Sunday, April 28, 2024
प्रदीप सिंह
प्रदीप सिंहhttps://www.janchowk.com
दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

धारा 370 पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, जम्मू-कश्मीर में एक बार फिर पसरा सन्नाटा

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार के जम्मू-कश्मीर से धारा-370 हटाने के फैसले को बरकरार रखा है। धारा 370 हटाने के लगभग 4 साल और 4 महीने बाद आए सर्वोच्च अदालत के फैसले ने जम्मू-कश्मीर से धारा-370 हटाने को वैधता प्रदान कर दी है। लेकिन अदालत के इस फैसले पर दिल्ली से लेकर जम्मू और कश्मीर तक माहौल गर्म हो गया है। घाटी का माहौल इस समय वही है जो धारा 370 को हटाने के समय था। यानि सरकार ने जब धारा 370 को हटाया तब भी जम्मू-कश्मीर में नजरबंदी, गिरफ्तारियां और इंटरनेट को बंद कर दिया गया था, और चार साल बाद जब सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार के फैसले को वैध बताया तब भी घाटी के लोगों का आक्रोश फूट न पड़े, इस आशंका के चलते उप-राज्यपाल नेताओं को नजरबंद कराने में लगे हैं। मिली सूचना के मुताबिक राज्य सरकार रविवार से ही जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा-व्यवस्था कड़ी करने में लगी रही।

मोदी सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिया था। और राज्य को 2 हिस्सों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया था और दोनों को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया था। केंद्र सरकार के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 23 अर्जियां दायर की गई थीं। अदालत में चली लंबी सुनवाई के बाद कोर्ट ने सितंबर में इस मामले का फैसला सुरक्षित रख लिया था। आज (11 दिसंबर) को अपने फैसले में सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार के फैसले पर मुहर लगा दी। सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने यह फैसला सुनाया है।

सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि धारा 370 हटाने का फैसला संवैधानिक तौर पर सही था। राष्ट्रपति को धारा 370 हटाने का अधिकार है। इसके साथ ही अदालत ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में 30 सितंबर, 2024 तक चुनाव हों।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से जम्मू-कश्मीर के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों- गुलाम नबी आजाद, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती ने नाराजगी जताई है।

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को दशकों लग गए और उन्होंने कहा कि वे लंबी लड़ाई के लिए भी तैयार हैं। उन्होंने कहा, “भाजपा को यहां तक पहुंचने में दशकों लग गए। हम भी लंबी लड़ाई के लिए तैयार हैं।”

जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर नाखुशी जताते हुए कहा कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करना एक गलती थी और इसे लेकर जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दलों से भी पूछा जाना चाहिए था। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट से हमारी आखिरी उम्मीद थी, फैसले से जम्मू-कश्मीर के लोग खुश नहीं हैं।

गुलाम नबी आजाद के बयान पर चुटकी लेते हुए उमर अब्दुल्ला ने एक्स पर पोस्ट किया कि “आज़ाद साहब सचमुच आज़ाद हैं। वह अपने पार्टी कार्यालय में आने के लिए स्वतंत्र हैं, जबकि हममें से कुछ लोग अपने-अपने गेट पर जंजीरों से बंद हैं। गुपकर रोड पर मीडिया कर्मियों को हमसे कोई प्रतिक्रिया लेने की अनुमति नहीं दी जा रही है। मदर ऑफ डेमोक्रेसी? मतलब ऐसी तैसी डेमोक्रेसी।”

पीडीपी (PDP) प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने कहा, “हिम्मत नहीं हारें, उम्मीद न छोड़ें, जम्मू-कश्मीर ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। सुप्रीम कोर्ट का आज का फैसला यह एक मुश्किल पड़ाव है, यह मंजिल नहीं है…..हमारे विरोधी चाहते हैं कि हम उम्मीद छोड़कर इस शिकस्त को स्वीकार करें….यह हमारी हार नहीं यह देश के धैर्य की हार है…”

जम्मू-कश्मीर के नेता नजरबंद

सोमवार सुबह से ही जम्मू और कश्मीर के संवेदनशील माने जाने वाले स्थानों पर सुरक्षा-व्यवस्था कड़ी कर दी गई थी। क्योंकि धारा-370 पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आना था। खासकर ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर और आस-पास के इलाकों में सुरक्षा व्यवस्था मजबूत कर दी गई है। कश्मीर में कड़ी सुरक्षा के विपरीत, शीतकालीन राजधानी जम्मू में सुरक्षा स्थिति और पुलिस और अर्धसैनिक बलों की तैनाती लगभग सामान्य थी।

पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की अध्यक्षता वाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के नेताओं ने दावा किया कि उन्हें घर में नजरबंद कर दिया गया है, जबकि पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला सहित प्रमुख नेताओं के आवास गुपकर रोड पर भी कुछ प्रतिबंध लगाए गए हैं।

महबूबा की बेटी इल्तिजा मुफ्ती ने कहा कि उन्हें शहर के बाहरी इलाके में उनके खिंबर आवास पर तैनात पुलिसकर्मियों के साथ नजरबंद कर दिया गया है।

अधिकारियों ने कहा कि उच्च सुरक्षा वाले गुपकर की ओर जाने वाली सड़क पर बड़ी संख्या में पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है और लोगों की आवाजाही पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।

कश्मीर क्षेत्र के पुलिस महानिरीक्षक द्वारा सभी सुरक्षा बलों और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों को जारी एक सलाह में कहा गया है कि “अशांतिपूर्ण क्षेत्रों” में वीआईपी और संरक्षित व्यक्तियों को ले जाने वाले या उन्हें ले जाने वाले वाहनों की आवाजाही से भी बचा जाना चाहिए।

अधिकारियों ने कहा कि कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए पूरे जम्मू-कश्मीर में कड़ी निगरानी रखी जा रही है।

अनुच्छेद 370 को निरस्त करने पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले जम्मू-कश्मीर के नेताओं को नजरबंद करने की खबरों पर एलजी मनोज सिन्हा का कहना है, “यह पूरी तरह से निराधार है। जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक कारणों से किसी को भी नजरबंद नहीं किया गया है या गिरफ्तार नहीं किया गया है। यह अफवाहें फैलाने का एक प्रयास भर है।”

पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा के दावे का खंडन करते हुए एक्स पर एक पोस्ट किया, “एलजी  महोदय, ये जंजीरें जो मेरे गेट पर लगाई गई हैं, वे मैंने नहीं लगाई हैं तो आप अपने पुलिस बल द्वारा किए गए काम से इनकार क्यों कर रहे हैं। यह भी संभव है कि आपको पता ही न हो कि आपकी पुलिस क्या कर रही है? या तो आप झूठ बोल रहे हैं या आपकी पुलिस आपसे स्वतंत्र होकर काम कर रही है?”

सीपीएम ने पूरे फैसले पर अचरज जाहिर किया है। उसने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला बेहद परेशान करने वाला है। और संघीय ढांचे के लिए इसका गंभीर नतीजा होगा जो संविधान की एक मूल विशेषता है।

सीपीएम के मुताबिक फैसला कहता है कि सत्ता हस्तांतरण के बाद जम्मू-कश्मीर के के पास संप्रभुता का कोई तत्व नहीं बचा था और इस नियम के तहत जम्मू-कश्मीर का संविधान अनावश्यक है। लेकिन क्या सत्ता हस्तांतरण पर हस्ताक्षर शर्तों से बंधा नहीं था जिसमें अब समाप्त कर दी गयी धारा 370 में स्पेशल स्टेटस को बनाए रखने की बात शामिल थी?

पोलित ब्यूरो की ओर से जारी की गयी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि फैसला यह घोषित करता है कि सत्ता हस्तांतरण के बाद जम्मू-कश्मीर किसी भी दूसरे भारतीय राज्य की तरह है। यह तो जम्मू-कश्मीर को उत्तर-पूर्व समेत कई राज्यों को धारा 371 के तहत दी गयी कुछ विशेष विशेषताओं के दर्जे से भी नीचे ले जाकर खड़ा कर देता है।

यहां तक कि फैसले ने जम्मू-कश्मीर को राज्य से घटा कर यूनियन घोषित करने के मामले की मेरिट पर भी विचार करना जरूरी नहीं समझा।  

AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि “हम इस फैसले से संतुष्ट नहीं हैं… कश्मीर हमेशा से भारत का एक अटूट हिस्सा रहा है… अब आने वाले दिनों में भाजपा को कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद और मुंबई के केंद्र शासित प्रदेश बनाने से कोई नहीं रोक सकेगा। इसका नुकसान सबसे ज़्यादा डोगरा और लद्दाख के बुद्धिस्ट को होगा…।”

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