Thursday, March 28, 2024

विदेशी दौरे के नए ‘मोदीजाल’ के मोहपाश में फंसे हों, तो सावधान हो जाइए

भारत का जनमानस समझ नहीं पा रहा है कि क्या सच है और क्या झूठ। हाल ही में कर्नाटक की जनता ने क्या मोदी की भव्य रैलियों और रोड शो को नकारकर बहुत बड़ी भूल कर दी है। क्या वे मोदी के मूल्य को समझ नहीं पा रहे हैं। भारत से दूर विदेशों में तो पीएम मोदी की एक झलक पाने के लिए प्रवासी भारतीय कितने अभिभूत रहते हैं, यह बात एक बार फिर से ऑस्ट्रेलिया के सिडनी शहर में 20,000 से अधिक अनिवासी भारतीयों की भीड़ से खचाखच भरे स्टेडियम ने सिद्ध कर दी है।

भारत का राष्ट्रीय भोंपू मीडिया न सिर्फ इसे युगांतकारी घटना के रूप में दिखाए जा रहा है, बल्कि इसके एंकर और एंकरानियां ट्विटर पर दनादन ट्वीट चटका रहे हैं। यहां तक कि निष्पक्ष पत्रकारिता का अपना धर्म, जिसे वे पहले ही भूल चुके हैं, विपक्षियों को ताना दे रहे हैं कि मोदी की लोकप्रियता और ऑस्ट्रेलियन प्रधानमंत्री के ‘बॉस’ संबोधन से कहीं बार-बार ट्वीट तो नहीं देख रहे हैं?

जैसा कि सभी जानते हैं कि जी-7 देशों की बैठक जापान में थी, और भारत को अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था। वहां पर भी हिरोशिमा में महात्मा गांधी की मूर्ति के अनावरण का जिम्मा जापान ने मोदी जी के करकमलों में सौंप दिया। यदि याद करें तो 2014 में जीत के बाद जब पीएम मोदी के विदेशी दौरे शुरू हुए थे, तो उन्होंने सबसे पहले हर देश में महात्मा गांधी की मूर्ति के सामने नतमस्तक होकर अपनी पुरानी छवि को विश्व जनमत के सामने काफी हद तक धो-पोंछ दिया था।

भारत में भी गांधी को प्रेरणास्रोत बताकर सबसे पहले खादी आश्रम और सफाई के लिए स्वच्छता अभियान चलाया गया। खादी आश्रम का आज क्या हाल है, और खादी देश के जीवन में कितना उतरी, इसके बारे में कोई खोज-खबर करने वाला अब कोई नहीं बचा। जहां तक स्वच्छता का प्रश्न है, गांधी का चश्मा प्रतीक स्वरूप यदाकदा कचरा पेटियों पर अवश्य नजर आ जाता है। लेकिन कचरा के नाम पर यदि कोई काम देश में हो रहा है तो वह है जगह-जगह झुग्गी-झोपड़ी, अस्थाई आवास बना रह रही वो शहरी आबादी, जो दम तोड़ चुकी ग्रामीण अर्थव्यस्था में पेट की आग बुझाने लगातार शहरों की ओर धकेली जा रही है। 

बहरहाल जापान में जी-7 की बैठक में मोदी की मुलाकात यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की से हुई। ऐसा नहीं है कि जेलेंस्की सिर्फ मोदी जी से ही मिले, बल्कि वे तो उन सभी राष्ट्राध्यक्षों से मिले, जिनसे उन्हें खासतौर पर मिलना था। इससे एक दिन पहले ही वे बिन बुलाये अरब देशों के सम्मेलन में चले गये थे, जहां पर सीरिया के राष्ट्रपति असद की अगवानी की जा रही थी, और अमेरिका के लाख चाहने के बावजूद यह क्षेत्र अब युद्ध के बजाय शांति और एकजुटता की राह पर आगे बढ़ चला है।

खाड़ी के देशों को जेलेंस्की की दलीलों का कितना असर पड़ा, इसका लेखाजोखा तो भविष्य बतायेगा, लेकिन वे उनकी संघर्ष के बजाय युद्ध से घिरे होने की दलील पर निश्चित ही ठठाकर हंसे होंगे, क्योंकि उनमें से अधिकांश देश तो पिछले कई दशकों से इसकी मार झेल बर्बाद कर दिए गये हैं।

पीएम मोदी जी ने इस बैठक में इसे मानवता को क्षति बताकर जेलेंस्की को अवश्य निराश ही किया होगा। वैसे भी आज अमेरिका के लिए अपनी भू-राजनीति को रूस से हटाकर अपने मुख्य विरोधी चीन के विरुद्ध साधना है। वैसे भी उसे रूस-यूक्रेन संघर्ष से जितना हासिल करना था, उससे अधिक वह पा चुका है। जो यूरोप लगातार रूस पर उर्जा जरूरतों के कारण जुड़ता जा रहा था, वह अमेरिकी आर्थिक हितों के लिए ही नहीं बल्कि नाटो और समूचे मिलिटरी इंडस्ट्रियल काम्प्लेक्स के लिए दिवालिया हो जाने का कारण बन सकता था।

आज यूरोप पूरी तरह से अमेरिका और उसके सैन्य संगठन नाटो के इशारे पर चलने के लिए बाध्य है। यूरोप की उर्जा जरूरतों को अमेरिका तिगुने-चौगुने दामों पर पूरा कर अपने देश के कॉर्पोरेट के हित साध रहा है। यूरोप के उद्योग चरम महंगाई के सामने या तो अमेरिका या चीन का रुख कर रहे हैं। रूस युद्ध को लंबा खींचकर अब सिर्फ उसके लिए मुश्किलें ही बढ़ा रहा है।

असली लड़ाई तो एशिया और वह भी हिंद महासागर क्षेत्र में खेली जानी है। ऐसा अनुमान है कि चीन अगले 3-4 वर्ष और चाहता है कि अमेरिका और नाटो का ध्यान इस क्षेत्र पर न पड़े। इस बीच रूस-चीन के बीच में घनिष्ठ संबंध नए धरातल पर पहुंच गये हैं। अनजाने में ही अमेरिका ने यूक्रेन विवाद को बढ़ाकर इस मित्रता को नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया है। यही वह बिंदु है, जहां पश्चिमी देशों को अब एक नए मुल्क की तलाश थी। संभावितों में भारत आज सबसे पहले स्थान पर है। 

यह काम जापान, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया भी कर सकते हैं, लेकिन इनमें से किसी को भी चीन से सीधे मुकाबले में जाने की कोई इच्छा नहीं है। पिछले कुछ वर्षों से चीन-ऑस्ट्रेलिया के बीच में व्यापारिक रिश्ते काफी बिगड़े थे, और इसका खामियाजा ऑस्ट्रेलिया को बड़े हद तक चुकाना भी पड़ा है। लेकिन पिछले कुछ महीनों से दोनों देश के व्यापारिक और कूटनीतिक रिश्ते फिर से पटरी पर लौट रहे हैं। पश्चिमी बिरादरी चाहकर भी ऑस्ट्रेलिया के लिए चीन से सीधा पंगा नहीं लेगी, यह बात उसे समझ आ गई है।

फिर उसकी सीमा भी चीन से नहीं लगती। उल्टा उससे बिगाड़ कर उसकी अर्थव्यस्था ही संकटग्रस्त हो चुकी है। इसी तरह जापान और दक्षिण कोरिया भी अपनी अर्थव्यस्था को सबसे पहले स्थान पर रखते हैं। आज तक वैसे भी अमेरिका ही सैनिक अड्डे बनाकर उन्हें आवश्यक सुरक्षा मुहैया करा रहा है, फिर उनके लिए ओखली में सिर देने का क्या तुक बनता है। वैसे भी उन्हें कोई विश्वगुरु बनने की चाह नहीं है। वे पहले से ही काफी औद्योगिक विकास और समृद्धि के नए पायदान पर पहुंच चुके हैं। युद्ध की विभीषिका और नतीजे से वे अच्छी तरह से वाकिफ हैं।

ऐसे में यदि कोई देश जिसकी व्यापक बहुसंख्यक आबादी हाल के दिनों में धर्म से ओत-प्रोत होकर अपनी वास्तविक स्थिति से बेखबर पूरी तन्मयता से किसी एक के बताये मार्ग पर सरपट दौड़ने को तैयार है, तो वह देश भारत है। 

भारत में हाल के दिनों में ऐसा काफी कुछ घटित हुआ है, जिसको लेकर पश्चिमी देश और विशेषकर अमेरिका में लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, अल्पसंख्यक समुदाय की स्थिति, मीडिया की आजादी और निरंकुशता के मापदंडों सहित फासीवाद की आहट को मापने वाली एजेंसियां मौजूद हैं। ये लगातार भारत के बारे में अमेरिकी मीडिया, जनमानस और सीनेट को आगाह करती रहती हैं।

अमेरिकी साम्राज्यवाद, जिसे कभी सऊदी अरब या इजराइल के अपने विरोधियों से निपटने के लिए दशकों से चलाए जा रहे दमन, हत्याकांडों से कोई फर्क नहीं पड़ता, वे दुनिया के हर उस देश को धमकाने और आर्थिक प्रतिबन्ध लगाने से बाज नहीं आते, जो उनके इशारे पर न चल रहा हो। ऐसी अनेकों मिसालें हमारे सामने मौजूद हैं, जिन्हें गूगल पर एक क्लिक कर देखा जा सकता है।

भारत में एनआरसी, सीएए, कश्मीर में धारा 370 के खात्मे और दमन, अल्पसंख्यकों के दमन और लोकतंत्र के लगातार सिमटते जाने पर पश्चिमी साम्राज्यवाद के घड़ियाली आंसू असल में राज्य के मुखिया को सौदेबाजी में अपने पक्ष में करने और अपने भू-राजनीतिक स्वार्थों को साधने से अधिक मोल नहीं रखते। 

आज भारत ठीक उसी मुकाम पर खड़ा है। भारत के सत्ताधीश इस खतरे और सौदेबाजी से दो-चार हो रहे हैं। आज भारत गुटनिरपेक्षता के स्थान पर दोनों गुटों में बना हुआ है। देखने में लग सकता है कि वह दोनों से मलाई खा रहा है, और यह सब हमारे नेतृत्व का कमाल है। गोरे तो मूर्ख होते हैं, उनसे हंस कर गले मिलो तो वे सबकुछ भूल आपके लिए अपने खजाने के दरवाजे खोल देते हैं।

यह बात आज पड़ोसी देश पाकिस्तान से बेहतर भला कौन जानता है, जिसे जब तक इस्तेमाल किया तब तक अरबों डॉलर दिए। पाकिस्तान अपने अवाम के मुस्तकबिल को बदलने के बजाय उसे धर्म और आतंक की राह पर ले गया। आज बर्बादी का आलम यह है कि वह चाहकर भी लोकतंत्र की ओर नहीं मुड़ पा रहा है। पश्चिमी देशों से बक्शीश के बजाय उसे विश्व बैंक और आइएमएफ से मामूली से ऋण के लिए देशवासियों को भारी आर्थिक मुश्किलों में डालने की शर्त लादी जा रही है। 

लेकिन भारत को तो बता दिया गया है कि वह दुनिया की सबसे तेजी से विकसित होने वाली अर्थव्यस्था है। चीन को टक्कर वही दे सकता है। यदि चीन दुनिया की सबसे प्रमुख आर्थिक हस्ती बनने की ओर बढ़ रहा है तो भारत क्यों नहीं? आखिर हम किस काम आयेंगे? ये लॉलीपॉप संभव है मनमोहन सिंह सरकार होती तो नहीं आती। लेकिन वर्तमान पीएम को तो वैसे भी व्यक्तिगत रूप से विश्व नेताओं में अपनी छवि बेहतर बनाने की कामना रखने वाले के रूप में टिप्पणीकार बताते आ रहे हैं।

वो चाहे बाराक ओबामा को संबोधन हो, ट्रम्प के लिए अमेरिका में ही ‘अगली बार, ट्रम्प सरकार’ का उद्घोष हो और अमेरिका में जब ट्रम्प के खिलाफ अमेरिकी सीनेट में इम्पीचमेंट का प्रस्ताव रखा गया था, तो उनकी छवि को बूस्ट करने के लिए अहमदाबाद के विशाल स्टेडियम में लाखों भारतीयों की उपस्थिति से माहौल बदल डालने का सायास प्रयास इसकी गवाही देता है। 

ऑस्ट्रेलिया के पीएम की भारत यात्रा के दौरान भी उनका जोरदार स्वागत किया गया था। घोड़ों से सजी बग्घी में जो आवभगत हुई, उसी समय ऑस्ट्रेलिया दौरे में बंपर रैली का सपना आकार ले चुका होगा। 

इसके लिए कुछ खास नहीं करना पड़ता है। इन सब चीजों के लिए पहले से ही ढांचे मौजूद हैं। इसके लिए दो संगठनों फ्रेंड्स ऑफ़ इंडिया ऑस्ट्रेलिया और इंडियन ऑस्ट्रेलियन डायसपोरा फाउंडेशन पहले से मौजूद था, जिसने पहले से ही भीड़ का इंतजाम कर रखा था। साकेत गोखले ने इस बारे में ट्वीट श्रृंखला जारी कर पूरी डिटेल सार्वजनिक कर रखी है। 

एक अन्य देश पापुआ न्यू गिनी में एक परिवार के साष्टांग दंडवत होने का दृश्य भारत में बड़ी सुर्खियाँ बटोर चुका है। लेकिन पीटीआई और यूएनआई की वीडियो कुछ और कहानी बयां कर रही है।

यदि आप याद करें तो कुछ सप्ताह पूर्व ही एक भारतीय अनिवासी को 5 कोरियन महिलाओं को नौकरी देने का झांसा देकर नशीला पेय पदार्थ पिलाकर रेप करने के अपराध में ऑस्ट्रेलिया की अदालत ने सजा सुनाई थी। बालेश धनकड़ नामक इस शख्स ने पूर्व में नरेंद्र मोदी की पहली आस्ट्रेलिया यात्रा के दौरान भीड़ का इंतजाम किया था। अगले वर्ष वह भारत भी आया था और व्यक्तिगत रूप से इसकी मुलाकात पीएम मोदी से हुई थी। तब यह शख्स ओवरसीज फ्रेंड्स ऑफ़ बीजेपी का प्रमुख था। (जनचौक ने इस घटना को मोदी और बीजेपी का ऑस्ट्रेलिया में ओवरसीज संगठन देखने वाला निकला सीरियल रेपिस्ट शीर्षक के साथ विस्तार से कवर किया है)। 

आज के दिन विदेशों में बड़ी-बड़ी रैलियों से भी आम भारतीय चकाचौंध नहीं होता। लेकिन उनके लिए नित नए मनोरंजन के साधन उपलब्ध हैं। 28 मई को देश के नाम एक नई भव्य संसद समर्पित की जायेगी। याद रहे इस संसद का निर्माण कार्य तब शुरू हुआ, जब देश घोर आर्थिक अन्धकार के बीच से गुजर रहा था। करोड़ों मजदूर अपने-अपने गांवों में सिमट चुके थे, और काम न होने पर दो जून की रोटी के लिए साहूकार के पास अपने गहने गिरवी रख रहे थे। शहरों में आम इंसान एक अदद ऑक्सीजन सिलिंडर के लिए गिड़गिड़ा रहा था। 

नीचे ट्वीट में एक वीडियो को शेयर कर दावा किया गया है कि भारत से करीब 5 फ्लाइट में लोगों को इस आयोजन में भेजा गया है। इसका मकसद भारत में मोदी की विश्व में लोकप्रियता को दर्शाना है।  

अब अगला भव्य आयोजन राम मंदिर उद्घाटन है। इन भव्य और दिव्य इमारतों से देश की बहुसंख्यक आबादी के भारत के विश्वगुरु बनने की दिशा में भरोसा जगेगा या नहीं यह तो समय ही बतायेगा। कर्नाटक में कांग्रेस ने इसे एकजुट रहकर लंबे समय तक कर्नाटक की बेहाल जनता के मुद्दों से फोकस हटने नहीं दिया। जबकि भारत एक विशाल, विविधता से भरा देश है, जहां कई दर्जन विपक्षी गुटों में बिखरे जनमत को एकजुट कर इस भव्यता और दिव्यता के साथ धनबल, ईडी-सीबीआई बल, गोदी मीडिया और सोशल मीडिया पर हिंदू-मुस्लिम की नित नई हेट स्टोरीज से पार पाना एक बेहद दुष्कर कार्य होने जा रहा है।

राहुल गांधी ने दिल्ली से चंडीगढ़ तक ट्रक यात्रा कर भारतीय समाज के उन तहों तक सीधी पैठ बनाने की शुरुआत कर एक उम्मीद तो जगा दी है कि यदि अंतिम आदमी तक सीधी पहुंच बना सकें तो इंद्रजाल भी तोड़ा जा सकता है।

(रविद्र पटवाल जनचौक के संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)         

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