नई दिल्ली। बस्तर में सैन्य बलों द्वारा फर्जी मुठभेड़ में इस साल जुलाई तक 141 आदिवासियों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। जबकि सिर्फ जनवरी के महीने में ही फर्जी मुठभेड़ में आठ से दस आदिवासियों की हत्या कर दी गई। जिसमें छह महीने की दुधमुंही बच्ची भी शामिल है। यह कहना है बस्तर की सामाजिक कार्यकर्ता बेला भाटिया का।
सोमवार के दिल्ली के प्रेस क्लब में “Citizen Report on Security and Insecurity” नाम से एक रिपोर्ट पेश की गई। जिसमें बस्तर, झारखंड के कोल्हान क्षेत्र और ओडिशा में बढ़ते पुलिसिया दमन का जिक्र किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार 2019 के बाद से बस्तर और झारखंड में सुरक्षा कैंप को बढ़ाया गया है ताकि प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा किया जा सके।
जबकि इस बारे में स्थानीय लोगों से किसी तरह का सलाह मशविरा नहीं किया गया। इनमें ऐसे लोग भी हैं जिन्हें पता नहीं चला कि उनकी जमीन पुलिस कैंप के लिए चली गई है और इसका विरोध करने पर लोगों को जेलों में भर दिया जा रहा है।
बस्तर में 51 खदानों को साल 2022 में लीज पर दिया गया
फैक्ट फाइंडिंग टीम बस्तर और झारखंड के उन क्षेत्रों में गई जहां आदिवासियों के अधिकारों का दमन कर सुरक्षा बल कैंप लगाए जा रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार कैंप लगाने के संदर्भ में सरकार का कहना है कि “कैंप इसलिए बनाए जा रहे हैं ताकि दूर-दराज के इलाकों में सड़क का निर्माण कर, आधारभूत सुविधा जनता को दी जाए। आदिवासियों तक स्कूल, अस्पताल को पहुंचाया जाए। इतना ही नहीं वोटिंग बूथ राज्य की सुविधा के लिए लगाए जाएं”।
लेकिन फैक्ट फाइंडिंग टीम को स्थानीय लोगों ने बताया कि वह रोड निर्माण के खिलाफ नहीं है। लेकिन उस रोड का निर्माण कैसे हो रहा इसकी जानकारी उन्हें नहीं दी जा रही। स्थानीय लोगों का कहना है- हमें चौड़ी सड़कें नहीं चाहिए। हमारे लिए आने-जाने लायक ही रोड काफी है।
लेकिन यहां चौड़ी-चौड़ी सड़कों का निर्माण किया जा रहा है ताकि जंगल पर कब्जा कर लौह-अयस्क को बाहर निकाला जा सके। यह सारी सड़कें और पुलिस कैंप ग्राम सभा के बिना अनुमति के ही बनाई जा रही हैं। साल 2022 तक सिर्फ बस्तर में 51 खदानों को लीज पर दिया गया है, जिसमें से 15 पब्लिक सेक्टर में हैं।
झारखंड में 30 कैंप खोले गए
ऐसा ही हाल झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के कोल्हान और सरंडा क्षेत्र का है। जिसमें पिछले चार साल में 30 पुलिस कैंप खोले गए हैं। जबकि यह क्षेत्र नो माइनिंग जोन के अंतर्गत आता है। जब आदिवासी इसका विरोध करते हैं तो उन्हें इसके लिए प्रताड़ित किया जाता है।
झारखंड से सामाजिक कार्यकर्ता सिराज दत्ता ने प्रेस कांफ्रेंस के दौरान झारखंड के कोल्हान क्षेत्र की स्थिति पर बात करते हुए कहा कि माओवादी और पुलिस के बीच आम आदिवासी पिस रहे हैं। स्थिति यह है कि स्कूल के बगल में ही चार पुलिस कैंप खोले गए हैं। जिसके कारण बच्चे स्कूल भी नहीं जा पाते हैं।
नक्सली होने के शक में पुलिस आदिवासियों को तरह-तरह से प्रताड़ित कर रही है। यहां तक घर में अगर ज्यादा बर्तन हैं तो उसे तोड़ दिया जाता है। लोग प्रतिदिन के जीवन में इन सारी समस्याओं को झेल रहे हैं। ज्यादातर लोग जंगल पर निर्भर हैं। पुलिस कभी भी किसी को भी नक्सली कह कर पकड़ लेती है। फर्जी मुठभेड़ में आदिवासी मारे जा रहे हैं।
कांग्रेस सरकार के दौरान 187 माइंस प्रोजेक्ट
वहीं बेला भाटिया ने बस्तर की फैक्ट फंडिंग रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा कि साल 2006 में जब एमओयू आया तो किसी को इतनी जानकारी नहीं थी कि यहां ऐसे माइनिंग की जाएगी। आज स्थिति ऐसी है कि सरकार भले कांग्रेस की हो या भाजपा की बस्तर को धड़ल्ले से खोदा जा रहा है।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार के दौरान 187 माइंस प्रोजेक्ट लाए गए हैं। जिसमें रावाघाट परियोजना प्रमुख है। जिसके आसपास 22 पुलिस कैंप लगाए गए हैं। ताकि आदिवासी किसी तरह का विरोध न कर सकें। अगर कोई विरोध करता है तो उसे नक्सली कहा जाता है।
बस्तर के युवा अपने अधिकारों को जान रहे हैं
वहीं बस्तर की पत्रकार मालिनी सुब्रह्मण्यम फैक्ट फंडिंग टीम का हिस्सा होने के साथ-साथ लगातार बस्तर के मुद्दों पर रिपोर्टिंग कर रही हैं। वह कहती हैं कि बस्तर में आज स्थिति अधिकारों को लेकर थोड़ी बदली है। साल 2021 के बाद से ही पेसा कानून लागू करना हो या सड़क चौड़ीकरण का विरोध करना हो उसके लिए आदिवासी आगे आए हैं।
आदिवासी युवा अपने अधिकारों को समझ रहे हैं इसलिए लगातार इसके लिए संघर्षरत हैं। जिसका नतीजा यह है कि आज बस्तर के अलग-अलग जगहों में धरना प्रदर्शन हो रहे हैं। लोग पुलिस कैंप का विरोध कर रहे हैं।
बस्तर के सभी सात जिलों में युवाओं द्वारा आंदोलन को खड़ा किया गया है। जिसमें सिलगेर का आंदोलन सबसे प्रमुख माना जा सकता है। जिसमें पुलिसिया दमन के बाद युवाओं ने इसके विरोध के तौर पर कई आंदोलन खड़े किए हैं।
(पूनम मसीह की रिपोर्ट)