नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने संसद के विशेष सत्र का एजेंडा अभी तक सार्वजनिक नहीं किया है। लेकिन अंदरखाने से जो खबरें आ रही हैं वह बहुत ही चौंकाने वाली हैं। कहा जा रहा है कि मोदी सरकार संसद में महिलाओं को आरक्षण देकर सांसदों की सदस्य संख्या बढ़ाना चाहती है और इसके लिए संसद का कार्यकाल बढ़ाना चाहती है।
दरअसल, इंडिया गठबंधन में लगातार बढ़ रही पार्टियों की संख्या से मोदी सरकार भयभीत हो गयी है। और वह चुनाव टालने या कोई रणनीति बनाकर विपक्षी दलों को चुनावी रूप से पछाड़ना चाहती है। ऐसे में अब वह अपने हाथ में महिला आरक्षण का हथियार लेकर खड़ी है। विपक्षी पार्टियों ने मोदी सरकार की मंशा पर सवाल उठाया है।
इस बीच भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के राज्यसभा सांसद बिनॉय विश्वम ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर 18 सितंबर से शुरू होने वाले संसद के विशेष सत्र पर सवाल उठाया है। अपने पत्र में, विश्वम ने “संसदीय प्रणाली को संरक्षित करने” के लिए राष्ट्रपति के हस्तक्षेप का आग्रह किया और कहा कि यह स्पष्ट है कि संविधान में परिकल्पित नियंत्रण और संतुलन की प्रणाली एक बड़े खतरे में है।
उन्होंने कहा, “जिस तरह से सरकार 18 सितंबर, 2023 से 22 सितंबर, 2023 तक संसद का विशेष सत्र बुलाने के लिए आगे बढ़ी है, उसके बारे में मैं पूरी निराशा के साथ आपको लिख रहा हूं।”
सीपीआई सांसद विश्वम ने पत्र में लिखा है कि “सम्मन के माध्यम से यह सूचित किया गया था कि इस विशेष सत्र में वे सभी कार्य नहीं होंगे जो संसद एक विधायिका के रूप में हमेशा करती रही है। इसमें शून्य-काल, प्रश्नकाल या निजी सदस्य दिवस नहीं होगा। विशेष सत्र के लिए कोई एजेंडा नहीं है। संसद का कार्य सरकार को लोगों के प्रति जवाबदेह बनाए रखना है। हालांकि, ये कार्रवाइयां आश्चर्यचकित करती हैं कि क्या यह सत्र कार्यकारी संसद होगा, जो उस सदन की जगह लेगा जहां बहस, चर्चा और असहमति होती थी।”
उन्होंने आगे कहा, “जैसा कि हमने पिछले सत्रों में देखा, सरकार ने संसद सदस्यों को मणिपुर हिंसा, अडानी खुलासे और पेगासस जासूसी मुद्दे जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करने से रोक दिया। साथ ही, दूरगामी परिणामों वाले कई कानून जल्दबाजी में बहुत कम या बिना बहस के पारित किए गए।”
उन्होंने आगे कहा कि “संसद को अप्रभावी बनाने के इन प्रयासों के बीच में ऐसा प्रतीत होता है कि इस विशेष सत्र के साथ सरकार यह स्पष्ट संदेश देना चाहती है कि संसदीय बहुमत ने उन्हें संसदीय प्रणाली को पूरी तरह से ख़त्म करने में सक्षम बना दिया है। उनका इरादा संसद को ‘भक्त जन समिति’ बनाना है जिसमें चर्चा के लिए कोई जगह नहीं होगी।”
पत्र में लिखा कि “यह स्पष्ट है कि हमारे संविधान में परिकल्पित जांच और संतुलन की प्रणाली एक बड़े खतरे में है। माननीय राष्ट्रपति जी, आपने ‘संविधान की रक्षा, सुरक्षा और बचाव’ की शपथ ली है और इन असाधारण परिस्थितियों में, मैं संसदीय प्रणाली को संरक्षित करने के लिए आपके हस्तक्षेप का अनुरोध करता हूं।”
सीपीआई सांसद बिनॉय विश्वम ने आगे कहा कि राष्ट्रपति के हस्तक्षेप से संसदीय सत्र एक ऐसा मंच बन सकता है जहां सवाल और महत्व के मामले उठाए जाते हैं और उन पर विचार-विमर्श किया जाता है, जैसा कि संसद में होना चाहिए।
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से नेताओं के मिलने का सिलसिला
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर उच्च स्तरीय समिति का अध्यक्ष बनाए जाने के पहले उनसे कई नेताओं ने मुलाकात की। सबसे पहले पूर्व राष्ट्रपति से मिलने वाले में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ शामिल हैं। सीजेआई चंद्रचूड़ रामनाथ कोविंद से 19 जुलाई को मिले। लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिड़ला 23 अगस्त को तो गृहमंत्री अमित शाह ने 1 अगस्त को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात की थी। केंद्रीय कानून मंत्रालय के उच्च स्तरीय समिति की अधिसूचना जारी करने के एक दिन पहले 1 सितंबर को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा कोविंद से मिलने पहुंचे थे। वहीं आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत 28 अगस्त को रामनाथ कोविंद से मिलने उनके आवास पर गए थे।
इस बीच कांग्रेस पीएम मोदी पर पूरी तरह से हमलावर है। कांग्रेस ने मोदी पर संसद को अवरोध में रखने, देश की जमीन पर चीन के कब्जे के मुद्दे पर झूठ बोलने और राष्ट्रहित के मुद्दे पर बेवकूफी करने और मनोग्रस्त होने का आरोप लगाया है।
कांग्रेस महासचिव (संगठन) केसी वेणुगोपाल ने बताया कि “18-22 सितंबर तक संसद के विशेष सत्र से पहले कांग्रेस कल (मंगलवार) शाम 5 बजे नई दिल्ली में 10 जनपथ पर संसदीय रणनीति समूह की बैठक करेगी। रात 8 बजे कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे अपने आवास पर समान विचारधारा वाले विपक्षी दलों की बैठक भी करेंगे। नेता आगामी सत्र की रणनीति पर चर्चा करेंगे।”
कर्नाटक सरकार में मंत्री प्रियांक खड़गे ने कहा कि “इंडिया गठबंधन से मोदी सरकार डर गई है और गठबंधन के लोगों को भटकाने के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाकर पांच संविधान संशोधन करने का प्रस्ताव है। संविधान संशोधन के लिए मोदी सरकार विपक्षी पार्टियों से बातचीत नहीं कर रही है। संविधान संशोधन के लिए कहां बात हो रही है, कुछ पता नहीं है। संविधान संशोधन के लिए राज्यों से भी बात होती है। देश का ढांचा संघीय है। यह संघीय ढांचे पर हमला है।”
कांग्रेस महासचिव एवं संचार प्रमुख जयराम रमेश ने एक्स पर पोस्ट किया कि “वन नेशन-वन इलेक्शन, संविधान संशोधन के बिना असंभव है। कांग्रेस अध्यक्ष के साथ ही पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष ने भी साफ कहा है कि ‘यह संघीय ढांचे पर आक्रमण है।‘ हमारे विचार बिल्कुल साफ हैं।”
वन नेशन-वन इलेक्शन पर मोदी सरकार ने भले ही उच्च स्तरीय समिति बना दी है लेकिन इस मुद्दे पर विपक्षी दलों से कोई बातचीत नहीं हो रही है। जिससे तरह-तरह की आशंकाओं को बल मिल रहा है।
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