Tuesday, March 19, 2024

धर्म और राजनीति जब तक अलग-अलग नहीं होंगे, हेट स्पीच से छुटकारा नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को हेट स्पीच को लेकर बहुत तल्ख टिप्पणियां कीं। कोर्ट ने कहा कि जब तक धर्म और राजनीति अलग-अलग नहीं होंगे, हेट स्पीच से छुटकारा नहीं मिलेगा। शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हेट स्पीच को लेकर राज्य निष्क्रिय और नपुंसक हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने हेट स्पीच के मामलों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई करने में अधिकारियों की विफलता पर फिर से चिंता जताई।

हर रोज टीवी और सार्वजनिक मंचों पर नफरत फैलाने वाले बयान दिए जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘क्या ऐसे लोग खुद पर नियंत्रण नहीं कर सकते? जिस दिन राजनीति और धर्म अलग हो जाएंगे, नेता राजनीति में धर्म का उपयोग करना बंद कर देंगे, उसी दिन नफरत फैलाने वाले भाषण भी बंद हो जाएंगे।’

जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा है कि हेट स्पीच से छुटकारा पाने के लिए धर्म को राजनीति से अलग करना होगा। जब तक राजनीति को धर्म से अलग नहीं किया जाएगा तब तक हेट स्पीच से छुटकारा नहीं मिल पाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हेट स्पीच देखा जाए तो एकदम राजनीति है। पीठ ने कहा कि सबसे बड़ी समस्या यह है कि जो राजनेता हैं, वे धर्म का इस्तेमाल कर रहे हैं। हमारे देश में धर्म और राजनीति जुड़े हए हैं। यही कारण है कि हेट स्पीच हो रहा है।

पीठ ने कहा कि धर्म को राजनीति से मिलाना हेट स्पीच का स्रोत है। राजनेता सत्ता के लिए धर्म के इस्तेमाल को चिंता का विषय बनाते हैं। इस असहिष्णुता, बौद्धिक कमी से हम दुनिया में नंबर एक नहीं बन सकते। अगर आप सुपर पावर बनना चाहते हैं, तो सबसे पहले आपको कानून के शासन की जरूरत है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गो टू पाकिस्तान जैसे बयानों से नियमित रूप से गरिमा को तोड़ा जाता है। अब हम कहां पहुंच गए हैं?

पीठ के हेट स्पीच को दुष्चक्र करार दिया और कहा है कि भाईचारे का विचार अधिक था लेकिन खेद यह है कि दरारें आ चुकी हैं। क्यों नहीं राज्य समाज में नफरती भाषण पर लगाम लगाने के लिए सिस्टम विकसित कर सकता है।

जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि हम कहां जा रहे हैं। एक समय था कि देश में पंडित जवाहर लाल नेहरू और अटल बिहारी बाजपेयी जैसे वक्ता थे। जिनका भाषण सुनने के लिए लोग आधी रात को दूर दराज गांव से आते थे। अब असामाजिक तत्व बयानबाजी करते हैं।

पीठ ने कहा है कि राज्य हेट स्पीच मामले में निष्क्रिय रवैया अपना रहा है। राज्य इस मामले में नपुंसक है और वह समय पर काम नहीं करता है। जस्टिस जोसेफ ने कहा कि राज्य चुप क्यों है? पीठ ने कहा कि हर ऐक्शन का रिएक्शन होता है।

सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी पर भारत सरकार के सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि इसका मतलब यह है कि अदालत इसे सही मान रही है। तब जस्टिस जोसेफ ने कहा कि दूसरे धर्म के लोगों ने भारत में रहना चुना है और सभी भाई बहन हैं। भाईचारे को बढ़ाने की जरूरत है।

सुप्रीम कोर्ट उस कंटेप्ट याचिका पर सुनवाई कर रही है जिसमें महाराष्ट्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी हिंदू संगठन के हेट स्पीच पर कंट्रोल करने में विफल रही जिसके बाद उसके खिलाफ कंटेप्ट अर्जी दाखिल की गई थी। मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अब 28 अप्रैल को सुनवाई का फैसला किया है।

सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि याचिकाकर्ता हेट स्पीच के चुनिंदा मामलों को लेकर आया है। याचिकाकर्ता अपने राज्य केरल से ऐसे उदाहरण नहीं ला रहा है। केरल के मामले पर अदालत को स्वत: संज्ञान लेना चाहिए।

उन्होंने एक क्लिप भी दिखानी चाही। हेट स्पीच पर सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और बेंच के बीच तीखी बहस हो गई। एसजी अदालत से हेट स्पीच से जुड़ी एक वीडियो क्लिप चलाने की इजाजत मांग रहे थे। इस पर पीठ ने कहा कि इसे नाटक मत बनाइए, यह कानूनी कार्यवाही है।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केरल में एक व्यक्ति की तरफ से एक खास समुदाय के खिलाफ दिए गए अपमानजनक भाषण की ओर बेंच का ध्यान दिलाया। मेहता ने कहा कि याचिकाकर्ता शाहीन अब्दुल्ला ने देश में नफरती भाषणों की घटनाओं का चुनिंदा रूप से जिक्र किया है। इस पर मेहता और पीठ के बीच तीखी बहस हुई।

मेहता ने द्रमुक के एक नेता के एक बयान का भी जिक्र किया और कहा कि याचिकाकर्ता के वकील ने उन्हें और उन राज्यों को अवमानना याचिका में पक्ष क्यों नहीं बनाया।

पीठ ने उन भाषणों का जिक्र करते हुए कहा कि हर क्रिया की समान प्रतिक्रिया होती है। हम संविधान का पालन कर रहे हैं और हर मामले में आदेश कानून के शासन की संरचना में ईंटों के समान हैं। हम अवमानना याचिका की सुनवाई कर रहे हैं क्योंकि राज्य समय पर कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। क्योंकि राज्य शक्तिहीन हो गया है और समय पर कार्य नहीं करता। यदि यह मौन है तो कोई राज्य क्यों होना चाहिए?’

इस पर मेहता ने कहा कि किसी राज्य के बारे में तो नहीं कह सकते, लेकिन केंद्र शक्तिहीन नहीं है। केंद्र ने पीएफआई पर प्रतिबंध लगा रखा है। कृपया केरल राज्य को नोटिस जारी करें ताकि वे इसका जवाब दे सकें। पीठ ने मेहता को अपनी दलीलें जारी रखने के लिए कहा। इसके बाद मेहता ने कहा, ‘कृपया ऐसा नहीं करें।’

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील निजाम पाशा ने कहा कि नफरत का कोई धर्म नहीं होता और वह अधिकारों की रक्षा के लिए यहां आए हैं। पाशा ने कहा कि महाराष्ट्र में पिछले चार महीनों में 50 ऐसी रैली हुई हैं, जहां नफरती भाषण दिए गए हैं।

केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस. वी. राजू ने कहा कि इस अदालत की तरफ से तय किए गए कानून के अनुसार, अगर कोई संज्ञेय अपराध होता है, तो राज्य आपत्ति नहीं कर सकता और वह प्राथमिकी दर्ज करने के लिए बाध्य है।

शीर्ष अदालत ने इस मामले में अगली सुनवाई के लिए 28 अप्रैल की तारीख तय की और याचिका पर महाराष्ट्र सरकार को जवाब देने को कहा है।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं)

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