चंडीगढ़। पंजाब के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित और मुख्यमंत्री भगवंत मान के बीच टकराव का एक नया अध्याय शुरू हो गया है। प्रदेश में आम राय है कि जिस मानिंद आम आदमी पार्टी सुप्रीमो और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल किसी न किसी मुद्दे पर उपराज्यपाल से भिड़े रहते हैं- पंजाब के मुख्यमंत्री भी ठीक वैसा ही करते हैं। अलहदा बात है कि अवाम जब सामूहिक मुसीबत में होती है, राज्यपाल और मुख्यमंत्री का टकराव सतह पर होता है। सूबे के बाशिंदे इन दिनों बाढ़ से बेजार हैं।
19 और 20 जून को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया गया था और उसमें चार बिल पारित किए गए थे। मुख्यमंत्री ने राज्यपाल से आग्रह किया था कि वह इन चारों बिलों को मंजूरी दे दें लेकिन बनवारीलाल पुरोहित ने इससे साफ इंकार करते हुए कहा है कि वह अटॉर्नी जनरल सहित अन्य विधि विशेषज्ञों से सलाह ले रहे हैं कि 19 और 20 जून को विधानसभा में पारित किए गए बिलों की बाबत अंतिम निर्णय क्या लेना है?
15 जुलाई को मुख्यमंत्री भगवंत मान ने राज्यपाल को चिट्ठी लिखी थी कि इन बिलों को तत्काल प्रभाव से अपनी सहमति देने का कष्ट करें। हालात बताते हैं कि राज्यपाल इसके लिए कतई तैयार नहीं। अब मुख्यमंत्री के पत्र के जवाब में राज्यपाल ने साफ लिखा है कि, ‘मेरे पास यह मानने के कई आधार हैं कि विधानसभा सत्र, जिसमें चार बिल पास किए गए थे, वह कानून और कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन था। इससे उन बिलों की वैधता और वैधानिकता पर संदेह पैदा होता है।’
साथ ही राज्यपाल ने लिखा है कि आपके (मुख्यमंत्री) पत्र से जाहिर होता है कि आप एक विशेष राजनीतिक परिवार की कुछ कार्रवाईयों से चिंतित हैं, जिसने विधानसभा में उनके खिलाफ बिल पास करवाने के लिए आपको प्रेरित किया। यह चिंता का भी विषय है।
गौरतलब है कि 20 जून को विधानसभा में गुरबाणी के प्रसारण का अधिकार सभी को देने के लिए गुरुद्वारा एक्ट संशोधन बिल, पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) की नियुक्ति के लिए पुलिस एक्ट संशोधन बिल तथा विश्वविद्यालयों के उपकुलपति की नियुक्ति का अधिकार मुख्यमंत्री को देने सहित 4 बिल पास किए गए थे।
हरिमंदिर साहिब से प्रसारित होने वाली गुरबाणी के प्रसारण को लेकर एक निजी चैनल पीटीसी को दिए गए अधिकार की समयावधि 23 जुलाई को खत्म हो रही है। मुख्य तौर पर इसी का हवाला देकर भगवंत मान ने बनवारीलाल पुरोहित को चिट्ठी लिखकर संशोधन बिल को यथाशीघ्र पास करने की मांग की थी। राज्यपाल ने एक पन्ने के जवाबी पत्र में लिखा है कि अगर विधानसभा सत्र कानून के मुताबिक व विधानसभा के नियमों के तहत होगा तो वह इन बिलों पर जरूर कार्रवाई करेंगे, अन्यथा इसे राष्ट्रपति के पास भेज दिया जाएगा।
सीधा इशारा है कि पहले इस पर निर्णय होगा कि 19-20 जून को बुलाए गए विधानसभा सत्र संवैधानिक दृष्टि से जायज हैं या नहीं। सेशन अगर कानूनी रूप से मान्य होगा तो राज्यपाल बिल पास करने को लेकर आवश्यक कार्रवाई करेंगे। सत्र अगर कानूनी रूप से मान्य नहीं होगा तो विधानसभा में पास हुए बिलों का कोई वजूद ही नहीं रह जाएगा। दूसरे शब्दों में कहें तो वे रद्दी के टुकड़े बनकर रह जाएंगे। नतीजतन विवाद निहायत नाजुक रूप अख्तियार कर लेगा।
राज्यपाल की एक पन्ने की चिट्ठी ने थोड़ा तूफान तो सूबे की सियासत में ला ही दिया है। स्वाभाविक रूप से सत्तारूढ़ ‘आप’ सरकार की कारगुजारी पर बनवारीलाल पुरोहित की दो-टूक संक्षिप्त चिट्ठी ने कहीं न कहीं समूची सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं। पार्टी को मर्यादित जवाब देना होगा। मंथन जारी है। पहले मुख्यमंत्री भगवंत मान बोलेंगे और उसके बाद पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता। पंजाब में आम आदमी पार्टी की अब यही रिवायत है।
पंजाब सरकार का बजट अधिवेशन 3 से 24 मार्च तक हुआ था। ‘आप’ के ही एक वरिष्ठ नेता ने नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर बताया कि बहुत सोची-समझी रणनीति के तहत राज्य सरकार ने राज्यपाल के पास अधिवेशन को निरस्त करने के लिए प्रस्ताव नहीं भेजा। नियमानुसार यह होता है कि जब सत्र उठाना होता है तो राज्यपाल को विधिवत प्रस्ताव भेजा जाता है। सत्र की समाप्ति की घोषणा नहीं की गई और उसी के तहत 19 तथा 20 जून को विधानसभा का विशेष सत्र बुला लिया गया। इसी में चारों बिल बहुमत से पास हो गए।
विधानसभा में ‘आप’ पूर्ण बहुमत में है। अधिवेशन जब औपचारिक तौर पर उठाया ही नहीं गया था तो सत्र बुलाने के लिए राज्यपाल की स्वीकृति जरूरी नहीं थी। बेशक राज्यपाल ने बकायदा विधानसभा अध्यक्ष को नोटिसनुमा पत्र लिखकर सत्र के कामकाज की जानकारी तलब की थी। इस पर स्पीकर ने जवाब दिया कि बिजनेस एडवाइजरी कमेटी (बीएसी) की बैठक के बाद उन्हें कामकाज की जानकारी दी जाएगी लेकिन बीएसी की बैठक हुई ही नहीं।
एक अखबार से बातचीत में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट और संवैधानिक मामलों के गहरे जानकार हेमंत कुमार का कहना है कि 19 और 20 जून को बुलाए गए सेशन का सत्रावसान नहीं किया गया था और एक तरह से बजट सेशन-2 था। राज्य सरकार ने भी बजट सेशन का सत्रावसान नहीं किया है और 20 दिसंबर से पहले एक और सेशन बुला सकती है। मानसून सत्र भी इसी क्रम में बुलाया जा सकता है यह असंवैधानिक नहीं होगा।
मुख्यमंत्री भगवंत मान शुरू से ही आरोप लगाते आए हैं कि राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित केंद्र के इशारे पर राजनीति करते हैं। दोनों में पहले दिन से ही ठनी हुई है। कई मुद्दों पर गंभीर टकराव हो चुका है। सरगोशियां यह भी रहीं कि ऐसे हालात दरपेश किए जाएं कि अकूत बहुमत के साथ सत्ता में आई भगवंत मान सरकार को गिरा कर पंजाब में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया जाए। गाहे-बगाहे अब भी इन अफवाहों को हवा मिलती है। लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार किसी भी सूरत में फिलहाल तो ऐसा कुछ नहीं कर सकती या करना चाहेगी। 2024 में राष्ट्रीय राजनीतिक समीकरणों में परिवर्तन आया तो यकीनन शेष देश के साथ पंजाब पर भी इसका गहरा असर पड़ेगा ही पड़ेगा।
वैधानिक मुद्दों पर पंजाब के मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच जितना पत्राचार हुआ है, उतना शायद देश के किसी भी अन्य राज्य में अतीत में नहीं हुआ। राज्यपाल ने विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति पर सवाल खड़े किए और कहा कि सरकार यूजीसी के नियमों से परे हटकर फैसले ले रही है। राज्यपाल का सूबे के सरहदी जिलों का दौरा करना और वहां रैलियां करके लोगों से मिलना भी काफी विवादास्पद रहा।
इसके लिए राज्यपाल ने सरकार के हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल किया और विवाद जब काफी आगे तक चला गया तो बनवारीलाल पुरोहित ने कहा कि ‘मैं जब तक पंजाब में हूं, सरकार के हेलीकॉप्टर का कभी इस्तेमाल नहीं करूंगा। शिक्षकों को विदेश भेजकर प्रशिक्षण दिलाने के मामले में राज्यपाल ने सरकार से जवाब-तलबी की तो मुख्यमंत्री का कहना था कि वह 3 करोड़ पंजाबियों के प्रति जवाबदेह हैं; न की किसी सलेक्टेड व्यक्ति के प्रति। इशारों-इशारों में भगवंत मान और आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल राज्यपाल को केंद्र का एजेंट बता चुके हैं।
3 मार्च को विधानसभा के बजट सत्र की मंजूरी देने से राज्यपाल ने इंकार कर दिया और सरकार से कहा कि वह पहले एजेंडा भेजे। भगवंत मान सरकार इस मामले में अदालत तक गई, जिसके बाद राज्यपाल ने सेशन बुलाने की मंजूरी दी। राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच विवादों का लंबा लेकिन ताजा इतिहास है। राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित के आदेश पर चंडीगढ़ के एसएसपी कुलदीप चाहल को कार्यकाल खत्म होने से 10 महीने पहले ही पंजाब के मूल कैडर में वापस भेजने के फैसले पर भगवंत मान ने सार्वजनिक आपत्ति जताई थी।
पंजाब के राज्यपाल के पास चंडीगढ़ के मुख्य प्रशासक का अतिरिक्त कार्यभार भी होता है। मान ने राज्यपाल को पत्र लिखकर कहा था कि उनसे इस मुद्दे पर चर्चा क्यों नहीं की गई। मान का कहना था कि यूटी में एसएसपी का कार्यकाल तीन साल का होता है, जो पूरा नहीं हुआ। एसएसपी कुलदीप चाहल अपने मूल कैडर पंजाब लौट आए तो मुख्यमंत्री ने उन्हें महत्वपूर्ण जिला जालंधर का पुलिस कमिश्नर बना दिया।
26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस पर राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित ने जालंधर में राज्यस्तरीय कार्यक्रम में सलामी लेनी थी लेकिन पुलिस कमिश्नर ने उनसे दूरी बनाए रखी और इस पर राज्यपाल ने सार्वजनिक एतराज भी जताया। प्रोटोकॉल का उल्लंघन करार दिया। विवादों की फेहरिस्त बहुत लंबी है।
ऐसा है तो नहीं लेकिन कई बार लगता है कि प्रदेश के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित और मुख्यमंत्री भगवंत मान के बीच निजी खुन्नस है। भीतर की खबर है कि विपक्ष के कतिपय नेता भी बनवारीलाल पुरोहित के कुछ फैसलों को जायज नहीं मानते।
पार्टी लाइन से हटकर पंजाब प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सुनील जाखड़ कहते हैं कि, “विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति राज्य सरकार का मामला है। केंद्र को इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।” जाखड़ का यह कथन पार्टी लाइन से हटकर है। कुछ दिन पहले ही भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव तरुण चुघ व अन्य नेता इस मुद्दे पर पुरोहित का खुला समर्थन कर रहे थे।
बहरहाल, राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच का ताजा टकराव किस परिणाम को हासिल होगा, कहना मुश्किल है। इतना जरूर कहा जा सकता है कि संवैधानिक व्यवस्था के लिए यह अच्छी मिसाल नहीं।
(अमरीक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)