तेलंगाना में मतदान के एक सप्ताह पहले भारतीय जनता पार्टी को अचानक अपनी रणनीति में बदलाव करना पड़ा है। करीब एक साल पहले उसने विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राज्य में व्यापक पैमाने पर राजनीतिक अभियान शुरू किया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने थोड़े-थोड़े अंतराल पर तेलंगाना का दौरा किया था। अपनी इन यात्राओं के दौरान उन्होंने हजारों करोड़ रुपये की केंद्रीय योजनाओं को शिलान्यास और उद्घाटन किया था। गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा भी लगातार राज्य के दौरे कर रहे थे। लेकिन कुछ महीनों पहले पार्टी ने अपने कदम पीछे खींच लिए, क्योंकि उसे यह फीडबैक मिलने लगा था कि अगर वह ज्यादा ताकत लगा कर चुनाव लड़ेगी तो उसका फायदा कांग्रेस को मिलेगा।
कांग्रेस को रोकने के मकसद से उसने अपना अभियान ढीला छोड़ दिया था, ताकि सत्तारूढ़ भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) और कांग्रेस में सीधा मुकाबला हो। लेकिन अब उसने फिर अपना अभियान तेज कर दिया है क्योंकि उसके पीछे हटने से यह धारणा बनने लगी है कि कांग्रेस की स्थिति मजबूत हो रही है और बीआरएस लगातार पिछड़ती जा रही है। इस धारणा को तोड़ने के लिए उसने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए अपना प्रचार अभियान तेज कर दिया है।
राजस्थान में प्रचार खत्म होते ही भाजपा के स्टार प्रचारकों की फौज तेलंगाना पहुंच गई है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तरह भड़काऊ भाषणों के लिए मशहूर हो चुके असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने भी तेलंगाना में डेरा डाल दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की रैलियों और रोड शो के आयोजन हो रहे हैं।
कांग्रेस की ओर से प्रचार की कमान राहुल गांधी ने संभाल रखी है। वे अपनी रैलियों में मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव और सलाउद्दीन ओवैसी के साथ ही प्रधानमंत्री मोदी को भी निशाना बना रहे हैं। आदिलाबाद जिले की एक सभा में उन्होंने कहा कि मोदी जी के दो यार हैं- एक ओवैसी और दूसरे केसीआर। उन्होंने कहा कि केसीआर चाहते हैं कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री रहें, वहीं नरेंद्र मोदी चाहते हैं कि तेलंगाना में केसीआर की हुकूमत चलती रहे।
मुस्लिम वोट के लिए चल रही रस्साकसी में राहुल और कांग्रेस के अन्य नेता केसीआर, ओवैसी और भाजपा की मिलीभगत साबित करने में जुटे हैं। हालांकि ओवैसी तो केसीआर के प्रति अपना झुकाव छुपा भी नहीं रहे हैं। उनकी पार्टी नौ सीटों पर चुनाव लड़ रही है और वे साफ तौर कह रहे हैं कि वे राज्य में कांग्रेस की सरकार नहीं बनने देंगे।
दरअसल पिछले कुछ दिनों के दौरान राज्य में राजनीतिक माहौल तेजी से बदला है और जो कुछ महीनों पहले तक जो कांग्रेस बिल्कुल हाशिए पर दिखाई दे रही थी, उसने आश्चर्यजनक सक्रियता दिखाई है। इस बीच आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगनमोहन रेड्डी की बहन वाईएस शर्मिला ने अपनी पार्टी वाईएसआर तेलंगाना पार्टी को चुनावी दौड़ से हटा कर कांग्रेस को समर्थन देने का ऐलान कर दिया है, जिससे भी कांग्रेस की स्थिति मजबूत हुई है और वह केसीआर की पार्टी को कड़ी चुनौती देती दिख रही है।
उधर कांग्रेस की ओर रूझान दिखा रहे मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने के लिए मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव उनके लिए खुल कर तरह-तरह के वादे कर रहे हैं। उन्होंने मुसलमानों के लिए आईटी पार्क बनाने की घोषणा भी की है।
कांग्रेस के पक्ष में बन रहे इस माहौल से चिंतित होकर ही भाजपा को अभियान तेज करना पड़ा है। उसने भी अपने घोषणापत्र में वे तमाम वादे किए हैं, जो कांग्रेस ने किए हैं। भाजपा ने भी दिल खोल कर मुफ्त में सेवाएं और वस्तुएं बांटने का ऐलान किया है। इसके अलावा दलित समुदाय में मडिगा वोट को लेकर भी भाजपा ने बड़ी पहल की है। कुछ दिन पहले अपनी सभा में प्रधानमंत्री मोदी ने मडिगा आरक्षण के लिए आंदोलन कर रहे कृष्णा मडिगा को मंच पर गले लगाया और अनुसूचित जाति के आरक्षण में वर्गीकरण का वादा किया।
अब बताया जा रहा है कि केंद्र सरकार ने इसके लिए कमेटी बनाने सहित कई तैयारियां शुरू कर दी हैं। इसी तरह तेलंगाना के मध्य वर्ग को आकर्षित करने के लिए अमित शाह ने वादा किया है कि सरकार बनी तो प्रवासी भारतीयों के लिए एक अलग मंत्रालय बनाएंगे। गौरतलब है कि राज्य के लगभग सभी मध्यवर्गीय परिवारों का कोई न कोई व्यक्ति विदेश में रहता है। कुल मिला कर भाजपा का पूरा जोर हर हालत में कांग्रेस को सत्ता में आने से रोकने पर है।
(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं।)