नई दिल्ली। कश्मीर मसले पर यूएनएससी की अनौपचारिक बातचीत संपन्न हो गयी। बंद कमरे हुई यह अनौपचारिक बैठक तकरीबन 75 मिनट चली। बैठक के बाद कोई आधिकारिक बयान नहीं जारी किया गया। भारत के लिए यह बेहद राहत की बात कही जा सकती है।
हालांकि बैठक के बाद इस मामले में सीधे शामिल देशों के राजनयिकों ने अपने-अपने तरीकों से पहल की। शुरुआत चीन की तरफ से हुई। जब बैठक के तुरंत बाद संयुक्त राष्ट्र में उसके स्थाई प्रतिनिधि सबसे पहले पत्रकारों के सामने आए। उनका दावा था कि कौंसिल के सदस्यों में सामान्य विचार यह था कि एकतरफा तरीके से फैसला नहीं लिया जाना चाहिए।
उसके तुरंत बाद अभूतपूर्व कदम उठाते हुए यूएन में भारत के स्थाई प्रतिनिधि अकबरुद्दीन पत्रकारों से रूबरू हुए। उन्होंने दावा किया कि चीन और पाकिस्तान यूएनएसएसी की बैठक की तरफ से बोलने का दावा कर पूरी दुनिया को गुमराह कर रहे हैं।
दि वायर के हवाले से आई खबर के मुताबिक यूएनएससी के दूसरे सदस्य देशों के अनुसार चीन ने कार्यवाही की जो तस्वीर पेश की है वह सही नहीं है।
न्यूयार्क में बैठक 10 बजे शुरू हुई जो बताया जाता है कि तकरीबन 75 मिनट चली। इस दौरान कौंसिल के सभी सदस्यों ने बारी-बारी से अपनी बात रखी।
बैठक के बाद चीन के स्थाई सदस्य झांग जून ने रिपोर्टरों को बताया कि “सुरक्षा परिषद की बातचीत को सुनने के बाद मैंने जो जज किया वे जम्मू-कश्मीर की मौजूदा स्थिति को लेकर बेहद चिंतित हैं। वे वहां के मानवाधिकार (स्थिति) को लेकर भी चिंतित हैं।”
इसके साथ ही उन्होंने कमरे में सदस्यों के बीच आम सहमति होने जैसी बात कही। उन्होंने कहा कि यह सदस्यों की तकरीबन आम राय थी कि संबंधित पक्षों को कोई एकतरफा फैसला लेने से बचना चाहिए ऐसा होने से तनाव के और बढ़ जाने का खतरा है क्योंकि परिस्थिति पहले से ही बेहद तनावपूर्ण और खतरनाक बन गयी है।
उसके बाद पाकिस्तान की राजदूत मलीहा लोधी सामने आयीं। उन्होंने कहा कि कश्मीर की आवाजों को यूएन में सुना गया।
हालांकि दोनों ने इस तरह का कोई संकेत नहीं दिया कि बैठक के बाद यूएन द्वारा कोई कार्यवाही या फिर आगे बातचीत होगी।
उसी के कुछ मिनट बाद ही भारत के स्थाई प्रतिनिधि अकबरुद्दीन सामने आये। उन्होंने कहा कि “बंद कमरे में हुई बातचीत के बाद से ही मैं यहां हूं। हमने इस बात को नोट किया कि दो देश जिन्होंने राष्ट्रीय बयान जारी किए हैं उनको इस तरह से पेश किए हैं जैसे वो अंतरराष्ट्रीय समुदाय की इच्छा हों”।
अकबरुद्दीन ने एक बार फिर इस मसले पर भारत के रुख को साफ किया। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 खत्म करने का फैसला भारत का आंतरिक मामला है। और पाकिस्तान से बातचीत केवल एक ऐसे माहौल में हो सकती है जब वह आतंकवाद से मुक्त हो।
यूएनएससी के अध्यक्ष पोलैंड के जोन्ना रेंका ने बैठक के बाद कोई बयान नहीं दिया। न ही कोई विज्ञप्ति जारी की गयी। यह तथ्य अपने आप में भारत के पक्ष में जाता है।