Saturday, April 20, 2024

जातीय उत्पीड़न की भेंट चढ़ा मेडिकल छात्र, आरोपियों को बचा रही योगी सरकार

आज़ादी के अमृत महोत्सव वर्ष में एक दलित मज़दूर दंपति ने भी सपना देखा ज़िल्लत, हिकारत, छुआछूत, ग़ैरबराबरी से आज़ादी का, और अपने सपने को साकार करने के लिये अपने होनहार बेटे को आंखों में बसाकर उसे डॉक्टर बनने के लिये फिरोजाबाद शहर के सरकारी मेडिकल कॉलेज भेज दिया। लेकिन जातिवाद की लाइलाज बीमारी से त्रस्त मेडिकल कॉलेज ने बेटे को लाश बनाकर दलित दंपति की आंखों में राख मल दिया।

नामज़द आरोपियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई न होने से नाराज़ पिता अपने बेटे की संस्थानिक हत्या के ख़िलाफ़ न्याय की तलाश में गणतंत्र दिवस से ठीक पहले सूबे के मुख्यमंत्री के आवास के सामने धरना देने निकले तो उन्हें 25 जनवरी को हाउस अरेस्ट कर लिया गया। 26 जनवरी को वो किसी तरह पुलिस से बचकर कानपुर पहुंचे तो पुलिस ने उन्हें हिरासत में लेकर 27 जनवरी तक सरकारी मेहमान बनाकर एसएसपी ऑफिस भेज दिया।

पहले रोहित वेमुला फिर पायल तड़गी और अब डॉ शैलेंद्र की संस्थानिक हत्या कर दी गई। दलित छात्रों के लिये उच्च शिक्षण संस्थान क़ब्रगाह बने हुये हैं, ये सिलसिला कब और कहां जाकर रुकेगा पता नहीं। पिता उदय सिंह शंखवार उस दिन को याद करते हुये फफक पड़ते हैं। वो रौंधे गले से बताते हैं कि वो 3 दिसंबर 2022 की दोपहर थी। ठीक एक बजकर उन्तालीस मिनट (1:39 बजे) पर उनके मोबाइल पर बेटे शैलेंद्र के रूम पार्टनर गुलाब का फोन कॉल आता है और बेहद घबराये हुये स्वर में उन्हें बताता है कि शैलेंद्र की तबीयत ज़्यादा खराब है और वो लोग उसे लेकर जिला अस्पताल पहुंच रहे हैं और वह भी अस्पताल आ जायें।

प्रतिक्रिया में पिता ने बेटे के रूम पार्टनर से कहा– ‘ठीक है’ और झटपट तैयार होकर अपनी मोटरबाइक से अस्पताल पहुंच गये। पिता उदय सिंह शंखवार उस दृश्य को याद कर असहज हो उठते हैं। फिर भी किसी तरह खुद को संभालकर बताते हैं कि– “जिला अस्पताल के आईसीयू में पहुंचकर मैंने देखा मेरा बेटा बेड पर मरणासन्न स्थिति में पड़ा है। वहां पर कोई डॉक्टर नहीं है। उसके मुंह में एक पाइप लगा है और कॉलेज का एक बच्चा उसके चेस्ट को पम्प कर रहा है। उसके पास एक गुब्बारा जैसा कुछ था जिसे एक लड़का चला रहा था।“

पीड़ित पिता आगे बताते हैं कि उन्हें लगा कि उनके बेटे को वहां आराम नहीं मिल रहा है, न उसे सही से ट्रीटमेंट दिया जा रहा है तो उन्होंने स्टाफ रूम में जाकर कहा कि उनके बेटे को आगरा के लिये रेफर कर दो। लेकिन उनके बेटे की मृत्यु होने तक उन्हें एम्बुलेंस नहीं मुहैया करवाई गई। न ही अपनी गाड़ी से ले जाने दिया गया। पीड़ित पिता जनचौक संवाददाता को बताते हैं कि वो किस तरह गिड़गिड़ाते रहे कि उन्हें एक एंबुलेंस मुहैया करवाई जाये और बेटे को ट्रीटमेंट के लिये आगरा भेजा जाये लेकिन उनकी एक न सुनी गई। उनसे कहा गया–“जो होगा यहीं होगा”।

पिता अपने बेटे के इलाज में बरती गयी लापरवाही को बयां करते हुये आगे बताते हैं कि कुछ देर बाद बच्चे थक गये तो वो भी हट गये और कोई मेडिकल स्टॉफ भी नहीं था। इसको देखकर उन्होंने वहां मौजूद दरोगा से मदद की गुहार लगाई कि दरोगा जी मेरे बच्चे की जान बचाओ। उनकी बात सुनकर दरोगा खुद बच्चे के चेस्ट को पम्प करने लगे।

पिता आगे कहते हैं कि इसके बाद सीएमएस पहुंचे तो उन्होंने उनसे कहा कि साहेब मेरे बेटे को देख लो, इलेक्ट्रिक शॉट देने के लिये कहा तो उन्होंने कहा कि ये व्यवस्था उनके पास नहीं है। और फिर ग़ुस्से में उन्होंने पिता से कहा कि मैं इसका स्पेशलिस्ट नहीं हूं। जो इसके स्पेशलिस्ट हैं वो देखेंगे और इतना कहकर वो वहां से चले गये। पिता बताते हैं कि इसके बाद वहां कोई भी स्टाफ या अन्य व्यक्ति उनके बेटे को देखने नहीं आया।

करीब आधा घंटे बाद एक व्यक्ति आया और उनसे कहा कि इसमें कुछ नहीं है, ये तो मर चुका है। आप अपने आप को संभालिये और उसके बाद मशीन लायी गयी और उसको शॉट दिया गया। उसके बाद एम्बुलेन्स लाकर उनके बेटे को पोस्टमार्टम हाउस में रखवा दिया गया। पोस्टमार्टम होने के बाद पीछे के गेट से ले जाने को कहा गया। जब पिता और छात्र मेन गेट से ले जाने पर अड़कर धरने पर बैठ गये तो एसपी सिटी ने उनके साथियों और धरनारत छात्रों को धमकाते हुये कहा कि 15 मिनट में यह जगह खाली कर दो वर्ना वो अपने तरह से खाली करा लेंगे।

DR SAILENDRA
धरना देते छात्र

पिता के अनुत्तरित सवाल

पीड़ित पिता का आरोप है कि अस्पताल में लोगों ने उन्हें बताया कि उनके बेटे ने फांसी लगा ली है। लेकिन उन्हें बेटे द्वारा फांसी लगाने का कोई फोटो-वीडियो नहीं मुहैया करवाया गया। उन लोगों ने पिता को बताया कि फांसी लगाने के बाद आधा घंटा दरवाजा तोड़ने में लग गया। जबकि पिता के घर से मेडिकल कॉलेज की दूरी मोटरबाइक से महज 10 मिनट की है। पिता का कहना है कि वो लोग उन्हें और पहले फोन करते तो वो समय रहते पहुंच जाते।

पिता बताते हैं कि मेडिकल कॉलेज के ठीक सामने ही पुलिस चौकी है फिर भी उन लोगों ने पुलिस को सूचित नहीं किया। कह रहे हैं कि छात्रों ने खुद ही उसे फांसी के फंदे से नीचे उतारा और अपने निजी वाहन से जिला अस्पताल लेकर गये। पिता आरोप लगाते हैं कि उनके बेटे को सही ट्रीटमेंट नहीं दिया गया। पिता बताते हैं कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के मुताबिक फांसी के फंदे से उतारने के बाद डेढ़ घंटे तक उनका बेटा जिंदा रहा था। परंतु उन्होंने सही ट्रीटमेंट नहीं किया। जिससे उनके बेटे ने दम तोड़ दिया।

पिता कुछ सवाल उठाते हैं कि घटना के उपरान्त मेडिकल कॉलेज प्रशासन द्वारा एम्बुलेन्स नहीं उपलब्ध कराई गई और उनके बेटे के सहपाठियों द्वारा अपने निजी वाहन से जिला अस्पताल पहुंचाया गया जोकि 5 किलोमीटर दूर है। उन्हें कोई भी जानकारी कॉलेज द्वारा नहीं दी गई कि उसकी मौत कैसे हुई।

बताया गया कि उनके बेटे ने फांसी लगा ली लेकिन पिता को इस पर भरोसा नहीं है। कॉलेज के सीसीटीवी कैमरे से जानकारी नहीं दी जा रही है। कॉलेज प्रशासन व पुलिस द्वारा पिता पर समझौते के लिये दबाव बनाया जा रहा है।

पहले छात्रों ने न्याय के लिये धरना दिया, अब बदल रहे बयान

बेटे की संस्थानिक हत्या मामले में न्याय के लिये संघर्ष कर रहे पिता उदय सिंह शंखवार जनचौक को बताते हैं कि उनके बेटे की मौत के बाद संस्थान के छात्रों ने कई दिनों तक कॉलेज कैंपस में धरना-प्रदर्शन किया। वो छात्र मरहूम शैलेंद्र के घर भी आये और पिता को दिलासा दिया कि वो शैलेंद्र की संस्थानिक हत्या के कसूरवारों को सजा दिलवाकर ही दम लेगें।

उन छात्रों ने पिता उदय सिंह शंखवार को कहा था कि अंकल आप पीछे मत हटना, समझौते मत करना हम लोग लड़ेंगे। इस पर पिता ने उन छात्रों से कहा था कि- “मेरा तो बेटा चला गया मैं किस बात के लिये समझौते करूंगा। मुझे तो बेटे के हत्यारों को सज़ा दिलाने तक चैन नहीं मिलने वाला।”

धरना देते मेडिकल छात्र

पिता बताते हैं कि लेकिन कुछ दिन बाद कॉलेज प्रशासन ने कुछ छात्रों को तोड़ लिया। छात्रों से कहा गया कि धरना देने वाले छात्रों का भविष्य खराब कर देंगे। उनका सप्ली लगवा देंगे, री सप्ली लगवा देंगे, बैक लगवा देंगे लेकिन तुम लोग पेपर दो तुम्हें पास करवा देंगे। जब कुछ बच्चे टूटे तो उनकी एकता ही टूट गई और सारे बच्चे टूट गये और पेपर देने चले गये। पिता बताते हैं कि अब सारे बच्चे बयान पलट रहे हैं। बच्चों का कहना है कि पहले जो उन्होंने बयान दिये थे वो फ्लो (भावनाओं के बहाव) में आकर दे दिए थे।

धरना देते मेडिकल छात्र

समधन प्राचार्य को बचाने के लिये भाजपा विधायक नहीं होने दे रहे कार्रवाई

राकेश शंखवार फ़िरोजाबाद के भाजपा महानगर अध्यक्ष हैं और मनीष असीजा भाजपा फ़िरोजाबाद विधानसभा से भाजपा विधायक हैं। पिता बताते हैं कि घटना के बाद ये दोनों लोग उनको डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक से मिलवाने के लिये लखनऊ लेकर गये थे। वो लोग अपनी गाड़ी से गये और पिता उदय सिंह किराये की अलग गाड़ी से। वहां होटल ताज में उनकी मुलाकात ब्रजेश पाठक से करवाई गई।

पिता उदय सिंह शंखवार जनचौक से बताते हैं कि उन्होंने डिप्टी सीएम से सारी बातें बताई। उनकी बातों को सुनने के बाद डिप्टी सीएम ने उनसे कहा कि आप ठीक कह रहे हैं, जिन लोगों के नाम पर एफआईआर है वो जब तक कॉलेज से हटेंगे नहीं तब तक कार्रवाई प्रभावित होती रहेगी। उन्होंने वहीं पिता के सामने अपने सचिव को फोन करके उन लोगों के खिलाफ़ कार्रवाई करने के लिये कहा।

डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक के उस फोन कॉल और आश्वासन के बाद पीड़ित पिता को विश्वास हो चला कि अब कार्रवाई हो जाएगी। फिर चलते समय डिप्टी सीएम ने कहा कि विधायक जी जब आप यहां हैं तो एक बार मेरे सचिव से मिल लीजियेगा। सचिव ने 4 बजे का समय दिया। वो लोग पिता को विधानसभा ले गये वहां खाना पीना खिलाने के बाद सचिवालय गये और वहां एक बड़े से कमरे में बैठा दिया, चाय पानी भिजवा दिया।

पिता के साथ फिरोज़ाबाद भाजपा अध्यक्ष राकेश शंखवार भी वहीं बैठा रहा। जबकि खुद भाजपा विधायक दूसरे कमरे से सचिव के कमरे में चले गये और अपनी सेंटिंग कर ली। फिर आधे घंटे बाद लौटकर कहा कि सचिव साहेब आ गये हैं चलकर मिल लो।

पिता बताते हैं जब हम लोग सचिव में कमरे में घुसे तो सचिव बिल्कुल लड़ाई के मूड़ में बैठे थे। सचिव ने उनकी कोई बात नहीं सुनी। उनसे दो टूक पूछा कि कैसे आये हो, पिता ने अपना सारा हाल कह सुनाया, रोये गिड़गिड़ाये, लेकिन सचिव ने कहा कि हम इसमें कोई कार्रवाई नहीं करेंगे। पहले जांच होगी उसके बाद कार्रवाई। पिता अड़े रहे कि पहले कार्रवाई हो, आरोपियों को पहले कॉलेज से हटाया जाये, तभी तो निष्पक्ष जांच हो पाएगी।

पिता कहते हैं कि जब वो अड़ गये तो इस पर सचिव ने कहा आप बहुत ऊधम मचा रहे हैं अब तो मैं उन्हें किसी क़ीमत पर नहीं हटाऊंगा। बहुत ज्यादा करूंगा तो एक हफ्ते की छुट्टी पर भेज दूंगा। इस पर पिता ने आत्महत्या की धमकी देते हुये कहा कि वह भी मर जाएंगे तो लोगों को पता चलेगा कि उन्होंने क्यों अपनी जान दे दी। सबको पता चलेगा कि बेटे को न्याय नहीं पाने दिया गया इसलिये उन्होंने जान दे दी। इस पर सचिव ने कहा कि आप कुछ भी करिए, आप स्वतंत्र हो, लेकिन मैं इससे ज़्यादा कुछ कर नहीं पाऊंगा।

खुद अपने ही फोन कॉल से एक्सपोज हो गए भाजपा विधायक

पिता जनचौक को बताते हैं कि मेडिकल कॉलेज की प्रिंसिपल संगीता अनेजा भाजपा विधायक मनीष असीजा की रिश्तेदार हैं। इसलिये विधायक जांच प्रक्रिया और कार्रवाई को बाधित कर रहे हैं। वो बताते हैं कि संगीता अनेजा के पति सचिवालय में सचिव के ओसएसडी हैं। पिता जनचौक से अपनी निराशा का इजहार करते हुये कहते हैं सचिवालय जाकर उन्हें पक्का भरोसा हो गया कि कोई कार्रवाई नहीं होगी। अतः वो घर वापस लौट आये और सुभाष तिराहे पर धरने पर बैठ गये।

दो दिन धरना देने के बाद, तीसरे दिन सुबह 10 बजे विधायक मनीष असीजा, राकेश शंखवार और एक पार्षद फिर उनके घर आये। उस समय उनके घर पर 15-20 लोग मौजूद थे, जो कि उदय सिंह शखवार के साथ धरने पर जाने के लिये तैयार थे। उदय सिंह व जीतेंद्र कमल बताते हैं कि भाजपा विधायक मनीष असीजा ने रौब झाड़ने के फेर में डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक को फोन लगाया और स्पीकर पर फोन रखकर बात करने लगे।

स्पीकर फोन पर उन्होंने डिप्टी सीएम से कहा कि साहेब हम पीड़ित परिवार को लेकर आये थे लेकिन आपने उसमें कोई कार्रवाई नहीं की। उनकी इस बात पर ब्रजेश पाठक ने चौंककर कहा कि कार्रवाई नहीं की। तो इधर से विधायक ने फिर दोहराया कि अभी तक तो कोई कार्रवाई हुई नहीं। तो उधर से ब्रजेश पाठक ने कहा कि उस दिन मेरे सचिव को तुम्ही मना करके गये थे कार्रवाई के लिये, तो कार्रवाई कैसे होती।

जीतेंद्र कमल आगे बताते हैं कि शेखी बघारने के चक्कर में जब सबके सामने भाजपा विधायक की पोल खुल गई तो खुद को बचाने के लिये वो कहने लगे कि नहीं साहेब मैंने मना नहीं किया। इस पर उधर से ब्रजेश पाठक ने कहा कि तुम झूठ बोल रहे हो। वो अधिकारी हैं, अधिकारी रिकार्डिंग रखते हैं अपने पास। और नहीं मना कर गये तो एक बार फिर बात कर लो कार्रवाई हो जाएगी। कार्रवाई होने में कितनी देर लगती है। उसके बाद विधायक ने फोन काट दिया और सचिव को फोन लगा दिया। तो सचिव भी भन्ना पड़ा बोला आखिर आप चाहते क्या हो बताओ। पहले कुछ कहते हो फिर कुछ कहते हो।

शैलेंद्र को परीक्षा में नहीं बैठने दिया गया

कौशल्यानगर, थाना नारखी उत्तर फिरोजाबाद निवासी पिता उदय सिंह शंखवार की तहरीर पर थाना नारखी में स्वशासकीय मेडिकल कॉलेज फिरोजाबाद के प्राचार्य डॉ संगीता अनेजा, परीक्षा नियंत्रक गौरव सिंह, वॉर्डन मुनीश खन्ना, डॉ नौशार हुसैन और आयूष जैन के ख़िलाफ़ नामजद एफआईआर संख्या 0593/2022 दर्ज करवाई गई है।

पिता ने पुलिस को दी अपनी तहरीर में बताया है कि उनका पुत्र शैलेंद्र कुमार स्वशासकीय मेडिकल कॉलेज फिरोजाबाद में एमबीबीएस प्रथम वर्ष में अध्ययनरत था। कॉलेज के ही होस्टल में रह कर अध्ययन कर रहा था। दिनांक 2 दिसंबर 2022 की रात शैलेंद्र कुमार ने अपने पिता को फोन करके बताया कि कॉलेज प्राचार्य डॉ संगीता अनेजा के निर्देश पर परीक्षा नियंत्रक डॉ गौरव सिंह भारद्वाज एवं वार्डन मुनीश खन्ना, डॉ नौशार हुसैन व आयूष जैन आदि लोगों के द्वारा उसे धमकी दी जा रही है कि उसे परिक्षा में नहीं बैठने दिया जाएगा। तथा फेल कर दिया जाएगा।

डॉ गौरव सिंह भारद्वाज एवं आयूष जैन ने कहा कि तुम एससी-एसटी आरक्षण वाले लोगों को तो किसी कीमत पर परीक्षा नहीं देने देंगे। पिता ने तहरीर में पुलिस को बताया है कि उन्होंने रात में अपने बेटे को फोन पर समझाया कि तुम अपनी परीक्षा देने जाना। कल दोपहर के बाद वो कॉलेज आकर बात करेंगे।
पिता ने पुलिस को दी अपनी तहरीर में आगे बताया है कि उन्हें अगले दिन दोपहर 2 बजे फोन पर सूचना मिली कि उनके बेटे की तबियत बहुत खराब है और वह अस्पताल आ जायें।

पिता ने अपनी तहरीर में आगे कहा है कि जब उन्होंने मौके पर जाकर देखा तो उनका बेटा अस्पताल के आईसीयू बेड पर मृत पड़ा था। जबकि पिता ने जनचौक को बताया है कि उनका बेटा मरणासन्न था। पिता ने अपनी तहरीर में आगे बताया है कि उन्हें कॉलेज पहुंचने पर छात्रों ने बताया कि कॉलेज प्रशासन ने उनके बेटे को परीक्षा में नहीं बैठने दिया था। उसे कॉलेज से निकालने की धमकी दी थी। इसी कारण उनके बेटे द्वारा आत्महत्या की गयी है, जिसके लिये कॉलेज प्रशासन पूर्ण ज़िम्मेदार है।

DR SAILENDRA
डॉ शैलेंद्र को अंतिम विदाई

तुम नीची जाति के लोग फ्री में दाख़िला लेकर डॉक्टर बनने चले आते हो

पिता उदय सिंह शंखवार जनचौक से बताते हैं जब उन्होंने अपने बेटे से कॉलेज द्वारा परेशान करने का कारण पूछा तो बेटे ने उन्हें बताया कि कथित नीची जाति का होने की वजह से कॉलेज प्रशासन के लोग उस पर टीका टिप्पणी करते हैं। मरहूम के पिता जनचौक को बताते हैं कि पहले भी दो बार उन लोगों ने जातिसूचक टिप्पणी करते हुये उनके बेटे से कहा था कि–“तुम एससी/एसटी के लोग थोड़े से नंबर लाकर फ्री में दाख़िला लेकर डॉक्टर बनने चले आते हो।”

पिता बताते हैं कि असल में स्कॉलरशिप का मामला था। बेटा बार बार क्लर्क को रिमाइंड करा रहा था। खुद उन्होंने बेटे के पास रिमाइंडर फॉरवर्ड किया था। बेटा क्लर्क के पास गया तो उन लोगों ने उससे कहा कि तुम एससी/एसटी के लोग थोड़े से नंबर लेकर पढ़ने चले आते हो। जब पैसे नहीं हैं तो क्यों चले आते हो पढ़ने।

मरहूम के पिता जनचौक को बताते हैं कि मेडिकल कॉलेज में दलित बच्चों पर जातिगत टिप्पणियां बहुत होती थीं। प्राचार्य संगीता अनेजा का एक क्लर्क है वो बच्चों से कहता था कि आप आ तो गये हो रिजर्वेशन से लेकिन देखता हूं यहां से आगे कैसे जाओगे। तो वो इस तरह से दलित बच्चों को मानसिक प्रताड़ना देता था।

वहीं मरहूम शैलेंद्र सिंह के रूम पार्टनर गुलाब कुमार आरोप लगाते हैं कि जब वह लोग एनाटॉमी का वाइवा देने जाते थे तो उनसे नाम से पहले कैटगरी पूछी जाती थी। इन सबसे शैलेंद्र बहुत टेंशन में रहता था। फैकेल्टी का नाम लेकर दीवारों पर घूसा मारता था।

एक अन्य छात्र बताता है कि शैलेंद्र ने कहा था कि मैं ऐसा क्या कर दूं कि यह पेपर टल जाये। वो यह भी कहता था कि एनाटॉमी में पास हो जाऊं तो पास हो जाऊंगा। शैलेंद्र एनाटॉमी फैकल्टी का नाम लेकर दीवार पर घूसे मारकर खुद को चोटिल करता था। आखिर उसे एनाटॉमी विभाग से इस कदर नफ़रत क्यों हो गई थी।

मामले पर नजदीकी नजर रखने वाले जीतेंद्र कमल जनचौक को बताते हैं कि इन लोगों ने 20-27 दिसंबर तक धरना दिया। एडीएम आए उन्होंने एसआईटी का गठन किया और आश्वासन दिया कि दो दिन में पूरी कार्रवाई करेंगे। संगीता अनेजा का ट्रांसफर कर दिया गया। लेकिन उन चार लोगों का कुछ नहीं किया गया। न्यायिक प्रक्रिया अभी वहीं की वहीं ठप्प है।

जीतेंद्र आगे बताते हैं कि इन लोगों की मुख्य चार मांगे हैं- मौत की सीबीआई जांच हो, पीड़ित परिवार को एक करोड़ रुपये मुआवजा दिया जाये, परिवार के एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी दी जाये, और दोषियों का सस्पेंसन करके निष्पक्ष व पारदर्शी तरीके से जांच करायी जाये। इनमें केवल सीबीआई को जांच देने की मांग मौखिक रूप से मानी गई है।

बेहद गरीब पृष्ठभूमि से आता है दलित परिवार

कौशल्यानगर, नॉर्थ फ़िरोजाबाद निवासी उदय सिंह शंखवार बेहद गरीब पृष्ठभूमि से आते हैं। वो फिरोज़ाबाद में चूड़ियों के काम में मज़दूरी करते हैं। उनके परिवार में उनके और जीवनसंगिनी के अलावा चार बेटे थे। अब तीन हैं। मरहूम शैलेंद्र उनका दूसरे नंबर का बेटा था। उसे याद करते हुये पिता भावुक हो उठते हैं और कहते हैं बड़ा होनहार बेटा था, घर में पैसे की तंगी थी तो उसने बिना कोचिंग के ही बीएससी की पढ़ाई करते हुये खुद से मेडिकल की तैयारी की और नीट की परीक्षा पास करके एमबीबीएस कोर्स में दाख़िला लिया।

पिता बताते हैं कि उन्होंने अपने चाचा-चाची के इलाज के लिये पहले उनका और फिर अपना घर बेंच दिया था। बेटे ने वो सब देखा भोगा था इसलिये भी वो डॉक्टर बनना चाहता था। उदय सिंह का सबसे बड़ा बेटा बीए पास करके प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा है। जबकि तीसरा बेटा बीए और चौथा बेटा इंटरमीडिएट की पढ़ाई कर रहा है।

उदय सिंह बताते हैं कि वो मूल रूप से मैनपुरी के निवासी हैं लेकिन उनका मैनपुरी से फिरोज़ाबाद का सफ़र भी जातीय दंश से भरा हुआ है। वो अपनी यादों को ताज़ा करके बताते हैं कि उनकी मां ने मज़दूरी करके दोनों भाईयों को पढ़ाया था। उन्हीं के गांव के एक यादव थे वो फौज़ में कप्तान थे। उन्होंने कुछ लोगों को फौज़ में भर्ती कराया था। तो एक दिन उनकी मां ने उक्त कप्तान साहेब से हाथ जोड़कर चिरौरी की उनके बेटे को भी फौज में भर्ती करवा दो। इस पर वहां मौज़ूद दबंग जाति के लोगों ने टिप्पणी करते हुये कहा कि ओ कप्तान तू कोरी-चमारों को फौज में लगा देगा तो हमारे खेतों में काम कौन करेगा।

इस पर उदय सिंह की मां ने उन लोगों को लताड़ लगाते हुये कहा था कि ये बात है तो सुन लो- अब से हमार बेटा बाहर जाकर टट्टी का डलिया उठा लेगा पर तुम्हारे यहां काम न करेगा। उदय बताते हैं कि उनकी मां की उस तीखी प्रतिक्रिया पर काफी बवाल हुआ था। उसके बाद ही वो लोग मैनपुरी का अपना गांव छोड़कर अपने चाचा के साथ चूड़ियों की नगरी फिरोज़ाबाद आ गये।

वो चूंडियों के काम में मज़दूरी करने लगे जबकि दूसरा भाई बीएसएनएल में सरकारी मुलाजिम हो गया। उदय सिंह और उनकी संगिनी ने जी तोड़ मेहनत करके अपने परिवार के लिये फिरोज़ाबाद में एक छोटा सा घर बनाया। जबकि उनके चाचा ने मरने से पहले अपना खेत, बीमारी में अपना घर बेंचकर तीमारदारी करने वाले उदय सिंह शंखवार के नाम कर दिया।

धरना देने लखनऊ जाते पिता को पुलिस ने हिरासत में रखा

पिता उदय सिंह बताते हैं कि जब उन्होंने गणतंत्र दिवस से पहले लखनऊ में धरना देने का एलान किया तो पुलिस ने 25 जनवरी को उन्हें हाउस अरेस्ट कर दिया। 26 जनवरी को वो पुलिस को चकमा देकर किसी तरह कानपुर पहुंचने में कामयाब रहे। इस दौरान उन्होंने अपना मोबाइल फोन घर पर ही छोड़ दिया था।

वो कानपुर पहुंचकर अपने एक परिचित के मकान में खाना खाकर लखनऊ निकलने के लिये कानपुर चौराहे पर वापस आये तो फिरोज़ाबाद पुलिस की चार गाड़ियों ने उन्हें चारों ओर से घेरकर पकड़ लिया। पुलिस सीओ सिटी, एसपी, एसओ और कई चौकियों के चौकी इंचार्ज के नेतृत्व में यहां तक पहुंची थी। जबकि उनके अन्य साथियों और बेटों ने लखनऊ पहुंचकर धरना दिया।

DR SAILENDRA
आरोपियों पर कार्रवाई की मांग

पिता उदय सिंह बताते हैं कि पुलिस उन्हें कानपुर से वापस फिरोज़ाबाद लेकर आई और रात भर थाने में हिरासत में रखा। रात में क़रीब 11 बजे एसएसपी से उनकी मुलाकात करवायी गई। एसएसपी ने उनसे पूछा कि आखिर तुम चाहते क्या हो, जो रोज-रोज़ बवाल किये रहते हो। इस पर पिता ने कहा कि जब हम कुछ करते हैं तभी आप भी सक्रियता दिखाते है, नहीं तो बैठ जाते है।

पिता ने एसएसपी से दो टूक कहा कि वह उनकी जांच से संतुष्ट नहीं हैं और मामले की सीबीआई जांच चाहते हैं। इस पर एसएसपी ने कहा कि सीबीआई सेंट्रल का मामला है। यदि वो चाहें और लेटर लिखकर दें तो वो सीबीसीआई को जांच के लिये लिख देंगे। पिता को पुलिस ने 24 घंटे तक अपनी हिरासत में रखा। और फिर 27 जनवरी को उन्हें और उनके साथियों को छोड़ दिया गया।

कुछ नहीं दिखाई देता उस समय अपने मान सम्मान के अलावा

आखिर क्यों उस समय आत्महत्या करने का विचार इतना प्रबल हो जाता है। इस पीड़ा को भुक्तभोगी से अच्छा कौन बता समझा सकता है। 20 सितंबर 2018 को दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय गोरखपुर के शोधछात्र दीपक कुमार ने पीएचडी की पढ़ाई के दौरान जातीय दंश से आजिज़ आकर ज़हर खाकर आत्महत्या करने का प्रयास किया था, लेकिन दोस्तों की सजगता और समय रहते मिले उपचार की बदौलत उनकी जान बच गई थी।

दीपक जनचौक से अपने उस यातनादायी पल को, उस दर्द को साझा करते हुये कहते हैं जब सार्वजनिक तौर पर कई लोगों के सामने आपकी नीची जाति को लेकर कोई आपके मान सम्मान पर हमला करता है, और चार लोग आप पर हंस लेते हैं तो उस वक्त खुद से घिन आने लगती है। खुद पर शर्मिंदग़ी होती है और मन करता है कि खुद को कहां छुपा लूं, क्या कर लूँ कि रहूं ही न।

दीपक आगे कहते हैं कि जब आपको हर पल हीन महसूस करवाया जाता है। आपकी शैक्षणिक योग्यता को कथित नीची जाति में रिड्यूस कर दिया जाता है। आरक्षण में रिड्यूस कर दिया जाता है। डिमोरलाइज किया जाता है। तो मन करता है कि सब कुछ छोड़कर कहां भाग जायें कि ये ज़हरबुझे शब्दस्वर, ये बातें, ये अश्लील हँसी, ये अपमान न सहना पड़े।

दीपक निजी पीड़ा साझा कर कहते हैं कि उन्हें बात बात पर यह कहा जाता था कि ऐसे ऐसे लोग पढ़ने, पीएचडी करने आ गये जिनकी मेरिट नहीं है, जाति के नाम पर, आरक्षण के नाम पर आ गये हैं। कहा जाता है कि तुम लोगों का कहीं एडमिशन नहीं होता, तुम लोग उस योग्य हो ही नहीं। नाली के कीड़े नाली में ही रहें तो ही ठीक है।

दीपक उस ट्रिगर प्वाइंट का जिक्र करके बताते हैं कि उसके बाद अपने कमरे पर आने के बाद वो छात्र हताश हो जाता है। फिर वो कौन सा क़दम उठा लेगा कोई ठिकाना नहीं रहता। दीपक आगे निजी अनुभूति के आधार पर कहते हैं कि– “मेरे अपने अनुभव के आधार पर पांच मिनट बहुत होता है सोचने के लिये, फैसला लेने के लिये। अगर पांच मिनट में सोच समझकर खुद को तैयार कर लिया और उस स्थिति से बाहर निकल गये तो ठीक है, वर्ना आप कुछ भी आत्महंता कदम उठा लेंगे।

नहीं मिला पुलिस व विधायक का जवाब

छात्र शैलेंद्र की संस्थानिक हत्या के एक महीने बाद यानि जनवरी के दूसरे सप्ताह में नवागत प्राचार्य डॉ बलबीर सिंह ने एफआईआर में नामज़द कर्मचारियों को हटा दिया है। इनमें से एक क्लर्क को बर्खास्त कर दिया गया है। जबकि मेडिकल कॉलेज की प्राचार्य संगीता अनेजा का शासन ने नोएडा तबादलता कर दिया था। डॉ बलबीर ने प्रेस रिलीज ज़ारी करके बताया था कि जिन कर्माचारियों के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज़ किया गया है उनसे किसी भी प्रकार का कोई कार्य नहीं करवाया जा रहा है।

जनचौक संवाददाता ने भाजपा विधायक मनीश असीजा और फिरोज़बाद पुलिस से उनके ट्वीटर एकाउंट के जरिये संपर्क साधा और कुछ प्रश्न पूछे हैं। जिनका अभी तक मनीष असीजा व फिरोज़ाबाद पुलिस ने कोई जवाब नहीं दिया है। जवाब मिलने पर उसे रिपोर्ट में जोड़ दिया जाएगा।

(सुशील मानव जनचौक के विशेष संवाददाता हैं)

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सुरक्षाबलों ने बस्तर में 29 माओवादियों को मुठभेड़ में मारे जाने का दावा किया है। चुनाव से पहले हुई इस घटना में एक जवान घायल हुआ। इस क्षेत्र में लंबे समय से सक्रिय माओवादी वोटिंग का बहिष्कार कर रहे हैं और हमले करते रहे हैं। सरकार आदिवासी समूहों पर माओवादी का लेबल लगा उन पर अत्याचार कर रही है।

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अपरेंटिसशिप गारंटी योजना भारतीय युवाओं के लिए वाकई गेम-चेंजर साबित होने जा रही है

भारत में पिछले चार दशकों से उठाए जा रहे मुद्दों में बेरोजगारी 2024 में प्रमुख समस्या के रूप में सबकी नजरों में है। विपक्षी दल कांग्रेस युवाओं के रोजगार पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, वहीं भाजपा के संकल्प पत्र में ठोस नीतिगत घोषणाएँ नहीं हैं। कांग्रेस हर शिक्षित बेरोजगार युवा को एक वर्ष की अपरेंटिसशिप और 1 लाख रूपये प्रदान करने का प्रस्ताव रख रही है।

ग्राउंड रिपोर्ट: रोजी-रोटी, भूख, सड़क और बिजली-पानी राजनांदगांव के अहम मुद्दे, भूपेश बघेल पड़ रहे हैं बीजेपी प्रत्याशी पर भारी

राजनांदगांव की लोकसभा सीट पर 2024 के चुनाव में पूर्व सीएम भूपेश बघेल और वर्तमान सांसद संतोष पांडेय के बीच मुकाबला दिलचस्प माना जा रहा है। मतदाता सड़क, पानी, स्वास्थ्य, महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दों को प्रमुखता दे रहे हैं, जबकि युवा बेरोजगारी और रोजगार वादों की असफलता से नाराज हैं। ग्रामीण विकासपरक कार्यों के अभाव पर चिंता व्यक्त कर रहे हैं।

वामपंथी हिंसा बनाम राजकीय हिंसा

सुरक्षाबलों ने बस्तर में 29 माओवादियों को मुठभेड़ में मारे जाने का दावा किया है। चुनाव से पहले हुई इस घटना में एक जवान घायल हुआ। इस क्षेत्र में लंबे समय से सक्रिय माओवादी वोटिंग का बहिष्कार कर रहे हैं और हमले करते रहे हैं। सरकार आदिवासी समूहों पर माओवादी का लेबल लगा उन पर अत्याचार कर रही है।