निश्चित तौर पर यह बात बेहद चिंताजनक है कि मुंबई में 32 हजार से ज्यादा कोरोना पॉजिटिव मरीज पाए गए हैं और पूरे महाराष्ट्र में यह संख्या 50 हजार से ज्यादा है। लेकिन उतनी ही चिंताजनक है वहां की महा विकास अघाड़ी सरकार को गिराए जाने की मांग और कोशिशें। अगर एक वायरस को लेकर अमेरिका और चीन के बीच शुरू हुआ शीतयुद्ध निंदनीय है तो अपने ही देश में दो पार्टियों और राजनीतिक गठबंधनों के बीच की खींचतान भी वैसी ही निंदनीय है।
भारत जो अपनी महान संस्कृति और लोकतांत्रिक परंपरा पर गर्व करता है वहां की राजनीति उसकी ओर पीठ करके काम करती है। भारत दावा करता है कि वह महामारी से लड़ने में दुनिया के सामने आदर्श स्थापित कर रहा है लेकिन वह नीदरलैंड के उस उदाहरण को भूल जाता है जहां के राष्ट्र प्रमुख ने विपक्ष के एक सांसद को स्वास्थ्य सेवा का मंत्री बना दिया। यह बात शीशे की तरह साफ है कि मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार गिराने और अपनी सरकार बनाने के लिए ही केंद्र सरकार ने कोरोना के बारे में सतर्कता बरतने और तालाबंदी करने में देरी की। इसी कारण मध्यप्रदेश के इंदौर और भोपाल में गंभीर स्थिति बनी।
वरना तालाबंदी का एलान मार्च में ही कर दिया जाना था। अब उसी कोरोना को बहाना बनाकर महाराष्ट्र में भाजपा शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की महा विकास अघाड़ी की सरकार गिराने में लगी हुई है। पिछले एक हफ्ते से सोशल डिस्टेंसिंग की अनदेखी करते हुए राजभवन भाजपा नेताओं के आवागमन और राजनीतिक हलचलों का केंद्र बना हुआ है। वहां बिना मास्क लगाए भाजपा नेताओं की आवाजाही और नाश्ता किया जाना आम है। राज्यपाल महोदय बिना संक्रमण का ध्यान रखे लोगों से धड़ल्ले से मिल रहे हैं।
राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मिलकर निकलने के बाद ही भाजपा नेता नारायण राणे ने मांग की कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाए। हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस ने इसके बाद अपनी पार्टी की छवि को सुधारने के लिए यह बयान दे डाला कि वे सरकार गिराने का प्रयास नहीं कर रहे हैं लेकिन यह सरकार तो अपने ही अंतर्विरोधों से गिर जाएगी। फडनवीस और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष चंद्रकांत बच्चू पाटील लगातार उद्धव ठाकरे सरकार के खिलाफ बयान दे रहे हैं।
लेकिन इन्हीं बयानों के बीच जब शरद पवार राज्यपाल से मुलाकात करते हैं और कांग्रेस नेता राहुल गांधी कह देते हैं कि उनकी पार्टी इस गठबंधन सरकार में निर्णायक स्थिति में नहीं है तो गोदी मीडिया उन खबरों को तिल का ताड़ बना देता है। इस बीच, राज्यपाल महोदय कभी विश्वविद्यालय की परीक्षाएं कराने के लिए चिट्ठी लिख रहे हैं तो किसी और मामले को लेकर। बिना यह सोचे कि विद्यार्थियों को एक साथ इकट्ठा करने के बाद वहां संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है।
गोदी मीडिया ने तुरंत मुंबई की तुलना मास्को और न्यूयार्क से करनी शुरू कर दी और मुंबई को न्यूयार्क से भी ज्यादा भयावह स्थिति का शहर बताना शुरू कर दिया। अगर यही काम कोई निष्पक्ष मीडिया कर रहा होता तो उसे कब का देशद्रोही घोषित कर दिया गया होता। गुजरात में वैसा हो भी चुका है जहां विजय रूपानी के नेतृत्व को बदलने की चर्चाओं की खबर चलाने वाले संपादक को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया।
शरद पवार और उद्धव ठाकरे के बीच मतभेद की चर्चाएं हैं लेकिन वह मतभेद सरकार चलाने और गिराने को लेकर नहीं है। वह मतभेद काम के तरीके को लेकर है। बताया जाता है कि उद्धव ठाकरे चाहते हैं कि 31 मई को जब लॉकडाउन यानी तालाबंदी का चौथा चरण पूरा हो तो पांचवां चरण भी चलाया जाए। जबकि शरद पवार चाहते हैं कि औद्योगिक गतिविधियां शुरू की जाएं। इस बीच कांग्रेस नेता राहुल गांधी के एक बयान को लेकर ज़रूर गलतफहमी बनी लेकिन उन्होंने आदित्य ठाकरे से बात करके उसे दूर करने की कोशिश की।
दरअसल मुंबई में बढ़ते कोरोना संक्रमण को समझने के लिए वहां की संरचना और टेस्टिंग के प्रयासों को भी समझना होगा। वहां धारावी, मालेगांव, भिवंडी, गोवंडी, नानखुर्द में ज्यादा मामले निकल रहे हैं। यह इलाके सघन बसे हुए हैं और यहां सफाई और सोशल डिस्टेंसिंग का इंतजाम कर पाना नामुमकिन है। इन इलाकों से ज्यादा मामले इसलिए निकले हैं कि सरकार रोजाना चार हजार से ज्यादा टेस्ट कर रही है।
इसके बावजूद यह आश्वस्त करने वाली बात है कि जहां पहले कोरोना के मामले तीन दिन में दोगुना हो रहे थे वहीं अब वे 14 दिन में दोगुना हो रहे हैं। कुछ दिन पहले केंद्र सरकार की टीम आई थी जिसके साथ वहां के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने धारावी और भिवंडी जैसे इलाकों का दौरा किया। केंद्रीय टीम ने सरकार के कामकाज की तारीफ भी की। अब तो सरकार ने दस हजार बिस्तरों का अस्पताल तैयार करना शुरू कर दिया है इसलिए वह कोरोना से लड़ने में पूरी तरह कमर कस चुकी है। महाराष्ट्र सरकार ने केरल से भी विशेषज्ञ बुलवाए हैं।
केंद्र सरकार और महाराष्ट्र सरकार के बीच पहले तो उद्धव ठाकरे की सदन की सदस्यता को लेकर खींचतान थी। जब किसी तरह उद्धव ठाकरे विधान परिषद के सदस्य बन गए तो अब कोरोना के बहाने इस सरकार को कमजोर करने की कोशिशें शुरू हो गईं। यह कोशिश गुजरात की बिगड़ी हुई स्थिति और पूरे देश में लॉकडाउन की बदइंतजामी से ध्यान बंटाने का तरीका भी हो सकता है और यह भी हो सकता है कि भाजपा महाराष्ट्र की सत्ता गंवाने से ज्यादा ही बेचैन महसूस कर रही हो और उसे महामारी एक बढ़िया अवसर लग रहा हो। महाराष्ट्र सरकार प्रवासी मजदूरों को उनके प्रदेशों में भेजने के लिए 80 ट्रेनों की मांग कर रही है तो केंद्र सरकार उन्हें 40 ट्रेनें दे रही है। इस मामले पर केंद्रीय रेल मंत्री पीयूष गोयल और राज्य सरकार के बीच ट्विटर पर वाद-विवाद भी चला है।
इस बीच, पुलिस वालों में लगातार बढ़ते संक्रमण और उनकी मौतों के चलते यह भी अफवाहें चल रही हैं कि मुंबई और पुणे को सेना के हवाले किया जाएगा। हालांकि राज्य सरकार ने इसका खंडन किया है और राज्य सरकार की आलोचना और झूठी खबरों को लेकर कानूनन सख्ती करने का रुख अपनाया है। इसके बावजूद हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि 1897 में जब प्लेग फैला था तब भी बंबई और पुणे सबसे बुरी तरह प्रभावित हुए थे। तब अतिरिक्त सख्ती से मामला बनने की बजाय बिगड़ा ही था। आज भी अस्थिरता और सख्ती से मामला बनने के बजाय बिगड़ सकता है। इसलिए केंद्र सरकार और भाजपा को चाहिए कि पहले बीमारी से लड़ लिया जाए तब विपक्षी दल से लड़ा जाए। क्योंकि अभी तो दुश्मन कोरोना है न कि विपक्षी दल।
(अरुण कुमार त्रिपाठी वरिष्ठ पत्रकार हैं। आप वर्धा स्थित हिंदी विश्वविद्यालय और भोपाल के माखन लाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय में अध्यापन का भी काम कर चुके हैं।)