Saturday, April 20, 2024

सीमा पर चीनी हरकतों पर भारत की कड़ी प्रतिक्रिया, कहा- सब कुछ असमर्थनीय और हास्यास्पद

आखिरकार भारत सरकार ने लद्दाख इलाके में स्थित पैंगांग त्सो झील पर चीन द्वारा पुल बनाए जाने की बात को स्वीकार कर लिया है। इसके साथ ही उसने अरुणाचल में कुछ इलाकों के नामकरण को मूर्खतापूर्ण कार्यवाही बताते हुए दोनों मसलों पर कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की है। कल विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने वर्चुअल प्रेस कांफ्रेंस में भारतीय सांसदों के तिब्बत से जुड़े एक कार्यक्रम में शामिल होने पर आयी चीनी प्रतिक्रिया को भी अनुचित करार दिया।

प्रवक्ता ने पहली बार स्वीकार किया है कि पैंगांग झील पर चीन ने पुल बनाया है हालांकि उन्होंने इसे चीन का अवैध कब्जा बताया है। बृहस्पतिवार को हुई इस प्रेस कांफ्रेंस में प्रवक्ता ने इस बीच चल रहे तीनों मुद्दों पर अपनी प्रतिक्रिया दी। अरुणाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों के पुन: नामकरण को लेकर पूछे गए सवाल पर आधिकारिक प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि “पिछले सप्ताह हम लोगों ने चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों के नामकरण की रिपोर्ट देखी थी। उसी समय हम लोगों ने समर्थन न करने योग्य दावे वाली इस हास्यास्पद कार्यवाही पर अपनी प्रतिक्रिया भेज दी थी।”

उन्होंने कहा कि ‘डाऊडेंग’ को ‘ट्यूटिंग’ या फिर ‘सियोम’ नदी को ‘जियुमु’ या फिर ‘किबिथु’ को ‘डाबा’ बुला देने से तथ्य नहीं बदल जाते कि अरुणाचल प्रदेश हमेशा से और आगे भी भारत का अभिन्न हिस्सा रहेगा।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि हमें उम्मीद है कि इस तरह की हरकतों में शामिल होने की जगह वह चीन-भारत सीमा के पश्चिमी सेक्टर से लगे एलएसी पर दोनों देशों के बीच विवादित मुद्दों को हल करने में सरकारात्मक रूप से प्रयास करेगा।

पिछले महीने चीन ने अरुणाचल प्रदेश के 15 स्थानों की चीनी, तिब्बती और रोमन वर्णमाला वाले नामों की घोषणा की थी और उसे दक्षिणी तिब्बत करार दिया था। चीन के विदेश मंत्रालय ने इस बात की घोषणा की थी कि उसने अरुणाचल प्रदेश के लिए चीनी नाम जांगनैन में 15 स्थानों के नामों का मानकीकरण कर दिया है।

दिल्ली ने इस पर यह कहते हुए बेहद कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न हिस्सा है। और खोजे गए स्थानों को नया नाम देने से यह तथ्य बदल नहीं जाता है।

चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश के कुछ इलाकों के नामों के नामकरण का यह दूसरा दौर है इसके पहले उसने 2017 में पहले बैच में छह जगहों को नया नाम दिया था।

जहां तक पैंगांग पर चीनी पुल बनाए जाने की रिपोर्ट का सवाल था तो उस पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि सरकार इस कार्यवाही पर बहुत नजदीक से नजर रख रही है।

उन्होंने कहा कि यह पुल उस इलाके में बनाया जा रहा है जिस पर चीन पिछले 60 सालों से अवैध कब्जा कर रखा है। जैसा कि आप लोग अच्छी तरह से जानते हैं कि भारत ने इस तरह के किसी अवैध कब्जे को स्वीकार नहीं किया है।

एलएसी के बिल्कुल नजदीक उत्तरी लद्दाख के अपने इलाके में चीन पैंगांग त्सो झील पर एक पुल बना रहा है जो उसे झील के उत्तर और दक्षिण में अपनी सेनाओं को लाने में बेहद मददगार साबित होगा। बताया जा रहा है कि झील के उत्तरी किनारे पर स्थित फिंगर 8 से 20 किमी उत्तर यह पुल बनाया जा रहा है। भारत के मुताबिक एलएसी यहीं से गुजरती है। पुल खुरनाक किले के बिल्कुल पूर्व में है जहां रुटोंग कंट्री में चीन सीमा पर मजबूत सुरक्षा आधार है।

चीनी दूतावास द्वारा सांसदों को लिखे गए पत्र के सवाल पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि पत्र का कंटेंट, लहजा और मौका सब कुछ अनुचित है। चीनी पक्ष को इस बात को याद रखना चाहिए कि भारत एक जीवंत लोकतंत्र है और जनता के प्रतिनिधि के तौर पर सांसद अपने विचारों और विश्वासों के मुताबिक गतिविधियों में हिस्सा लेते हैं। हम चीनी पक्ष से उम्मीद करते हैं कि माननीय सांसदों की सामान्य गतिविधियों को वह बेवजह तूल न दे। जिससे कि दोनों देशों के बीच के रिश्तों में और जटिलता पैदा हो।

आपको बता दें कि केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर के नेतृत्व में सांसदों के एक समूह द्वारा निर्वासित तिब्बती संसद के आमंत्रण पर 22 दिसंबर को एक डिनर में हिस्सा लिया गया था। दिल्ली स्थित चीनी दूतावास ने पिछले महीने उनकी इस भागीदारी पर चिंता जाहिर की थी। और कहा था कि तिब्बती स्वतंत्रता की इस तरह की किसी कार्यवाही का समर्थन देने से वे दूर रहें।

(जनचौक ब्यूरो की रिपोर्ट।)

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