फेसबुक के बाद ह्वाट्सएप भी बीजेपी की जेब में!

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(फेसबुक का बीजेपी के साथ रिश्तों का गठजोड़ सामने आने के बाद अब बारी ह्वाट्सएप की है। ह्वाट्सएप के इंडिया इंचार्ज शिवनाथ ठुकराल 2014 में बीजेपी के  चुनाव अभियान का हिस्सा रहे हैं। आपको बता दें कि ह्वाट्सएप का मालिकाना भी फेसबुक के पास ही है। ह्वाट्सएप के साथ बीजेपी के इस रिश्ते पर टाइम मैगजीन ने एक खबर प्रकाशित की है। हिंदी में अनुवादित उस खबर को नीचे दिया जा रहा है-संपादक)

नई दिल्ली। जुलाई 2019 में वाच डॉग ग्रुप ‘आवाज’ में काम करने वाली अलाफिया जोएब भारत में कार्यरत फेसबुक कर्मचारियों के साथ उन 180 पोस्टों के बारे में बात कर रही थीं जिनके बारे में ‘आवाज’ का कहना था कि वे फेसबुक के हेट स्पीच के नियमों का उल्लंघन करती हैं। लेकिन घंटे भर तक चली इस बैठक के बीच में ही फेसबुक के वरिष्ठ कर्मचारी शिवनाथ ठुकराल खड़े हुए और यह कहते हुए कमरे के बाहर चले गए कि उन्हें दूसरे कुछ महत्वपूर्ण काम करने हैं। ऐसा जोएब का कहना है।

उन पोस्टों में असम के वकील और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी के लिए काम करने वाले शिलादित्य देव की एक पोस्ट थी। इसमें उन्होंने एक न्यूज़ रिपोर्ट शेयर की थी जिसमें एक मुस्लिम शख्स एक लड़की को घसीट कर ले गया था और फिर उसके साथ बलात्कार किया था। और इसके साथ ही देव ने उसमें अपनी टिप्पणी भी की थी: “इसी तरह से 2019 में बांग्लादेशी मुस्लिम हमारे (स्थानीय लोगों) को निशाना बनाते हैं।“  लेकिन इसे हटाने की जगह फेसबुक तकरीबन एक साल तक उस पोस्ट को बनाए रखा जब तक कि टाइम ने 21 अगस्त को फेसबुक से उस पर बात नहीं की।

टाइम को दिए गए बयान में फेसबुक ने कहा कि “इस पर पहली नजर तब गयी जब ‘आवाज’ ने पहली बार इसको हम लोगों को बताया और हमारा रिकॉर्ड बताता है कि हमने इसको हेट स्पीच उल्लंघन के तौर पर चिन्हित किया था।” “शुरुआती रिव्यू के बाद उसे हटाने में हम नाकाम रहे जो हमारे पक्ष पर एक गलती है।”

उस समय ठुकराल भारत और दक्षिण एशिया के फेसबुक पालिसी निदेशक थे। भारत सरकार के साथ लॉबिंग करना उनकी नौकरी का हिस्सा था। फेसबुक के एक पूर्व कर्मचारी ने टाइम को बताया कि लेकिन इसके साथ ही ठुकराल उस बातचीत में भी शामिल होते थे जब नेताओं की पोस्ट को माडरेटर द्वारा हेट स्पीच करार दिया जाता था। फेसबुक ने इस बात को माना कि ठुकराल बैठक छोड़ कर चले गए थे। लेकिन उसका कहना है कि ऐसा भी नहीं था कि वह पूरी बैठक में मौजूद रहने वाले थे। वह केवल जोएब का परिचय कराने के लिए शामिल हुए थे क्योंकि पहले की नौकरी में उनकी टीम का हिस्सा होने के चलते वह जोएब को जानते थे।

फेसबुक ने बयान में कहा कि “शिवनाथ इसलिए नहीं छोड़े कि मुद्दा गंभीर नहीं था।” इसके साथ ही उसने इस बात को भी चिन्हित किया कि बैठक के दौरान पेश की गयी 180 पोस्टों में कंपनी ने 70 पर कार्रवाई की”।

सोशल मीडिया क्षेत्र के इस भीमकाय प्लेटफार्म की इस बात के लिए निगरानी और कड़ी हो गयी है कि वह अपनी हेट स्पीच नीतियों को कैसे लागू करता है। खास कर ऐसे समय में जब आरोपी मोदी की सत्ता रूढ़ पार्टी का कोई सदस्य हो। एक्टिविस्टों का कहना है कि फेसबुक पालिसी के कुछ कर्मचारी बीजेपी के बहुत ज्यादा करीब हैं। इसके साथ ही वे फेसबुक पर इस बात का आरोप लगाते हैं कि कंपनी सरकार के साथ अपने रिश्तों को हेट स्पीच को हटाने की अपनी नीति से आगे रखती है। खासकर मामले में जब सत्तारूढ़ पार्टी के नेता शामिल होते हैं। उदाहरण के लिए ठुकराल ने 2014 में बीजेपी के चुनाव अभियान का हिस्सा बन कर पार्टी नेतृत्व को सहयोग किया था। इस पूरे मामले का दस्तावेज टाइम के पास मौजूद है।

21 अगस्त के एक ब्लॉग पोस्ट में फेसबुक के भारत के मैनेजिंग डायरेक्टर अजीत मोहन ने इस आरोप को खारिज कर दिया कि कंपनी बीजेपी के पक्ष में काम करती है। उन्होंने लिखा कि “हम खुले, पारदर्शी और बिल्कुल निष्पक्ष हैं।” उन्होंने लिखा कि “विभिन्न राजनीतिक जुड़ावों और पृष्ठभूमियों से आने के बावजूद (अपने कर्मचारियों के बारे में) अपने संबंधित कर्तव्यों को अंजाम देते हुए बिल्कुल साफ-सुथरे और गैर पक्षपाती तरीके से हमारी नीतियों को व्याख्यायित करने का काम करते हैं। कंटेंट को फैलाने के बारे में फैसला एकतरफा तरीके से किसी एक व्यक्ति द्वारा नहीं लिया जाता है। इसके बजाय कंपनी के भीतर विभिन्न टीमों और समूहों के विचारों को भी शामिल किया जाता है।” 

फेसबुक ने यह ब्लॉग पोस्ट वाल स्ट्रीट जनरल द्वारा फेसबुक के मौजूदा और पूर्व कर्मचारियों के खिलाफ 14 अगस्त को लगाए गए इस आरोप के बाद प्रकाशित किया है जिसमें कहा गया था कि भारत में कंपनी की सबसे बड़ी नीति निर्धारक अधिकारी आंखी दास ने फेसबुक के दूसरे कर्मचारियों को उस समय पीछे धकेल दिया था जब वो बीजेपी के एक नेता पर ‘खतरनाक व्यक्ति’ का लेवेल लगाना चाहते थे और इसके साथ ही उसके इस बयान के बाद कि ‘मुस्लिम घुसपैठियों को गोली मार दी जानी चाहिए’, उसे प्लेटफार्म पर प्रतिबंधित कर देना चाहते थे।

दास ने उन्हें तर्क दिया था कि राज्य के विधायक टी राजा सिंह को दंडित करने से भारत में फेसबुक के व्यवसाय की संभावनाओं को चोट पहुंचेगी। जैसा कि जरनल ने रिपोर्ट किया था। (फेसबुक ने कहा कि सिंह को प्रतिबंधित न किए जाने के पीछे दास का दखल केवल अकेला कारण नहीं था और यह कि इस बात पर अभी भी फैसला होना बाकी है कि क्या प्रतिबंध जरूरी था।)

और वो व्यावसायिक संभावनाएं बहुत बड़ी हैं। भारत फेसबुक का सबसे बड़ा बाजार है। तकरीबन 32 करोड़ 80 लाख लोग फेसबुक का इस्तेमाल कर रहे हैं। फेसबुक की मैसेजिंग सर्विस ह्वाट्सएप का तकरीबन 40 करोड़ लोग इस्तेमाल करते हैं। इस तरह से भारत में इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले 50 करोड़ 30 लाख का यह एक बड़ा हिस्सा हो जाता है। ये सभी प्लेटफार्म भारतीय राजनीति के लिए बेहद महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं। 2014 चुनाव के बाद दास ने एक संपादकीय लेख लिखा था जिसमें उन्होंने कहा था कि मोदी इसलिए जीते थे क्योंकि उन्होंने अभियान के दौरान फेसबुक को काफी तवज्जो दी थी।

लेकिन फेसबुक और ह्वाट्सएप को हेट स्पीच और झूठी सूचानाएं भी फैलाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इन दोनों के बारे में कहा जाता है कि भारत में बढ़ते सांप्रदायिक तनाव के बीच उनके माध्यम से अल्पसंख्यक समूहों पर जानलेवा हमले किए जाते हैं- ऐसा कंपनी द्वारा लगातार उनको कम करने के प्रयासों के बावजूद होता है। फरवरी में बीजेपी नेता कपिल मिश्रा के भाषण का एक वीडियो फेसबुक पर अपलोड किया गया था जिसमें उन्होंने पुलिस को बताया कि दिल्ली में एक सड़क को कब्जाए मुसलमानों को वो अगर नहीं हटाते हैं तो उनके समर्थक खुद इस काम को कर देंगे। उसके कुछ ही घंटों के भीतर हिंसक दंगे शुरू हो गए थे। (इस केस में फेसबुक इस बात को लेकर निश्चित था कि वीडियो हिंसा भड़काने के नियमों का उल्लंघन करता है और उसे हटा दिया गया था।)

ह्वाट्सएप का भी इस्तेमाल भारत में इस तरह की जानलेवा चीजों के लिए किया जाता है उदाहरण के लिए ऐसा गो सेवकों द्वारा किया गया था। जिनमें गायों को मारने का आरोप लगाकर हिंदुओं की भीड़ मुसलमानों और दलितों पर हमले करती है। ह्यूमन राइट्स वाच के मुताबिक मई, 2015 से दिसंबर, 2018 के बीच गोरक्षकों द्वारा कम से कम 44 लोगों की हत्या कर दी गयी थी। मरने वालों में सबसे ज्यादा मुस्लिम थे। गो रक्षकों द्वारा बहुत सारी हत्याएं ह्वाट्सएप द्वारा उड़ाई गई अफवाहों के बाद हुईं। लिंचिंग और पिटाई के वीडियो अक्सर इस ऐप के जरिये शेयर किए जाते हैं।

टाइम को इस बात की जानकारी मिली है कि फेसबुक ने अपने एक प्रयास के तहत एक स्वतंत्र रिपोर्ट बनाने की जिम्मेदारी सौंपी है जो इस बात का पता लगाएगी कि भारत में हेट स्पीच को फैलाने और हिंसा को भड़काने में उसकी क्या भूमिका है। साथ ही उसका मानवाधिकारों पर क्या प्रभाव पड़ता है। बताया जा रहा है कि यह काम डब्ल्यूएसजे की सामने आयी रिपोर्ट के पहले ही शुरू कर दिया गया था। इसको एक अमेरिकी कंपनी फोली होग द्वारा संचालित किया जा रहा है।

इसमें फेसबुक के वरिष्ठ कर्मचारियों के साथ ही भारत में सिविल सोसाइटी के सदस्यों का साक्षात्कार भी शामिल होगा। ऐसा फेसबुक से जुड़े तीन कर्मचारियों ने टाइम को बताया। इसके साथ ही उससे संबंधित ई-मेल भी उसे दिखाए गए। (इसी तरह की एक रिपोर्ट 2018 में म्यांमार में भी जारी की गयी थी जिसमें रोहिंग्या नरसंहार में हेट स्पीच के सहयोग को रोक पाने में फेसबुक पूरी तरह से नाकाम रहा था।) हालांकि फेसबुक ने रिपोर्ट की पुष्टि करने से इंकार कर दिया।

लेकिन ऐसे एक्टिविस्ट जो हिंदू राष्ट्रवादियों की हेट स्पीच पर वर्षों से निगरानी और रिपोर्टिंग करते रहे हैं, ने टाइम को बताया कि फेसबुक बीजेपी के सदस्यों और समर्थकों की पोस्ट की पुलिसिंग करने से बचता रहा है क्योंकि यह उस सरकार से लड़ाई मोल नहीं लेना चाहता है जो सबसे बड़े बाजार को नियंत्रित करती है। और जिस तरह से कंपनी का ढांचा तैयार किया गया है वह इस समस्या को और बढ़ा देता है। विश्लेषकों और पूर्व कर्मचारियों का कहना है कि हेट स्पीच के लिए नेताओं को दंडित किया जाए या नहीं इस फैसले को लेने की जिम्मेदारी उन्हीं को सौंपी गयी है जिनको सरकार के साथ रिश्तों को भी मैनेज करना है।

फेसबुक के पूर्व सिक्योरिटी आफिसर अलेक्स स्टैमॉस का कहना है कि “फेसबुक में बुनियादी समस्या यह है कि एक ही पालिसी आर्गेनाइजेशन को प्लेटफार्म के नियमों की रक्षा करने और सरकार को खुश रखने दोनों की जिम्मेदारी सौंपी गयी है।” उन्होंने यह बात मई में एक ट्वीट के जरिये कही थी। “स्थानीय पॉलिसी हेड की आमतौर पर सत्तारूढ़ दलों द्वारा खिंचाई की जाती है। और बहुत कम बार ऐसा हो पाता है जब वो स्थानीय समूहों, धार्मिक समुदायों या फिर जातियों को नुकसान से बचा पाता हो। यह स्वाभाविक तौर पर फैसले को ताकतवर के पक्ष में मोड़ देता है।” 

कुछ एक्टिविस्ट फेसबुक इंडिया टीम की पॉलिसी से इतने निराश हो गए हैं कि अब उन्होंने हेट स्पीच की रिपोर्ट करना ही बंद कर दिया है। और ऐसी पोस्ट देखकर वो आगे बढ़ जाते हैं। उस वीडियो कॉल के बाद जिसमें ठुकराल वाकआउट कर गए थे ‘आवाज’ ने हेट स्पीच के संदर्भ में सीधे कैलिफ के मेनलो पार्क में स्थित फेसबुक कंपनी के हेडक्वार्टर में रिपोर्ट करने का फैसला किया। जोएब का कहना है कि “हमने पाया कि फेसबुक इंडिया का रुख बिल्कुल लापरवाही भरा और अनिच्छुक दिखा।” जोएब उसके बाद से ‘आवाज’ भी छोड़ चुकी हैं।

एक दूसरा ग्रुप जो भारत में अल्पसंख्यकों के खिलाफ हेट स्पीच की रिपोर्टिंग फेसबुक को करता है जिसने अपने स्टाफ के लोगों की सुरक्षा के लिहाज से अपना नाम सार्वजनिक नहीं करना चाहा, ने कहा कि वह इस काम को 2018 से कर रहा है। एक बयान में फेसबुक ने माना कि भारत में नियमित रूप से हेट स्पीच को चिन्हित करने वाले कुछ समूह हैं जो फेसबुक हेडक्वार्टर के सीधे संपर्क में हैं। लेकिन इसके साथ ही उसका कहना है कि इससे नियमों और निर्धारकों में कोई तब्दीली नहीं होने जा रही है।

जर्नल के खुलासे के बाद भारत राजनीति में तूफान खड़ा हो गया। विपक्षी दलों ने मोदी की पार्टी के प्रति फेसबुक के पक्षपाती रवैये की आधिकारिक तौर पर जांच की मांग शुरू कर दी। और इस खबर से कंपनी के भीतर भी कलह पैदा हो गयी। एक खुले पत्र में फेसबुक के कर्मचारियों ने अपने एग्जीक्यूटिव से मुस्लिम विरोधी कट्टरपन को खारिज करने की घोषणा करने का आह्वान किया। साथ ही प्लेटफार्म पर हेट स्पीच के नियमों को सतत तौर पर कैसे लागू किया जाए उसको सुनिश्चित करने के लिए कुछ और करने की जरूरत बतायी। ऐसा रायटर्स का कहना था। पत्र जारी करने वालों ने आरोप लगाया था कि भारत पॉलिटी टीम में एक भी मुस्लिम कर्मचारी नहीं है। टाइम के सवालों के जवाब में फेसबुक ने कहा कि कानूनी रूप से इस तरह के किसी डाटा को इकट्ठा करने की मनाही है।

उच्च पदों पर फेसबुक के मित्र

हालांकि कंपनियों के मामले में यह आम बात है कि वो लाबिंग के लिए उनको हायर करती हैं जिनके राजनीतिक दलों से रिश्ते होते हैं। एक्टिविस्टों का कहना है कि फेसबुक के इंडिया पॉलिसी टीम के स्टाफ का इतिहास और इसके साथ ही सरकार को खुश करने के लिए दिए गए इंसेंटिव, जब नेताओं के हेट स्पीच की पुलिसिंग की बारी आती है तो एक तरह से हितों की टकराहट को जन्म दे देते हैं। फेसबुक ज्वाइन करने से पहले ठुकराल बीजेपी के लिए काम कर चुके थे। उसके बावजूद उनको इस नीतिगत फैसले का हिस्सा बना लिया गया जिसमें उनको राजनेताओं की पोस्ट के साथ डील करने के तरीकों के बारे में तय करना था। और यह जिम्मेदारी 2019 के चुनाव के दौरान दी गयी थी। उनके फेसबुक लाइक में एक फेसबुक पेज ‘आई सपोर्ट नरेंद्र मोदी’ भी शामिल है।

फेसबुक के पूर्व कर्मचारियों का मानना है कि 2017 में ठुकराल को हायर ही इसी वजह से किया गया था कि उनकी सत्तारूढ़ पार्टी से नजदीकी है। 2014 के चुनावों को सफलता पूर्वक जीतने के बीजेपी के राष्ट्रीय अभियान के लिए, जिसमें संयोग से वह जीत भी गयी थी, 2013 में ही ठुकराल को एक बीजेपी पक्षधर वेबसाइट और फेसबुक पेज को चलाने तथा वरिष्ठ पार्टी पदाधिकारियों को सहयोग करने के लिए रख लिया गया था। ‘मेरा भरोसा’ नाम से जानी जाने वाली साइट इवेंट्स को आयोजित करती थी। इसमें एक ऐसा प्रोजेक्ट भी शामिल था जिसमें छात्रों को वोट के लिए साइन करना था। ऐसा इसमें शामिल लोगों से इंटरव्यू के आधार पर और दस्तावेजों को देखने के बाद टाइम ने कहा है।

‘मेरा भरोसा’ के लिए काम करने वाले एक स्वयंसेवक ने टाइम को बताया कि उसको इस बात के बारे में कोई जानकारी नहीं थी कि इसे बीजेपी के सहयोग से चलाया जा रहा है। और उसको लगता था कि वह एक ऐसे वोटर रजिस्ट्रेशन अभियान के लिए काम कर रहा है जो बिल्कुल निष्पक्ष है। दस्तावेजों के मुताबिक यह एक पूरी सोची-समझी रणनीति थी जिसके तहत संगठन के असली मंसूबों को छुपाए रखना था। 2014 की शुरुआत में साइट ने अपना नाम बदलकर ‘मोदी भरोसा’ कर दिया। और उसके साथ ही खुले तौर पर बीजेपी की पक्षधर वाली पोस्टों को शेयर करना शुरू कर दिया। यह बात साफ नहीं है कि क्या ठुकराल उस समय भी साइट के साथ काम कर रहे थे।

टाइम को दिए गए एक बयान में फेसबुक ने इस बात को माना है कि ठुकराल ने ‘मेरा भरोसा’ की तरफ से काम किया था। लेकिन इसके साथ ही उनके पिछले कामों से किसी भी तरह के हितों की टकराहट का मामला सामने नहीं आया। क्योंकि कंटेंट को हटाने के लिए होने वाले अहम फैसलों में ढेर सारे लोग शामिल रहते थे। टाइम को दिए अपने बयान के एक हिस्से में फेसबुक ने कहा कि “हम इस बात को जानते हैं कि हमारे कुछ कर्मचारी इतिहास में भारत और दुनिया के अलग हिस्सों में कुछ अभियानों को सहयोग दिए हैं।” “हमारी समझ यह है कि ठुकराल ने उस समय खुद को भारत के भीतर शासन की थीम पर केंद्रित करने के लिए पेश किया था और वह उस कंटेंट से संबंधित नहीं था जिसको लेकर आप सवाल उठा रहे हैं।”

अब ठुकराल के पास उससे भी बड़ी नौकरी है। मार्च, 2020 में उन्हें फेसबुक की नौकरी से प्रमोट कर ह्वाट्सएप इंडिया पब्लिक पॉलिसी का निदेशक बना दिया गया है। न्यू देल्ही टेक पॉलिसी विशेषज्ञों ने टाइम को बताया कि इस भूमिका में ठुकराल की विभिन्न जिम्मेदारियों में सबसे प्रमुख मोदी सरकार के साथ रिश्तों का प्रबंधन है। यह बेहद महत्वपूर्ण काम है। क्योंकि फेसबुक इस मैसेजिंग ऐप को एक डिजिटल पेमेंट प्रोसेसर में तब्दील करना चाहता है। इसके सफल हो जाने से कंपनी को अरबों रुपये का फायदा होगा।

अप्रैल में फेसबुक ने घोषणा की कि रिलायंस जीओ में 10 फीसदी हिस्सेदारी के लिए 5 अरब 70 करोड़ रुपये देगा। यह भारत की सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी है जिसके मालिक मुकेश अंबानी हैं। इन्वेंस्टर्स के साथ मई में एक बातचीत में फेसबुक के सीईओ जुकरबर्ग ने पूरा उत्साहित होकर व्यवसायिक संभावनाओं के बारे में बताया। ह्वाट्सएप पे को जिओ के बड़े नेटवर्क से जोड़ने की अपनी योजना के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि “ह्वाट्सएप के साथ भारत में इतने ज्यादा लोगों के जुड़ने के बाद हम सोच रहे हैं कि लोगों के बेहतर वाणिज्यिक अनुभव मुहैया कराने के लिहाज से हमारे लिए यह सबसे बेहतर मौका है। जिसके जरिये छोटे व्यवसायों और अर्थव्यवस्था को सहयोग करते हुए सच में अपने लिए एक बड़ा व्यवसाय खड़ा करने का मौका है।”  “इसीलिए मैं सोचता हूं कि भारत में बेहद गहराई से निवेश करना सच में हमारे लिए बेहद मायने रखता है”।

लेकिन पेमेंट एप्लिकेशन के तौर पर भारत में ह्वाट्सएप का भविष्य नेशनल पेमेंट रेगुलेटर की संस्तुति पर निर्भर है, जो अभी भी पेंडिंग है। 2016 में एक नेशनल रेगुलेटर द्वारा फेसबुक के भारत में विस्तार के रास्ते में उस समय टांग अड़ा दिया गया था जब देश के टोलीकाम वाचडॉग ने कहा कि फेसबुक का कुछ साइट को केवल मुफ्त में इंटरनेट एक्सेस मुहैया कराने की योजना जिसमें वह खुद भी शामिल है, नेट न्यूट्रलिटी के नियमों का उल्लंघन है। अपनी नई भूमिका में ठुकराल की सर्वप्रमुख प्राथमिकताओं में से एक इस बात को सुनिश्चित करना है कि उसी तरह की एक समस्या ह्वाट्सएप के लिए फेसबुक की बड़ी महत्वाकांक्षा को धराशाही न कर दे। 

कोई भी विदेशी कंपनी भारत में सरकार की बुरी नजर का हिस्सा नहीं बनना चाहती

हालांकि रेगुलेटर तकनीकी तौर पर स्वतंत्र है। विश्लेषणकर्ताओं का कहना है कि भारत के सबसे धनी शख्स के साथ फेसबुक का नया रिश्ता ह्वाट्सएप पे के लिए संस्तुति के रास्ते को बेहद आसान बना देगा। एक औद्योगिक विश्लेषक फर्म काउंटर प्वाइंट रिसर्च के उपाध्यक्ष नील शाह ने बताया कि “अंबानी के उनके पक्ष में होने के चलते अब फेसबुक को अप्रूवल पाना आसान हो जाएगा।”

बिलेनेयर राज के लेखक जेम्स क्रैबट्री ने कहा कि “भारत में कोई भी विदेशी कंपनी सरकार की बुरी किताब का हिस्सा नहीं बनना चाहती है।” उन्होंने आगे कहा कि “फेसबुक भी निश्चित तौर पर भारत सरकार के साथ बेहतर रिश्ता चाहेगा और उसको कोई चीज नाराज कर दे उसके बारे में वह दो बार सोचेगा।” 

इसके पहले भी भारत सरकार ने इस बात को दिखाया है कि उसे विदेश टेक फर्मों के सपने को ध्वस्त करने में कोई भय नहीं रहता। जुलाई में चीन के साथ झगड़े के बाद इसने टिकटॉक और वीचैट समेत दर्जनों चीनी ऐप को प्रतिबंधित कर दिया। क्रैबट्री ने कहा कि “भारत में डिजिटिल संरक्षणवाद की तरफ एक धीमी शुरुआत हो गयी है।” इसलिए फेसबुक के दिमाग के एक कोने में यह बात लगातार चल रही होगी कि वैसे भी सामान्य तौर पर और खासकर फेसबुक के मामले में सरकार विदेशी टेक कंपनियों के खिलाफ जा सकती है। खासकर तब जब उसको ऐसा लगता है कि महत्वपूर्ण नेताओं को दरकिनार किया जा रहा है।

याले स्कूल में एक रेजिडेंट फेलो चिन्मयी अरुण ने कहा कि “ कभी फेसबुक ने कहा था कि अपने प्लेटफार्म से हेट स्पीच को इजाजत देने में उसका कोई भी व्यावसायिक हित नहीं है।” उन्होंने कहा कि “अब जो भारत में होने जा रहा है वह इस बात का प्रमाण है कि यह बात पूरी तरह से सच नहीं है।”

फेसबुक का कहना है कि हेट स्पीच से लड़ने के लिए वह पूरी मेहनत कर रहा है। भारत के फेसबुक के मैनेजिंग डायरेक्टर अजीत मोहन ने 21 अगस्त के अपने ब्लाग में कहा कि “हम इस बात को साफ कर देना चाहते हैं कि हम किसी भी रूप में नफरत को खारिज करते हैं।” उन्होंने आगे कहा कि “हमने हटाया है और आगे भी भारत में सार्वजनिक शख्सियतों द्वारा पोस्ट किए गए कंटेट को हटाता रहूंगा अगर वे हमारे कम्युनिटी स्टैंडर्ड का उल्लंघन करते हैं।”

हेट स्पीच इस्तेमाल को रोकना फेसबुक के लिए अभी भी कठिन चुनौती बनी हुई है। जून में कर्मचारियों की एक बैठक में जुकरबर्ग ने दिल्ली दंगों से पहले दिए गए मिश्रा की फरवरी स्पीच को हाईलाइट किया था और यह काम उन्होंने बगैर उनका नाम लिए किया था। जुकरबर्ग ने उसे इस तरह की एक पोस्ट के उदाहरण के तौर पर पेश किया था जिसे तुरंत हटा दिया जाना चाहिए।

मिश्रा का असली वीडियो अपलोड होने के समय  ही हटा दिया गया था। वीडियो का एक दूसरा वर्जन जिसको 5600 लोग देख चुके थे और उसके साथ ही उसके समर्थन में टिप्पणियों की एक लंबी लिस्ट छह महीने तक आनलाइन बनी रही। जब तक कि टाइम ने अगस्त में फेसबुक को इसकी जानकारी नहीं दी।

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