सांसद, विधायकों को दो-दो पेंशन दिए जाने पर हाईकोर्ट का केंद्र व राज्य को नोटिस

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सांसदों, विधायकों को उनका कार्यकाल पूरा होने के बाद दो-दो पेंशन दिए जाने को लेकर दायर की गई जनहित याचिका पर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस सुजाय पाल और जस्टिस अनिल वर्मा की खंडपीठ ने केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर पूछा है, क्यों न पेंशन की पात्रता के लिए विधायकों-सांसदों का न्यूनतम कार्यकाल तय कर दिया जाए। कोर्ट ने एक व्यक्ति एक पेंशन मुद्दे पर भी सरकारों से जवाब-तलब किया है। केंद्र और राज्य दोनों को चार सप्ताह में जवाब देना है। अगली सुनवाई 24 सितंबर को होगी। हाईकोर्ट में यह जनहित याचिका एडवोकेट पूर्वा जैन ने दायर की है।

याचिका में कहा गया है कि सांसदों और विधायकों को वेतनमान और पेंशन का भुगतान आम आदमी से वसूले गए टैक्स से होता है। फिलहाल जो व्यवस्था है, उसके मुताबिक अलग-अलग समय में विधायक और सांसद रहे व्यक्ति को अलग-अलग पेंशन दी जाती है। याचिका में मांग की गई है कि सिर्फ उन्हीं विधायक या सांसदों को पेंशन की पात्रता होना चाहिए, जिन्होंने न्यूनतम पांच साल का कार्यकाल पूरा कर लिया है। वर्तमान में जो व्यवस्था है, उसके हिसाब से एक दिन के लिए सांसद या विधायक चुने जाने पर भी पेंशन की पात्रता आ जाती है। यह सही नहीं है। याचिका में मांग की गई है कि एक व्यक्ति को एक ही पेंशन के लिए पात्र माना जाए।

कई बार नेता विधायक के साथ ही सांसद भी बन जाते हैं। ऐसे में इन नेताओं को कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी दो पेंशन दी जाती हैं।इसके खिलाफ इंदौर हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई थी। अब इस याचिका पर हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। नोटिस में हाईकोर्ट ने कहा है कि एक व्यक्ति एक पेंशन व्यवस्था को लागू करने में दिक्कत क्या है? सरकार यह साफ करे।

याचिका में ये भी कहा गया है कि जिन नेताओं ने एक दिन भी सांसद या विधायक का कार्यकाल पूरा किया है, उन्हें भी पेंशन दी जाती है। याचिका में मांग की गई है कि 5 साल का कार्यकाल पूरा करने वाले नेताओं को ही पेंशन का लाभ दिया जाना चाहिए।

याचिका में मांग की गई है कि एक कमेटी या बोर्ड बनाया जाना चाहिए, जिसके पास देश के सभी विधायकों और सांसदों का डाटा होना चाहिए ताकि उन्हें एक व्यक्ति एक पेंशन का लाभ दिया जा सके। मध्य प्रदेश में एक विधायक का वेतन एक लाख 10 हजार रुपए है। वहीं विधायक की पेंशन करीब 35 हजार रुपए है। इसी तरह सांसद का वेतन करीब ढाई लाख रुपए और पेंशन 25 हजार रुपए है। ऐसे में अगर कोई विधायक, सांसद भी बन जाता है तो उसे विधायक और सांसद दोनों की पेंशन मिलेंगी। मौजूदा वक्त में कई नेता इस सुविधा का लाभ ले रहे हैं। मध्य प्रदेश में पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री थावर चंद गहलोत, पूर्व सांसद सत्यनारायण जटिया, सज्जन सिंह वर्मा, विक्रम वर्मा, प्रेमचंद गुड्डू और कांतिलाल भूरिया को यह सुविधा मिल रही है।

इसके पहले उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2018 में सांसदों के वेतन और भत्तों के नियमन संबंधी लोक प्रहरी की याचिका खारिज कर दी थी। गैर सरकारी संगठन लोक प्रहरी की ओर से कोर्ट में सांसदों को पेंशन और आजीवन रेलवे यात्रा आदि की सुविधा दिए जाने के विरोध में जनहित याचिका डाली गयी थी। याचिका में सांसदों द्वारा खुद ही अपना वेतन और भत्ते निर्धारित करने सहित अनेक मुद्दे उठाए गए थे। साथ ही सांसदों और उनके परिवार के सदस्यों के लिये पेंशन भी निरस्त करने का अनुरोध किया गया। न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल के पीठ ने सेवानिवृत्त सांसदों को दी जाने वाली पेंशन और अन्य भत्तों के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया था।

उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि सांसदों को कुछ अधिकार और विशेषाधिकार मिलते हैं इसलिए उनकी पेंशन का उनकी सालाना सेवा की संख्या के साथ गठजोड़ नहीं होना चाहिए। संसद पेंशन शब्द को बदलकर मुआवजा नाम दे सकती है। एक व्यक्ति सांसद बनने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर देता है। उसे सांसद बनने के लिए लोगों से मिलना-जुलना पड़ता है, यात्रा करनी होती है। चुनाव हारने के बाद भी उसे लोगों से संपर्क में रहना पड़ता है। इसलिए पेंशन जीवन को सम्मानजनक तरीके से आगे बढ़ाने के लिए भत्ते का रूप हो सकती है। हालांकि पीठ ने अटॉर्नी जनरल को यह सूचना देने के लिए कहा है कि क्या पेंशन और भत्तों को सांसदों को देने के लिए कोई तंत्र बनाया जा रहा है, क्योंकि पिछले 12 सालों से यह मुद्दा लंबित है।

पेंशन के लिए कोई न्यूनतम समय सीमा तय नहीं है। यानी कितने भी समय के लिए सांसद रहा व्यक्ति पेंशन का हकदार होगा। एक अजीब विरोधाभासी नियम है। सांसदों और विधायकों को डबल पेंशन लेने का भी हक है। कोई व्यक्ति पहले विधायक रहा हो और बाद में सांसद भी बना हो तो उसे दोनों की पेंशन मिलती है। पति, पत्नी या आश्रित को फेमिली पेंशन की सुविधा भी है। सांसद या पूर्व सांसद की मृत्यु पर उनके पति, पत्नी या आश्रित को आजीवन आधी पेंशन दी जाती है। मुफ्त रेल यात्रा की सुविधा दी जाती है। पूर्व सांसदों को किसी एक सहयोगी के साथ ट्रेन में सेकेंड एसी में मुफ्त यात्रा की सुविधा है। अकेले यात्रा पर प्रथम श्रेणी एसी की सुविधा है।

पीठ ने कहा था कि दुनिया में किसी भी लोकतंत्र में ऐसा नहीं होता कि कोर्ट नीतिगत मुद्दों पर फैसला दे। ये मानते हैं कि ये आदर्श हालात नहीं हैं। लेकिन कोर्ट ऐसे फैसले नहीं कर सकता। केंद्र सरकार की तरफ से पेश अटार्नी जनरल ने कोर्ट के सामने पूर्व सांसदों को आजीवन पेंशन और अलाउंस दिए जाने का समर्थन किया था।

लोकप्रहरी ने याचिका दाखिल कर कहा था कि पूर्व सासंदों और विधायकों को आजीवन पेंशन दी जा रही है जबकि नियमों में यह शामिल नहीं है। अगर एक दिन के लिए भी कोई सांसद बन जाता है तो वह ना केवल आजीवन पेंशन का हकदार हो जाता है, उसकी पत्नी को भी पेंशन मिलती है। साथ ही वह जीवन भर एक साथी के साथ ट्रेन में फ्री यात्रा करने का हकदार हो जाता है जबकि राज्य के गर्वनर को भी आजीवन पेंशन नहीं दी जाती। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के वर्तमान जजों को भी साथी के लिए मुफ्त यात्रा का लाभ नहीं दिया जाता। चाहे वह आधिकारिक यात्रा पर ही क्यों ना जा रहे हों। ऐेसे में यह व्यवस्था आम लोगों के लिए बोझ है और ये व्यवस्था राजनीति को और भी लुभावना बना देती है। अगर असल में देखा जाए तो यह खर्च ऐेसे लोगों पर किया जाता है जो जनता का प्रतिनिधित्व नहीं करते इसलिए इस व्यवस्था को खत्म किया जाना चाहिए।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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