पीलीभीत। पीलीभीत में नागरिकता संशोधन कानून, एनआरसी व एनपीआर के विरोध में 13 फरवरी को शांतिपूर्ण धरना के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस मुशफ्फे अहमद सहित 33 लोगों पर फर्जी एफआईआर मुख्यमंत्री कार्यालय के निर्देश पर दर्ज की गई है।
उक्त आरोप स्वराज अभियान की राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य व लोकमोर्चा संयोजक अजीत सिंह यादव ने पीलीभीत में आज प्रेसवार्ता में लगाया। वह यूपी कोर्डिनेशन टीम अगेंस्ट सीएए , एनआरसी व एनपीआर व संविधान रक्षक सभा की ओर से पीलीभीत में आंदोलनकारियों के पुलिस उत्पीड़न की जांच करने आये जांच दल में शामिल थे। उन्होंने कहा कि जनांदोलन से योगी सरकार डरी हुई है इसलिए उत्तरप्रदेश में जनता की लोकतांत्रिक आवाज को दबाने के लिए पुलिस दमन का सहारा ले रही है।
पत्रकार वार्ता में संविधान रक्षक सभा के कानूनी सलाहकार एडवोकेट अनवर आलम ने कहा कि सीएए का विरोध ना तो गैरकानूनी है और ना ही गैर संवैधानिक। यह माननीय सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन बाग पर सुनवाई के दौरान यह अभिमत दिया है और यह भी कहा है कि सीएएए का विरोध करना नागरिकों का संवैधानिक अधिकार है लेकिन योगी सरकार सुप्रीम कोर्ट के अभिमत का सम्मान नहीं कर रही है और उत्तर प्रदेश में सीएए के विरोध को पुलिस के दमन के जरिए दबाया जा रहा है। धारा 144 का गैरकानूनी उपयोग कर नागरिकों के अभिव्यक्ति के संवैधानिक अधिकार की हत्या की जा रही है।

पत्रकार वार्ता में मौजूद भाकपा माले की केंद्रीय कमेटी सदस्य श्रीमती कृष्णा अधिकारी ने कहा कि मैं 13 फरवरी को पीलीभीत में हुए नागरिकता कानून विरोधी धरने में शामिल थीं। मेरे ऊपर व अन्य आंदोलनकारियों पर दर्ज मुकदमा फर्जी है। सरकार पुलिस के द्वारा नागरिकों की आवाज को दबाना चाहती है जिसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि पीलीभीत के मोहल्ला शेर मोहम्मद में जुगनू की पाखड़ पर शांतिपूर्ण सभा के बाद 13 फरवरी को प्रशासनिक अधिकारियों को ज्ञापन दे दिया गया था।
उसके बाद षड्यंत्र के तहत प्रशासन ने छुट्टी पर गए पुलिस सिपाही दुष्यंत कुमार द्वारा 14 फरवरी को बंधक बनाने और मारपीट करने का फर्जी मुकदमा 33 नामजद लोगों और 100 अज्ञात पर दर्ज किया। 7 क्रिमिनल एक्ट से लेकर किडनैपिंग और बंधक बनाने जैसी आपराधिक धाराएं लगाईं हैं। जिस मकान में बंधक होने का आरोप लगाया है उसमें मौजूद सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं , लेकिन प्रशासन ने उसकी फुटेज की जांच करना भी जरूरी नहीं समझा।
इसके पहले जांच दल ने पीड़ितों से बात की, मुकदमे में नामजद इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस मुशफ्फे अहमद के आवास पर जाकर उनके बयान दर्ज किए। जस्टिस ने बताया कि पुलिस ने फर्जी मुकदमा लगाया है।

जांच दल घटनास्थल पर मोहम्मद साजवान के आवास पर गया जिस पर आरोप लगाया गया है कि वहां पुलिस सिपाही को बंधक बनाया गया था लेकिन वहां पर उनकी मां श्रीमती मोहम्मद बी ने बताया कि मेरे घर सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं और ऐसी कोई घटना नहीं हुई है । सीसीटीवी कैमरे की रिकॉर्डिंग की जांच कर ली जाए सच सामने आ जायेगा। प्रशासन का आरोप झूठा है सिपाही मेरे घर में बंधक नहीं रहा। जांच दल इसके बाद अब्दुल मोईद के घर पहुंचा जिनके घर पर अंदर के सारे दरवाजों पर ताले पड़े हुए थे बाहर सारा सामान टूटा और बिखरा पड़ा हुआ था।
जांच दल ने उसका निरीक्षण किया पड़ोसियों ने बताया कि पुलिस ने दबिश के दौरान सारे सामान को तोड़फोड़ किया है। अंत में जांच दल ने कई पीड़ितों से मिलकर उनकी समस्याएं सुनी जिनके नाम निम्नलिखित हैं मोहम्मद रजा खान , आरफा खानम शोएब रजा रुकैया, फातमा कादरी , जैद खान आदि पीड़ितों ने बताया कि पुलिस बार-बार घर पर आकर दबिश दे रही है धमका रही है और प्रताड़ित कर रही है।
जांच दल ने बताया की वे बरेली मंडल के मंडलायुक्त व आईजी से मिलकर फर्जी मुकदमों को रद्द करने की मांग करेंगे व दोषी अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई की मांग करेंगे। इसके अलावा माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एफआईआर को रद्द कराने के लिए याचिका भी दाखिल की जाएगी। जांच दल में अजीत सिंह यादव एडवोकेट अनवर आलम सिराज अहमद डॉक्टर सतीश कुमार कारी शोएब तथा मुस्लिम अंसारी उपस्थित रहे।