पाकिस्तान जिंदाबाद कहने वाले अकबर लोन को SC की फटकार, कहा- संविधान के प्रति निष्ठा का शपथ पत्र दाखिल करें

अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के खिलाफ दायर की गई याचिकाओं की सुनवाई के 15वें दिन सोमवार को उच्चतम न्यायालय ने नेशनल कांफ्रेंस (नेकां) के नेता मोहम्मद अकबर लोन से भारत के संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ लेते हुए और देश की संप्रभुता को बिना शर्त स्वीकार करते हुए एक हलफनामा दाखिल करने को कहा। लोन द्वारा 2018 में कथित तौर पर जम्मू-कश्मीर विधानसभा में ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ का नारा लगाए जाने के बाद विवाद पैदा हो गया था। उसी पृष्ठभूमि में उच्चतम न्यायालय का निर्देश आया है।

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पांच सदस्यीय संविधान पीठ से कहा कि लोन मंगलवार तक हलफनामा दाखिल करेंगे। लोन, पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के फैसले को चुनौती देने वाले प्रमुख याचिकाकर्ता हैं।

सिब्बल ने कहा कि अगर लोन यह हलफनामा दाखिल नहीं करते हैं तो वह उनकी पैरवी नहीं करेंगे। सिब्बल ने संविधान पीठ से कहा कि वह लोकसभा सदस्य हैं। वह भारत के नागरिक हैं और उन्होंने संविधान द्वारा अपने पद की शपथ ली है। वह भारत की संप्रभुता को स्वीकार करते हैं।

इससे पहले, केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि केंद्र सरकार चाहती है कि लोन 2018 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा में ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ का नारा लगाने के लिए माफी मांगें। उन्होंने कहा कि लोन को यह बताना होगा कि वह संविधान के प्रति निष्ठा रखते हैं, साथ ही जम्मू-कश्मीर विधानसभा में नारा लगाने के लिए उन्हें माफी मांगनी होगी। मेहता ने जिक्र किया कि कश्मीरी पंडितों का एक समूह इस मामले को न्यायालय के संज्ञान में लाया है। कश्मीरी पंडितों के एक समूह ने न्यायालय में नेकां नेता लोन की साख पर सवाल उठाते हुए दावा किया था कि वह अलगाववादी ताकतों के समर्थक हैं।

कश्मीरी पंडित युवाओं का समूह होने का दावा करने वाले गैर सरकारी संगठन ‘रूट्स इन कश्मीर’ ने शीर्ष अदालत में एक हस्तक्षेप अर्जी दायर कर मामले में कुछ अतिरिक्त दस्तावेजों और तथ्यों को रिकॉर्ड पर लाने का आग्रह किया था। अर्जी में आरोप लगाया गया कि जम्मू-कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस के नेता मोहम्मद अकबर लोन को ‘जम्मू-कश्मीर में सक्रिय अलगाववादी ताकतों के समर्थक के रूप में जाना जाता है, जो पाकिस्तान का समर्थन करते हैं।

मध्याह्न भोजन के बाद के सत्र के लिए पीठ के बैठते ही न्यायमूर्ति कौल ने सिब्बल से कहा कि प्रतिवादियों (जो अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का समर्थन कर रहे हैं) के वकीलों ने अभ्यावेदन दिया है कि लोन ने कथित तौर पर जो कहा वह ‘मेल नहीं खाता।’ सिब्बल ने कहा, ‘मुझे इससे कोई मतलब नहीं है। उन्होंने यदि ऐसा कहा है, भले ही हालात कुछ भी रहे हों, क्या वह रिकॉर्ड है, आप उनसे हलफनामा मांगिए। यदि वह हलफनामा दाखिल नहीं करते, तो मैं इस न्यायालय में उनके लिए खड़ा नहीं होऊंगा।

इसके बाद मुख्य न्यायाधीश ने सिब्बल से कहा कि लोन को एक हलफनामा दाखिल करना होगा कि वह भारत की संप्रभुता और इस बात को बिना शर्त स्वीकार करते हैं कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। सिब्बल ने कहा, ‘वह ऐसा कैसे कह सकते हैं? वह सांसद हैं और अगर उन्होंने ऐसा कहा है, तो मैं अपने स्तर पर इसकी निंदा करता हूं। उन्होंने जो कहा है, मैं व्यक्तिगत रूप से उससे सहमत नहीं हूं।

मेहता ने कहा कि यह अलग बात है कि सिब्बल इसकी निंदा करते हैं। उन्होंने पूछा कि क्या लोन हलफनामा दाखिल कर यह कहेंगे कि ‘वह आतंकवाद और अलगाववाद का समर्थन नहीं करते। किसी भी नागरिक को इसे दाखिल करने में कोई आपत्ति नहीं हो सकती।

इसके बाद मुख्य न्यायाधीश ने सिब्बल से कहा कि जब वह संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत हमारी अदालत के अधिकार क्षेत्र का हवाला देते हैं, तो हम यह मानते हैं कि वह संविधान का आवश्यक रूप से पालन करते हैं। हम चाहते हैं कि वह हलफनामे में कहें कि वह बिना शर्त इस बात को स्वीकार करते हैं कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और वह भारत के संविधान का पालन करते हैं एवं उसके प्रति निष्ठा रखते हैं।

सिब्बल ने कहा कि कथित घटना 2018 में हुए जम्मू-कश्मीर विधानसभा सत्र की है और वहां अन्य लोग भी मौजूद थे। उन्होंने कहा, ‘मुझे आज सुबह किसी ने इस बारे में बताया, इससे पहले तक मुझे इसकी जानकारी नहीं थी। चलिए, इन सब के बारे में बात नहीं करते। वहां भाजपा के एक विधानसभा अध्यक्ष थे, जिन्होंने उनसे कुछ ऐसा कहने को कहा गया जो इस देश की सड़कों पर लोग दूसरे लोगों से कहने को कहते हैं। हमें इस सब के बारे में बात करने की क्या आवश्यकता है? आइए अपने कानूनी मुद्दे पर ध्यान दें।

सिब्बल ने इससे ज्यादा विस्तार से कुछ नहीं कहा। इसके बाद पीठ ने सिब्बल से कहा कि वह लोन को मंगलवार तक एक संक्षिप्त हलफनामा दायर करने के लिए कहें। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हम लोन की ओर से आपकी (सिब्बल की) बात भी सुनेंगे। इसमें कोई परेशानी नहीं है। वह हमारी अदालत में आए हैं, हम उनकी दलीलें सुनने के लिए बाध्य हैं। हम केवल इतना कहना चाहते हैं कि हम यहां सभी का स्वागत करते हैं। हमने जम्मू-कश्मीर में सभी राजनीतिक दलों के लोगों को सुना। हमें विभिन्न लोगों की बात सुनना पसंद है।

अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि अपने मौलिक अधिकारों को लागू करने की मांग करने वाले व्यक्ति को संविधान में विश्वास होना चाहिए। इसके बाद सिब्बल ने कहा कि उन्होंने शुरू में कहा था कि उन्होंने भारत की संप्रभुता को चुनौती नहीं दी है।उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है।

संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त किए जाने और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं 2019 में एक संविधान पीठ को भेजी गई थीं। जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के तहत पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों- जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख में विभाजित कर दिया गया।

सिब्बल ने कहा कि हम इसे संविधान की भावनात्मक बहुसंख्यकवादी व्याख्या नहीं बना सकते। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है कि संविधान लागू होने के बाद जम्मू-कश्मीर में क्या होगा। भारतीय संविधान में यह तय नहीं है कि एकीकरण किस समय खत्म होगा। सिब्बल ने कहा कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करना एक राजनीतिक प्रक्रिया है। इसलिए इसका समाधान भी राजनीतिक होना चाहिए। इस पर सीजेआई ने कहा कि हमें ध्यान रखना होगा कि संविधान के ढांचे के भीतर ही समाधान होना चाहिए।

सिब्बल ने कहा कि लोन और केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाले अन्य याचिकाकर्ताओं ने हमेशा कहा है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। हम इस मामले को संविधान की भावनात्मक बहुसंख्यकवादी व्याख्या नहीं बना सकते। अगर हम इतिहास देखें, तो जम्मू और कश्मीर पूरी तरह से भारत से जुड़ा नहीं है। पूर्ववर्ती राज्य में एक अलग विस्तृत संविधान, प्रशासनिक और कार्यकारी संरचना थी। इसके लिए कभी नहीं कहा गया था एक विलय समझौते पर हस्ताक्षर करें।

उन्होंने पीठ को बताया कि जब अनुच्छेद 370 कहता है कि कुछ विषयों के संबंध में राज्य सरकार की ‘सहमति’ की आवश्यकता है, तो इसका मतलब है कि कार्यपालिका नहीं भी कह सकती है।

सीजेआई ने जवाबी दलीलें आगे बढ़ाते हुए सिब्बल से कहा कि भारतीय संविधान यह निर्दिष्ट नहीं करता है कि जम्मू-कश्मीर का संविधान लागू होने के बाद क्या होगा। आप देखिए, कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है। जम्मू-कश्मीर संविधान लागू होने के बाद क्या होगा, इस पर पूरी तरह से चुप्पी है। यह अनुच्छेद 370 को लागू करने की अनुमति देने और (जम्मू-कश्मीर के) एकीकरण की प्रक्रिया को समाप्त होने देने जैसा था। लेकिन सीजेआई ने कहा, ”भारत के संविधान में यह तय नहीं है कि एकीकरण किस समय खत्म होगा।

सिब्बल ने अपना तर्क दोहराया कि राज्य के संविधान का मसौदा तैयार करने के बाद 1957 में जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा का कार्यकाल समाप्त होने के बाद अनुच्छेद 370 ने एक स्थायी चरित्र प्राप्त कर लिया। उन्होंने कहा कि हमें संविधान की शाब्दिक और प्रासंगिक व्याख्या करनी चाहिए, लेकिन चुपचाप यह देखकर नहीं कि इसमें क्या है।

सिब्बल ने कहा कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करना एक राजनीतिक प्रक्रिया है और इसका “राजनीतिक समाधान” होना चाहिए।सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि तो, आप कह रहे हैं कि संविधान के भीतर अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का कोई समाधान नहीं है और एक राजनीतिक समाधान ढूंढना होगा। हमें यह ध्यान रखना होगा कि सभी समाधान संविधान के ढांचे के भीतर होने चाहिए।

इससे पहले दिन में, उच्चतम न्यायालय ने हस्तक्षेपकर्ताओं के वकीलों की दलीलें सुनीं, जो पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र के 5 अगस्त, 2019 के फैसले का बचाव कर रहे हैं। अपनी दलीलें आगे बढ़ाने वालों में केएम नटराज और विक्रमजीत बनर्जी (दोनों अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल), वरिष्ठ वकील वी गिरी और अन्य शामिल थे।

पीठ ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 370 पर दलीलें सुनने का मंगलवार आखिरी दिन होगा। सिब्बल की दलीलें पूरी नहीं हुईं और यह मंगलवार को भी जारी रहेंगी।

हस्तक्षेपकर्ताओं ने 1 सितंबर को शीर्ष अदालत को बताया था कि अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने का निर्णय अकेले राजनीतिक कार्यपालिका द्वारा नहीं लिया गया था और भारतीय संसद को विश्वास में लिया गया था।

(जे.पी.सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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