मांड्या में पीईएस कॉलेज के अंदर छात्रों ने भी प्रवेश किया था और नारेबाजी की थी। इसके बाद यह विवाद और बढ़ गया। जय श्री राम के नारे लगाती भीड़ के सामने 19 साल की मुस्कान खान ने अल्लाह हू अकबर के नारे लगाए थे।
इसके बाद मामला कर्नाटक हाईकोर्ट पहुंचा और हाईकोर्ट ने फैसला दिया था कि हिजाब इस्लाम धर्म का अभिन्न अंग नहीं है, इसलिए राज्य सरकार को इसे स्कूलों के अंदर यूनिफॉर्म का हिस्सा बनाने का निर्देश नहीं दिया जा सकता। कर्नाटक हाईकोर्ट के 15 मार्च के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में कई याचिकाएं दायर की गई हैं, जिसमें कहा गया है कि हिजाब पहनना आवश्यक धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है जिसे संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित किया जा सकता है। हाईकोर्ट ने उडुपी के गवर्नमेंट प्री-यूनिवर्सिटी गर्ल्स कॉलेज की मुस्लिम छात्राओं के एक वर्ग द्वारा दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया था, जिसमें कक्षा के अंदर हिजाब पहनने की अनुमति देने का अनुरोध किया गया था।
(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)
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