आज़ादी के लिये संघर्ष करते देश को ‘हिंदू राष्ट्र’ की अवधारणा देकर देश को बंटवारे और समाज को नफ़रती सांप्रदायिक विभाजनवादी मानसिकता में धकेलने वाले माफ़ी वीर विनायक दामोदर सावरकर को लेकर भाजपा और आरएसएस जब तब उल्टियां करते रहते हैं। इसी क्रम में इतिहास के गले में अपना घुटना गड़ाकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बयान दिया है कि सावरकर ने अंग्रेजों से माफ़ी गांधी के कहने पर माँगी थी।
जबकि सावरकर गांधी की हत्या में नामित थे। इससे जाहिर है कि सावरकर गांधी से नफ़रत करते थे। तो क्या भाजपा या आरएसएस में झूठ बोलने के लिये कोई होड़ लगी है कि जो जितना बड़ा झूठ बोलेगा उसे उतना बड़ा पद मिलेगा। तभी तो मोदी, शाह, योगी, बिप्लव देब, और अब राजनाथ के बीच झूठ बोलने की होड़ लगी हुयी है। वैसे आजादी के बाद संभवत: यह पहला मौका है जब आरएसएस और बीजेपी ने खुलकर स्वीकार किया है कि सांप्रदायिक नफ़रत और विभाजन पर आधारित हिंदुत्व की शुरुआत करने वाले विनायक दामोदर सावरकर ने अंग्रेजी शासन से माफ़ी मांगी थी।
बता दें कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह चिरायु पंडित और दय माहुरकर द्वारा लिखिति किताब ‘वीर सावरकर- द मैन हू कुड हैव प्रिवेंटेड पार्टीशन’ के विमोचन के मौके पर पहुंचे थे। इस मौके पर उन्होंने कहा कि सावरकर महानायक थे, हैं और रहेंगे। उन्हें विचारधारा के चश्मे से देखने वालों को माफ़ नहीं किया जा सकता।”
राजनाथ ने आगे कहा, “सावरकर के बारे में एक झूठ फैलाया जाता है कि 1910 में आजीवन कारावास की सजा काट रहे सावरकर ने ब्रिटिश हुकूमत के सामने दया याचिका दी थी। जबकि, सच यह है कि उन्होंने महात्मा गांधी के कहने पर ऐसा किया था।”
आम तौर पर राजनाथ सिंह को पढ़ा-लिखा और विवेकशील व्यक्ति समझा जाता है लेकिन फ्रांस में राफेल पर नींबू मिर्च टांगकर उन्होंने अपनी बुद्धि और तर्कशीलता का परिचय दे ही चुके हैं। लेकिन राजनाथ सिंह ने बोलने से पहले ऐतिहासिक तथ्यों की भलीभांति जांच परख नहीं की। वर्ना वो ऐसा बयान हर्गिज नहीं देते। बता दें कि विनायक दामोदर सावरकर को सेल्युलर जेल यानी काला पानी में 4 जुलाई, 1911 को बंद किया गया। जेल जाने के छह महीने के भीतर ही सावरकर ने अंग्रेजी शासन के सामने दया याचिका दायर की। इसके बाद 14 नवंबर 1913 को सावरकर ने एक और दया याचिका दायर की। जबकि महात्मा गांधी तो उस समय दक्षिण अफ्रीका में थे। गांधी जी तो 9 जनवरी, 1915 को भारत लौटे थे।
क्या आरएसएस के दबाव में राजनाथ ने यह बेहूदा बयान दिया?
क्या राजनाथ पर आरएसएस का प्रेशर काम कर रहा था। गौरतलब है कि कल (मंगलवार को) ही संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी सावरकर पर बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि आजादी के बाद से ही सावरकर को बदनाम करने की कोशिश हो रही है। उन्होंने कहा था कि वीर सावरकर के बारे में लोगों में जानकारी का अभाव है। लेकिन अब लोग इस पुस्तक के जरिए वीर सावरकर को जान सकेंगे। इसके बाद स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती और योगी अरविंद का नंबर है। उनके बारे में भी सही जानकारियां लोगों तक पहुंचाई जाएंगी।
एक नहीं चार माफ़ीनामा भेजा था ‘वीर’ ने
ऐसे में कब और कहां से गांधी जी ने सावरकर को दया याचिका दायर करने को कहा होगा, समझ में आने वाली बात नहीं है। हालांकि सावरकर ने इसके बाद 4 और दया याचिकाएं ब्रिटिश हुकूमत के सामने दायर कीं जिसमें उन्होंने कहा था कि वे ब्रिटिश सरकार की हर तरह से सेवा करने को तैयार हैं।
इसके बाद 50 साल की सजा पाए हुए सावरकर की कैद को घटाकर पहले 13 साल किया गया और फिर उन्हें रिहा कर दिया गया। सावरकर ने 10 साल से भी कम समय पोर्ट ब्लेयर स्थिति सेल्युलर जेल में गुजारा। इतना ही नहीं ब्रिटिश हुकूमत ने सावरकर पर यूं तो राजनीतिक गतिविधियों में शामिल न होने का प्रतिबंध लगाया था, लेकिन उन्हें हिंदू महासभा की गतिविधियां जारी रखने की छूट मिली हुई थी ।
राजनाथ को दुरुस्त करने के लिए विपक्ष आगे आया
राजनाथ की ऐतिहासिक भूल कहिये या फिर जानबूझकर की गयी ऐतिहासिक धृष्टता को दुरुस्त करने के लिये बुद्धिजीवी वर्ग व विपक्ष आगे आया है। कांग्रेस नेता शमा मोहम्मद ने भी राजनाथ सिंह के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुये कहा है कि गांधी जी ने तो खुद जेल में बरसों बिताए हैं और उन्होंने कभी भी अंग्रेजों के सामने दया याचिका दायर नहीं की। राजनाथ सिंह जी को इस झूठ पर शर्म आनी चाहिए। गांधी जी तो अंग्रेजों को सामने झुकने के बजाए जेल में ही रहना पसंद करते थे।”
सीपीआई-एमएल की पोलित ब्यूरो सदस्य कविता कृष्णन ने उनकी गलती को दुरुस्त करते हुये कहा है कि राजनाथ सिंह बताएं कब और कैसे गांधी जी ने सावरकर को दया याचिका लिखने की सलाह दी थी। साथ ही कविता कृष्णन ने कहा है कि अब तो आप यह भी कहेंगे कि गांधी जी ने खुद ही गोडसे से कहा था कि वह उन्हें गोली मार दे।
वहीं पूर्व सांसद और वरिष्ठ पत्रकार शाहिद सिद्दीकी ने कहा है कि अब सावरकर की दया याचिका और कायरता के लिए गांधी जी को कुसूरवार ठहराया जाएगा। इतिहासकार एस इरफान हबीब ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुये कहा है कि, “हां, एक खास में रंगे इतिहास को लिखने का चलन सही में बदल रहा है जिसकी अगुवाई रक्षा मंत्री कर रहे हैं। कम से कम उन्होंने यह तो स्वीकार कर लिया कि सावरकर ने दया याचिका लिखी थी। ऐसे में अब कोई दस्तावेजी सबूत की जरूरत ही नहीं है। नए भारत का नया इतिहास….”
(जनचौक ब्यूरो की रिपोर्ट।)
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