पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व उप-मुख्यमंत्री के कांग्रेस में शामिल होने से कर्नाटक में भाजपा की चुनावी तैयारी को धक्का

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नई दिल्ली। पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और पूर्व उप-मुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी के भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल होने से भगवा पार्टी में खलबली मच गई है। भाजपा छोड़कर जाने वाले नेताओं के कारण नुकसान का आंकलन किया जा रहा है। कर्नाटक भाजपा के वरिष्ठ नेता बीएस येदियुरप्पा इसे विश्वासघात बता रहे हैं। लेकिन टिकट से वंचित नेता कांग्रेस में शामिल होकर अपने साथ हुए कथित ‘अपमान’ का बदला लेने का ऐलान कर रहे हैं।

रविवार को जगदीश शेट्टार भाजपा छोड़ने के बाद सोमवार को कांग्रेस में शामिल हो गए और भगवा पार्टी को चेतावनी दी कि उनके इस्तीफे और भविष्य के फैसलों से राज्य में कम से कम 20-25 सीटों पर असर पड़ेगा। शेट्टार राज्य के प्रभावशाली लिंगायत समुदाय से आते हैं। और वह लंबे समय तक बीएस येदियुरप्पा के करीब रहे। बीएस येदियुरप्पा भले ही यह कह रहे हैं कि शेट्टार के जाने से भाजपा को कोई नुकसान नहीं होगा, लेकिन शेट्टार और सावदी के पार्टी छोड़ने से कर्नाटक भाजपा में दरार आ गई है। संगठन में सीधे-सीधे टकराव की स्थिति उत्पन्न हो गई है। येदियुरप्पा की बात को काटते हुए कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने भी स्वीकार किया कि शेट्टार के बाहर निकलने का असर होगा। “लेकिन प्रभाव को कम करने के लिए डैमेज कंट्रोल की नीति पर विचार हो रहा है।”

शेट्टार को औपचारिक रूप से कांग्रेस में शामिल करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, “राहुल गांधी ने अनुरोध किया है कि हमें 135+ सीटें जीतनी चाहिए और सत्ता में आना चाहिए। शेट्टार के कांग्रेस में शामिल होने से हमें विश्वास है कि हमें 150 सीटें मिलेंगी। इसमें कोई संदेह नहीं है कि वह निर्वाचित नहीं होंगे, वह निर्वाचित होंगे।”

हुबली-धारवाड़ केंद्रीय निर्वाचन क्षेत्र से छह बार के विधायक शेट्टार उन कुछ नेताओं में से थे, जिन्हें भाजपा ने आने वाले विधानसभा चुनावों के लिए टिकट नहीं मांगने के लिए कहा था। पार्टी ने अभी तक उस सीट के लिए उम्मीदवार घोषित नहीं किया है जिसके शेट्टार मौजूदा विधायक हैं।

शेट्टार के पार्टी छोड़ने और कांग्रेस में शामिल होने के कदम ने निश्चित रूप से भाजपा को जड़ से हिला दिया है। वह लिंगायत समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जो कर्नाटक की आबादी का 17-18 प्रतिशत के करीब है और राज्य में सरकारों के गठन में भी उनकी प्रमुख भूमिका है।

कांग्रेस में शामिल होने से एक दिन पहले, शेट्टार रणनीति बनाने के लिए कांग्रेस के दिग्गजों सिद्धारमैया, डीके शिवकुमार और अन्य के साथ मैराथन बैठक का हिस्सा थे। कांग्रेस कर्नाटक राहुल गांधी के साथ अन्य वरिष्ठ नेताओं को यह संदेश देने के लिए उत्सुक थी कि उसने न केवल एक लिंगायत नेता बल्कि एक पूर्व मुख्यमंत्री को अपने पक्ष में करने की कामयाबी हासिल की है।

कर्नाटक में 10 मई को मतदान होगा। नामांकन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है औऱ चुनावी गतिविधि तेज हो रही हैं और निर्णायक पड़ाव की ओर बढ़ रही हैं। भाजपा के दो प्रमुख लिंगायत नेताओं, शेट्टार और लक्ष्मण सावदी के बाहर निकलने का निश्चित रूप से पार्टी की किस्मत पर असर पड़ेगा। भाजपा के एक सूत्र ने कहा कि चुनावी नुकसान की भरपाई के लिए शेट्टार को राज्यपाल के पद की पेशकश भी की गई थी, लेकिन उन्होंने प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।

भाजपा को शेट्टार के विद्रोह की उम्मीद नहीं थी। क्योंकि शेट्टार को आम तौर पर किसी मुद्दे पर आक्रामक रुख नहीं अपनाने वाले व्यक्ति के रूप में जाना जाता है। पार्टी में एक वफादार और अनुशासित कैडर के रूप में उनकी पहचान है। पूर्व मुख्यमंत्री, प्रमुख लिंगायत नेता का कद रखने वाले और सरल स्वभाव के व्यक्ति का ऐसा निर्णय लेना नेतृत्व के लिए एक झटका है।

दरअसल शेट्टार छात्र जीवन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े तो फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। शेट्टार का कहना है कि अपना 40 साल देने के बाद भी उन्हें पार्टी में जिस तरीके से अपमानित किया, उन्हें ऐसी उम्मीद नहीं थी।

लेकिन आज भाजपा में जिस तरह से फैसले किए जा रहे हैं, उससे भाजपा के वरिष्ठ नेता अलगाव महसूस कर रहे हैं। इसीलिए भाजपा को यह अनुमान नहीं था कि एक पूर्व मुख्यमंत्री (शेट्टार) और एक पूर्व उपमुख्यमंत्री (सावदी) विद्रोह का मार्ग अपनाएंगे।

कर्नाटक की राजनीति को जानने-समझने वालों का कहना है कि यह निश्चित रूप से एक झटका है और यह कहा नहीं जा सकता कि इस स्थिति से निपटने के लिए भाजपा के पास कोई उपाय है।

दरअसल शेट्टार ने एक समय सीमा तय की थी जिसे उन्होंने 16 अप्रैल तक बढ़ा दिया था ताकि यह देखा जा सके कि पार्टी आलाकमान उनकी टिकट की मांग को स्वीकार करेगा या नहीं। हालांकि रविवार सुबह तक यह साफ हो गया था कि बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने उन्हें उत्तर कर्नाटक सीट से नहीं उतारने का मन बना लिया है। शेट्टार ने इसके बाद उत्तर कन्नड़ जिले के सिरसी में कर्नाटक विधानसभा अध्यक्ष विश्वेश्वर हेगड़े कागेरी को अपना इस्तीफा सौंप दिया।

बीएस येदियुरप्पा, जो उन लोगों को मनाने की कोशिश कर रहे थे, जिन्हें टिकट से वंचित किया गया था, शेट्टार के भाजपा छोड़ने के फैसले की घोषणा के बाद उग्र हो गए। शेट्टार को संबोधित करते हुए येदियुरप्पा ने कहा कि यह भाजपा ही थी जिसने उन्हें मुख्यमंत्री बनने दिया।

शेट्टार की पहचान बीएस येदियुरप्पा के वफादार की रही है। शेट्टार ने 2012 में सदानंद गौड़ा की जगह ली थी। गौड़ा को 11 महीने मुख्यमंत्री रहने के बाद इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि येदियुरप्पा ने विद्रोह शुरू कर दिया और भाजपा नेतृत्व को कर्नाटक के शीर्ष नेतृत्व को बदलने के लिए एक विश्वासपात्र लिंगायत नेता की जरुरत थी। .

येदियुरप्पा ने कहा कि लोग शेट्टार को केवल भाजपा के कारण जानते हैं। “कर्नाटक के लोग जगदीश शेट्टार को माफ नहीं करेंगे। केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने शेट्टार को कैबिनेट में मंत्री पद की पेशकश की थी। येदियुरप्पा ने कहा, हमने शेट्टार के परिवार के एक सदस्य को टिकट की पेशकश की थी, लेकिन उन्होंने इसका जवाब नहीं दिया।”

हालांकि संसदीय बोर्ड के सदस्य बीएस येदियुरप्पा ने अभी भी शेट्टार से अपील की है। उन्होंने कहा कि वह लौटने की योजना बनाते हैं तो पार्टी उन्हें स्वीकार करेगी।

येदियुरप्पा के हमले से आहत, शेट्टार ने कहा कि येदियुरप्पा ने उन्हें टिकट दिलाने के लिए कोशिश की। लेकिन “कुछ नेताओं” ने अब येदियुरप्पा को उनके खिलाफ बोलने के लिए मजबूर कर दिया है।

पूर्व उपमुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी के बाद शेट्टार दूसरे वरिष्ठ लिंगायत नेता हैं, जिन्होंने भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस ने अथानी निर्वाचन क्षेत्र से सावदी को मैदान में उतारा है, जो उनकी पसंद की सीट है।

जिस आधार पर उन्हें टिकट नहीं दिया गया, उस पर सवाल उठाते हुए शेट्टार ने कहा, “मैं किसी घोटाले में शामिल नहीं रहा हूं। मेरे खिलाफ कोई भ्रष्टाचार या आपराधिक आरोप नहीं है। मैंने न तो मुख्यमंत्री या किसी विशेष मंत्रालय जैसे किसी महत्वपूर्ण पद की मांग की। फिर मुझे टिकट क्यों नहीं दिया गया?”

भाजपा के एक पदाधिकारी ने कहा कि शेट्टार के बाहर निकलने से “अपूरणीय क्षति” होगी और उन्होंने स्वीकार किया कि पार्टी इस प्रकरण को बेहतर ढंग से संभाल सकती थी।

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प्रदीप सिंह https://www.janchowk.com

दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

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