पीटी ऊषा और मैरी कॉम क्यों नहीं समझ रहीं महिला खिलाड़ियों का दर्द?

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महिला स्पोर्ट्स में सारे देश की शान और उड़न परी के नाम से मशहूर पीटी ऊषा ने जंतर-मंतर पर पिछले एक सप्ताह से धरने पर बैठीं महिला पहलवानों को लेकर जो बयान दिया है, उसने समूचे देश को सन्न कर दिया है। पीटी ऊषा ने कहा है कि “सड़कों पर जाने के बजाय उन्हें (महिला पहलवानों) हमारे पास आना चाहिए था। यह खेल के लिए अच्छा नहीं है। ऐसा करके देश की छवि को दागदार कर रही हैं। थोड़ा अनुशासन में तो होना चाहिए।”

वर्तमान में पीटी ऊषा राज्य सभा की मनोनीत सदस्य होने के साथ-साथ इंडियन ओलिंपिक संघ की मुखिया हैं। उनके इस महत्वपूर्ण पद पर होने का अर्थ था खिलाड़ियों को सम्मानित करना और महिला खिलाड़ियों को विशेष रूप से खेलों में नई ऊंचाइयों पर ले जाना और उनके सम्मान और गरिमा को एक नए स्तर पर ले जाना। लेकिन अब आम लोग भी आपसी बातचीत में इसे पद प्रतिष्ठा के मोह में एक चैंपियन खिलाड़ी के पतित हो जाने के रूप में ही देख रहे हैं।

इन महिला खिलाड़ियों के लिए पीटी ऊषा का बयान किसी व्रजपात से कम नहीं साबित हुआ है। लगभग फूट-फूटकर रोते हुए साक्षी मलिक ने मीडिया के सामने उनके इस बयान पर जो कुछ कहा वह विचलित कर देने वाला है। पीटी ऊषा ने भारत को एशियाड खेलों में भले ही कई पदक दिलाये हों, और दशकों तक भारतीय खेल प्रशंसकों ने उन्हें सिर माथे लगा रखा, लेकिन ओलिंपिक खेलों में वे कभी भी कोई पदक देश के नाम नहीं कर पाईं। एक बार वे कांस्य पदक के लिए सेकंड के सौवें हिस्से से चूक गई थीं, जिसको लेकर भारत में कई वर्षों तक उनके साथ सहानुभूति बनी रही।

लेकिन साक्षी मलिक ने तो देश को ओलिंपिक में कांस्य पदक तक लाकर दिया है। वे किसी भी मायने में पीटी ऊषा से कम नहीं हैं। आज वे एक बार नहीं दूसरी बार सड़क पर धरने पर बैठी हैं। लेकिन पद और प्रतिष्ठा के गुरूर में पीटी ऊषा यदि इन महिला खिलाड़ियों के पक्ष में खड़ी होने के जगह महिलाओं के यौन शोषण करने वाले के पक्ष में चुप रहती हैं, लड़कियों को उनकी जिम्मेदारी बताती हैं और नैतिकता का पाठ पढ़ाने की कोशिश करती हैं, तो यह देश के लिए बेहद अफसोसनाक खबर है।

ऐसा लगता है कि पीटी ऊषा का खिलाड़ियों के खिलाफ इस प्रकार का बयान दिया जायेगा, इसकी इन महिला खिलाड़ियों को सपने में भी उम्मीद नहीं थी। यही कारण है कि साक्षी मलिक तो पत्रकारों से बात करते-करते फफक कर रो पड़ीं। विनेश फोगाट ने मंच संभाला और विस्तार से जवाबी हमला करते हुए पीटी ऊषा को उनके स्वयं के स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स के गिराए जाने पर सार्वजनिक मंच पर गुहार लगाने वाली घटना का जिक्र किया। लगता नहीं कि ओलंपिक संघ की प्रमुख पीटी ऊषा अपनी सफाई में अब कोई जवाब दे पायेंगी।

उनके पास पूर्व खेल मंत्री अनुराग ठाकुर के साथ टेबल टेनिस में दो-दो हाथ आजमाने का समय तो है, और वे इसे शान से ट्वीट करती हैं, जिसे मंत्री जी भी रिट्वीट करते हैं, लेकिन जंतर-मंतर पर जाकर सांत्वना के दो बोल बोलना या पिछले दिनों से अब तक 2013 से 2022 तक कुश्ती महांसघ में बृज भूषण शरण सिंह की क्या कारगुजारियां रही हैं, उसके बारे में वे शायद ही झांकने का साहस कर पाएं।

द वायर की एंकर आरफा खानम शेरवानी ने बजरंग पुनिया के साथ किये गये एक बातचीत के अंश को ट्वीट किया है, जिसमें पुनिया का कहना है कि महिला पहलवानों की FIR तक दर्ज नहीं हुई है लेकिन उनके नाम पहले ही लीक कर दिये गये हैं। “जिनका यौन शोषण हुआ, अब उनको धमकाया जा रहा है। उनके कोच और घरवालों को धमकियों भरे फ़ोन पहुंच रहे हैं। अगर लड़कियों को कुछ भी होता है तो इसकी ज़िम्मेदार पुलिस और सरकार होगी”

जंतर-मंतर पर बृज भूषण शरण सिंह के कारनामों पर एक बड़ा पोस्टर लगाया गया है, जिसमें माननीय सांसद के खिलाफ यूपी के विभिन्न जिलों में कई मामलों के अंतर्गत कुल 38 मामले दर्ज किये गये बताये जा रहे हैं। यदि इतने मामले पहले से ही चल रहे हैं तो सवाल उठता है कि एक मामला दिल्ली में भी यदि पुलिस दर्ज कर लेती है तो कौन सा बड़ा पहाड़ टूट पड़ेगा?

शायद पीटी ऊषा को इसका संज्ञान लेना चाहिए कि उनके नीचे ओलंपिक संघ के विभिन्न पदों पर बैठे लोगों का क्या इतिहास है, ताकि उन्हें भविष्य में खिलाड़ियों को अनुशासन में रहने और देश का मान बनाये रखने की नसीहत देने की जरूरत ही न पड़े। आप ओलंपिक संघ की आज सर्वेसर्वा हैं, यदि आप अपना ही महकमा दुरुस्त कर लेंगी, तो भारत की लाखों बेटियों और उनके अभिभावकों को भरोसा जमे कि वे बिना किसी आशंका के अपनी बच्चियों को खेल में हिस्सा लेने के लिए बाहर जाने में न हिचकिचाएं।

एबीपी न्यूज़ के पूर्व वरिष्ठ एंकर सुमित अवस्थी ने इस पोस्टर को शेयर करते हुए चुटकी ली है:

https://twitter.com/awasthis/status/1651824415527804928?s=20

यह लेख लिखे जाते समय तक सर्वोच्च न्यायालय में दिल्ली पुलिस की पेशी की खबर आ रही है, जिसमें दिल्ली पुलिस की ओर से अदालत को आश्वस्त किया गया है कि दिल्ली पुलिस इस मामले में एफआईआर दर्ज करने जा रही है। लेकिन सवाल उठता है कि मंगलवार से शुक्रवार हो गया और दिल्ली पुलिस ने इस बीच एफआईआर दर्ज करने में इतना समय क्यों लगाया?

जब इतने बड़े हाई-प्रोफाइल मामले, जिस पर देश ही नहीं दुनिया की निगाहें लगी हों, देश की कानून-व्यवस्था पर आज दुनिया भर में सवाल खड़े हो रहे हों, और ऊपर से सुप्रीमकोर्ट तक में शायद पहली बार किसी को एफआईआर को दर्ज कराये जाने के लिए गुहार लगानी पड़ी हो, उसके बावजूद दिल्ली पुलिस इसे तत्काल दर्ज करने के बजाय पहले जांच करने की बात पर क्यों अडिग है?

क्या दिल्ली पुलिस, खेल मंत्रालय, ओलंपिक एसोसिएशन को कोई इतने दबाव में ले सकता है कि वे इतने बड़े प्रश्न पर कोई एक्शन नहीं ले पा रहे हैं? क्या बृज भूषण शरण सिंह का दबदबा यूपी के चंद जिलों से बढ़कर अब दिल्ली के मुहाने पर दस्तक दे रहा है?

दिल्ली में तो शायद 1% लोगों तक को 3 महीने पहले तक बृज भूषण सिंह कोई संसद सदस्य हैं, का संज्ञान न रहा हो। फिर वे कौन सी शक्तियां हैं जो सत्ता के शिखर पर पदासीन लोगों को अपनी साख को दांव पर लगाने के जोखिम से भी बाहर नहीं जाने दे रहे हैं, आज देश इस बारे में अंदाजा लगा रहा है।

इस बारे में गोरखपुर से जसम के राष्ट्रीय महासचिव एवं गोरखपुर ऑनलाइन के संपादक मनोज सिंह का कहना है कि आगामी 2024 के चुनाम में भाजपा किसी भी सूरत में यूपी में अपनी सीटों को कम होता नहीं देख सकती है। उसके पास खोने के लिए बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, बंगाल सहित कई राज्य हैं जहां से इस बार भाजपा की सीटें 2019 की तुलना में कम हो सकती हैं।”

मनोज सिंह कहते हैं कि “यूपी में इस बीच पिछले दो वर्षों से बृज भूषण सिंह ने अवध क्षेत्र में काफी पकड़ बनाने की कोशिश की है। कई स्कूल खोले गये हैं। यहां तक कि पूर्व में बृज भूषण की ओर से योगगुरु रामदेव और राज ठाकरे के खिलाफ भी जमकर बयानबाजी की गई, और राज ठाकरे को जब जमीनी हकीकत पता चला तो वे यूपी नहीं आये। आज मोदी के लिए बृज भूषण पर हाथ डालना मतलब भारी संकट मोल लेना होगा।”

अभी फिलहाल सारा ध्यान इन महिला खिलाड़ियों के धरने को ज्यादा तूल न मिल सके, पर दिया जा रहा है। एक एक कर सत्ता में बैठे लोगों और लब्धप्रतिष्ठ हस्तियों को आगे कर मुद्दे को डाइवर्ट किया जा रहा है, ताकि संकट टल जाये।

लेकिन 3 महीने बाद मजबूर होकर पहले से कहीं अधिक फौलादी इरादों से धरने पर बैठीं ये महिला खिलाड़ी शायद आर-पार से कम पर तैयार होने के मूड में नहीं दिख रही हैं। पिछले तीन महीने उन्होंने जांच कमेटी की रिपोर्ट के इंतजार में बिता दिए, जिसमें इस बारे में कुछ भी नहीं कहा गया। इसमें सिर्फ आंतरिक सांगठनिक व्यवस्था में कमियों की बात कही गई है, और इस कमेटी को भंग कर दिया गया है। कमेटी की पूरी रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया है। इसमें भी कुछ सदस्यों द्वारा बयान देने पर एक सदस्य द्वारा टोका-टाकी की शिकायत की खबर है।

2014 में भी लखनऊ में एक प्रशिक्षण शिविर के दौरान 3 महिला खिलाड़ियों को रात के 9 बजे बृज भूषण सिंह के पास भेजे जाने की खबर इंडियन एक्सप्रेस में प्रमुखता से छपी है, जिसमें 2013 में फिजियोथेरेपिस्ट मलिक ने सामने आकर सनसनी मचा दी है। उन्होंने साफ़-साफ शब्दों में कहा है कि 2014 में भी उन्होंने अपनी गवाही में कमेटी को बताया था कि किस प्रकार से 3 महिला खिलाड़ी उनके सामने रोते-रोते अपनी आपबीती सुनाई थी। सांसद के ड्राइवर सहित उसके आदमी इन खिलाड़ियों को लाने आये थे। 

अच्छी खबर यह है कि भारत के लिए ओलंपिक में पहला गोल्ड लाने वाले शूटर अभिनव बिंद्रा ने इस बारे में अपनी दो-टूक राय से बड़े-बड़े खेल के सितारों के लिए नजीर पेश की है। अपने ट्वीट में बिंद्रा ने कहा है, कि “एक खिलाड़ी के तौर पर हम अपने देश का अंतर्राष्ट्रीय मंच पर प्रतिनिधित्व करने के लिए दिन-रात कड़ी मेहनत करते हैं। लेकिन यह देखकर बेहद अफ़सोस होता है कि भारतीय कुश्ती प्रशासन से प्रताड़ना सहने के आरोपों के लिए हमारे एथलीट्स को सड़कों पर आकर विरोध करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। जो भी लोग इसके भुक्तभोगी हैं उनके लिए मेरा दिल द्रवित है।”

बिंद्रा ने आगे कहा कि “हमें सुनिश्चित करना होगा कि इस मुद्दे को सही ढंग से निपटाया जाये, जिसमें खिलाड़ियों की शिकायतों को सुना जाये और निष्पक्ष एवं स्वतंत्र तरीके से समाधान निकाला जाये। यह घटना एक यथोचित सुरक्षा तंत्र की बेहद जरूरी व्यवस्था की जरूरत की ओर हम सबका ध्यान आकर्षित करती है, जिसके जरिये प्रभावित लोगों के लिए न्याय को सुनिश्चित किया जा सके और भविष्य में दुर्व्यवहार को रोका जा सके। सभी खिलाड़ियों के अपना बेहतरीन प्रदर्शन देने को सुनिश्चित बनाने के लिए हमें एक सुरक्षित वातावरण का निर्माण करने की पहल करनी होगी।“

इसके अलावा क्रिकेट खिलाड़ी हरभजन सिंह ने भी महिला खिलाड़ियों के समर्थन में बयान जारी किया है।

देश को एक दिवसीय खेलों में पहला विश्व कप जिताने वाले क्रिकेटर कपिल देव निखंज ने भी इन्स्टाग्राम में इन महिला खिलाड़ियों की धरनास्थल की तस्वीर साझा करते हुए पूछा है “क्या इन्हें कभी न्याय मिलेगा?” यह यक्ष प्रश्न अब सारे देश को मथ रहा है। इसके बाद तो कई क्रिकेटर्स और खिलाड़ी आगे आये हैं, जिनमें नीरज चोपड़ा, सानिया मिर्जा, वीरेंद्र सहवाग, नवजोत सिंह सिद्धू , रानी रामपाल, निकहत ज़रीन और इरफ़ान पठान जैसे दिग्गज खिलाड़ी शामिल हैं।

सोशल मीडिया पर यूजर लगातार स्टार खिलाड़ियों से अपील कर रहे हैं कि वे आखिर कब इन देश की बेटियों के साथ खड़े होंगे। उम्मीद है कि जल्द ही बड़ी संख्या में खिलाड़ी और फिल्म कलाकार भी सामने आयेंगे। हालांकि उनके पास ऐसा न करने के सौ बहाने अभी भी मौजूद हैं।

लेकिन निश्चित ही पीटी ऊषा और महिला बॉक्सिंग में चोटी की खिलाड़ी रही मेरी कॉम के ऊपर नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि जिन खेलों के चलते उन्हें आज खेल संघों की अध्यक्षता का मौका मिल रहा है या संसद की दहलीज तक पहुंच रही हैं, उसका फायदा क्या भावी पीढ़ी की महिला एथलीट्स को भी मिलेगा या वे किसी बड़ी योजना की एक शिकार बन कर रह जाने और बदले में अपने लिए सुरक्षित भविष्य को ही अपना लक्ष्य मानती रह जाएंगी।

आज देश असली पीटी ऊषा और मैरी कॉम की हकीकत को जानना चाहता है। यह प्रश्न हर उस इंसान के जीवन में आता है जिसके पास चुनाव करने की स्वतंत्रता उपलब्ध है। यह स्वतंत्रता चुनने का उसे पूरा अधिकार है, बशर्ते वह इसकी कीमत चुकाने के लिए तैयार हो।

(रविंद्र पटवाल लेखक और स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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