मोदी का हिंदू राष्ट्रवाद फैला रहा है विदेशों में बसे भारतीयों में तनाव

एक कनाडाई सिख नेता की हत्या की घटना, जिसे कि कनाडा के आरोप के अनुसार भारत सरकार के एजेंटों ने अंजाम दिया है, ऐसे समय हुई है जब विदेशों में बसे भारतीयों में विभाजन की दरार चौड़ी हो रही है।

कनाडाई और अमरीकी विश्वविद्यालयों में लेक्चर हाल हिन्दू राष्ट्रवाद के आलोचकों और समर्थकों के बीच युद्ध का मैदान बन चुके हैं, जहां हिंसा और मौत तक की धमकियां दी जा रही हैं। कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में सिखों और हिंदुओं के मंदिर भारत के समुदायों के बीच विभाजनों को दर्शाने वाले नारों से विकृत हो रहे हैं। उत्तर अमेरिका के दो शहरों में रैलियों में भारत में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं के जश्न का प्रदर्शन किया गया है।

कनाडाई सरकार के चौंकाने वाले आरोप, कि वैंकुवर में एक कनाडाई सिख अलगाववादी की पेशेवराना अंदाज में हुई हत्या के पीछे भारत सरकार के एजेंट थे, ने विदेशों में बड़ी संख्या में बसे भारतीयों के बीच बढ़ते तनाव पर ध्यान आकर्षित किया है जो भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हिन्दू राष्ट्रवाद ब्रांड से उकसाए विभाजनों को दर्शाता है।

मोदी की “हिन्दू पहले” नीतियां और छानबीन की बढ़ती असहिष्णुता विश्व भर में भारतीय समुदायों में फैल चुकी है जिससे हिंदुओं, मुस्लिमों, सिख और विभिन्न जातियों के बीच ऐतिहासिक विभाजन तीव्र हो रहे हैं। इसकी झलक नगर परिषदों, स्कूल बोर्ड, सांस्कृतिक समारोहों और अकादमिक क्षेत्रों में मिल रही है।

ओटावा में कार्लटन विश्वविद्यालय में इतिहास के एसोसिएट प्रोफेसर और जाति आधारित भेदभाव के मामलों में विशेषज्ञ चिन्नईया जंगम कहते हैं, “2014 से पहले यानि मोदी के सत्ता में आने से पहले, आप कनाडा में बसे भारतीयों में इस तरह के विभाजन नहीं देखते थे।”

नेशनल काउंसिल ऑफ कनाडियन मुस्लिम्स के मुख्य कार्यकारी स्टीफन ब्राउन कहते हैं, “जो आप देख रहे हैं वह संक्रामक प्रभाव है।” 

मोदी और उनकी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी यानि भाजपा 2014 में सत्ता में आई, हिन्दू राष्ट्रवादी एजेंडे हिन्दुत्व के साथ। आलोचकों का कहना है कि उसी से भारत के धार्मिक अल्पसंख्यकों, जो आबादी का लगभग 20 फीसदी हैं, के प्रति भेदभाव और हिंसा को बढ़ावा मिला है।

मोदी सरकार ने ऐसे कानून और नीतियां अपनाई हैं जो धार्मिक अल्पसंख्यकों से भेदभाव करते हैं, उनके कुछ समर्थकों ने अल्पसंख्यकों के खिलाफ हत्याओं और हिंसा को अंजाम दिया है और अक्सर उन्हें कोई दंड नहीं मिलता। लेकिन पश्चिमी देशों से आलोचना, उनके भारत से आर्थिक संबंधों की चाह और चीन के भूराजनीतिक प्रभाव को संतुलित करने के लिए, दबी-दबी ही रही है।

भारत में तनाव विदेशों में बसे भारतीयों में फैलने की आशंकाओं ने भाजपा, दक्षिणपंथी हिन्दू राष्ट्रवादी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानि आरएसएस और भारतीय राजनयिकों की गतिविधियों को भी गहन जांच के दायरे में लाया है।

आरएसएस पर दशकों से नजर रखने वाले लेखक धीरेन्द्र के झा कहते हैं कि मोदी के तहत आरएसएस उन देशों में अत्यधिक सक्रिय हो गई है जहां बड़ी संख्या में भारतीय रहते हैं। भाजपा आरएसएस की राजनीतिक विंग है, जिसने मोदी के राजनीतिक करियर को ऊंचा उठाने में मदद की। मोदी अब भी आरएसएस के सदस्य हैं।

विशेषज्ञों और नेशनल काउंसिल ऑफ कनाडियन मुस्लिम्स और वर्ल्ड सिख ऑर्गनाइजेशन ऑफ कनाडा की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार कनाडा में आरएसएस से जुड़े दो पुराने संगठन हैं- हिन्दू स्वयंसेवक संघ और विश्व हिन्दू परिषद, जो मोदी और उनकी ‘हिन्दू पहले’ नीतियों के लिए शैक्षणिक, सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियों से समर्थन जुटाने का काम करते हैं। इन दोनों संगठनों के पदाधिकारियों ने साक्षात्कार के अनुरोध को ठुकरा दिया।

टोरंटो विश्वविद्यालय में इतिहासकार और हिन्दू राष्ट्रवाद विशेषज्ञ मालविका कस्तूरी कहती हैं कि उक्त दो समूह (एचएसएस और वीएचपी) और अन्य जो “अलग-अलग मंचों की आड़ में छिपे हैं” एक ही नेटवर्क का हिस्सा हैं जो मोदी के कनाडा में “हिन्दू पहले” एजेंडा का समर्थन करते हैं।

कस्तूरी कहती है, “इनका एक एजेंडा है किसी भी तरह के असंतोष को कुचलना और इस तरह हिन्दुत्व की कोई भी आलोचना हिन्दूफोबिया कहलाती है। मोदी की कैसी भी आलोचना हिन्दूफोबिया कहलाती है।”

अमरीका में हिन्दुत्व के प्रभाव पर अनुसंधानरत भारतीय इतिहासकार मीरा नंदा के अनुसार मोदी ने विदेशों में बसे भारतीयों के “अंदर गहरे बसे मनोविज्ञान” का इस्तेमाल किया है जो “औपनिवेशिकता के जरिए अपनी महान सभ्यता के प्रति अन्याय से खोए गौरव को वापस पाना चाहते हैं।”

लेकिन टोरंटो स्थित कनाडियन ऑर्गनाईजेशन फॉर हिंदूस हेरिटेज एजुकेशन की अध्यक्ष रागिनी शर्मा के अनुसार आलोचक मोदी के राजनीतिक एजेंडे का हिंदुवाद को असहिष्णु दर्शाने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।

उनका संगठन टोरंटो जिला स्कूल बोर्ड के हालिया फैसले का विरोध करता है जिसके तहत इसके स्कूलों में जाति-आधारित भेदभाव होता है, यह स्वीकार किया गया। संगठन के अनुसार यह हिन्दू समुदाय को “बदनाम” करता है। संगठन कनाडा सरकार से, इधर हिन्दू कार्यकर्ताओं द्वारा इस्तेमाल शब्द  “हिन्दूफोबिया” को मान्यता देने के लिए लॉबिंग कर रहा है।

शर्मा कहती हैं कि हिन्दू राष्ट्रवाद का हौवा निर्दोष लोगों पर लागू किया जा रहा है।

हरदीप सिंह निज्जर – कनाडाई सिख नेता, जिनकी हत्या कनाडा और भारत के बीच कूटनीतिक टकराव के केंद्र में है, पंजाब के सिखों के लिए पृथक खालिस्तान की मांग करने वालों में से थे।

निज्जर के करीबी गुरकीरत सिंह कहते हैं, “ब्रिटिश कोलम्बिया में 2009 में सबसे महत्वपूर्ण सिख मंदिर के प्रमुख बनने के बाद निज्जर ने मोदी की “हिन्दू पहले” नीतियों की “सभी भारतीयों को हिन्दुत्व मानने वालों में बदलने’’ का प्रयास करार देते हुए आलोचना की थी।”

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने आरोप लगाया है कि भारत सरकार के “एजेंटों” ने निज्जर की गोली मारकर जून में हत्या की, उनके आरोपों का आधार कनाडा की तरफ से इकठ्ठा की गई और अमरीका से साझा की गई खुफिया जानकारी है। भारत ने निज्जर की हत्या में किसी तरह की संलिप्तता से इनकार किया है। निज्जर को भारत ने 2020 में आंतकवादी करार दिया था।

हत्या ने अकादमिकों को सचेत किया है। उनका कहना है कि उन्हें मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही हिन्दू अतिवादी समर्थकों की तरफ से निशाना बनाया जा रहा है।

कार्लटन विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर जंगम, जिन्होंने भारत में जाति-आधारित भेदभाव और हिंसा पर अनुसंधान किया है, कहते हैं कि उन्हें कनाडा में हिन्दू अतिवादियों से जान से मारने की धमकियां मिली हैं।

जंगम कहते हैं कि उन पर भारत और हिन्दुत्व को बदनाम करने का आरोप लगाया जाता है। वह दलित समुदाय से कनाडा में पहले अकादमिक हैं। 

मोदी के सत्ता में आने से पहले के वर्षों के बारे में जंगम कहते हैं, “कोई भी अपनी कथित हिन्दू पहचान की परवाह नहीं करता था। यह मेरे लिए आश्चर्यजनक ही है कि कैसे सामान्य और साधारण लोग हिन्दू कट्टरपंथियों में बदल गए हैं।”

उन्होंने बताया कि 2019 में टोरंटो में जाति आधारित भेदभाव पर एक व्याख्यान के दौरान सवर्ण हिन्दू भीड़ ने कार्यक्रम में खलल डाला और उन्हें भारत वापस जाने को कहा।

कार्यक्रम का विरोध करने वाले एक संगठन इंडो-कनाडियन हार्मनी फोरम का कहना था कि व्याख्यान में संतुलन नहीं था। समूह के अध्यक्ष प्रवीण वर्मा ने कहा कि मोदी ने भारत का विश्व में कद बढ़ाया है।

ओंटारिओ में सेवानिवृत्त होने से पहले यमन और ग्वाटेमाला में भारतीय दूत रह चुके कूटनीतिक अधिकारी वर्मा के अनुसार, “भारत विश्व मंच पर आ चुका है और मुझे लगता है कि भारतीय समुदाय को इस पर गर्व है।”

कलगरी विश्वविद्यालय में एशियाई धर्मों पर विशेषज्ञ हरजीत ग्रेवाल के अनुसार कुछ शिक्षाविदों की प्रताड़ना का भारत पर अनुसंधान पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।

वह कहते हैं, “अकादमिक संवेदनशील विषयों से बचते हैं और अमरीकी, कनाडाई और यूके के विश्वविद्यालयों में भारत में धर्म और समाज पर फोकस कम हो गया है।”

विदेशों में बसे भारतीयों में विभाजन दूसरे तरीकों से भी झलकता है। ऐतिहासिक रूप से उत्पीड़ित दलित समुदाय के वंशजों ने जाति भेदभाव पर प्रतिबंध की मांग उठाई है जिससे टोरंटो, सिएटल और कैलिफोर्निया में सवर्ण हिन्दू और वह आमने-सामने आ गए हैं। इंग्लैंड के लीसस्टर जैसी जगहों, जहां भारतीय समुदायों को एकता का मॉडल माना जाता था, पर प्रवासियों में तनाव और हिंसा हो रही है।

टोरंटो उपनगर ब्रम्पटन प्रवासियों में तनाव का केंद्र बन चुका है। हिन्दू मंदिरों में खालिस्तान के नारे लिखे गए। एक सिख रैली में इंदिरा गांधी की हत्या की झांकी निकाली गई।

जब महामारी के दौरान ब्रम्पटन ने घोषणा की कि मस्जिदों को रमजान के दौरान लाउड स्पीकरों पर प्रार्थना की अनुमति होगी, कनाडाई एंटी हेट नेटवर्क द्वारा हिन्दू स्वयंसेवक संघ के एक सदस्य के रूप में शिनाख्त किए एक व्यक्ति ने सोशल मीडिया में पोस्ट डालकर पूछा कि क्या ऊंट और बकरी सवारों के लिए या खुद को सिर से पांव तक तंबुओं से ढंकी महिलाओं के लिए अलग सड़कें भी बनेंगी? उस व्यक्ति को बाद में निकट के एक स्कूल बोर्ड से निकाला गया, जहां वह अध्यक्ष था।

ब्रम्पटन में भारत सरकार पर सीधे मोदी की नीतियों या भारत की छवि के समर्थन में सीधे हस्तक्षेप के आरोप भी लगे हैं जिससे विभाजन और गहरे हुए हैं।

ब्रम्पटन के तत्कालीन शहर अधिकारियों के अनुसार 2017 में, टोरंटो में महवाणिज्य दूत कार्यालय से भारतीय कूटनीतिकों ने एक वार्षिक सांस्कृतिक उत्सव के आयोजकों से पंजाब को समर्पित पवेलियन हटाने को कहा या इसे भारतीय पवेलियन में समेटने को कहा। पंजाब इकलौता भारतीय राज्य है जो सिख बहुल है।  

तत्कालीन महापौर के सलाहकार जसकरण संधु ने बताया, “आयोजकों ने हमें बताया कि उन्हें भारतीय दूतावास से फोन आ रहे हैं और पवेलियन बंद करने का दबाव डाला जा रहा है।”

महापौर ने कनाडा की तत्कालीन विदेश मंत्री क्रिस्शिया फ्रीलैंड को पत्र लिखा कि “एक स्थानीय सांस्कृतिक समारोह में भारतीय अधिकारियों का इस तरह से अवांछनीय हस्तक्षेप गलत है।” पत्र की प्रति न्यूयॉर्क टाइम्स के पास है।

फ्रीलैंड ने मीडिया को बताया था कि कनाडा में विदेशी प्रतिनिधियों का घरेलू मामलों में हस्तक्षेप अनुचित है।

टोरंटो में भारतीय वाणिज्य दूतावास और ओटावा में दूतावास ने इस पर प्रतिक्रिया के अनुरोध पर कोई प्रतिसाद नहीं दिया।

मोदी की पार्टी की अंतर्राष्ट्रीय विंग ओवरसीस फ़्रेंड्स ऑफ बीजेपी ने विदेशों में इसके एजेंडा के प्रसार के लिए खासी उपस्थिति बनाई है और यह अमेरिका में विदेशी एजेंट के रूप में पंजीकृत है।

कनाडा में जहां विदेशी एजेंट पंजीकरण नहीं होता, ओवरसीस फ़्रेंड्स ऑफ बीजेपी का गठन 2014 में हुआ और 2018 में इसका नाम बदलकर कनाडा इंडिया ग्लोबल फोरम किया गया। 

2019 से समूह के अध्यक्ष डॉ. शिवेन्द्र द्विवेदी कहते हैं कि फोकस व्यापार पर है और अमरीका व यूरोप के विपरीत इसका मोदी की पार्टी से कोई संबंध नहीं है।

वह कहते हैं कि अकादमिकों पर हमले “फ्रिंज तत्वों” ने किए थे और “कनाडा में उसके लिए कोई जगह नहीं है।”

हालांकि, वह यह आरोप भी लगाते हैं कि जाति-आधारित भेदभाव को सरकारी स्तर पर स्वीकारने के लिए अभियान “देश को बदनाम करने के अभियान का हिस्सा” है क्योंकि भारत ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्व हासिल किया है।

डॉ. द्विवेदी कहते हैं, “जब मैं क्यूबेक में बड़ा हो रहा था, मेरी कक्षा में मैं संभवत: अकेला भूरा बच्चा था और लोग कहते थे, “तुम खुद को भाग्यशाली नहीं मानते कि कनाडा आए हो? कम से कम तुम उनकी तरह नहीं हो जो भारत में भूखे मर रहे हैं।”

वह कहते हैं, “आज भारत और कनाडा में संतुलन बदल गया है।”

उनके अनुसार, “तीस साल पहले भारतीय अर्थव्यवस्था को कनाडा की जरूरत थी। आज स्थितियां 180 डिग्री बदल चुकी हैं। कनाडा को भारत की जरूरत है। भारत बढ़ती आर्थिक और सैन्य शक्ति है, कनाडा नहीं। हमें उनकी जरूरत है, उन्हें हमारी नहीं।”

(न्यूयॉर्क टाइम्स से साभार, अनुवाद- महेश राजपूत)

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