BJP पर भारी पड़ रहा है INDIA

18 जुलाई पर पूरे देश की नज़र थी। बड़ा सवाल था- सत्ताधारी दल और गठबंधन के खिलाफ क्या विपक्ष एकजुट स्वरूप ले सकेगा? बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन एनडीए का कुनबा ऐतिहासिक रूप से सबसे बड़े कुनबे के रूप में सामने आने वाला है- ऐसा बीजेपी ने देश को बता दिया था। लड़ाई यह जताने की थी कि जितने दल सत्ता के विरोध में नहीं हैं उससे अधिक दल सत्ता के साथ हैं।

बीजेपी ने यह भी जताने की कोशिश की कि विपक्षी दलों में मतभेद हैं, ये एक हो नहीं सकते। न तो वैचारिक रूप से, न ही सीट शेयरिंग के तहत इनमें कभी एकता हो सकेगी। लेकिन, बेंगलुरू में अचानक INDIA का उदय हुआ जिसने बीजेपी और एनडीए की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। जो संदेश देने की कोशिश बीजेपी ने की थी, उसकी हवा निकल गयी।

राहुल गांधी का विचार है INDIA, जिसे ममता बनर्जी ने पेश किया और विपक्ष में मौजूद सभी दलों ने मान लिया। INDIA पर सर्वसम्मति बनाने के दौरान चर्चा और सहमति-असहमति भी हुई लेकिन कोई भी असहमति सार्वजनिक रूप से सामने नहीं आयी है। विपक्ष का यह चरित्र प्रशंसनीय है।

INDIA का हर अक्षर जिस अर्थ को दे रहा है वह बीजेपी को विचार के स्तर पर सीधे चुनौती है। ‘मुद्दाविहीन’ बताए जा रहे विपक्ष की सबसे बड़ी ताकत विचार और सोच के रूप में दिखी है। यही किसी गठबंधन के मजबूत होने और स्थायी रहने के आधार हुआ करते हैं। INDIA के सामने बीजेपी चारों खाने चित्त नज़र आयी।

बीजेपी नेताओं को अब इंडिया से चिढ़

बीजेपी नेताओं ने विपक्ष पर प्रहार करते-करते INDIA पर एक देश के रूप में भी प्रहार करना शुरू कर दिया। बीजेपी नेता हेमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि वे INDIA के बजाए भारत का उपयोग करेंगे और अंग्रेजी को प्राथमिकता नहीं देंगे। कहने का अर्थ यह है कि विपक्ष अंग्रेजीदां है और बीजेपी हिन्दुस्तानी मार्का पार्टी। मगर, यह प्रतिक्रिया बताती है कि INDIA की सोच कितनी असरदार है। इसने बीजेपी नेताओं के प्रोफाइल तक बदलने को बाध्य कर दिया है।

लोग पूछेंगे कि ‘मेक इन इंडिया’ से भी ‘इंडिया’ निकाल देंगे क्या? या फिर ‘न्यू इंडिया’ का नारा गलत है? इंडिया टीवी, इंडिया न्यूज़, टाइम्स ऑफ इंडिया…जैसे नाम से पत्रकारिता हो सकती है लेकिन ‘इंडिया’ के नाम से राजनीति नहीं हो सकती? बीजेपी प्रतिक्रिया के अपने ही जाल में फंस गयी। संदेश यही गया कि बीजेपी घबरा गयी।

INDIA नाम से जो गठबंधन सामने आया है उसकी आज देश में 11 राज्यों में सरकारें हैं। यह कमजोर या लाचार गठबंधन नहीं है। जब विचार के साथ ये दल एकजुट हैं तो सीटों की शेयरिंग या कन्वेनर जैसे मुद्दे भी सुलझा लिए जाएंगे। पटना बैठक में दलों का जुटना, बेंगलुरू में INDIA और मुंबई में कन्वेनर या फिर शीट शेयरिंग का सिलसिला होगा। बीजेपी विपक्ष के इस तेवर से घबरा गयी है।

बीजेपी ने विपक्ष में विचारों के आधार पर फूट डालने की कोशिशें भी जारी रखी हैं। यूसीसी, सावरकर, राम मंदिर जैसे मुद्दों को छेड़कर वह विपक्षी दलों से मीडिया के माध्यम से सवाल भी करवा रही है। मगर, INDIA में शामिल दल सलीके से इन सवालों के गैरज़रूरी मानते हुए छोड़ दे रहे हैं। बेरोजगारी, महंगाई, अमीरपरस्ती जैसे मुद्दों को उठाते हुए INDIA विकल्प दे रहा है। खुद को राष्ट्रीय स्तर पर विकासवादी समावेशी गठबंधन घोषित करना इसी रणनीति का हिस्सा है।

मायावती भी बेचैन

बीजेपी ही क्यों मायावती की बेचैनी भी सामने आ गयी। यूपी में सपा, आरएलडी और कांग्रेस के एक होने से बीजेपी को मजबूत प्रतिरोध मिलेगा लेकिन सबसे ज्यादा असर बीएसपी पर होगा। बीएसपी चुनाव लड़ने से पहले ही हाशिए पर आ गयी। एनडीए और इंडिया में बीएसपी ने दोनों का विरोध किया है लेकिन उसकी प्राथमिकता में एनडीए का विरोध नहीं है। मायावती की प्राथमिकता में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी जातिवादी और पूंजीवादी पार्टियां हैं।

मायावती बता रही हैं कि कांग्रेस के दलित-पीड़ित विरोधी होने की वजह से ही बीएसपी का जन्म हुआ। लेकिन, मायावती यह नहीं बता पा रही हैं कि किस वजह से बीएसपी का संकुचन हुआ? क्यों यूपी की सत्ता में रहने वाली बीएसपी हाशिए पर चली गयी? क्यों आज भी मनुवादी पार्टियों पर बीएसपी की जुबान चुप है?

INDIA के विरोध में अभी असदुद्दीन ओवैसी का आना बाकी है, केसीआर की प्रतिक्रिया का भी इंतज़ार है। इन्हें भी मिर्ची लगी है। इसकी वजह साफ है कि INDIA बीजेपी विरोधी वोटों को अपने पक्ष में करने में सफल होने वाली है। कम से कम इन दलों को तो साफ-साफ यह महसूस हो रहा है, बीजेपी को हो या नहीं।

देश के मुसलमानों, दलित, आदिवासी और गैर बीजेपी वोटर का प्लेटफॉर्म बन रहा है INDIA। ऐसे में मायावती हों या फिर ओवैसी या केसीआर- सबकी सियासत को धक्का पहुंचता दिख रहा है। मायावती-ओवैसी की बीजेपी को मदद करने की जो खास शैली रही है, उस शैली पर भी चोट पहुंच रही है।

बीजेपी के घबराने की वजह

INDIA को ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल के इकट्ठा होने से बहुत मजबूती मिली है। नीतीश कुमार और लालू प्रसाद पहले से बिहार में कांग्रेस का साथ लेकर बीजेपी के खिलाफ मोर्चा संभाले हुए हैं। महाराष्ट्र का मोर्चा टूट-फूट के बावजूद उद्धव और शरद पवार ने कमजोर होने नहीं दिया है। महाराष्ट्र में जो सर्वे सामने आ रहे हैं उससे पता चलता है कि एनडीए के मुकाबले महाअघाड़ी अब भी भारी है।

INDIA ने देश के अलग-अलग हिस्सों में सियासत को बीजेपी और एनडीए के विरुद्ध एक मजबूती दी है। इससे बीजेपी घबरा रही है। एक आकलन यह है कि सिर्फ 5 प्रतिशत वोट बीजेपी से खिसक जाएं तो 80 सीटों का नुकसान बीजेपी को हो सकता है। INDIA यह कर पाने में सक्षम है। इस ख़तरे को बीजेपी भांप रही है। वास्तव में यही घबराहट की मूल वजह है।

एनडीए ने ज़रूर 38 दलों का कुनबा इकट्ठा किया है। लेकिन, बीजेपी के बाद एनडीए के घटक दलों में टूटी हुई शिवसेना सबसे बड़ी पार्टी है और टूटी हुई एलजेपी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है। ज्यादातर घटक दलों के पास एक अदद सांसद तक नहीं हैं। ऐसे में इस कुनबे की गिनती अपना महत्व खो देती है।

वहीं INDIA में कांग्रेस स्वयं बीजेपी के छठे हिस्से वाली पार्टी है लेकिन कांग्रेस को साथ मिला है टीएमसी, जेडीयू, आरजेडी, एसपी, एनसीपी, लेफ्ट जैसी पार्टियों का जिनके पास सीटें भी हैं जनाधार भी। वास्तव में 38 और 26 में छोटी संख्या ही भारी पड़ती दिख रही है।

INDIA ने बीजेपी को बेचैन कर दिया है। INDIA का विरोध करने का सामर्थ्य भी नहीं दिखा पा रही है बीजेपी। निरर्थक विरोध से खुद बीजेपी नेताओं की खिल्ली उड़ रही है। विपक्ष की बैठक के समांतर बैठक कर बीजेपी ने चाहा था कि संदेश देने की लड़ाई में वह आगे निकल जाएगी, लेकिन संदेश उल्टा चला गया है। बीजेपी के खिलाफ सशक्त मोर्चा खड़ा हो चुका है। राहुल गांधी और ममता बनर्जी ने मिलकर जो INDIA का आइडिया पेश किया है उसकी काट बीजेपी नहीं कर पा रही है। 

(प्रेम कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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