Sunday, April 28, 2024
प्रदीप सिंह
प्रदीप सिंहhttps://www.janchowk.com
दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

आगरा कॉलेज के शिक्षकों का संघर्ष जारी, प्राचार्य पर लगे आरोपों की जांच में जुटी उच्च स्तरीय समिति

आगरा। नवंबर, 2023 में जब आगरा कॉलेज की स्थापना के 200 वर्ष पूरे होंगे, तब कॉलेज किस बात का जश्न मनाएगा? ऐसा नहीं है कि पश्चिम भारत के इस मशहूर कॉलेज को अपनी दो सौवीं वर्षगांठ मनाने के लिए विरासत में जश्न मनाने भर की भी उपलब्धि नहीं मिली है। अतीत में कॉलेज के नाम खासा अकादमिक और शैक्षणिक उपलब्धियां दर्ज है। लेकिन कॉलेज की वर्तमान हालत को देखकर कोई अतीत की गौरवगाथा पर कितना इतरा सकता है? जब भविष्य ही अंधकारमय हो तो सुनहरे अतीत का पन्ना कौन पलटेगा?

सिंधिया राजघराने के राज ज्योतिषी और संस्कृत के विद्वान पंडित गंगाधर शास्त्री ने जब नवंबर, 1823 में पाठशाला के तौर पर आगरा कॉलेज की नींव रखी थी, तब शायद ही उनको यह अंदाजा रहा हो कि आने वाले दिनों में उनके विद्यालय की बागडोर इस तरह के भ्रष्ट लोगों के हाथ में होगा, जो कॉलेज की साख को मिटाते हुए संपत्तियों की बंदरबांट करने पर उतारू हो जाएंगे।

आगरा कॉलेज में इस समय इसी बात की चर्चा हो रही है। कॉलेज के शिक्षक धरने पर बैठे जरूर हैं लेकिन वे छात्रों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं। आगरा कॉलेज के शिक्षक विगत 25 मई से प्राचार्य डॉ. अनुराग शुक्ल के विरोध में धरना दे रहे हैं। उत्तर प्रदेश विश्वविद्यालय-महाविद्यालय शिक्षक महासंघ के डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान और अन्य कई लोगों ने प्राचार्य अनुराग शुक्ल की शिकायत शासन को की है।

आगरा कॉलेज के शिक्षकों का धरना

प्राचार्य के भ्रष्टाचार और प्रशासनिक अक्षमता की चर्चा अब लखनऊ तक पहुंच गई है। कॉलेज के शिक्षकों और डॉ भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी शिक्षक संघ के पदाधिकारियों का प्राचार्य अनुराग शुक्ल के विरोध में भेजे गए शिकायत पत्र को देखने के बाद योगी सरकार और उच्च शिक्षा विभाग सन्न है। उच्च शिक्षा मंत्रालय में शिक्षा के मंदिर का भ्रष्टाचार के अड्डे में तब्दील होने की सूचना से हर कोई दुखी है। कॉलेज की संपत्तियों को बेचने पर शिक्षा निदेशालय ने कड़ा रूख अख्तियार किया है।

जांच समिति के सदस्यों से संबंधित नोटिस

शिकायत पत्र को संज्ञान में लेते हुए उच्च शिक्षा विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार ने शिकायतों की बिंदुवार एवं तथ्यात्मक जांच के करने के लिए केसी वर्मा (उच्च शिक्षा निदेशक, प्रयागराज) की अध्यक्षता में 4 सदस्यीय समिति का गठन किया है। समिति के अन्य सदस्यों में डॉ. ज्ञान प्रकाश वर्मा (क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी, वाराणसी), डॉ. वीके अग्रवाल (पूर्व प्राचार्य आरबीएस कॉलेज, आगरा) और अंबेडकर विश्वविद्यालय के वित्त नियंत्रक सतेंद्र कुमार शामिल हैं।

धरनारत शिक्षकों से बात करते जांच समिति के सदस्य

17 जून, 2023 को 2 बजे जांच समिति धरनास्थल पर आई, और धरने पर बैठे शिक्षकों से बातचीत की। जांच समिति ने धरना स्थल पर आकर धरना रत शिक्षकों के आरोपों से सबंधित जानकारियां जुटाई। शिक्षकों ने प्राचार्य के द्वारा कॉलेज में की जा रही वित्तीय अनियमितताओं और प्रशासनिक कदाचार की शिकायत की। शिक्षकों ने जांच समिति को अवगत कराया की प्राचार्य बाजार मूल्य से अधिक मूल्य पर गैर जरूरी सामानों की खरीदारी कर कॉलेज को नुकसान पहुंचा रहे हैं।

शिक्षकों ने जांच समिति को बताया कि प्राचार्य साइकिल स्टैंड के माध्यम से छात्रों से 530 प्रति छात्र वसूली करवा रहे हैं। छात्र चाहे साइकिल लाते हो या न लाते हो, सबको 530 रुपये देने पड़ेंगे। शिक्षकों ने जांच समिति से मांग की कि प्राचार्य अनुराग शुक्ला को प्राचार्य की योग्यता ना होने के कारण एवं वित्तीय अनियमितताओं के कारण तत्काल पद से हटाया जाना चाहिए। शिक्षकों ने कमेटी को अवगत कराया कि प्राचार्य अनुराग शुक्ला अपने अधीनस्थ शिक्षकों, छात्रों एवं कर्मचारियों का उत्पीड़न कर रहे हैं।

शिक्षकों ने जांच समिति को बताया कि कॉलेज के कई आवास खाली पड़े हैं, गुटबंदी के आधार पर नए शिक्षकों को उनका आवंटन नहीं किया जा रहा है। बल्कि प्राचार्य भेदभाव कर रहे हैं। इस प्रकार अनुराग शुक्ला अपनी प्राचार्य की प्रदत्त शक्तियों का दुरुपयोग कर महाविद्यालय में गुटबंदी फैलाकर माहौल को दूषित कर रहे हैं।

आगरा कॉलेज में लगभग 14 हजार छात्र हैं। जब से अनुराग शुक्ल आए हैं सीसी (करेक्टर सर्टिफिकेट) और टीसी (ट्रांसफर सर्टिफिकेट) का शुल्क 2 रुपये से 200 रुपये कर दिया। अब इतने बड़े कॉलेज में हर साल हजारों छात्र अपना सीसी और टीसी लेते हैं, प्राचार्य सबसे पैसा वसूल रहे हैं और रसीद भी नहीं दे रहे हैं।

आगरा कॉलेज स्टाफ क्लब के सचिव डॉ. विजय कुमार सिंह कहते हैं कि “हर कॉलेज में प्राचार्य कार्यालय होता है, यहां पर प्राचार्य सचिवालय है। डॉ. अनुराग शुक्ल जबसे प्राचार्य बनकर आए हैं कार्यालय को सचिवालय बना दिया है।”

प्राचार्य सचिवालय

धरनारत शिक्षकों का आरोप है कि कॉलेज के प्राचार्य डॉ. अनुराग शुक्ल किसी पीजी कॉलेज के प्राचार्य पद की योग्यता नही रखते हैं। ‘औटा’ महामंत्री डॉ. भूपेंद्र चिकारा कहते हैं कि “डेढ़ साल पहले आगरा कॉलेज के प्राचार्य बने डॉ. अनुराग शुक्ल इस पद के योग्य नहीं है। उनके अंडर में कोई भी छात्र पीएचडी नहीं किया है। जबकि वह डिग्री कॉलेज के शिक्षक थे। डिग्री कॉलेज का शिक्षक पीजी कॉलेज का प्राचार्य नहीं बन सकता है।”

धरनारत शिक्षकों ने जांच समिति से आग्रह किया है कि समिति विवादित प्राचार्य से निम्न दस्तावेज मांगे:

  1. मूल नियुक्ति पत्र (आयोग से शिक्षक के रूप मे चयनोपरांत कार्यभार ग्रहण करने का प्रमाणपत्र)
  2. प्राचार्य पद का निदेशालय द्वारा प्रदत्त प्रमाणपत्र
  3. पीएचडी करने का प्रमाणपत्र
  4. प्राचार्य परीक्षा में उपयुक्त ओएमआर की अभ्यर्थी प्रतिलिप (तृतीय प्रतिलिपि)

प्राचार्य डॉ. अनुराग शुक्ल पर प्रशासनिक अक्षमता के आरोप तो हैं ही, उन पर आर्थिक भ्रष्टाचार के भी आरोप हैं। कॉलेज की परिसंपत्तियों को बेचने और कॉलेज फंड का दुरुपयोग करने का भी आरोप है। प्राचार्य पर आरोपों की सूची बड़ी लंबी है। लेकिन सबसे पहले वह छात्रों के उपयोग वाली स्पोर्ट्स ग्राउंड को मेट्रो रेल को देने का आरोप है।

क़ॉलेज स्पोर्ट्स ग्राउंड पर मेट्रो का कार्य शुरू

स्पोर्ट्स ग्राउंड परिसर में कॉलेज कर्मचारियों के लिए आवास बने थे। मेट्रो ने उक्त जमीन अधिग्रहण करने के बाद कर्मचारियों को निकाल कर आवास को तोड़ दिया। उसी परिसर में शिक्षकों के संघ का दफ्तर यानि स्टाफ क्लब का भी दफ्तर था। जिस पर मेट्रो ने कब्जा कर लिया है। मेट्रो स्टेशन बनने काम चालू है। कॉलेज का कोई शिक्षक या छात्र अब उस परिसर में नहीं जा सकता है।

स्पोर्ट्स ग्राउंड में मेट्रो स्टेशन के लिए चल रहा निर्माण कार्य

इसी तरह प्राचार्य ने कॉलेज के छात्रावासों को मेट्रो और विभिन्न एजेंसियों को किराए पर दे दिया है। थॉमसन छात्रावास को भी मेट्रो को किराए पर दे दिया गया है। और अन्य छात्रावास देख-रेख के अभाव में खस्ताहाल हैं। यही हाल प्रोफेसरों के आवास का भी है।

थॉमसन छात्रावास में रहते हैं मेट्रो के कर्मचारी

कॉलेज के प्राचार्य पर भ्रष्टाचार के निम्न आरोप हैं:
. बिजली चोरी
. जीएसटी घोटाला
. आउटसोर्सिंग घोटाला
. वाणी पत्रिका घोटाला
. टॉयलेट निर्माण घोटाला
. प्रतियोगिता परीक्षा घोटाला
. चिट फंड घोटाला
. मार्च क्लोजिंग घोटाला
. अलमारी खरीद घोटाला
. विनिर्माण घोटाला
. सीसीटीवी घोटाला
. जमीन हस्तांतरण घोटाला
. पार्किंग शुल्क घोटाला

कॉलेज प्राचार्य डॉ अनुराग शुक्ल पर सिर्फ आर्थिक गबन करने के आरोप ही नहीं है। उन पर एक आरोप ऐसा भी है जो कोई भी शिक्षक करने के बारे में सोच भी नहीं सकता है। उनपर पेपर लीक कराने जैसा संगीन आरोप है। जो किसी शिक्षक के लिए कलंक से कम नहीं है। दरअसल, परीक्षाओं में आगरा कालेज में विज्ञान व गणित के पेपर लीक हुये थे जिसमें कालेज का शोध छात्र तथा कोचिंग संचालक ब्रह्मजीत यादव के विरूद्ध एफआईआर भी हुआ है।

धरनारत शिक्षकों का कहना है कि ब्रह्मजीत यादव डॉ. अनुराग शुक्ला का अत्यंत करीबी है तथा दोनों के बीच पारिवारिक रिश्ते रहे हैं। उस समय के काल डिटेल और कालेज के कर्मचारियों व शिक्षकों से पूछताछ कर यह बात सत्यापित की सकती है। इसीलिए प्राचार्य ने कालेज स्तर पर इस मामले में कोई कार्यवाही नहीं की है तथा इस गंभीर मामले को दबा दिया है।

कालेज के प्राचार्य गंभीर वित्तीय अनियमितताओं में लिप्त है आगरा कालेज के 19 खातों से उनके समय में हुये भुगतान तथा संबन्धित कागजातों से यह सिद्ध किया जा सकता है। इन अनियमितताओं में बिना मांग व आवश्यकता के सामान की खरीदारी करने और उनका मनमानी कीमत दिखाकर कमीशन लेने का आरोप भी है।

‘फुपुक्टा’ अध्यक्ष डॉ. वीरेन्द्र सिंह चौहान कहते हैं कि “डॉ. अनुराग शुक्ला प्राचार्य पद की यूजीसी तथा उत्तर प्रदेश शासन द्वारा निर्धारित दो न्यूनतम अर्हतायें पूरी नहीं करते- शोध निर्देशन तथा 15 वर्षों का शैक्षणिक अनुभव। इन अर्हताओं में उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा सेवा आयोग को शिथिलता प्रदान करने का कोई अधिकार नहीं है। लेकिन डॉ. अनुराग शुक्ल के मामले में साठगांठ से इन अर्हताओं में धांधली की गई है। इसका सत्यापन डॉ. अनुराग शुक्ल के मूल आवेदन पत्र से किया जाना आवश्यक है।”

अब सवाल उठता है कि इतने विरोध के बावजूद डॉ. अनुराग शुक्ल अपनी मनमानी से बाज क्यों नहीं आ रहे हैं। शिक्षकों का कहना है कि इसके दो कराण हैं। पहला, आगरा कॉलेज का प्राचार्य प्रबंध समिति का पदेन सचिव भी होता है। इस तरह प्राचार्य को बहुत ज्यादा अधिकारों से युक्त कर दिया है। और दूसरा, प्राचार्य का राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ाव। ऐसे में शिक्षकों को न्याय मिलने में देरी हो रही है। लेकिन शिक्षकों का कहना है कि अंत में जीत सत्य की ही होगी।

(प्रदीप सिंह जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।)

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