फंस गया है महाराष्ट्र की सत्ता का पेंच

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नई दिल्ली। महाराष्ट्र मामले की आज सुप्रीम कोर्ट में फिर सुनवाई है। अभी तक माना जा रहा था कि बीजेपी सदन के पटल पर बहुमत नहीं सिद्ध कर पाएगी। लेकिन तकनीकी तौर पर दो ऐसी चीजें सामने आ गयी हैं अगर बीजेपी उन्हें साधने में सफल हो गयी तो फिर उसका रास्ता आसान हो सकता है। हालांकि उसमें भी उसे तात्कालिक ही राहत मिलेगी।

फ्लोर पर बहुमत सिद्ध करने के मसले पर सबस पहले प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति का मामला सामने आएगा। अभी तक परंपरा रही है कि चुनकर आए सबसे वरिष्ठ विधायक को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किया जाता है और वही नव निर्वाचित सदस्यों को शपथ दिलाने के साथ ही नयी बनी सरकार के बहुमत परीक्षण के समय सदन को संचालित करता है। लेकिन कर्नाटक में ऐसा नहीं हुआ था। वहां कांग्रेस का एक विधायक सबसे ज्यादा बार निर्वाचित होकर आया था लेकिन उसे न बनाकर वहां के राज्यपाल वाजूभाई वाला ने बीजेपी के एक सदस्य को नामित कर दिया था। इसके पीछे उनका तर्क था कि विधानसभा के सचिवालय ने उनके पास एक पैनल भेजा था और उनमें से उन्होंने एक को नियुक्त कर दिया। वहां कांग्रेस के आरवी देशपांडे सबसे वरिष्ठ सदस्य थे लेकिन उनको नियुक्त करने की जगह वाजूभाई वाला ने बीजेपी के केजी बोपैया को प्रोटेम स्पीकर बनाया था।

लिहाजा यहां भी अभी जो हालात हैं और उसमें गवर्नर की जो भूमिका है उससे नहीं लगता है कि कांग्रेस के वरिष्ठ सदस्य को प्रोटेम स्पीकर बनाया जाएगा। और ऐसे में अगर स्पीकर अपने पक्ष का हो गया तो फिर सदन के संचालन और निर्णयों में सत्ता पक्ष के लिए अपने मुताबिक फैसले लेने आसान हो जाएंगे। आपको बता दें कि कांग्रेस के बाला साहेब थोराट नये सदन में सबसे वरिष्ठ सदस्य हैं।

दूसरा मामला फंसा है एनसीपी के विधायक दल के नेता का। बगावत करने से पहले तक उप मुख्यमंत्री अजित पवार विधायक दल के नेता थे। लेकिन एनसीपी के विधायकों ने बैठक कर न केवल अजित पवार को उस पद से हटा दिया है बल्कि उसने अपना दूसरा नेता भी चुन लिया है। लेकिन नये नेता के नाम को अभी भी औपचारिक तौर पर मान्यता नहीं मिली है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि चीफ ह्विप के तौर पर सदन में किसको मान्यता मिलेगी। वह अधिकार अजित पावर को मिलेगा या फिर एनसीपी के चुने गए नये नेता को? और इसका फैसला प्रोटेम स्पीकर करेगा। लिहाजा अगर वह बीजेपी के पक्ष का हुआ तो फिर अजित पवार को ही चीफ ह्विप बनाए रख सकता है।

और चूंकि चीफ ह्विप के निर्देशों के मुताबिक ही सदन में पार्टी के विधायकों को वोट करना होता है और उसके निर्देशों का पालन न करने वाले विधायकों की सदस्यता जा सकती है। हालांकि यहां भी एक पेंच है। दरअसल अगर दो तिहाई से ज्यादा विधायक ह्विप का उल्लंघन करते हैं तो वे दलविरोधी कानून के दायरे में नहीं आएंगे। और उन्हें अपनी नयी पार्टी बनाने का अधिकार मिल जाएगा और फिर उनकी सदस्यता भी नहीं जाएगी।

अभी तक जो रणनीति बीजेपी और अजित पवार के गुट की है उसमें लगता है कि वह इसी दिशा में काम कर रही है। क्योंकि कल एकाएक अजित पवार सामने आये और उन्होंने ट्वीट कर कहा कि बीजेपी और एनसीपी की सरकार स्थायी है और वह अपने पांच साल के कार्यकाल को पूरा करेगी। साथ ही उन्होंने कहा कि वह एनसीपी में बने हुए हैं और शरद पवार ही उनके नेता हैं। इसका मतलब यह है कि वह अभी भी एनसीपी के नेता के तौर पर सदन में अपनी मौजूदगी दर्ज करेंगे और उसके जरिये होने वाले लाभ को लेने की कोशिश करेंगे।

बहरहाल शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस की आज पूरी कोशिश होगी कि सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट से नवगठित सरकार को असंवैधानिक करार दिलवाए। ऐसा न होने पर फ्लोर पर टेस्ट की स्थिति में वह प्रोटेम स्पीकर से लेकर एनसीपी के विधायक दल के नेता के तौर पर मान्यता के सवाल को अदालत से हल करवाने की कोशिश कर सकती है।

आपको बता दें कि उत्तराखंड में हरीश रावत की सरकार को बहुमत साबित करने के मामले में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने रजिस्ट्रार को सदन के भीतर पर्यवेक्षक के तौर पर नियुक्त किया था। यहां भी सुप्रीम कोर्ट से इस तरह की कोई व्यवस्था हो सकती है।

बहरहाल महाराष्ट्र के सत्ता की बाजी अब उतनी आसान नहीं रही। न ही सत्ता पक्ष के लिए और न ही सत्ता की दावेदारी करने वाले विपक्ष के लिए। लिहाजा आखिर में ऊंट किस करवट बैठेगा यह सब कुछ भविष्य के गर्भ में है।

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