मणिपुर से ग्राउंड रिपोर्ट-2: बंकरों के बीच तैयार ‘वार जोन’ और बीच में ‘नो मेंस लैंड’

Estimated read time 1 min read

चुराचांदपुर/इंफाल। जनचौक की टीम का इसके आगे का पड़ाव चुराचांदपुर का था जो कुकी वर्चस्व वाला इलाका है और लगातार खबरों में बना हुआ है। हम लोग अगले दिन वहां के लिए निकलने ही वाले थे कि सीपीएम के पूर्व राज्य सचिव शरत सलाम ने बताया कि दिल्ली से एक और टीम आयी है जिसमें कुछ पूर्व आईएएस अफसर हैं। लिहाजा जिस तरह की स्थितियां हैं उसमें उनके साथ जाना ठीक रहेगा। हम लोगों ने भी सोचा कि यह ठीक ही बात है लिहाजा हम सुबह उनके ठिकाने पर पहुंच गए। गेस्ट हाउस में पहुंचते ही देखने पर पता चला कि ये तो ‘कारवां-ए-मोहब्बत’ की टीम है। और उसमें रिटायर्ड आईएएस अफसर हर्ष मंदर के साथ ही एक्टिविस्ट जॉन दयाल भी मौजूद हैं। हम लोगों ने आगे की यात्रा उनके साथ ही शुरू कर दी। लेकिन रास्ते में पड़ने वाले एक रिलीफ कैंप के बाद हमारा रास्ता अलग-अलग हो गया।

आगे बढ़ने से पहले चुराचांदपुर की लोकेशन और रास्ते में पड़ने वाले नजारे के बारे में बात करना ज़रूरी है। चुराचांदपुर की इंफाल से दूरी तकरीबन 60 किमी है। इंफाल से निकलने के बाद रास्ते में विष्णुपुर जिला पड़ता है और उसके बाद चुराचांदपुर शुरू हो जाता है। विष्णुपुर जिले में मैतेइयों की संख्या ज्यादा है। लेकिन जैसे-जैसे यह चुराचांदपुर की तरफ जाता है तस्वीर बदलती जाती है और कुकी समुदाय के लोगों की संख्या में इजाफा होता जाता है। चुराचांदपुर और विष्णुपुर के बॉर्डर से सटे इलाकों में मैतेई और कुकी करीब-करीब बराबर की संख्या में रहते हैं।

चुराचांदपुर का प्रवेश द्वार

इंफाल से चुराचांदपुर को जोड़ने वाली सड़क के दोनों किनारों पर यहां अलग-अलग हिस्सों में मैतेई और कुकी समुदाय के लोगों की बसाहट है। इस इलाके में दोनों समुदाय के लोगों ने अपना घर नहीं छोड़ा है। लेकिन यहां रहने के लिए उन्होंने जो व्यवस्था की है तो वह अभूतपूर्व है। बताया गया कि पूरा इलाका हथियारबंद है। उनके पास एसएलआर से लेकर मशीनगन और ग्रेनेड तक मौजूद हैं। सड़क के दोनों तरफ बंकर बने हुए हैं। और उन बंकरों में बाकायदा अपने समुदाय से जुड़े लोगों की 8-8 घंटे की ड्यूटी लगती है। उनके सामने मौजूद इस सड़क का नजारा भी बिल्कुल अलहदा था। यहां तीन अलग-अलग सुरक्षा बलों के चेक पोस्ट हैं। मसलन सीआरपीएफ का अलग है। 

असम राइफल्स का अलग और मणिपुर राइफल्स का अलग। सड़क से गुजरने वाले किसी शख्स की इन तीनों चेक पोस्टों पर चेकिंग होती है। और सभी न केवल अपने रजिस्टरों में उनका नाम दर्ज करते हैं बल्कि आगे बढ़ने से पहले अपने कंट्रोल रूम से उनके आगे जाने को लेकर इजाजत लेते हैं उसके बाद ही संबंधित शख्स को परमिशन दी जाती है। इसमें अगर किसी एक भी सुरक्षा बल की टीम ने परमिशन देने से इंकार कर दिया तो उसका आगे जाना मुश्किल है। बहरहाल हम लोगों को मीडिया से जुड़े होने के आधार पर सारी चेकिंग के बाद आगे जाने की इजाजत मिल गयी। लेकिन उससे आगे इससे भी बड़ी एक समस्या हम लोगों की इंतजारी कर रही थी लेकिन उस पर बाद में। उससे पहले इस इलाके की कुछ और बातें जो अब बिल्कुल एक खुले ‘वार जोन’ में तब्दील हो चुका है।

जगह-जगह रोड पर लगाए गए चेकिंग पोस्ट

यह अपने किस्म का देश का अलहदा इलाका बन चुका है। जहां दोनों तरफ बंकर खुदे हुए हैं और उसमें ड्यूटी देने वाले शख्स के पास तमाम आधुनिक किस्म के हथियार हैं। और उनका नियंत्रण सैटेलाइट फोन के जरिये दूर से किया जा रहा है। इस तरह के इन सैटेलाइट फोनों और इस्तेमाल की जा रही बंदूकों को इन पंक्तियों के लेखक ने उन्हीं इलाकों के पास से स्थित कुछ रिलीफ कैंपों में अपनी आंखों से देखा। यहां सुरक्षा बलों की भूमिका बेहद सीमित हो गयी है। सड़क अगर ‘नो मेंस लैंड’ है तो वह सिर्फ उसकी निगरानी करने वाले हैं। सुरक्षा बल के एक जवान ने बताया कि ऊपर से उसे गोली चलाने की इजाजत नहीं है। कहा गया है कि जब खुद उनकी अपनी जान पर खतरा आ जाएगा उसी स्थिति में वो गोली चला सकते हैं। 

अब ऐसे में समझा जा सकता है कि सूबे की पूरी सुरक्षा व्यवस्था कहां खड़ी है। उन्होंने बताया कि इलाके का आलम यह है कि शायद ही कोई दिन जाता हो जब फायरिंग नहीं होती हो। शाम छह बजने के साथ ही दोनों इलाकों से फायरिंग शुरू हो जाती है। और कई बार तो ग्रेनेड और पेट्रोल बम तक फेंके जाते हैं। सुरक्षा बल के एक जवान ने बताया कि जिस दिन हम लोग वहां मौजूद थे उसी दिन सुबह फायरिंग हुई थी और उसमें एक जवान भी घायल हो गया था। लिहाजा उस सड़क से गुजरने का मतलब है कि अपनी जान हथेली पर लेकर जाना। हालांकि सुरक्षा बलों के जवानों के पास बुलेट प्रूफ जैकेट और हेल्मेट होता है। लेकिन आम लोगों के लिए यह कहां नसीब?

बहरहाल हमारे लिए तो यह काम कठिन था। तीनों चेक पोस्ट तो किसी तरह से पार कर लिए। हालांकि उसमें भी सीआरपीएफ के जवान ने अपने कंट्रोल रूम  से जब संपर्क किया तो उसमें सीधा परमिशन की जगह अस्पष्ट किस्म का संदेश था। बहरहाल हम लोगों को आगे जाने की इजाजत मिल गयी। लेकिन ये क्या? इससे भी ज्यादा बड़ी मुसीबत आगे खड़ी थी। चुराचांदपुर में घुसने से ठीक पहले महिलाओं का एक जत्था एक जगह मौजूद था। जहां न केवल बोरे की चेकपोस्ट जैसी व्यवस्था की गयी थी बल्कि रास्ते को बैरिकेड से रोक दिया गया था।

विष्णुपुर के आगे शुरु हो जाता है चुराचांदपुर

पहुंचने पर पता चला कि यह कुकी समुदाय का चेकपोस्ट है और इसको संचालित करने का काम कुकी महिलाएं करती हैं। पहुंचते ही उनमें से एक महिला ने पूछा कि क्या अंदर जाने की इजाजत ली है? हम लोगों को कुछ समझ में ही नहीं आया। मन में विचार आया भला किसकी इजाजत? सबसे बड़ा तो पुलिस-प्रशासन और सुरक्षा बल होता है उसको तो हमने पार कर लिया। अब किसकी इजाजत की बात यहां हो रही है? हम लोगों के कुछ न समझ पाने पर मोर्चा एक मोटी महिला ने संभाला। उसने पूछा कि आपने आईटीएलएफ से परमिशन ली है। 

हम लोगों को क्या पता कि यहां आने से पहले किसी दूसरे इस तरह के संगठन से भी संपर्क साधना पड़ेगा। दरअसल आईटीएलएफ यानि इंडिजेनस ट्राइबल लिबरेशन फ्रंट कुकी समुदाय का संगठन है। वह पूरे इलाके को नियंत्रित करता है। बाद में ग्रेसी नाम की एक महिला से उन्होंने बात करायी। जिसके बारे में उनका कहना था कि वह कंट्रोल टीम की सदस्य है। उनसे बातचीत के दौरान हमने बताया कि हम लोग मीडिया से हैं और रिलीफ कैंप का दौरा करना चाहते हैं और उसमें रहने वाले जिन स्थितियों से गुजरे हैं उसको रिपोर्ट करना चाहते हैं। ऐसा कहने पर उन्होंने सदासयता तो दिखायी और वह खुश भी हुईं।

इस सड़क की दोनों तरफ बने हैं बंकर

बावजूद इसके वह तुरंत परमिशन देने के लिए तैयार नहीं हुईं। हां, उन्होंने एक बात ज़रूर कही जो हम लोगों को लिए बेहद सहूलियत भरी साबित हुई। उन्होंने कहा कि मार्टियर्स प्लेस (शहीद स्थल) पर चले आइये वहीं मैं आप से मुलाकात करती हूं। चेक पोस्ट से तकरीबन 2-3 किमी भीतर जाने पर चुराचांदपुर बाजार में यह जगह स्थित है। जहां पहुंचने पर उनसे कई बार बात तो हुई लेकिन वह वहां नहीं पहुंच सकीं। और इस तरह से उनकी तरफ से कम से कम आधिकारिक अनुमति हम लोगों को नहीं मिली। लेकिन चूंकि हम लोग भीतर पहुंच चुके थे लिहाजा अब किसी और परमिशन की जरूरत भी नहीं थी लिहाजा हमने अपना काम शुरू कर दिया। और सबसे पहले वहीं खड़े होकर शहीद स्थल का जायजा लिया। 

हां, आगे बढ़ने से पहले यहां एक बात और बतानी जरूरी है कि मैतेइयों के बीच इस तरह की परेशानी क्यों नहीं उठानी पड़ी और कुकी समुदाय के इलाके में जाने पर इस तरह की स्थितियों से क्यों दो-चार होना पड़ा। 

इसके कई कारण हैं उनमें से जो कुछ प्रमुख हैं उनको यहां गिनाया जा सकता है। पहली बात तो मैतेई समुदाय वहां बहुमत में है उसकी कुल आबादी 53 फीसदी है। जबकि कुकी महज 20 फीसद हैं। लिहाजा अपने तरीके से एक अल्पसंख्यक समुदाय की स्थिति में हैं। लिहाजा उनके भीतर अपने किस्म का असुरक्षा बोध मौजूद रहता है। इसके साथ ही पूरी राज्य मशीनरी वह प्रशासन से लेकर पुलिस और राजनीतिक अमला तक मैतेई समुदाय के साथ खड़ा है। जबकि कुकी इस मामले में बिल्कुल अकेले और अलग-थलग पड़ गए हैं। संसाधनों और संपन्नता के मामले में भी मैतेई कुकी से 20 पड़ते हैं। ऐसे में मैतेइयों के सामने कोई उस तरह का संकट नहीं है जो कुकी समुदाय मानसिक और मनोवैज्ञानिक स्तर पर झेल रहा है।

ऊपर से पूरा मैतेई समुदाय कुकियों को बाहरी घोषित करने पर जुटा हुआ है। वह आतंकवादी करार देकर उनका पूरा सफाया कर देना चाहता है। और इंफाल से लेकर दिल्ली तक इसी का अभियान चला रहा है। जबकि सच्चाई यह है कि कुकी भी मैतेइयों के कमोबेश साथ आए थे। ऐसे कुकियों को वहां ओल्ड कुकी कहकर बुलाया जाता है। जहां तक रही आतंकवादी होने की बात तो इसकी सच्चाई यह है कि एक दौर में जब देश के सामने नागा संकट बेहद गंभीर था और पूरा नागा समुदाय ग्रेटर नागालैंड की मांग करते हुए देश से अलग होने के लिए आंदोलन चला रहा था उस समय केंद्र सरकार ने बाकायदा पॉलिसी के तहत कुकियों को हथियारबंद किया और उन्हें नागाओं के खिलाफ मोर्चे पर उतार दिया। 

रोड के किनारे हमले के शिकार घर

यही वजह है कि जब नागा समस्या उस तरह से नहीं रही तो केंद्र ने कुकियों से 2008 में एसओओ समझौता किया और उसके तहत उनके हथियार जमा करवा लिए गए। जो दोनों पक्षों की सहमति से हुआ। और इसके एवज में इस तरह के सभी भूतपूर्व कैडरों को केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय की ओर से छह-छह हजार रुपये का हर महीने के हिसाब से भुगतान किया जाता है। और यही नहीं पिछले चुनाव के ठीक पहले गृहमंत्री अमित शाह ने सूबे का दौरा किया था और उन्होंने कुकियों से न केवल उनके अलग प्रशासन की मांग पर सकारात्मक तरीके से विचार करने का भरोसा दिलाया था बल्कि एक मुश्त अलग से राशि मुहैया करायी थी जिसके बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा था कि यह उनका पिछला बकाया है। 

इस तरह से बीजेपी ने न केवल मैतेइयों बल्कि कुकी समुदाय के भी वोट हासिल किए थे। लिहाजा बगैर किसी ठोस सोच-समझ और पूर्व विचार मंथन के सिर्फ वोटों के लिए उनकी भावनाओं का शोषण किया गया। और पिछले नौ सालों के शासन में जब उन्हें कुछ नहीं मिला तो केंद्र और सूबे की सरकार से उनका मोहभंग होना स्वाभाविक था।

इसी के साथ यहां एक और बात बतानी बेहतर रहेगी। सूबे में कुकी हमेशा से इस्तेमाल होते रहे। पुराने दौर में राजा के शासन के दौरान मैतेई समुदाय ने कुकी को अपने सब्जेक्ट यानि प्रजा के तौर पर इस्तेमाल किया। और मामला यहीं तक सीमित नहीं था दूसरे हिस्सों से होने वाले हमलों से अपने बचाव के लिए उन्हें सूबे की सरहदों से सटी पहाड़ियों में तैनात कर दिया गया। इस तरह से उपजाऊ घाटी खुद ले ली गयी और कुकियों को जंगलों और पहाड़ियों में जंगली जानवरों के साथ जूझने के लिए छोड़ दिया गया।

सांकेतिक तौर पर चुराचांदपुर में रखे गए ताबूत।

अब आते हैं चुराचंदपुर के इस शहीद स्थल पर जहां मैं पहुंचा था। यहां अजीब किस्म का नजारा था। एकबारगी देखने पर किसी की भी आंख धोखा खा जाए। और सामने रखे ताबूतों के वहां होने का क्या मतलब हो सकता है उसके लिए समझना मुश्किल हो जाएगा। लेकिन पास जाने पर स्थिति थोड़ी स्पष्ट होनी शुरू हो गयी। दरअसल इस दौरान दोनों पक्षों में हुई हिंसक झड़प के दौरान हुई मौतों को यहां सांकेतिक ताबूतों के तौर पर पेश किया गया था। कत्थई रंग के इन ताबूतों के ऊपर बाकायदा पुष्प हार रखे गए थे। ‘वाल ऑफ रेमेंबरेंस’ यानि ‘यादों की दीवार’ के नाम से घोषित किए इस स्थल पर लोगों की भीड़ लगी हुई थी।

ताबूत से कुछ ऊंचाई पर बने पायदान पर उन लोगों की फोटो लगायी गयी थी जिसमें उनके नाम और उम्र का जिक्र था। इनमें तीन महीने के नवजात से लेकर 60 साल के लोगों के नाम दर्ज थे। आने वाले लोग बारी-बारी से उन्हें अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहे थे। और उनको भीतर से ऐसा महसूस हो रहा था कि इन लोगों ने अपनी जानें उनकी रक्षा में दी हैं। लिहाजा उनके प्रति उनके मन में एक शहीदाना भाव था। उसी के बगल में एक दूसरी दीवार भी थी जिस पर लोग अपनी-अपनी प्रतिक्रियाएं लिख रहे थे। उसी में ऊपर मरने वालों की संख्या, जो 129 थी, के साथ ही जलाए गए घरों और गांवों के बारे में भी जानकारी दी गयी थी। 

चुराचांदपुर के शहीद स्थल पर लगी मरने वालों की तस्वीरें और श्रद्धांजलि देते लोग।

यहां घायलों की संख्या 800 से ज्यादा लिखी गयी थी। इसके अलावा जलाए गए चर्चों की संख्या 357 बतायी गयी थी। घर जो जलाए गए हैं उनकी संख्या 4550 बतायी गयी थी। इसके साथ ही जलाए गए गांवों की संख्या भी दी गयी थी वह 292 प्लस थी। इस तरह से कुकी समुदाय से जुड़े पूरे इलाके की तस्वीर पेश की गयी थी। 

यहां से निकलने के बाद हम लोगों ने पास स्थित दो रिलीफ कैंपों का दौरा किया। इनकी तफ्शील से जानकारी देने से पहले विस्थापितों की संख्या के बारे में अगर बात की जाए तो वह तकरीबन 60 हजार के आस-पास बतायी जा रही है। जिनमें अधिकांश कुकी समुदाय के लोग शामिल हैं। चुराचांदपुर जाने के बाद पता चला कि विस्थापितों की एक बड़ी संख्या कैंपों में न रुक कर अपने रिश्तेदारों के यहां ठहरी हुई है। वैसे भी मैतेइयों के मुकाबले कुकियों में सामुदायिक भावना ज्यादा गहरी है।

सुविधाओं के स्तर पर भी दोनों में बेहद अंतर है। मैतेई समुदाय के कैंप में सुविधाएं ज्यादा हैं जबकि कुकी समुदाय के कैंप उतने संगठित नहीं दिखे। मसलन हाईस्कूल की एक बिल्डिंग में स्थित एक कैंप में जाने पर पता चला कि वहां 100 के आस-पास लोग रहते हैं। और उन्हें एक-एक कमरे में जगह दे दी गयी है लेकिन सुविधाओं के नाम पर वहां बहुत कुछ ज्यादा नहीं दिखा। न ही सामूहिक भोज की व्यवस्था थी और न ही कोई दूसरी सुविधा। सरकारी सहायता की बात तो बहुत दूर। 

मैतेई कैंप में बाद के दौर में बताया जा रहा है कि सरकार ने भी कुछ सहायता करनी शुरू कर दी है लेकिन कुकी कैंप को वह भी नसीब नहीं है। लिहाजा पूरा कैंप समुदाय के भरोसे ही चल रहा है। वहां मौजूद एक बुजुर्ग ने बताया कि वह आईसीएआर यानि इंडियन कौंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च में तीसरी श्रेणी के कर्मचारी थे और वहां से रिटायर होने के बाद वह इंफाल में ही रह रहे थे लेकिन तीन मई की घटना के बाद अचानक उनको अपनी जान का खतरा सताने लगा।

शहर से सारे कुकी भाग रहे थे लिहाजा उन्हें भी अपना सारा सामान छोड़कर चुराचांदपुर में आना पड़ा और यहां अपनी बूढ़ी पत्नी के साथ उस कैंप में वह रहने के लिए मजबूर हैं। सरकार ने 40 से ज्यादा साल सेवा लेने के बाद उनको ‘ईनाम’ के तौर पर अपने ही सूबे और अपनी ही जमीन पर शरणार्थी बना दिया। यही उपलब्धि है मौजूदा बीरेन सिंह सरकार की।

(आज़ाद शेखर के साथ जनचौक के फाउंडिंग एडिटर महेंद्र मिश्र की रिपोर्ट।)

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments

You May Also Like

More From Author