Saturday, April 27, 2024

झारखंड:”जान दे देंगे लेकिन जंगल नहीं कटने देंगे” नारे के साथ महिलाओं ने 30 हजार पेड़ों को काटने नहीं दिया

झारखंड। रामगढ़ जिला अंतर्गत कुजू ओपी क्षेत्र के बूढ़ाखाप में आलोक स्टील प्लांट फैक्ट्री के विस्तारीकरण के लिए कंपनी वन भूमि का 22.92 एकड़ जमीन अधिग्रहण करने वाली है। जिसके लिए 25 से 30 हजार पेड़ काटे जाएंगे। जिसका विराेध क्षेत्र के लोगों ने शुरू कर दिया है। इस विरोध ने 50 साल पहले के चिपको आंदोलन की याद ताजा कर दी। दरअसल पेड़ काटने के विरोध में महिलाएं और बच्चे पेड़ों से लिपट गये और “जान दे देंगे लेकिन जंगल नहीं कटने देंगे” का नारा लगाने लगे।

पहले तो पुलिस ने धौंस दिखाई लेकिन ग्रामीणों के बढ़ते विरोध को देखते हुए ढीली पड़ गई। बूढ़ाखाप में स्थित आलोक स्टील इंडस्ट्रीज नामक फैक्ट्री के प्रबंधन ने वन भूमि में प्रदूषण नियंत्रण संयंत्र की स्थापना के नाम पर एक योजना बनाई है और इसके लिए उसने वन विभाग को प्रस्ताव सौंपा है। इस प्रस्ताव के आलोक में वन विभाग ने पिछले दिनों पेड़ों की गिनती के लिए एक टीम भेजी।

चूंकि फैक्ट्री के पास वन भूमि और ग्रामीणों की जमीन है। इसलिए जैसे ही पुलिस बल के साथ गयी टीम ने पेड़ों की गिनती शुरू की, पूरे इलाके में इसकी खबर फैल गई। जिसके बाद देखते-देखते सैकड़ों लोग जुट आए और वन विभाग एवं फैक्ट्री प्रबंधन के खिलाफ नारे लगाने लगे। महिलाएं पेड़ों से चिपक गईं और वन विभाग की टीम को इसकी गिनती करने से रोक दिया। 

पेड़ों से चिपकी महिलाएं

ग्रामीणों का आरोप है कि इस फैक्ट्री के प्रदूषण से वे लोग पहले से ही परेशान हैं। फैक्ट्री से निकलने वाले धुएं और गुबार से फसलें खराब हो रही हैं। गांव में कई तरह की बीमारियां फैल रही हैं। अब इसके विस्तार के लिए जंगल काटने की तैयारी हो रही है, जिसे हम किसी हाल में नहीं कटने देंगे। 

इसके विरोध में बूढ़ाखाप की महिलाएं पेड़ से लिपट कर विरोध दर्ज कराते हुए वे कड़ी धूप में भी दिन भर पेड़ों की निगरानी कर रही हैं। महिलाओंं ने पेड़ों में रक्षा सूत्र बांधकर उन्हें बचाने का संकल्प भी लिया है। पेड़ों को बचाने के इस प्रक्रिया में महिलाओं और पुलिस और वन विभाग के कर्मियों के बीच नोकझोंक भी हो चुकी है।

महिलाओं के इस विरोध का परिणाम यह रहा कि पेड़ों की गिनती का काम फिलहाल बंद है। महिलाओं का कहना है कि प्रदूषण से पेड़-पौधे मर रहे हैं। फैक्ट्री के जहरीले धुएं से वन क्षेत्र भी प्रभावित हो रहा है। प्रदूषण के कारण हमारी जमीनें भी बंजर हो रही हैं। फैक्ट्री की चिमनी से निकल रहे धुएं के कारण यहां के लोग पहले से ही परेशान हैं।

फैक्ट्री से निकलता जहरीला धुआं

ऐसे में अगर इन पेड़ों को काट दिया गया, तो आने वाले समय में यहां की स्थिति और भी खराब हो जाएगी। महिलाओं ने कहा कि कुछ ही दिन पहले 5 जून को पूरे प्रदेश में विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया। इस मौके पर हमने पेड़ों के संरक्षण का संकल्प लिया है। तो क्या पर्यावरण दिवस मनाना केवल औपचारिकता भर है? महिलाओं ने कहा कि कुछ भी हाे जाए हम इन पेड़ों को काटने नहीं देंगे।

रामगढ़ के डीएफओ नीतीश कुमार ने बताया कि आलोक स्टील ने ऑनलाइन आवेदन दिया है, जिसमें आवश्यक प्रक्रिया अपनाई जा रही है। प्रदूषण कम करने के लिए विस्तारित जमीन पर पुराने की जगह एडवांस उपकरण लगाने की बात है। ऐसे में फॉरेस्ट क्लीयरेंस से पहले की प्रक्रिया में पेड़ों की गिनती की जाती है।

आज से 50 साल पहले एकीकृत उत्तर प्रदेश (वर्तमान उत्तराखण्ड) में पेड़ों की कटाई के विरोध में महिलाओं ने पेड़ों से चिपककर उनकी कटाई को रोका दिया था जिसे चिपको आंदोलन के नाम से जाना गया। दरअसल 1974 में वन विभाग ने जोशीमठ ब्लॉक के रैणी गांव के पास पेंग मुरेंडा जंगल में पेड़ों को काटने के लिए चुना था। यह इलाका 1970 की भीषण अलकनंदा बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हुआ था।

बच्चों ने भी पेड़ काटने से रोका

ऋषिकेश के एक ठेकेदार जगमोहन भल्ला को 4.7 लाख रुपये में 680 हेक्टेयर से अधिक जंगल की नीलामी की गई थी। लेकिन रैणी गांव की महिलाओं ने महिला मंडल की प्रधान गौरा देवी के नेतृत्व में 26 मार्च 1974 को ठेकेदार के मजदूरों को वन से बाहर निकाल दिया। वे वन के पेड़ों से चिपककर तब तक खड़ी रहीं जबतक ठेकेदार ने पेड़ों कटाई नहीं रोक दी। इसे चिपको आंदोलन का नाम दिया गया।

महिलाओं की ओर से यह पहला आन्दोलन था जिसमें उनके साथ पुरुष आसपास नहीं थे। रैणी की घटना ने राज्य सरकार को दिल्ली के वनस्पतिशास्त्री वीरेंद्र कुमार की अध्यक्षता में नौ सदस्यीय समिति गठित करने के लिए मजबूर किया और जिसके सदस्यों में सरकारी अधिकारी शामिल थे। इसमें स्थानीय विधायक, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के गोविंद सिंह नेगी, भट्ट और जोशीमठ के ब्लॉक प्रमुख गोविंद सिंह रावत शामिल थे। 

बस यही नजारा पिछले दिनों झारखंड के बूढ़ाखाप में भी देखने को मिला। जहां महिलाओं के साथ बच्चियां भी पेड़ों से लिपटकर कर उसे काटने से रोकती देखी गईं। फिलहाल पेड़ों की कटाई रोक दी गई है लेकिन अब सवाल यह उठता है कि क्या पेड़ों की कटाई नहीं होगी? सूत्र बताते हैं कि इस विरोध में जिला या राज्य का कोई बड़ा चेहरा यानी कोई नेतृत्व सामने नहीं आया है। जिससे जाहिर है कि वनों की कटाई पर लगा ग्रहण रूका नहीं है।

(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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