Sunday, April 28, 2024

गौतम अडानी और प्रफुल्ल पटेल के बीच पुराना है व्यावसायिक रिश्ता

कॉर्पोरेट की दुनिया में गौतम अडानी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सबसे करीबी सहयोगी माना जाता है। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के साथ अडानी समूह के संबंधों के बारे में बहुत सी बातें कहीं और लिखी जा चुकी हैं, कि कैसे इस समूह का उदय पार्टी के भाग्योदय के साथ-साथ हुआ है।

लेकिन अहमदाबाद स्थित इस व्यावसायिक समूह का एक अन्य राजनीतिक व्यक्ति के साथ घनिष्ठ संबंध अभी तक मीडिया की चकाचौंध से दूर रहा है, और इस बारे में बहुत कम चर्चा हुई है। इसकी पीछे की कड़ी अतीत में काफी दूर तक जाती हैं। यह बात तब की है जब 2008 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रफुल्ल पटेल का अडानी समूह के साथ एक बड़ी व्यापारिक साझेदारी का सिलसिला शुरू होता है। वास्तव में देखें तो इस जुड़ाव की प्रकृति ही ऐसी रही है जो प्रफुल्ल पटेल को अपने राजनीतिक गुरु शरद पवार से दूर कर देती है। यहां पर यह ध्यान देने योग्य है कि पवार के भी अडानी के साथ मधुर संबंध रहे हैं लेकिन किसी प्रकार का व्यावसायिक संबंध नहीं है।

जून में जब विभिन्न राजनीतिक दलों ने भाजपा के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के खिलाफ व्यापक गठबंधन के निर्माण के लिए बिहार की राजधानी पटना में बैठक का आयोजन कर-भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन गठबंधन (INDIA) का फॉर्मूला तैयार किया जा रहा था-तो इस अवसर पर मौजूद चुनिंदा अग्रणी राजनेताओं में से एक 65 वर्षीय पटेल भी थे।

लेकिन इसके कुछ दिनों बाद ही पटेल ने खुद को इस गठबंधन से अलग कर एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली भाजपा-समर्थित महाराष्ट्र सरकार के साथ गठजोड़ कर लिया था। वे अजित पवार के नेतृत्व वाले राकांपा के बागी विधायकों के समूह में शामिल हो चुके थे।

क्या अडानी के साथ अपने रिश्ते के चलते पटेल एक ऐसा फैसला लेने के लिए मजबूर हो गये थे, जिसकी खातिर उन्होंने अपने 82 वर्षीय नेता के साथ दगाबाजी की और महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ पार्टी के साथ गठबंधन कायम कर लिया था? या इस फैसले का संबंध उनके ऊपर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की ओर से बढ़ते दबाव का कोई हाथ रहा है?

इस सभी सवालों का उत्तर थोड़ी देर में मिल जाएगा, लेकिन इससे पहले आइए एक करीबी नजर पटेल के अडानी समूह के साथ लगभग अज्ञात संबंधों की पड़ताल से करते हैं।

ये याराना काफी पुराना है

मिलेनियम डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड, प्रफुल्ल पटेल और उनके परिवार के सदस्यों द्वारा नियंत्रित एक कंपनी है, जो अडानी समूह के विद्युत् व्यवसाय में एक निवेशक रही है, विशेषकर इसका संबंध महाराष्ट्र के गोंदिया जिले के अडानी पॉवर महाराष्ट्र लिमिटेड की 3300 मेगावाट के तिरोडा पॉवर प्रोजेक्ट से है, और इस जिले को पटेल परिवार का गढ़ माना जाता है।

इस कनेक्शन का उल्लेख अडानी पॉवर्स लिमिटेड के ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस में मिलता है, जिसे 2009 में स्टॉक एक्सचेंज में इसके पब्लिक लिस्टिंग से पहले जारी किया गया था। इस दस्तावेज में अडानी पॉवर ने अपनी सहायक कंपनी एपीएमएल के वित्तीय इतिहास का खुलासा किया था। इस बारे में कुछ विवरण इस प्रकार से हैं:

• 15 जनवरी, 2008 को मिलेनियम डेवलपर्स के साथ एक शेयरधारक समझौते पर हस्ताक्षर हो जाने के बाद, एपीएमएल ने पटेल फर्म को 375 करोड़ रुपये के बदले कुल 375 करोड़ इक्विटी शेयर आवंटित किए थे।

• अपनी तरफ से मिलेनियम डेवलपर्स इस बात के लिए रजामंदी दी कि चाहे प्रत्यक्ष अथवा किसी नामांकित व्यक्ति के माध्यम से एपीएमएल के इक्विटी शेयर का अधिग्रहण किया जायेगा, जिसमें एपीएमएल की शेयर पूंजी में से जारी किए गए 26% शेयर का प्रतिनिधित्व करेगा, जबकि बाकी के बचे 74% हिस्से पर एपीएल या अडानी समूह की किसी अन्य कंपनी का अधिकार रहेगा।

• इसमें इस बात का भी उल्लेख था कि एपीएल के पास मिलेनियम शेयरधारकों के समझौते के तहत किसी भी प्रकार के स्थानांतरण शुल्क या अन्य को आवंटित करने का अधिकार नहीं होगा, या मिलेनियम एसएचए के अधिकारों या हित से जुड़े संपूर्ण या कुछ हिस्से को आवंटित, घोषणा, बनाने या निपटन करने का हकदार नहीं होगा।

• इसके अलावा यह भी कहा गया था कि किसी नए निवेशक के द्वारा निवेश करने की सूरत में, एपीएल और मिलेनियम डेवलपर्स आनुपातिक रूप से अपनी हिस्सेदारी को कम करेंगे इसके साथ-साथ एपीएएल के पास इस बात का अधिकार रहेगा कि वह एपीएमएल में मिलेनियम डेवलपर्स की शेयरधारिता कर रहे हैं कि एपीएमएल को मिलेनियम डेवलपर्स द्वारा रखे गए इक्विटी शेयर से इंकार पर पहला अधिकार रहेगा इसके मुताबिक बाद वाले के द्वारा एपीएल को लिखित नोटिस दिए बिना एपीएमएल के किसी भी इक्विटी शेयर का हस्तांतरण करने का अधिकार नहीं होगा, और हस्तांतरण के मूल्य का निर्धारण “तीसरे पक्ष के स्वतंत्र मूल्यांकन” के आधार पर तय होगा।

• डीआरएचपी के अनुसार, मिलेनियम डेवलपर्स के पास एपीएमएल के बोर्ड में अधिकतम दो निदेशकों को नामांकित करने का अधिकार था और शेयरधारक समझौता मिलेनियम डेवलपर्स द्वारा एपीएमएल के सभी शेयरों को छोड़ देने की सूरत में समाप्त हो जायेगा।

• 27 मार्च, 2009 को मॉरीशस स्थित एक फर्म, सॉमरसेट इमर्जिंग अपार्चुनिटी फंड के साथ एक शेयर अंशदान समझौते के बाद, एपीएमएल द्वारा 33 करोड़ रूपये निवेश पर 33 करोड़ शेयर आवंटित किये गये इसके बाद 18 मई, 2009 को मॉरीशस फंड को 20 करोड़ रुपये के अतिरिक्त 2 करोड़ इक्विटी शेयर आवंटित किए गए थे।

• 5 अगस्त, 2009 को जिस दिन कंपनी का प्रॉस्पेक्टस जारी किया गया था, एपीएल के पास 400 करोड़ रुपये की एपीएमएल की चुकता इक्विटी शेयर पूंजी के आधार पर 7738% की हिस्सेदारी प्राप्त हुई, जिसे एपीएल एवं अन्य शेयरधारकों की मौजूदा शेयरहोल्डिंग के अनुपात में तय किया गया था।

एपीएमएल के कुल 40 करोड़ शेयर का शेयरहोल्डिंग पैटर्न इस प्रकार से था:

अडानी पावर लिमिटेड के पास 3095 करोड़ इक्विटी शेयर के साथ 7738% इक्विटी होल्डिंग थी मिलेनियम डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड के पास 375 करोड़ शेयर यानी 937% की इक्विटी होल्डिंग और सॉमरसेट इमर्जिंग अपार्चुनिटी फंड के पास 530 करोड़ शेयर के हिसाब से 1325% हिस्से की होल्डिंग थी। लेकिन बाद में शेयरहोल्डिंग पैटर्न बदल गया

प्रफुल्ल पटेल के स्वामित्व वाली कंपनी की शेयरहोल्डिंग में कमी

रजिस्टर ऑफ़ कंपनीज़ के साथ फाइलिंग के अनुसार, मिलेनियम डेवलपर्स ने 2009 और 2010 के बीच में 3 अलग-अलग लेन-देन में 10 रुपये की कीमत पर एपीएमएल के 5 करोड़ शेयरों की खरीद की थी। 375 करोड़ शेयर जहां मार्च 2009 में खरीदे गए, वहीं 30 अक्टूबर, 2009 में 75 लाख और 23 फरवरी 2010 को 50 लाख शेयर खरीदे गये थे।

अब यदि 2009-10 के लिए एपीएल के वार्षिक रिटर्न को देखें तो 31 मार्च, 2010 तक इसकी शेयर पूंजी में कुल 8085 करोड़ शेयर शामिल थे, जिसका मूल्य 8085 करोड़ रुपये होता है, जो कि अगस्त 2009 में 400 करोड़ रुपये मूल्य के 40 करोड़ शेयरों से अधिक बैठता है।

इसका नतीजा यह हुआ कि सॉमरसेट फंड, जिसके पास 53 करोड़ शेयर थे, के पास कंपनी के कुल शेयरों की हिस्सेदारी 1325% से घटकर अब 656% रह गई थी। इसका अर्थ है कि मिलेनियम डेवलपर्स के 5 करोड़ की एपीएमएल के कुल इक्विटी पूंजी में अब से पहले जो 937% की हिस्सेदारी थी, वह इसके बाद मात्र 618% रह गई थी।

इसके बाद का घटनाक्रम देखने पर पता चलता है कि 18 मई 2010 को मिलेनियम द्वारा अपने 5 करोड़ शेयर्स अडानी पावर को बेच दिए जाते हैं। इसके बदले में जो भुगतान अदा किया गया वह खरीद करते समय चुकाई गई कीमत 50 करोड़ के बराबर रही। वर्ष 2009-10 के दौरान मिलेनियम डेवलपर्स की बैलेंस शीट में एपीएमएल में 50 करोड़ रुपये के निवेश का उल्लेख है लेकिन एपीएमएल की 2010-11 की फाइलिंग में यह लेनदेन परिलक्षित नहीं होता, जबकि उसी वर्ष मिलेनियम डेवलपर्स के 2010-11 के बैलेंस शीट के “एकाउंट्स के नोट्स” में इसका उल्लेख मिलता है।

यहां पर हमें इस बात को ध्यान में रखना होगा कि एपीएमएल और मिलेनियम के बीच में समझौता हुआ था कि मिलेनियम के द्वारा एपीएमएल के 26% शेयरों की खरीद की जायेगी। लेकिन मिलेनियम ने 50 करोड़ रुपये में एपीएमएल का केवल 618% हिस्सा ही खरीदा। 26% क्यों नहीं खरीदा?

इसके अलावा 5 मार्च 2009 से 23 फरवरी 2010 के बीच लगभग 1 साल का लंबा समय गुजर जाने के बाद भी शेयरों के लिए भुगतान की गई कीमत 50 करोड़ रुपये में किसी प्रकार का बदलाव क्यों नहीं किया गया? और साथ ही यह सवाल भी उठता है कि एपीएमएल से शेयर्स की खरीद के बाद मिलेनियम डेवलपर्स ने मूल कंपनी को शेयर क्यों बेच डाले?

इस बारे में हमने प्रफुल्ल पटेल को ईमेल किया और उनसे इन अनियमितताओं एवं अजीबोगरीब लेनदेन के संबंध में विस्तृत जानकारी मांगी है। जब कभी भी हमें उनसे या उनके प्रतिनिधि के माध्यम से जवाब मिलता है तो स्टोरी को अपडेट कर दिया जायेगा।

बेहद कम कीमत लगाई गई

अडानी समूह के पावर प्रोजेक्ट के पहले चरण की लागत 9000 करोड़ रुपये होने की उम्मीद जताई गई थी। इसका अंतिम अनुमान 15000 करोड़ रुपये आंका गया। पहले चरण की फंडिंग के लिए डेब्ट-इक्विटी के अनुपात को 75:25 मानते हुए 26% की हिस्सेदारी के मुताबिक मिलेनियम डेवलपर्स को 585 करोड़ रुपये जमा करने चाहिए थे। यहां तक कि पहले चरण की लागत के लिए यदि हम 618% के हिसाब से देखें तो यह निवेश करीब 560 करोड़ रुपये का होना चाहिए। लेकिन मिलेनियम को यह हिस्सेदारी सिर्फ 50 करोड़ रुपए में मिल जाती है, जो कि 10वें हिस्से से भी कम है। क्या तब इस लेनदेन को बेहद कम करके आंका गया था?

कहानी यहां से और दिलचस्प हो जाती है 31 अक्टूबर, 2010 के दिन मिलेनियम डेवलपर्स द्वारा बैंक ऑफ इंडिया से लिए गए 55 करोड़ रुपये के ऋण को चुकता कर दिया जाता है। लेकिन इसके ठीक एक दिन पहले 30 अक्टूबर को एपीएमएल, मॉरीशस में पंजीकृत कंपनी ग्रोमोर ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट प्राइवेट लिमिटेड को 567 करोड़ शेयर आवंटित कर चुकी होती है। ये शेयर्स एपीएमएलएस के कुल शेयर के 26% के बराबर थे, और इनकी कीमत 56731 करोड़ रुपये (या करीब 12835 मिलियन डॉलर हो सकती है, क्योंकि 30 अक्टूबर 2010 को 1 डॉलर की कीमत 437192 रुपये थी।) ग्रोमोर का जिक्र हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट में भी किया गया है, जिसे इसे एक रहस्यमयी मॉरीशस इकाई के रूप में चित्रित किया गया है, जो कि मारीशस स्थित ओपल इन्वेसटमेंट प्राइवेट लिमिटेड नामक एक पूर्ण स्वामित्व की सहायक कंपनी है, और जो अडानी पावर में निवेशक है।

पटेल को अपनी ईमेल प्रश्नावली में हमने उनसे जानना चाहा है कि क्या वे अडानी समूह से जुड़ी दो मॉरीशस में पंजीकृत कंपनियों से परिचित थे। इस लेख के प्रकाशन के समय तक हमने उनकी प्रतिक्रिया का इंतजार किया था।

क्या मिलेनियम डेवलपर्स के लिए नियमों में छूट दी गई?

2008-9 में मिलेनियम डेवलपर्स की बैलेंस शीट से पता चलता है कि कंपनी ने सबसे पहले बैंक ऑफ इंडिया से 45 करोड़ रुपये का टर्म लोन लिया था। फॉर्म 8 में कंपनी द्वारा जारी घोषणापत्र में दर्शाया गया है कि 14 फरवरी, 2008 को कंपनी ने बैंक से मात्र 225% की वार्षिक ब्याज दर पर ऋण हासिल किया था, जो कि प्राइम लैंडिंग रेट से काफी कम पर उन्हें उपलब्ध कराया गया।

कंपनी द्वारा दाखिल एक अन्य फॉर्म 8 घोषणा से पता चलता है कि 30 अक्टूबर 2009 को उसके द्वारा इस टर्म लोन में 10 करोड़ रुपये की और बढ़ोत्तरी कर दी गई थी। यह काम तब हुआ जब एक दिन पहले एपीएमएल से अतिरिक्त 75 लाख शेयर खरीदे गये थे, जिसके बाद एपीएमएल थर्मल पावर प्रोजेक्ट में मिलेनियम डेवलपर्स का कुल निवेश 45 करोड़ रूपये हो गया। इसे संयोग ही कहा जा सकता है कि यह रकम आरंभिक अवधि के ऋण के ठीक बराबर बैठती है।

पटेल की कंपनी द्वारा 5 करोड़ रुपये मूल्य के एपीएमएल शेयरों की अंतिम शेयर खरीद, 10 करोड़ रुपये के टॉप-अप ऋण स्वीकृत होने के लगभग 4 महीने बाद फरवरी 2010 में होती है। दोनों आधिकारिक फाइलिंग से इस बात के संकेत मिलते हैं कि मिलेनियम डेवलपर्स ने ऋण के लिए अपनी अचल संपत्ति को गिरवी रखा था, जिसमें मुंबई के वर्ली क्षेत्र में से एक ऑफिस स्पेस और सीजे हाउस की 14वीं 15वीं और 16वीं मंजिल की एक-एक छत शामिल है।

सवाल खड़ा होता है कि क्या मिलेनियम इस आकार के बैंक ऋण के लिए योग्य पात्रता भी रखता था?

2008 में जब इसके द्वारा एपीएमएल के 375 करोड़ शेयर खरीदे गये थे, तो इस निवेश का कुल बाजार मूल्य 375 करोड़ रुपये निर्धारित किया गया था। इसकी बैलेंस शीट पर दिखाई गई यब तबकी सबसे बड़ी संपत्ति थी। शेयरों सहित कंपनी की कुल संपत्ति का मूल्य 78 करोड़ आंका गया, जबकि इसका कुल बैंक बैलेंस और नकद राशि महज 34 करोड़ रुपये है।

इसके अलावा ईडी ने आरोप लगाया है कि बैंक ऋण के लिए संपार्श्विक के रूप में उपयोग की जाने वाली संपत्तियों से संबंधित दस्तावेज फर्जी थे।

पटेल प्रफुल ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत स्वंय गोंदिया नगर पालिका के मेयर के रूप में की है। 1991 के आम चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर वे पहली बार भंडारा गोंदिया निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा सांसद के रूप में निर्वाचित हुए। पटेल 2006 में दो बार राज्यसभा के लिए चुने गए। 2009 में एक बार फिर से वे भंडारा-गोंदिया से लोकसभा सांसद चुने गए, लेकिन इस बार राकांपा उम्मीदवार के रूप में। इसके बाद उन्हें फरवरी 2014, जुलाई 2016 में और हाल ही में जुलाई 2022 में राज्यसभा के लिए पुनर्निर्वाचित हुए।

यूपीए सरकार के तहत दूसरी बार कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में 2009 में एक बार फिर से नागरिक उड्डयन मंत्री बनने के बाद प्रफुल्ल पटेल ने सार्वजनिक रूप से तिरोडा में अडानी समूह की बिजली परियोजना का खुलकर समर्थन करना शुरू कर दिया था।

नवंबर 2009 में विवाद तब खड़ा हुआ जब पर्यावरण मंत्रालय ने लोहारा में तिरोडा संयंत्र के लिए कैप्टिव कोयला खदान के संचालन की मंजूरी देने से इंकार कर दिया। इस मनाही की वजह यह थी कि यह क्षेत्र ताडोबा अंधारी टाइगर रिजर्व के पास एक महत्वपूर्ण टाइगर कॉरिडोर के करीब स्थित था।

ऐसा कहा जाता है कि, 2009 में खनन हेतु पर्यावरण मंजूरी के लिए अडानी समूह के आवेदन को खारिज करने के जयराम रमेश के फैसले ने कथित तौर पर “कैबिनेट के कुछ हिस्सों में बेचैनी पैदा कर दी थी”, जिनके द्वारा तिरोडा प्रोजेक्ट्स का मजबूती से समर्थन किया गया था। जब रमेश नहीं माने तो अडानी समूह द्वारा कोयला मंत्रालय से एपीएमएल को एक अलग कोयला ब्लॉक प्रदान किये जाने की मांग की गई, हालांकि उस समय की नीति इस तरह के आवंटन की अनुमति नहीं देती थी। 29 जनवरी 2010 को कोयला मंत्रालय के तहत गठित एक समिति ने तिरोडा संयंत्र के लिए कोयले से बिजली बनाने हेतु 660 मेगावाट ईकाई की अडानी समूह की मांग को मंजूरी दे दी। उसी वर्ष अप्रैल में मंत्रालय ने अतिरिक्त 140 मेगावाट बिजली पैदा करने के लिए कोल लिंकेज के लिए एक और आवेदन को मंजूरी दे दी।

परियोजना के लिए वैकल्पिक कोल लिंकेज को कथित रूप से प्रधानमंत्री कार्यालय में एक बैठक के बाद मंजूरी मिलने की बात कही जाती है ऐसी खबर है कि मनमोहन सिंह के सामने पवार और पटेल दोनों ने जाकर तर्क रखा था कि महाराष्ट्र के लिए तिरोडा पॉवर प्रोजेक्ट बेहद अहम है, क्योंकि यहां पर बिजली की कमी है पहला लिंकेज मंजूरी मिलने के फौरन बाद ही पटेल ने जयराम रमेश के खिलाफ सार्वजनिक रूप से बयानबाजी शुरू कर दी थी, और अडानी के पॉवर प्रोजेक्ट की स्थापना की योजना का मजबूती से पक्षपोषण करना शुरू कर दिया था।

उनको यह उधृत करते सुना गया: “जो लोग परियोजना का विरोध कर रहे थे, उनको इस बात से गहरी निराशा होगी कि कंपनी को वैकल्पिक कोल ब्लॉक आवंटन कर दिया गया है कोई भी अडानी पॉवर प्लांट की राह बाधक नहीं बन सकता है, जो कि महाराष्ट्र में बिजली क्षेत्र में सबसे बड़ा निवेश होने जा रहा है पूर्ण कमीशनिंग के बाद संयंत्र 3,300 मेगावाट बिजली का उत्पादन करने लगेगा। यह प्रोजेक्ट मेरे निर्वाचन क्षेत्र में आ रहा है और इससे युवाओं को रोजगार मिलने जा रहा है। इसलिए मेरे पास इसका समर्थन करने की सारी वजहें हैं।”

ईडी की जांच से बढ़ता दबाव

लेकिन हाल के दिनों में मनी लॉन्ड्रिंग और विदेशी मुद्रा कानूनों के उल्लंघन से संबंधित मामलों की जांच में जुटी प्रवर्तन निदेशालय, भगोड़े गैंगस्टर दाऊद इब्राहिम के एक समय सहयोगी रहे इकबाल मिर्ची के साथ संबंधों को लेकर उसके द्वारा पटेल पर दबाव बढ़ा दिया है।

ईडी का दावा है कि मुंबई वर्ली में मिलेनियम डेवलपर्स द्वारा निर्मित मल्टीस्टोरी बिल्डिंग सीजे हाउस की तीसरी और चौथी मंजिल को 2007 में मिर्ची की पत्नी हाजरा इकबाल को हस्तांतरित कर दिया गया। सीजी हाउस वह जगह है जहां पर पटेल परिवार के सदस्यों का आवास है और यही वह इमारत भी है, जहां पर पारिवारिक-बिजनेस चलता है। फरवरी 2023 में ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम, 2002 के तहत इमारत के कई हिस्सों को अटैच कर दिया। इससे पहले जुलाई 2022 में ईडी द्वारा मिर्ची से जुड़े मनी लांड्रिंग के आरोपों की जांच के सिलसिले में एजेंसी की जांच के हिस्से के तौर पर सीजे हाउस की कई मंजिलों को सील कर दिया था। इससे पहले 2019 में ईडी द्वारा सीजे हाउस की दो मंजिल को सील किया जा चुका था, जिनके बारे में कहा गया कि ये कथित तौर पर मिर्ची परिवार से संबंधित है।

ईडी का आरोप है कि सीजे हाउस का निर्माण उस भूखंड वाले प्लाट पर किया गया है, जिसका मालिकाना मिर्ची के परिवार के सदस्यों के पास है, जिन्हें प्लाट मुहैया कराने के एवज में फ्लैट्स (अब सील) आवंटित किए गये थे। यह जानकारी तब सामने आई जब ईडी द्वारा मिर्ची के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप की जांच चल रही थी। जबकि पटेल ने इन आरोपों से इंकार किया है कि उन्होंने मिर्ची परिवार के साथ एक समझौते के तहत यह निर्माण कार्य किया था लेकिन 2009 में इकबाल हाजरा द्वारा दिए गए एक बयान में यह लिंक सामने आया था, जिसमें उन्होंने आयकर विभाग को दिए अपने बयान में दावा किया था कि वे नवंबर 2004 से सीजे हाउस की आंशिक मालकिन थीं। (उनके बयान का एक हिस्सा अक्टूबर 2019 में फर्स्टपोस्ट में पुन:प्रस्तुत किया गया था।)

2013 में मिर्ची की लंदन में मृत्यु हो गई। पटेल अक्टूबर 2019 से मिर्ची के साथ कथित वित्तीय लेनदेन के लिए ईडी की नजर में बने हुए हैं। मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ईडी द्वारा पूछताछ के लिए तीन बार समन किये जाने के बावजूद वे पूछताछ के लिए नहीं पहुंचे थे। ऐसे में भाजपा के राजनीतिक प्रतिद्वंदियों के इस दावे को लेकर कोई आश्चर्य नहीं है कि पटेल का शरद पवार से अलग होने और सत्ताधारी पार्टी के साथ हाथ मिलाने के फैसले के पीछे की वजह खुद को ईडी के चंगुल में बाहर बनाये रखना है।

एक बड़ी छलांग

यूपीए-1 सरकार में प्रफुल्ल पटेल सबसे अमीर मंत्री थे, जिन्होंने चुनाव आयोग के समक्ष तकरीबन 90 करोड़ रुपये की संपत्ति घोषित की थी इसके साथ ही 2004 से 2011 के बीच उनके पास संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार में नागरिक उड्डयन मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार भी था। मंत्री के तौर पर उनके कुछ फैसलों को लेकर आरोप है कि उनके कार्यकाल में सरकार के स्वामित्व वाले एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस की गिरावट के लिए वे जिम्मेदार थे। इन पर कैसे इस सबका प्रभाव पड़ा, इस बारे में हम कल इस स्टोरी के दूसरे भाग में लिखेंगे।

(आभार:लेखक परन्जॉय गुहा ठाकुरता, अयसकान्त दास और रवि नायर की रिपोर्ट: द मॉर्निंग कॉन्टेक्स्ट में प्रकाशित स्टोरी का हिंदी में अनुवाद रविंद्र पटवाल ने किया।)

जनचौक से जुड़े

5 1 vote
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles