नई दिल्ली। होर्डिंग प्रकरण में जिस तरह से हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेकर संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन मानते हुए होर्डिंग हटाने का निर्णय दिया है, वह राहत भरा है। इस फैसले के बाद योगी सरकार को इस्तीफा देना चाहिए और आरएसएस-भाजपा के लोगों को प्रदेश की जनता से माफी मांगनी चाहिए। यह प्रतिक्रिया लोकतंत्र बचाओ अभियान के संयोजक अखिलेन्द्र प्रताप सिंह ने प्रेस को दी। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में योगी राज में सामान्य लोकतांत्रिक गतिविधियों की भी इजाजत नहीं दी जा रही है।
उन्होंने कहा कि चौरी चौरा से चली ‘नागरिक सत्याग्रह पदयात्रा’ को पहले गाजीपुर में रोककर पदयात्रियों को जेल भेजा गया और अब उन्हें फिर से गिरफ्तार कर फतेहपुर की जेल में बंद किया हुआ है। ऐतिहासिक गंगा प्रसाद मेमोरियल हाल में आयोजित सम्मेलन को करने की अनुमति रद्द कर दी गयी। होर्डिंग लगाकर दारापुरी समेत सभी लोगों के जीवन को खतरे में डाल दिया गया। पूरे प्रदेश में सरकार लोकतंत्र की हत्या करने पर आमादा है।
अखिलेंद्र का कहना था कि इस सरकार के लिए संविधान और कानून को कोई मायने मतलब नहीं है। हाईकोर्ट के निर्णय से यह प्रमाणित हुआ है कि यह सरकार कानून से ऊपर उठकर काम कर रही है। अभी भी सरकार आसानी से इस फैसले को स्वीकार नहीं करने जा रही वह इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जा सकती है और आंदोलन को समाप्त करने व सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ताओं को बदनाम करने की हर सम्भव कोशिश करेगी।
इसलिए जनता को यह समझना होगा कि यह आरएसएस-भाजपा के तानाशाही थोपने और लोकतंत्र को समाप्त करने के समग्र प्रोजेक्ट का हिस्सा है। जन संवाद, तानाशाही का हर स्तर पर प्रतिवाद और लोकतंत्र की रक्षा ही इसका जवाब है। जिसके लिए जनता को खड़ा होना होगा। 29 मार्च को इसी उद्देश्य से लखनऊ में पूरे प्रदेश के हर जिले के प्रतिनिधियों की बैठक बुलाई गयी है जिसमें रणनीति तय की जायेगी।
गौरतलब है कि फैसले में कोर्ट ने बेहद कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की है। चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और जस्टिस रमेश सिन्हा की बेंच ने कहा कि “मौजूदा केस में मामला उन लोगों को मिली निजी चोट का नहीं है जिनके निजी विवरणों को पोस्टर पर दिया गया है, बल्कि चोट बेशकीमती संवैधानिक मूल्यों और प्रशासन द्वारा उनके बेशर्मी भरे प्रदर्शन से पहुंची है। मामला यहां सरकारी एजेंसिंयों की गैरलोकतांत्रिक कार्यप्रणाली का है जिनसे जनता के सभी सदस्यों से सम्मानजनक व्यवहार की अपेक्षा की जाती है। और उन्हें हर समय इस तरह का व्यवहार करना चाहिए जो संवैधानिक और लोकतांत्रिक मूल्यों को पूरा करता हो।”
निजता के अधिकार को मौलिक मानवा अधिकार का उदाहरण देते हुए बेंच ने प्रशासन के कारनामे को संविधान की धारा 21 का खुला उल्लंघन करार दिया।…..कोर्ट का कहना था कि इसमें अगर थोड़ी भी चोट की इजाजत दी गयी तो संविधान की प्रस्तावना में शामिल और तैयार किए गए हमारे मूल्यों के लिए प्राणघातक साबित हो सकता है।
लखनऊ प्रशासन जिन सामाजिक कार्यकर्ताओं को इस सार्वजनिक पोस्टर में शामिल किया था उसमें कांग्रेस नेता सदफ जाफर, रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शोएब, दीपक कबीर, शिया नेता कल्बे सादिक के बेटे कल्बे सिब्तेन और रिटायर्ड आईपीएस अफसर और एक्टिविस्ट एस आर दारापुरी शामिल हैं।
इन सभी कार्यकर्ताओं ने कहा था कि वे योगी प्रशासन की इस पहल के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे। क्योंकि इससे उनकी जान को खतरा पैदा हो सकता है। हालांकि उससे पहले ही हाईकोर्ट ने खुद ही इस मामले का संज्ञान ले लिया।
कोर्ट के फैसले का एसपी, बीएसपी और कांग्रेस ने भी स्वागत किया है। एसपी सुप्रीमो अखिलेश यादव ने कहा कि “सरकार को न तो नागरिकों की निजता के अधिकार के बारे में पता है और न ही संविधान का उसे सम्मान है। राज्य के लोग इस सरकार से ऊब गए हैं। हम सरकार के इस फैसले का स्वागत करते हैं।”
बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने कहा कि “लखनऊ में सीएए के विरोध में किये गये आन्दोलन मामले में हिंसा के आरोपियों के खिलाफ सड़कों/चैराहों पर लगे बड़े-बड़े सरकारी होर्डिंग/पोस्टरों को मा. इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा स्वतः संज्ञान लेकर, उन्हें तत्काल हटाये जाने के आज दिये गये फैसले का बी.एस.पी. स्वागत करती है”।
कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने कहा कि कोर्ट के इस फैसले ने आदित्यनाथ सरकार के गैरलोकतांत्रिक और गैर संवैधानिक चरित्र का पर्दाफाश कर दिया है। उन्होंने कहा कि निजता का अधिकार बुनियादी मौलिक अधिकार है। लेकिन सरकार ने उसे दरकिनार कर दिया। और सामाजिक कार्यकर्ताओं के उसने पोस्टर लगा दिए जो न केवल गैसंवैधानिक था बल्कि पूरी तरह से अलोकतांत्रिक भी था।