पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद हिंसा: हाईकोर्ट की निगरानी में होगी सीबीआई और एसआईटी की जांच

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कलकत्ता हाईकोर्ट ने गुरुवार को विधानसभा परिणामों की घोषणा के बाद मई में पश्चिम बंगाल में हुई महिलाओं और बच्चों की हत्या और बलात्कार से संबंधित मामलों की जांच सीबीआई को सौंप दी। कार्यवाहक चीफ जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस आईपी मुखर्जी, जस्टिस हरीश टंडन, जस्टिस सौमेन सेन और जस्टिस सुब्रत तालुकदार की पांच सदस्यीय पीठ ने सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस पार्टी के सदस्यों द्वारा चुनाव के दौरान भाजपा का समर्थन करने वालों पर हिंसा के कथित कृत्यों के खिलाफ राज्य की निष्क्रियता का आरोप लगाने वाली याचिकाओं के एक समूह में फैसला सुनाया। पीठ ने चुनाव के बाद कथित हिंसा के संबंध में अन्य आरोपों की जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) के गठन का भी आदेश दिया है।

पीठ ने कहा कि दोनों जांच की निगरानी उच्च न्यायालय द्वारा की जाएगी। पीठ ने आदेश दिया कि एनएचआरसी समिति की रिपोर्ट के अनुसार सभी मामले जहां बलात्कार के प्रयास के संबंध में किसी व्यक्ति की हत्या या महिलाओं के खिलाफ अपराध के आरोप हैं, उन्हें सीबीआई को जांच के लिए भेजा जाएगा। पीठ ने कहा कि राज्य को ऐसी जांच के लिए मामलों के सभी रिकॉर्ड सीबीआई को सौंपने चाहिए। पीठ ने अपनी रिपोर्ट में एनएचआरसी समिति द्वारा उद्धृत अन्य सभी मामलों को अदालत की निगरानी में जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) को भेज दिया। पीठ ने कहा कि यह एक अदालत की निगरानी में जांच होगी और किसी के द्वारा जांच के दौरान किसी भी बाधा को गंभीरता से लिया जाएगा।

एसआईटी में पश्चिम बंगाल कैडर के तीन आईपीएस अधिकारी सुमन बाला साहू, सौमेन मित्रा और रणवीर कुमार शामिल होंगे। कोर्ट ने कहा कि एसआईटी के कामकाज की समीक्षा उच्चतम न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश करेंगे, जिस पर बाद में संबंधित न्यायाधीश की सहमति लेने के बाद एक अलग आदेश पारित किया जाएगा। मामले की फिर से सुनवाई 4 अक्टूबर 2021 को होगी।

पीठ ने सीबीआई और एसआईटी से 6 हफ्ते में स्टेटस रिपोर्ट मांगी है। पीठ ने कहा कि राज्य सरकार जांच कराने में नाकाम रही है। चुनाव आयोग पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा है कि चुनाव आयोग को हिंसा पर बेहतर भूमिका निभानी चाहिए थी। पुलिस ने राजनीतिक हिंसा में 17 लोगों के मारे जाने की पुष्टि की थी। हालांकि, भाजपा का आरोप था कि उनके इससे कई गुना ज्यादा कार्यकर्ता मारे गए हैं। भाजपा ने एक सूची तैयार कर की थी। सूची के मुताबिक चुनाव के बाद हत्या, हिंसा, आगजनी और लूटपाट की 273 घटनाएं हुई थीं।

राज्‍य में 2 मई को चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की आश्चर्यजनक वापसी के बाद व्यापक हिंसा का आरोप लगाते हुए कई याचिकाकर्ताओं ने इस साल की शुरुआत में हाईकोर्ट का रुख किया था। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने इस दिशा में एक समिति का गठन किया था।

हाईकोर्ट ने 31 मई को तीन सदस्यीय समिति के गठन का आदेश दिया था ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि राज्य में चुनाव के बाद की हिंसा से विस्थापित हुए लोग अपने घरों को लौट सकें। प्रभावित पक्षों को पश्चिम बंगाल राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के पास शिकायत दर्ज कराने का निर्देश दिया गया था और समिति को उनकी जांच करनी थी और यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाना था कि लोगों को उनके घर लौटने की अनुमति दी जाए। डब्‍ल्‍यूबीएसएलएसए ने तब अदालत को एक रिपोर्ट सौंपी जिसमें उन्हें प्राप्त शिकायतों और चुनाव के बाद की हिंसा के प्रभावों का विवरण दिया गया।

पीठ ने एनएचआरसी के हस्तक्षेप का आदेश दिया और साथ ही राज्य को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि एनएचआरसी समिति को प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करने के लिए आवश्यक सहायता प्रदान की जाए। एनएचआरसी के अध्यक्ष जस्टिस अरुण मिश्रा ने चुनाव के बाद की हिंसा की शिकायतों की जांच के लिए सात सदस्यीय समिति का गठन किया। बाद में एनएचआरसी समिति ने एक रिपोर्ट सौंपी जिसमें सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस पर राज्य के मामलों को कानून के शासन के बजाय शासक के कानून में बदलने का आरोप लगाया गया। इसने सिफारिश की कि हत्या और बलात्कार सहित गंभीर अपराधों के मामलों को जांच के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दिया जाना चाहिए और ऐसे मामलों की सुनवाई राज्य के बाहर की जानी चाहिए।

पुलिस महानिदेशक की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने अदालत के समक्ष दलील दी कि एनएचआरसी समिति का गठन स्वाभाविक रूप से पक्षपातपूर्ण और राजनीति से प्रेरित था। सिंघवी ने समिति के सदस्य आतिफ रशीद का जिक्र किया, जिन्होंने पहले बीजेपी की ओर से चुनाव लड़ा था। अदालत को यह भी बताया गया कि आतिफ रशीद ने 9 जुलाई को अपने ट्विटर हैंडल पर एक पुलिस अधीक्षक के साथ एक साक्षात्कार अपलोड किया था, जो इंगित करता है कि चुनाव के बाद की हिंसा के आरोपों के बारे में एक निर्धारण पहले ही प्रस्तुत किया जा चुका था। सिंघवी ने कहा कि समिति के एक अन्य सदस्य राजुलबेन एल देसाई का भी बीजेपी से अलग जुड़ाव है। इसके अलावा राजीव जैन एक अन्य समिति सदस्य थे जो इंटेलिजेंस ब्यूरो के पूर्व निदेशक थे।

सिंघवी ने तर्क दिया कि समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट उन मामलों से भरी हुई है जो चुनाव परिणाम घोषित होने से पहले दायर किए गए थे। इसके बाद सिंघवी ने इस तरह की पूर्व नियोजित शिकायतों के विभिन्न उदाहरणों से न्यायालय को अवगत कराया। सिंघवी ने कहा कि केवल उन घटनाओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए जो चुनाव परिणाम के तत्काल बाद में हुई थीं।

सिंघवी ने अदालत को यह भी बताया कि पीड़ितों द्वारा दायर मूल बंगाली बयानों और समिति द्वारा किए गए उनके बाद के अनुवाद में भारी विसंगतियां हैं। समिति ने एक बयान के अंग्रेजी अनुवादित संस्करण में ‘टीएमसी गुंडे’ वाक्यांश डाला था, जिसका रिकॉर्ड किए गए मूल बयान में कोई उल्लेख नहीं था। पश्चिम बंगाल के डीजीपी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सौमेंद्र नाथ मुखर्जी ने अदालत को बताया कि एनएचआरसी समिति द्वारा दर्ज की गई 1979 शिकायतों में से 864 शिकायतों में किसी तारीख का उल्लेख नहीं किया गया है, जो लगभग 43.65 प्रतिशत शिकायतें हैं।

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) वाईजे दस्तूर ने अदालत के समक्ष कहा कि सरकार न्यायालय के निर्देशों के अनुसार सीबीआई और एनआईए जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियों की सेवाओं का विस्तार करने के लिए तैयार है।उन्होंने यह भी तर्क दिया कि ऐसी केंद्रीय जांच एजेंसियों को एनएचआरसी समिति द्वारा अनुशंसित बलात्कार, हत्या जैसे गंभीर अपराधों से संबंधित आरोपों की जांच के लिए बुलाया जा सकता है।यह भी कहा गया था कि यदि एक एसआईटी (विशेष जांच दल) का गठन किया जाता है, तो संघ कुछ अभियोजकों की सेवाओं का विस्तार करने के लिए भी तैयार होगा।

वकील प्रियंका टिबरेवाल ने अदालत में कहा कि चुनाव के बाद की हिंसा के कारण कई लोग विस्थापित हो गए थे और वे अभी भी वापस नहीं आ पाए हैं जो दर्शाता है कि राज्य में हिंसा जारी है। उन्होंने आरोपों की जांच के लिए एसआईटी गठित करने की भी वकालत की। वरिष्ठ वकील बिकास रंजन भट्टाचार्य और व‍कील जेसाई दीपक ने भी इसी तरह की चिंताओं की वकालत की थी।

पीठ ने 3 अगस्त को पश्चिम बंगाल राज्य में कथित चुनाव बाद हिंसा से संबंधित याचिकाओं के एक बैच पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। केंद्र ने न्यायालय के समक्ष दलील दिया था कि वह न्यायालय के आदेशों के अनुसार केंद्रीय जांच एजेंसियों जैसे सीबीआई (केंद्रीय जांच ब्यूरो) और एनआईए (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) की सेवाओं का विस्तार करने के लिए तैयार है। घटनाओं की समय रेखा 4 मई, 2021 को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने मामले का स्वत: संज्ञान लिया और डीआईजी (जांच) से आयोग के जांच प्रभाग के अधिकारियों की एक टीम गठित करने का अनुरोध किया ताकि मौके पर जांच करके तथ्य का पता लगाया जा सके। पीठ उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिनमें आरोप लगाया गया था कि हिंसा के कारण सैकड़ों लोग विस्थापित हो गए और डर से अपने घर वापस नहीं लौट पा रहे हैं।

18 जुलाई को, उच्च न्यायालय ने एनएचआरसी को एक समिति गठित करने का निर्देश दिया जो पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद की हिंसा के दौरान कथित रूप से विस्थापित हुए लोगों द्वारा दायर शिकायतों की जांच करेगी। उच्च न्यायालय ने इससे पहले एंटली निर्वाचन क्षेत्र के विस्थापित व्यक्तियों के पुनर्वास के समन्वय के लिए एनएचआरसी, एसएचआरसी और एसएलएसए द्वारा नामित सदस्यों की एक समिति का गठन किया था। पीठ ने एनएचआरसी की अंतरिम रिपोर्ट के आधार पर 2 जुलाई को कहा था कि राज्य में 2021 के विधानसभा चुनाव के बाद प्रथम दृष्ट्या हिंसक घटनाएं हुईं, जिसके कारण कई मौतें हुईं, महिलाओं और बच्चों का बड़े पैमाने पर यौन शोषण किया गया।

ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ने विधानसभा चुनावों में मुख्य प्रतिद्वंद्वी बीजेपी के साथ चुनावी जंग के बाद 2 मई 21 को प्रचंड जीत दर्ज की। इसके तुरंत बाद राज्य में चुनाव के बाद की हिंसा की खबरें सामने आईं, जिसमें कई लोगों ने मारपीट, बलात्कार और घरों को जलाने की शिकायत की। यह मुद्दा हाईकोर्ट के सामने तब आया था जब कई लोगों को हिंसा के कारण अपने घरों से भागना पड़ा था, जिन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया और दावा किया कि उन्हें टीएमसी कार्यकर्ताओं द्वारा घर लौटने की मंजूरी नहीं दी जा रही है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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