Sunday, April 28, 2024
प्रदीप सिंह
प्रदीप सिंहhttps://www.janchowk.com
दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

जिस सर्वसेवा संघ की नींव विनोबा ने डाली, मोदी सरकार चला रही उस पर बुलडोजर

वाराणसी। काशी नगरी में जिस किसी भी रास्ते से गुजरें, उधर पैदल चलने वाले, साइकिल सवार, रिक्शा, इक्का और कारें, नदी के लहरों के समान एक के बाद एक ‘लहरतारा’ की ओर बढ़ रही थी। लहरतारा में रात्रि का घना अंधकार और नीरवता, धरती के ‘तारों’ की जगमगाहट और धरती के लालों की चिल्लाहट से लहरों की तरह विलीन हो रहा था। एकत्रित करीब पांच हजार जनसमुदाय की दस हजार आंखे पश्चिमोत्तर दिशा की ओर लगी हुई थी! ठीक 6 बजे निरंतर 9 साल से सर्दी-गर्मी और बारिश में करीब 48 हजार मील की पदयात्रा करते हुए भारत यात्री विनोवा का वाराणसी की सीमा, लहरतारा पर करीब 5 हजार से ज्यादा नागरिकों ने अपूर्व हर्षोल्लास से स्वागत किया। नगर के प्रथम सेवक के नाते निगम के महापौर कुंजविहारी गुप्त ने बाबा को हार पहनाया और महिलाओं ने सुमधुर कठों से गाते हुए आरती उतारी।

लहरतारा से डीएबी कालेज तक, जहां विनोबा जी का पड़ाव था, लगभग 3 मील का मार्ग दर्शनार्थियों से भरा था और साथ में 5 हजार नागरिक तो साथ चल ही रहे थे। सतत फूलों की वर्षों हो रही थी। जगह-जगह सुरुचिपूर्ण बने सुन्दर स्वागत द्वारों पर नगर की प्रमुख संस्थाओं-काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, काशी विद्यापीठ, संस्कृत विश्वविद्यालय, क्वींस कालेज, हरिश्चन्द्र कालेज, महिला मंडल, पुरुषार्थी नगर समाज आदि ने बाबा का स्वागत किया।

मार्ग में जब बीच-बीच में काफी भीड़ हो जाती थी, तो बाबा एकदम रुक जाते और उनके साथ चलता हुआ लम्बा काफिला भी ‘सडन ब्रेक’-सा रुक जाता था और बाबा सबको सेनापति की हैसियत से आदेश देते हुए कहते थे, न कोई आगे चले, न कोई साथ चले। सब लोग पीछे चलें। सेनापति आगे चले। कहने की जरूरत नहीं, तुरन्त भीड़ खतम हो जाती और सब लोग पीछे बाबा के काफिले में शामिल हो जाते।

एकदम भगदड़ मच गई। क्या हुआ? मलदहिया के पास अचानक विनोबा जी भागने लगे और साथ में पीछे की हजारों की भीड़ भी भागने लगी। विनोबाजी भागने लगे। और साथ में पीछे हजारों की भीड़ भी भागने लगी! महिलाएं भी, जिन्होंने अपनी-अपनी जिंदगी में बचपन के अलावा शायद ही दौड़ा हो, दौड़ने लगीं। कइयों के चप्पल टूट गये और झुंझलाहट भरा उत्साह तो देखते ही बनता था। एक प्रमुख कार्यकर्ता घबराये, सारी व्यवस्था जो बिगड़ रही थी! बाबा के पास घड़ी दिखा कर कहने लगे- “बाबा वैसे हम समय से पहले पहुंच रहे हैं, आप दौड़ेंगे तो बहुत पहले पहुंच जायेंगे।” बाबा ने उनकी कठिनाई और परेशानी समझ कर कहा, “अच्छा!” और फिर अपनी शान्त गंभीर बादशाही चाल से चलने लगे।

ठीक आठ बजे बाबा डीएवी कालेज पहुंचे। बाबा ने आधा घंटा आराम किया और उधर उनको सुनने के लिए उत्सुक जनता सभा में परिवर्तित हो गयी। साढ़े आठ बजे बाबा मंच पर आये खड़े होकर चारों तरफ निहारने लगे। वे खुश थे जनेश्वर’ को देख कर और जनता खुश थी अपने बाबा को पाकर!

काशी के प्रति अपनी गहरी श्रद्धा प्रकट करते हुए बाबा ने कहा, “इस नगरी के लिए मेरे मन में जो श्रद्धा है, वह शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता हूं।” किन्तु साथ ही उन्होंने यहां के निवासियों को लक्ष्य में रखते हुए कहा, “लेकिन मैं जानता हूं कि यहां के नागरिकों के मन में इतनी श्रद्धा नहीं है, जो श्रद्धा लेकर मेरे जैसे बाहरी यात्री आते हैं। वह श्रद्धा यहां के नागरिकों में होती, तो यह नगरी दुनिया में चमकती। ‘काशी’ का अर्थ ही ‘प्रकाशी’ है। श्रद्धा पुरानी हो गयी, नये पुरुषार्थ के अभाव से वह काम नहीं कर रही है।

विनोबाजी की यह काशी की ‘तीसरी यात्रा है। पहली बार जवानी में ‘अथातो ब्रह्म जिज्ञासा’ कह कर, घर छोड़ कर हिमालय जाने के लिए निकले थे, तब दो महीने दुर्गाघाट में रहे थे और हिमालय के बदले बापू के पास पहुंचे। दूसरी बार भूदान-यात्रा के सिलसिले में साढ़े आठ साल पहले यहां आये थे। वह भूदान यात्रा का पहला साल था, इसलिए बारिश में दो-सवा दो महीने रहे थे। उसके बाद इतना समय कहीं नहीं रुके और निरंतर अखंड पद-यात्रा करते रहे। गत जुलाई और अगस्त में केवल इन्दौर को यह सौभाग्य प्राप्त हुआ कि बाबा ‘सर्वोदय नगर’ बनाने की दिशा में वहां सवा महीने रुके और अब वहां से असम जाते समय पाँच दिन के लिए यहां आये हैं।

दूसरी बार बाबा ने यहां ‘स्वच्छ काशी’ आन्दोलन चलाया था और एक दिन तो उनके आह्वान पर सब नागरिकों ने काशी को स्वच्छ बना डाला था, किन्तु बाद में उस तरफ किसी ने खयाल नहीं किया और काशी वैसी ही रह गयी, इसका जिक्र करते हुए बाबा ने कहा, “यह सातत्य योग हम लोगों में कम है। बहुत थोड़े लोग ऐसे दिखते हैं, जो सतत एक अच्छे काम में लगे रहते हैं।

यह हमारे देश के चरित्र विकास में सातत्य की बड़ी कमी रह गयी।” फिर भी बाबा ने कहा कि “काशी अगर सर्वोदय नगर नहीं बन सकती है, तो भारत का कोई नगर सर्वोदय नगर नहीं बन सकता; क्योंकि यहां के रास्तों के नाम भी तुलसी और कबीर के नाम से है। जब कि हर व्यक्ति और संस्था इस वक्त दिल्ली में अपना केन्द्र प्रारम्भ करना चाहती हैं, ऐसी हालत में सर्व सेवा संघ ने अपना प्रधान केन्द्र यहां लाया। इसलिए काशी-वासियों की बड़ी जिम्मेदारी है कि वे इस नगरी के प्राचीन गौरव को पुनर्स्थापित करें।”

दोपहर को 11 से 12 बजे के बीच वाराणसी संस्कृत विश्वविद्यालय में भाषण करते हुए विनोबा ने कहा कि “आजकल स्कूल-कालेजों में जो संस्कृत साहित्य पढ़ाया जाता है, वह निकम्मा है और संस्कृत का जो जानदार हिस्सा है, उस पर कतई जोर नहीं दिया जाता है। संस्कृत का गौरव उसके आध्यात्मिक विचार में है। बापू की याद में फफक-फफक कर रोते हुए विनोबा ने बताया कि बापू ने एक अवसर पर कहा था, “संस्कृत आध्यात्मिक भाषा है। जैसे-जैसे हमने अध्यात्म भावना खोयी है, वैसे-वैसे संस्कृत भाषा भी खोयी हैं। बापू ने कितना सूक्ष्म विवेचन किया, इसको सोचता हूं, “तो इस बात की यथार्थता प्रकट होती है।”

शाम की प्रार्थना सभा तीन बजे से प्रारंभ हुई। तीस हजार से ज्यादा जन-समुदाय एकत्रित था। इस अवसर के लिए बने हुए पन्द्रह फीट ऊंचे मंच पर बाबा ठीक तीन बजे आये। करीब डेढ़ घंटे के लम्बे प्रवचन में बाबा ने विस्तार से बताया कि इस युग को साम्य की विशेष भूख है। साम्य दो तरीके से आ सकता है: करुणा अथवा मत्सर के रास्ते से। साम्यवाद का तरीका मत्सर का है। और सर्वोदय का तरीका करुणा का है। आगे के जमाने में कशमकश साम्यवाद और सर्वोदय में होने वाली हैं, क्योंकि ये दो ही विचार है, बाकी के सब विचार सीमित हितों के लिये हैं, और वे अपने आप खत्म होने वाले हैं।

इसको आगे समझाते हुए कहा, “विज्ञान के विकास से मनुष्यों का दिमाग बड़ा हुआ हो गया, किन्तु दिल छोटा ही रह गया और यही मुख्य कशमकश का कारण है। वस्तुतः होना यह चाहिये कि पुरानी सभ्यता से सटा हुआ दिल और आधुनिक जमाने से युक्त दिमाग हों।”

मत्सर के तरीके से साम्य लाने के काम में हिंसा अनिवार्य हो जाती है, किन्तु यह हिंसा-शक्ति एक मूढ़ शक्ति है। वह कम्युनिस्ट के पास भी जाती है और पूंजी-पति के पास भी जाती है। वह पतिव्रता नहीं है। बाबा ने जोरदार शब्दों में कहा, “अगर हिंसा-शक्ति कसम खाकर कह दे कि मैं सज्जनों के पास रहूंगी, तो में हिंसा का अवलंबन लेने में एतराज नहीं मानूंगा।”

अन्त में काशीवासियों के सामने तुरन्त करने के लिये पांच कार्यक्रम रखे।

(1) स्वच्छ काशी: 15 मिनट हर नागरिक सफाई करें। आज शहरों की रचना ऐसी है कि केवल नागरिक सफाई नहीं कर सकेंगे, इस लिए निगम को सक्रिय बनना चाहिए।

(2) काशी में पूर्ण शराब-बंदी होनी चाहिए, ऐसी जोरदार मांग नागरिक करें और उसके लिये जोरदार काम हो।

(3) घर-घर सर्वोदय पात्र हों।

(4) गृहस्थाश्रम, जो सब आश्रमों का आधार है, उसमें पावित्र्य और कारुण्य कायम रहे। भद्दे और अशोभनीय पोस्टर और विज्ञापनों को एक क्षण भी सहन नहीं करना चाहिए।

(5) इन्दौर की तरह सक्रिय वानप्रस्थ मंडल यहां बने।

प्रवचन के बाद 5 मिनट की मौन प्रार्थना हुई। उपस्थित हजारों नागरिक तुरन्त बाबा के कहने से मिनट भर में बैठ गये और प्रार्थना पूर्ण शान्ति के वाता-वरण में हुई।

बुल्डोज होने के इंतजार में दो संस्थाएं

बनारस की दो ऐतिहासिक संस्थाएं-सर्व सेवा संघ और कृष्णमूर्ति फाउंडेशन (राजघाट बेसेंट स्कूल एवं बसंत महिला महाविद्यालय) बुल्डोज होने को इंतजार कर रहे हैं। सर्व सेवा संघ के भवनों पर सरकार ने ध्वस्तीकरण की नोटिस चस्पा कर दिया है और कृष्णमूर्ति फाउंडेशन को खाली करने का हुक्म दे दिया है।

सर्व सेवा संघ गांधी विचार की 75 साल पुरानी संस्था है और कृष्णमूर्ति फाउंडेशन 95 साल पुरानी। शानदार इतिहास वाली एनीबेसेंट की यह संस्था अपना शतक पूरा नहीं कर पाएगी, इससे पहले ही दफन कर दी जाएंगी! संस्था का दोष यह है कि यह गंगा-वरुणा के संगम पर स्थित है।

सर्व सेवा संघ वाराणसी का परिसर संत विनोबा भावे ने इसे स्थापित किया था। प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, मुख्यमंत्री संपूर्णानंद जी, स्वामी सहजानंद, बाबा राघव दास आदि की सहमति एवं सहयोग से यह संस्था साधना केंद्र बना था। उद्देश्य था राष्ट्र निर्माण के लिए युवकों को तैयार करना और सद साहित्य का प्रकाशन करना ताकि लोगों में अच्छे सामाजिक संस्कार का विकास हो सके लेकिन अब देश को अच्छी पुस्तकों और अच्छे लोगों की जरूरत नहीं।

अब विनोबा-जेपी जैसे राष्ट्र नायकों की नहीं अंध भक्तों की जरूरत है

कृष्णमूर्ति फाउंडेशन के हजारों विद्यार्थी, शिक्षक और अभिभावक शासन-प्रशासन में महत्वपूर्ण जगहों पर हैं लेकिन डरे हुए हैं, बोल नहीं रहे हैं! फाउंडेशन असमंजस में है कि कोर्ट में जाएंगे तो हरा दिए जाएंगे, खाली नहीं करेंगे तो बिल्डिंगें बुलडोज कर दी जाएंगी। 3000 विद्यार्थियों का भविष्य अधर में है।

शिक्षण संस्थान को बुलडोज कर यहां पर्यटकों के लिए होटल व मॉल बनाए जाएंगे। अब हम नालंदा और तक्षशिला की तरह पढ़ेंगे-सर्व सेवा संघ और कृष्णमूर्ति फाउंडेशन का इतिहास। नालंदा-तक्षशिला को नष्ट किया था आक्रांताओं ने, लेकिन इन दोनों सामाजिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक संस्थाओं को दफन करने जा रही है हमारी सरकार।

सर्व सेवा संघ ने 15 सौ से अधिक किताबों का प्रकाशन किया है

“1960 में 15 दिसंबर को विनोबा भावे काशी आए थे और उसी दिन उन्होंने सर्व सेवा संघ प्रकाशन का उद्घाटन किया था। वैसे तो प्रकाशन भूदान आंदोलन के समय से ही शुरू था लेकिन 15 दिसंबर से प्रकाशन राजघाट के नए भवन में आरंभ हुआ। अब तक प्रकाशन ने 15 सौ से अधिक किताबों का प्रकाशन किया है। विनोबा भावे ने इस आश्रम का नाम सर्वोदय साधना केंद्र दिया है। यह अहिंसा भूमि है। यह बात सत्याग्रहियों के सामने रखते हुए राम धीरज भाई ने कहा कि अगर प्रशासन ने विनोबा के साधना केंद्र पर बुलडोजर चलाया तो सत्ता का अंत हो जाएगा।

सभा में समाजवादी पार्टी के प्रबुद्ध सेल के वरिष्ठ डॉ.आनंद प्रकाश तिवारी ने कहा कि यह सत्ता किसानों और मजदूरों के हितों का ध्यान नहीं रख रही है, महंगाई लगातार बढ़ रही है, यह बुलडोजर सरकार हो गई है। शिक्षक विद्याधर ने कहा अगर सरकार ने सर्व सेवा संघ को ढहाने की गलती की तो उनकी सरकार भी ढह जाएगी, यह कोई राजतंत्र नहीं है यह प्रजातंत्र है, जहां जनता का राज है और वही चलेगा।

डॉक्टर छेदीलाल निराला ने कहा कि जयप्रकाश जी ने 1974 में “सिंहासन खाली करो कि जनता आती है” का नारा दिया था, 2024 आ रहा है फिर से हमें यह नारा देना होगा कि लोकतंत्र विरोधियों और समाज को तोड़ने वालों सिंहासन खाली करो। बिहार बेतिया से आए हुए रामेश्वर प्रसाद ने कहा कि दिल्ली सरकार अगर गांधीवादियों के अहिंसा की परीक्षा लेना चाहती है तो ज़रूर ले, लेकिन अंत में उसकी हार ही होगी। सभा की अध्यक्षता मध्य प्रदेश से आए हुए एकता परिषद से संतोष सिंह ने किया और संचालन सत्येंद्र सिंह ने किया। सभा में मिथिलेश बहन, विनोद कुशवाहा, जितेंद्र, अनूप श्रमिक, उमेश मिश्र, प्रेम प्रकाश पांडे, पंकज बेतिया, बक्सर से रणजीत राय और बब्बन राम, प्रीति कुमारी, लक्ष्मी कुमारी, नेहा कुमारी, पुनीता कुमारी, नीतू कुमारी भी बक्सर से उपस्थित रहीं।

(प्रदीप सिंह जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।)

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