Saturday, April 20, 2024

26 नवंबर को देशव्यापी हड़ताल, दिल्ली को घेरेंगे लाखों किसान और मजदूर

किसान विरोधी कृषि कानून, मजदूर विरोधी लेबर कानून, और निजीकरण के विरोध में किसान यूनियन, मजदूर यूनियन, बैंक यूनियन, बिजली कर्मचारी, चीनी उद्योग और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता 26 नवंबर को अनिश्चितकालीन देशव्यापी हड़ताल करने जा रहे हैं।  

ट्रेड यूनियनों की मुख्य मांगे नए किसान विरोध कृषि कानून, मजदूर विरोधी कानून को रद्द करने और टैक्स न भरने वाले परिवार के खाते में 7500 रुपए जमा करने, ज़रूरतमंद परिवारों को हर महीने 10 किलो अनाज देने, मनरेगा में काम के दिन बढ़ाकर प्रतिवर्ष 200 दिन करने, मनरेगा में दिहाड़ी बढ़ाने, मनरेगा को शहरों में शुरू करने, रक्षा, रेलवे, बंदरगाह, बिजली, खनन, और वित्त क्षेत्रों में निजीकरण खत्म करने, सरकारी कंपनियों के कर्मचारियों को जबर्दस्ती वीआरएस देने, और प्रत्येक के लिए पेंशन स्कीम लागू करना शामिल है।

किसानों का अनिश्चितकालीन हड़ताल

देश भर के अलग-अलग किसान संगठनों के नेताओं ने ऐलान किया है कि केंद्र सरकार की ओर से लाए गए कृषि कानूनों के विरोध में 26 नवंबर से दिल्ली में अनिश्चितकालीन धरना-प्रदर्शन किया जाएगा और यदि उन्हें राजधानी में नहीं घुसने दिया जाता है तो दिल्ली जाने वाली सड़कों को जाम कर दिया जाएगा। 

किसान संगठनों में सबसे ज़्यादा जोर पंजाब और हरियाणा के किसानों का होगा। उनके अलावा तमिलनाड़ु और कर्नाटक के किसान भी दम भरेंगे। पश्चिम बंगाल से सात बार के सांसद और ऑल इंडिया किसान सभा के प्रेसिडेंट हन्नान मोल्लाह और ऑल इंडिया किसान महा संघ के संयोजक शिव कुमार काकाजी का कहना है कि तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश के किसान भी प्रदर्शन में शामिल होंगे, जिनमें पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के किसानों की सक्रिय भूमिका होगी। पंजाब के किसान संगठन हर गांव से 11 ट्रैक्टर लेकर दिल्ली आएंगे। जब कि देशभर के किसान अपने राज्यों में भी प्रदर्शन करेंगे।

चंडीगढ़ में 500 किसान यूनियनों की ओर से संयुक्त किसान मोर्चा का गठन किया गया है । मांगें पूरी होने तक किसान संसद के बाहर प्रदर्शन करेंगे।

किसानों का हड़ताल कितना लंबा चलेगा इस प्रश्न पर भारतीय किसान यूनियन के हरियाणा ईकाई के प्रमुख गुरुनाम सिंह छाधुनी ने हड़ताल का कहना है, “हम नहीं जानते हैं कि प्रदर्शन कितना लंबा चलेगा, लेकिन हम तब तक नहीं रुकेंगे जब तक हमारी मांगें पूरी नहीं हो जातीं। किसान तीन से चार महीने तक रुकने का प्रबंध कर रहे हैं।”

वहीं हरियाणा में तमाम किसान नेताओं की गिरफ्तारियों का सिलसिला भी शुरु हो गया है।

केंन्द्रीय मजदूर यूनियनों का आह्वान

रोजाना के काम के घंटे 8 से बढ़ाकर 12 करने के विरोध में देश की मुख्य दस ट्रेड यूनियनों ने मिलकर 26 नवंबर को देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया है। इस हड़ताल में सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (CITU), AITUC, INTUC, हिंद मजदूर सभा (HMS), AIUTUC, TUCC, SEWA, AICCTU,  LPF और UTUC शामिल हैं। 

केंद्र सरकार के नए लेबर कानून, कृषि कानून और सार्वजनिक क्षेत्रों की कंपनियों का निजीकरण करने के विरोध में इन दस ट्रेड यूनियन की ज्वाइंट कमेटी ने मिलकर 26 नवंबर को आम हड़ताल का आह्वान किया है। शनिवार को एक प्रेस कान्फ्रेंस में यूनियन नेताओं ने कहा कि ज़रूरी सेवाओं के कामगारों को छोड़कर बाकी सभी क्षेत्रों के कामगार और मजदूर इस देशव्यापी हड़ताल में शामिल होंगे।

10 मुख्य़ ट्रेड यूनियनों के अतिरिक्त बैंकिंग, बीमा, रेलवे, केंद्र व राज्य सरकार के संस्थानों के कर्मचारी और संगठन भी इस हड़ताल में शामिल होंगे। टैक्सी ड्राईवर और असंगठित क्षेत्रों के कामगार भी इस हड़ताल का हिस्सा होंगे। अनुमान के मुताबिक लगभग 1.6 करोड़ कामगार 26 नवंबर के इस हड़ताल में भाग लेंगे।

रोड टैक्स के खिलाफ़ हड़ताल

आपातकालीन स्थिति को छोड़ हड़ताल के समर्थन में निजी वाहन मालिकों से भी अपने वाहन सड़क पर न उतारने की ट्रेड यूनियन नेताओं ने अपील की है।

ऑल इंडिया रोड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स के महासचिव राजकुमार झा ने मीडिया को बताया है कि नए परिवहन एक्ट, रेलवे के निजीकरण और लॉकडाउन में परिवहन मजदूरों को राशन कार्ड मुहैया कराने की मांग को लेकर यह हड़ताल होना है। हड़ताल में राज्य में 31 दिसम्बर तक सभी तरह के रोड टैक्स माफ करने और 31 मार्च 2021 तक डीजल की गाड़ियों के परिचालन पर रोक लगाने का फैसला पूर्व में लिया गया है, इसे तत्काल प्रभाव से निरस्त करने की मांग की गई है।

26 नवंबर को बैंककर्मी भी हड़ताल पर, देश के सभी बैंक रहेंगे बंद

26 नवंबर को बैंकों में भी हड़ताल रहेगी। देश के सभी व्यावसायिक और ग्रामीण बैंकों में काम ठप रहेगा। हालांकि भारतीय स्टेट बैंक ने खुद को हड़ताल से अलग रखा है। ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर एसोसिएशन के संयुक्त सचिव डीएन त्रिवेदी ने मीडिया को जानकारी देते हुए बताया है कि ऑल इंडिया बैंक इंपलाइज एसोसिएशन, ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर एसोसिएशन, बैंक इंपलाइज फेडरेशन ऑफ इंडिया और यूनाइटेड फोरम ऑफ ग्रामीण बैंक यूनियन के बैंक प्रबंधन 26 नवंबर को आंदोलन में शामिल होंगे।

सेंट्रल ट्रेड यूनियन की सामान्य मांगों के अतिरिक्त बैंक यूनियनों ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण का प्रस्ताव वापस लेने, बैंकों में जमा राशि पर ब्याज बढ़ाने, कॉरपोरेट घरानों से एनपीए ऋण की वसूली के लिए सख्त कार्रवाई करने, अस्थायी कर्मियों का नियमितीकरण, आउटसोर्सिंग पर प्रतिबंध, खाली पदों पर अविलंब नियुक्ति, 31 मार्च 2010 के बाद योगदान करने वाले बैंककर्मियों के लिए एनपीएस के बजाय पुरानी पेंशन योजना का कार्यान्वयन और ग्रामीण बैंकों में प्रायोजक व्यावसायिक बैंकों के साथ ही 11वें द्विपक्षीय वेतन समझौता को एक नवंबर 2017 के प्रभाव से लागू करने संबंधी 10 सूत्रीय मांगों को लेकर बैंककर्मी 26 नवंबर को हड़ताल करेंगे। 

स्टेट बैंक का यूनियन एनसीबीई और भारतीय मजदूर संघ का बैंक यूनियन नेशनल ऑर्गेनाइजेशन ऑफ बैंक ऑफिसर्स ने भी हड़ताल का नैतिक समर्थन किया है।

आंगनबाड़ी, आशा वर्कर भी हड़ताल पर

26 नवंबर को देश भर की आंगनबाड़ी और आशा वर्कर के कर्माचारी व संगठनों ने भी हड़ताल में शामिल होने का फैसला किया है। उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, दिल्ली समेत लगभग देश के हर राज्य की आंगनबाड़ी और आशा वर्कर अपनी अपनी मांगें लेकर हड़ताल में शामिल हो रही हैं।

आंगनबाड़ी यूनियन की मांग है कि वर्कर व हेल्पर को स्मार्ट फोन दिए जाएं, फिर रिचार्ज खर्च दिया जाए, ट्रेनिंग दी जाए तभी वे काम करेंगी। कर्मचारियों की मांगों, जिनमें प्ले वे स्कूल के नाम पर निजीकरण बन्द किया जाए, आंगनबाड़ी वर्कर्स व हेल्पर्स का बकाया मानदेय दिया जाए। आंगनबाड़ी केन्द्र का किराया दिया जाए।

सभी वामपंथी दलों ने किया हड़ताल का समर्थन

सीपीआई, सीपीआईएम, सीपीआईएमएल समेत सभी वामपंथी दलों ने 26 नवंबर को होने वाली देशव्यापी हड़ताल को अपना समर्थन दिया है।

उम्मीद है आने वाले एक दो दिन में कांग्रेस और तमाम क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी भी इस हड़ताल को समर्थन देंगी।

वहीं भाकपा-माले दिल्ली राज्य कमेटी ने मजदूरों की हड़ताल और किसानों के इस दो दिवसीय प्रदर्शन को अपना पूर्ण समर्थन देते हुए भागीदारी का आह्वान किया है।  माले ने कहा है- पूरे देश में थोपे गए एक अनियोजित और क्रूर लॉकडाउन ने लाखों मजदूरों की आजीविका को बर्बाद कर दिया। लाखों लोगों का जीवन बर्बाद करने के बाद मोदी सरकार ने देश के किसानों और मजदूरों पर एक नया हमला कर दिया है। मोदी सरकार द्वारा लाए गए इन नए लेबर कोड की मंशा मजदूरों द्वारा लंबे समय में कड़े संघर्षों द्वारा हासिल किए गए अधिकारों को छीनने की है।

वहीं पिछले 5 सालों में हमने विभिन्न मुद्दों पर किसानों के लगातार बढ़ते असंतोष और विशाल प्रदर्शनों को देखा लेकिन किसानों को कोई राहत देने की बजाय उनकी बदहाली को बढ़ाते हुए ताबूत की आखिरी कील ये तीन केन्द्रीय फार्म बिल साबित हुए जिन्हें राज्य सभा में सरकार के पास पूरे वोट ना होने के बावजूद जबर्दस्ती पास मान लिया गया। ये बिल फसल की एमएसपी का खात्मा करते हैं और पूरे कृषि क्षेत्र को कॉरपोरेट के नियंत्रण में देने का दरवाजा खोल देते हैं। इन कानूनों के बाद ये फैसला मुनाफाखोर कॉरपोरेट के हाथों में होगा कि कौन सी फसल उगाई जाएगी और किस फसल का क्या दाम होगा। इससे किसान और पूरा कृषि क्षेत्र इन कॉरपोरेटों की दया पर निर्भर हो जाएंगे।

ऐसे समय में जब पूरी अर्थव्यवस्था चौपट हुई पड़ी है, मजदूरों और किसानों की हालत सुधारने के कदम उठाने के बजाय मोदी सरकार उन्हे और तबाह करने की कोशिश कर रही है। आज के दौर की ये जरूरत है कि हम एकजुट होकर मजदूरों और किसानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर उठ खड़े हों।

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

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